“जब राज गद्दी पर सवाल उठते हैं, तब जवाब सिर्फ खून देता है। अब गिनती शुरू करो…” दरवाज़े पर लिखा ये संदेश पढ़ गजेन्द्र, विराज, रिया और मुक्तेश्वर थोड़ा हैरान-परेशान जरूर हो जाते हैं, लेकिन उनके इरादे बिल्कुल नहीं डगमगाते। गजेन्द्र तुरंत एक नौकर को आवाज लगता है।
इस दरवाजे को अभी के अभी पानी से धोकर चमका दो और हां इसका एक भी दाग नहीं रहना चाहिए।
गजेन्द्र का गुस्सा देख मुक्तेश्वर उसे समझाता है "सुनों बेटा, ये लड़ाई सत्ता के अधिकार और राजघराना की गद्दी को हासिल करने की है, इसे हासिल करना इतना आसान नहीं होगा। तो ऐसे में जीत का फिलहाल मैं तुम्हें एक ही मंत्र दे सकता हूं, कि अपने गुस्से पर हमेशा काबू रखों"
“ठीक है पापा… मैं आपकी बात का हमेशा ख्याल रखूंगा”
मुक्तेश्वर की बात मान गजेन्द्र, रिया और विराज के साथ सीधे अपने कमरे में चला जाता है। इस वक्त तीनों के दिलों में एक साथ सवालों और डर की सिहरन दौड़ रही थी। दरवाजें पर लिखी वो लाइन सिर्फ धमकी नहीं थी, पक्का दुश्मन कुछ बड़ा और भयानक करने की प्लानिंग कर रहा था।
ये ही सोचते हुए रिया बोलीं, "गिनती मतलब... कितनी मौत तक हमें मंजूर करना पड़ेगा? जब राजघराना हमारा है, तो आखिर ये कौन है जो जबरन हक जमा रहा हैं"
रिया के इस सवाल का किसी के पास कोई जवाब नहीं था, लेकिन तभी किसी के चिल्लाने की आवाज आई। रिया, विराज और गजेन्द्र तीनों भागकर आवाज वाली दिशा में गए, तो देखा रेनू अपने कमरे में जमींन पर गिरी पड़ी थी और उसके सर से खून निकल रहा था। विराज ने दौड़कर उसे उठाया और पूछा।
रेनू ये सब क्या हुआ? तुम्हारे कमरे का सामान इतना बिखरा हुआ क्यों है? और तुम्हें ये चोट कैसे लगी?
विराज लगातार रेनू से सवाल करता रहा, लेकिन उसने एक का भी जवाब नहीं दिया।
वो बेहोश हो गई है विराज, उसके सर से खून लगातार बह रहा है… जल्दी डॉक्टर को बुलाओं।
गजेन्द्र ने तुंरत डॉक्टर को फोन कर बुलाया। दस मिनट में डॉक्टर आया और उसने रेनू की पट्टी कर उसे दवाई दी। दवाई खा रेनू उस वक्त सो गई, लेकिन जब शाम को उसकी आंख खुली, तो उसने सबसे पहले सबको अपनी सुबह की आपबीति सुनाई।
आज सुबह-सुबह जब मैं अपनी मां से मिलकर महल लौटी, तो मैंने देखा नकाब पहने एक आदमी मेरे कमरे की तलाशी ले रहा था। उसने यहां-वहां हर जगह मेरा सामान फेंक रखा था। मैंने उससे जैसे ही सवाल करना शुरु किया, वो मुझे देखकर कमरे से भागने लगा, लेकिन तभी मैंने उसे घेरने और पकड़ने की कोशिश की और उसी वक्त उसने वो भारी सा गमला उठाकर मेरे सर पर दे मारा और भाग गया।
ये सुनते ही गजेन्द्र चिल्लाया— “आखिर ये कौन है, जो हमारे ही महल में आकर लगातार हमपर हमला कर रहा है? आखिर वो महल में ढूंढने क्या आ रहा है? मुझे लगता है हम अभी भी इस हवेली के किसी बहुत बड़े राज से अंजान है, जिससे वो शख्स हमें आगें भी अंजान रखना चाहता है।”
गजेन्द्र की बात में दम और सच्चाई दोनों थी। ऐसे में उन्होंने उस नए राज को तलाशनें की कसम खा ली।
इस वक्त मुक्तेश्वर, गजेन्द्र, रिया, रेनू और विराज महल के हॉल में एक साथ टेबल के चारों ओर बैठ रात का खाना खाते खाते अपनी अगली रणनीति बना रहे थे।
इसी बीच विराज ने गजेन्द्र को याद दिलाया, "सुनों गजेन्द्र, अपनी मां को इंसाफ दिलाने और उनकी मौत का बदला लेने की लड़ाई में तुम अपनी लड़ाई मत भूल जाना। कुछ ही दिनों में तुम्हारे हॉर्स मैंच फिक्सिंग पर कोर्ट फाइनल सुनवाई करने वाला है। याद है ना?”
