रात के आखिरी पहर की नींद उस चीख ने तोड़ी थी, जिसके बाद पता चला कि महल की सबसे ऊपरी मंज़िल पर शारदा देवी का शरीर बेसूध पड़ा है। आज रात सब जिस सच की जीत के जश्न में सोये थे अब वो हार में बदल गई थी। शारदा की मौत जैसे एक और राज़ की परत खोल रही थी, जिसका खुलना अभी बाकी था। ऐसे में ये साफ हो गया था कि राजघराने की कभी न मिटने वाली साजिशों का अंत अभी दूर है।

रेनू अपनी माँ के शरीर से लिपट कर फूट-फूट कर रो रही थी। रिया और गजेन्द्र उसे संभालने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसके भीतर उठती चिंगारी अब कोई बांध नहीं सकता था। उसकी तड़प उसके शब्दों में साफ सुनाई दे रही थी।

“किसी ने मां को जहर दे दिया... वो भी तब, जब सब कुछ सामने आने लगा? जब गजराज सिंह का सच पूरी दुनिया के सामने आ गया... और गजराज जेल में है, तो मेरी मां को किसने मारा.?”

रेनू के अंदर दर्द, बदले और हिम्मत का एक सैलाब उमड़ रहा था। ऐसे में उसने अपनी मां की हत्या की जांच का जिम्मा अपने सर उठा लिया। दूसरी तरफ विराज ने शारदा की मौत के मामले की तहकीकात करने के लिए ACP रणविजय से रिकवेस्ट की, जिसके बाद पूरे महल को सील कर दिया गया।

दो दिन में पोस्टमार्टम से लेकर शरीर के हर हिस्सें पर आए जख्मों की पूरी रिपोर्ट सामना आ गई थी। फॉरेंसिक रिपोर्ट को देखते हुए ACP रणविजय ने रेनू और विराज को बताया।

“जहर कोई आम नहीं था, ये एक दुर्लभ ज़हर है। इसे ‘ब्लैक मम्बा सीरम’ कहते है, जो सिर्फ इंटरनेशनल ब्लैक मार्केट में मिलता है। इसका मतलब है, कातिल कोई छोटा-मोटा दुश्मन नहीं... ये काम किसी बहुत बड़े खिलाड़ी का है।”

रिया ने तुरंत रेनू की तरफ देखा और बोलीं— “इसका मतलब... ये लड़ाई अब सिर्फ गद्दी की नहीं रही। अब ये दुश्मन हमें व्यक्तिगत तौर पर तोड़ना चाहता है। दिल्ली में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद हमें महल के दरवाजे पर जो लिखा मिला था… अब वो हकीकत में बदलने लगा है।”

रेनू ने गहराई से सोचा...और एक-एक कर उसे सब समझ आ गया, “माँ को मारना सीधे तौर पर हमें एक चेतावनी है… लेकिन उन्हें शायद ये नहीं पता, कि शारदा मां की मौत ने एक औरत को मिटाया नहीं, बल्कि एक बेटी को दुर्गा बनने पर मजबूर कर दिया है। अब एक-एक से बदला लूंगी”

एसीपी रणविजय ने पोस्टमार्टम के बाद शारदा का शरीर रेनू को सौंप दिया, जिसके बाद मुक्तेश्वर ने रेनू की मदद कर राजघराना के पूरे रीति-रिवाजों के साथ शारदा देवी को अंतिम विदाई थी। लेकिन रेनू ने मुक्तेश्वर को अपनी मां को मुखाग्नि नहीं देने दी, उसने खुद अपनी मां को मुखाग्नि दी और मां की जलती चिंता के सामने कसम खाई।

"जब तक अपनी मां शारदा देवी की मौत का बदला नहीं ले लूंगी, तब तक इस राजघराना के मंदिर में किसी को पूजा नहीं करने दूंगी….ये मेरा प्रण है।"

जहां एक तरफ रेनू बदले की आग में जल रही थी, तो वहीं दसरी ओर गजराज सिंह की गिरफ्तारी ने पूरे राजगढ़ में हलचल मचा दी थी। सत्ताधारी दल के नेता विरोधी खेमें में जा खड़े होने लगे थे। साथ ही मीडिया में “राजघराने की गंदी सच्चाई” नाम से लाइव डिबेट शो चलने लगे।

वहीं दूसरी ओर, गजेन्द्र ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और अपने दादा की गिरफ्तारी के मुद्दे पर खुलकर बात की। उसने बताया— "मेरे दादा ने जो किया, वो राजघराने का कलंक था। लेकिन मैं वादा करता हूँ — मेरी माँ जानकी, और अब शारदा देवी की आत्मा को भी न्याय मिलेगा।"