जवाब में गजेन्द्र ने कहा “हां, मुझे सब याद है… और मैं उसके लिए पहले से तैयार हूं।”
इसके बाद गजेन्द्र वापस अपनी मां की मौत और राजघराने की गद्दी पर अपना हक वापस लेने की लड़ाई में जुट गया। उसने पूरी प्लानिंग करने के बाद सबसे कहा— “अब सिर्फ दिल्ली और राजगढ़ की अदालत नहीं... हमें मीडिया, सोशल मीडिया, प्रेस कान्फ्रेंस, इंटरव्यू और जनता को सीधे इस केस से जोड़ना होगा, ताकि सब को सच का पता चले।”
बेटे की इस कोशिश में अपना हाथ बढ़ाते हुए मुक्तेश्वर बोला “मैं हर कदम पर तेरे साथ हूं गजेन्द्र… मेरा रोल हर वक्त तुम्हारी ढाल बनने का नहीं है। इस बार मैं तुम्हारा कवच बनकर खड़ा रहूंगा, लेकिन उसके लिए मुझे पॉलिटिकल ताक़त चाहिए… जिसे हासिल करने के लिए मुझे सबसे पहले अपने पिता गजराज सिंह को तोड़ना और झुकाना होगा। जब तक वो खुद अपने गुनाह पूरी राजगढ़ जनता के सामनें नहीं कुबूल करेंगे, तब तक जनता भी मुझे दिल से उनका उत्तराधिकारी और राजघराना की राजगद्दी का अधिकारी नहीं मानेगी।”
मुक्तेश्वर की ये बात सुन रिया आगे आई और बोलीं— “आप गजेन्द्र के दादा गजराज सिंह से सच उगलवाने की कोशिश कीजिए अंकल, तब तक मैं सारी बड़ी समाचार एजेंसियों को ये कहानियां सारे दस्तावेजों और फाइलों के साथ भेज दूँगी, ताकि कोई 'फर्जी साजिश' न कर सके… और वक्त आने पर हम गजराज सिंह का गुनाहों का कुबूलनामा पूरी दुनिया को दिखा सके।”
इस पर रेनू भी साथ आ गई, क्योंकि रेनू को सोशल मीडिया का काफी अच्छी नॉलेज थी। ऐसे में उसने कहा “...और तब तक मैं सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर लोगों के मन में गजेन्द्र के लिये एक पॉजिटिव माहौल तैयार करती हूं। चलों एक साथ लड़ते है- गजराज सिंह, राज राजेश्वर भाई सा और प्रभा ताई के पति राघव भोंसले के खिलाफ। इस बार जीत सच्चाई की ही होगी।”
महल के जिस हॉल में बैठ इस वक्त सब खाना खाते हुए ये प्लानिंग कर रहे थे, उस कमरे की खिड़की बार-बार हिल रही थी। मानों जैसे कोई हवा में साजिश की तपिश और संघर्ष का धुआं तैर रहा था। रात गहराती जा रही थी, लेकिन महल की दीवारों में जैसे कोई खौफनाक साया बार-बार उस खिड़की पर कान लगाए दस्तक दे रहा था।
ऐसे में पूरी प्लानिंग के बाद रिया अभी अपने लैपटॉप पर सारे दस्तावेज मीडिया एजेंसियों को भेज रही थी, कि तभी रेनू के फोन पर एक कॉल आया... नंबर अनजान था।
"हैलो?"
रेनू ने काफी सवालों भरे अंदाज में कहा और जवाब का इंतजार करने लगी। कुछ देर की खामोंशी के बाद दूसरी ओर से आवाज आई…
"अगर गद्दी चाहिए तो चाबी लेकर पुराने मंदिर आओ... अकेले। वरना अगला खून तुम्हारे किसी अपने का होगा।"
उस आवाज़ में बर्फ सी ठंडक और जहर जैसा गुस्सा था, जिसे सुन रेनू जैसी बुलंद लड़की भी कांप गई। रेनू उस शख्स से जवाब में कुछ कहती उससे पहले फोन कट चुका था। रेनू के चेहरे का रंग उड़ गया और सब एकटक उसकी तरफ ही देख रहे थे।
"क्या हुआ रेनू बुआ?"
गजेन्द्र ने सीधे और साफ अंदाज में सवाल पूछा, तो रेनू ने बिना एक शब्द बोले फोन टेबल पर रखा और कॉल रिकॉर्डिंग चला दी। सब कुछ सुनने के बाद, पूरे कमरे में सन्नाटा पसर गया।
तभी अचानक मुक्तेश्वर ने काफी गंभीर आवाज़ में कहा— "पुराना मंदिर… वहां कोई बहुत पुरानी चीज दफन है। और इस शख्स ने भी तुम्हें वहीं बुलाया है रेनू..."
विराज तुरंत खड़ा हुआ और बोला— “रेनू, तुम अकेली नहीं जाओगी। हम सब तुम्हारे साथ चलेंगे, लेकिन दो टुकड़ियों में...। मैं और रिया बाहर गाड़ी में रहेंगे, तुम गजेन्द्र के साथ अंदर जाओगी।”
सबने विराज की प्लानिंग मान ली और दो कारों में सवार होकर पुराने मंदिर की तरफ चलने लगे। तभी गजेन्द्र रुका और उसने अपने कोट की जेब में रिवॉल्वर डाली।
“अब जो भी हो, अब की बार वार हमारा होगा।”
रात 11:45 बजे – पुराना मंदिर, राजगढ़ से 10 किलोमीटर दूर… पूरा इलाका सुनसान था। मंदिर वीरान था, चंद्रमा की रोशनी टूटी ईंटों और जंग लगे घंटे पर पड़ रही थी। सन्नाटा इतना गहरा था कि सांस लेने की आवाज़ भी कानों में गूंज रही थी।
रेनू और गजेन्द्र फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए उस पुराने मंदिर के अंदर दाखिल हुए। मंदिर की मूर्ति के पीछे रखे एक पत्थर को हटाते ही वहां एक लोहे की छोटी सी संदूकड़ी रखी थी, लेकिन जैसे ही गजेन्द्र ने उसे छुआ, चारों ओर से नकाबपोश लोग निकल आए… और तभी पीछे से एक भारी-भरकम आवाज आई।
"फाइनली, हमें मिल ही गया असली वारिस... अब इसे भी मिटा देते हैं।"
इस आदमी ने इतना कहा और अपनी बंदूक सीधी रेनू के सिर पर तान दी।
"चलो रेनू, अब तुम भी वहीं जाओगी जहां जानकी गई थी।"
ये कहते के साथ उसने अपनी बंदूक का ट्रिगर दबाने के लिए उंगली उस पर रख दी, लेकिन वो उसे दबाता उससे पहले गजेन्द्र बोल उठा— "तो तुम ही हो जो जानकी मां की हत्या में शामिल थे?”
गजेन्द्र की आंखें गुस्से से जल उठीं, लेकिन असली तिलमिलाहट तो उसके बदन में तब हुई जब सामने खड़े उस शैतान ने कहा, “जानकी सिर्फ एक मोहरा थी... असली खेल तो अब शुरू हुआ है, हाहाहाहा… क्योंकि मारना तो हम हमेशा से तेरे बाप मुक्तेशर को चाहते थे। खैर अभी भी वक्त हमारे ही हाथों में है… तुम लोगों का हमारे हाथों मरना तुम्हारी किस्मत थी… बस फर्क सिर्फ इतना है कि ये मौत तुम्हें थोड़ी देरी से मिल रही है।”
वो शख्स इतना कहते के साथ अपनी बंदूक की नोक गजेन्द्र की तरफ तान देता है, लेकिन तभी मंदिर के बाहर गाड़ियों की आवाज़ गूंजने लगती है... और स्पॉटलाइट की तेज़ रोशनी चारों नकाबपोशों पर पड़ती है, जिससे अपनी आखों को ढ़कते हुए उनमें से एक चिल्लाता है—
"पुलिस!”
विराज ने पहले ही सब कुछ रिकॉर्ड कर रखा था... और फिर उसने ACP रणविजय को पहले ही फोन कर पुराने मंदिर पर बुला लिया था।
ACP रणविजय ने अपनी जीप रोक और हाथ में पुलिस महकमें का माईक लेकर जोर से चिल्लाया— “हथियार डाल दो, वरना गोली मार दी जाएगी।”
चारों नकाबपोश अच्छें से जानते थे कि पकड़े गए, तो कोर्ट मौत की सजा देगा और भाग गए तो उनका मालिक उन्हें जिंदा दफन कर देगा। एक को गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे में उन्होंने भागने की कोशिश की, तभी पुलिस ने एक को पैर पर, तो दूसरे को हाथ पर गोली मारी...। जिसके बाद बाकी के दोनों ने खुद-ब-खुद सरेंडर कर दिया।
पुलिस ने उनमें से एक का नकाब हटाया, तो सभी चौंक गए।
"त... तुम?"
गजेन्द्र और विराज की आंखें उस शख्स को देख फटी की फटी रह गईं। दरअसल वो शख्स और कोई नहीं बल्कि गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर का असिस्टेंट 'विवेक' था। जो हाल ही में किसी विदेशी बिज़नेस कॉलेज से वकालत की पढ़ाई करके लौटा था, और विराज के पिता की वकालत ऐजेंसी में इंटर्नशिप करने आय था, जिसके बाद उसके पिता ने उसे विराज के साथ गजेन्द्र के केस में स्टडी करने को कहा था।
विराज उसे देख पूरी तरह से दंग था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी उसने विवेक से साफ-साफ शब्दों में पूछा।
"तुम हो कौन मेरे साथ काम करने के पीछे तुम्हारें असली इरादें क्या थे और आखिर राजघराना और गजेन्द्र से तुम्हारा रिश्ता क्या है?”
जवाब में विवेक सिर्फ एक लाइन बोलता है और वहां मौजूद सभी लोग अपना सर पकड़कर बैठ जाते हैं— “मेरा पूरा नाम है विवेक भोंसले… परमेश भोंसल मेरे पिता है।”
आज की रात गजेन्द्र के साथ-साथ सबके लिए किसी काली अमावस से कम नहीं थी। वहीं अगली सुबह रिया और गजेन्द्र ने महल में प्रेस कॉन्फ्रेस का बड़ा धमाका रखा था।
जहां गजेन्द्र ने मीडिया के सामने कल रात के पूरे मामले का खुलासा किया। साथ ही उसने नकाबपोशों के हमलों से लेकर जानकी की मौत, शारदा की गवाही, वीडियो सबूत, और अब विवेक भोंसले की गिरफ्तारी तक सब कुछ लाइव टीवी पर बताया, बात दिल्ली तक पहुंची और राजनिति गलियारों में भी ये मुद्दा हंगामें की वजह बन गया।
इस दौरान सबसे बड़ा धमाका तब हुआ जब विराज ने उस संदूकड़ी से मिले दस्तावेजों को सार्वजनिक किया। उसमें गजराज सिंह का साइन किया हुआ वो वसीयतनामा था जिसमें लिखा था।
“मेरे उत्तराधिकारी के रूप में मैं अपने पुत्र मुक्तेश्वर और उसके बाद मेरे पोते गजेन्द्र को ही सिंहासन सौंपता हूं। अगर मेरी मृत्यु संदिग्ध अवस्था में हो तो इस दस्तावेज को सार्वजनिक किया जाए।”
यह दस्तावेज कोर्ट में admissible था और इसकी प्रतियां कोर्ट में दाखिल की जा चुकी थीं। अब एक मुद्दा तो सीधे-सीधे सुलझ गया था, कि राजघराना की गद्दी का असली वारिस गजेन्द्र ही था ना कि गजराज का दूसरा बेटा राज राजेश्वर या फिर उसकी बेटी प्रभा ताई का पति राघव भोंसले।
अपनी इस पहली जीत के बाद महल के तहखाने में आज एक गुप्त बैठक रखीं गई, जिसमें गजेन्द्र, रिया, विराज, रेनू और मुक्तेश्वर ने तय किया कि वो जल्द ही गजराज सिंह से आमने-सामने की बात करेंगे और हो सका तो इस मुद्दें को परिवार में सुलझायेंगे।
अगले दिन सुबह मुक्तेश्वर अपने पिता गजराज सिंह के कमरे में गया और बोला— “पिताजी, अब सब कुछ सामने आ चुका है। अब अगर आप चाहते हैं कि इतिहास आपको गुनहगार न कहे, तो कैमरों के सामने सच बोलिए… और अपने सारे अपराध कुबूल कर लीजिए।”
गजराज सिंह ने खामोशी से मुक्तेश्वर की तरफ देखा, उसकी आंखों में लज्जा और पछतावा जैसा कुछ भी नहीं था। अभी भी गजराज सिंह का घमंड बरकार था। लेकिन फिर भी उसने पलटकर जवाब दिया।
"जो करना है अपने दम पर करों और मुझसे कोई उम्मीद मत रखना। आखिर तुम सुनना क्या चाहते हो मुझसे बताओंगे?”
गजराज के इस सवाल के जवाब में मुक्तेश्वर तुरंत पलटकर कहता है— "सच पिताजी, मैं चाहता हूं आप सबको सच बताये कि आपने जानकी के साथ क्या किया? इतने सालों से आप जो बता रहे हैं, वो सब झूठ है...“
मुक्तेश्वर की ये बात सुन गजराज सिंह भड़क उठा और चिल्लाकर बोला— “हां, मैं ही था जिसने जानकी को मरवाया। क्योंकि वो मेरे काले कारनामों की साक्षी बन गई थी। मैंने अपने ही बेटे मुक्तेश्वर को फंसाया, और अपने पोते गजेन्द्र को रेस फिक्सिंग में फंसाने की साजिश रचवाई। लो कुबूल कर लिया सब, जाओं अब बता दो लोगों को… कोर्ट को… और दिला दो मुझे फांसी।”
गजराज सिंह ने आज जाने अनजाने पूरी दुनिया के सामने अपने सारे गुनाह कुबूल कर लिए थे, जिसके बाद तुरंत पुलिस की एक बड़ी सी टीम आई और गजराज को उसके सारें गुनाहों के लाइव कुबूलनामें के तहत गिरफ्तार करके ले गई। जिसके बाद मुक्तेश्वर और बाकी सब लोग उस रात ये सोच रहे थे कि अंततः सच्चाई की जीत हो गई और सब चैन से अपने-अपने कमरे में सोने चले गए, लेकिन कहानी का अंत अभी बाकी था।
दरअसल उसी वक्त महल की सबसे ऊपरी मंज़िल से एक नौकर भागता हुआ आया और चिल्लाया— “मालिकों… शारदा देवी… शारदा देवी नहीं रही… किसी ने उन्हें ज़हर दे दिया है…”
नौकर की बात सुन सब एक साथ ऊपर दौड़े। शारदा का शरीर ज़मीन पर पड़ा था, पास ही एक पिघली हुई गोली की पुड़िया मिली।
अपनी मां के बेसुध-बेजान शरीर को पड़े देख रेनू फफक पडीं— “ये देखों... मां के शरीर पर लड़ाई-झगड़े के निशान भी है, इसका मतलब उस हमलावर और मां के बीच हाथापाई भी हुई थी।…”
रेनू सन्न थी। उसकी आंखों में आंसू थे, पर होंठों पर नफरत की जलती आग के साथ सिर्फ एक शब्द था— “अब बहुत हुआ… अब इस खेल का आखिरी पर्दा मैं खुद गिराऊंगी।”
आखिर क्या करने वाली है रेनू?
किसने इतनी बेरहमी से मारा था गजराज सिंह की रखैल शारदा को?
क्या रेनू आज सच में अनाथ हो गई है या फिर वो गजराज से लेकर रहेगी अपने बेटी होने का अधिकार?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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