गजेन्द्र के ये शब्द उस दिन से सोशल मीडिया के टॉप ट्रेंड में छा गए। हर जगह हर कोई राजघराना के बारें में ही बात कर रहा था।

वहीं विराज, रिया और गजेन्द्र के बीच का रिश्ता भी एक अजीब मोड़ लेने लगा था। दरअसल राजघराना की इस उथल-पुथल में रिया और विराज के बीच कुछ अधूरी बातों का हिसाब रह गया था और विराज इस मुद्दें पर बात कर इसे जल्द से जल्द खत्म करना चाहता था। क्योकि रिया उसका बीता हुआ कल थी और गजेन्द्र जैसे सच्चे दोस्त को वो किसी गलतफहमी के चलते खोना नहीं चाहता था। ऐसे में वो जब रिया के पास बात करने पहुंचा, तो…

“रिया, मैं जानता हूँ गजेन्द्र तुम्हारे दिल के बहुत करीब है… लेकिन जो हम दोनों के बीच हुआ- क्या तुम्हें लगता है वो सिर्फ एक गलती थी?”

विराज ने पहली बार रिया से आंख मिलाकर ये सवाल पूछा था। वहीं उसके इस सवाल को सुनते ही रिया की आंखें छल्क पड़ी और वो बोलीं— "गलती नहीं थी विराज… वो हमारी कमजोरी थी। उस वक्त हम अकेले थे, टूटा हुआ सहारा ढूंढ रहे थे… लेकिन अब मैं खुद को पहचानती हूं।"

विराज ने आगे कुछ नहीं कहा, क्योंकि रिया ने उन दोनों के रिश्तें को मजबूरी का नाम दे सीधे-सीधे खुद से दूर धकेल दिया था। ऐसे में वो मुस्कराया और बोला — “गजेन्द्र बहुत लकी है।”

इतना कह विराज वहां से चला गया और उस रात, उसने अपने दोस्त के लिए खुद को पीछे खींच लिया। आज विराज का दिल पहली बार भारी था, लेकिन आत्मा में सुकून और हल्कापन था। क्योकि रिया की बातों ने आज ये साफ कर दिया था, कि वो अब गजेन्द्र के साथ अपना आगे का जीवन बिताना चाहती है।

वहीं रेनू अपनी मां शारदा की मौत से बुरी तरह टूट गई थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि आखिर उन्हें मारा क्यों गया। महल के एक कमरे में पिछले दो दिनों से खुद को बंद किए बैठी रेनू किसी से बात नहीं कर रही थी। तभी अचानक से रेनू को कुछ याद आया और वो भागती हुई अपनी मां शारदा के कमरे में गई, जिसे पुलिस ने चारों तरफ सी सील कर रखा था।

वो सील वाली उस पीली पट्टी के नीचे से झुककर अंदर घुसी और यहां-वहां चारों तरफ कुछ तलाशने लगी। शारदा के कमरे की तलाशी लेते-लेते एकाएक वो चिल्लाई— "फाइनली, तुम मिल गए।"

दरअसल इस वक्त रेनू के हाथ में एक पुरानी पेंड्राइव थी। रेनू ने उसे लैपटॉप में लगाकर चलाया तो देखा उसमें कुछ गुप्त बातचीत की रिकॉर्डिंग थीं, जिसमें शारदा और कोई अनजान आदमी किसी “गुप्त पत्र” और “वारिस की पहचान” की बात कर रहे थे।

रेनू ने तुरंत वो पैन ड्राइव निकाली और फौरन ACP रणविजय के पास पहुंच हड़बड़ाती हुई आवाज में बोली— “ACP साहब, मुझे लगता है इस पैन ड्राइव के लिए मेरी मां को मारा गया है। ये लीजिए… और हां अब मैं कसम खाती हूं मैं इस पूरे राजघराने का वो चेहरा उजागर करूंगी, जिसे देखकर इतिहास भी शर्मिंदा हो जाएगा और वो गजराज सिंह खुद अपना फांसी का फंदा तैयार करेगा।”

रेनू का गुस्सा देख ACP रणविजय ने उसे समझाने की कोशिश की….“नहीं रेनू, तुम ऐसा-वैसा कुछ नहीं करोगी… तुम जानती नहीं हों, इस खेल में तुम्हारी जान भी जा सकती है। ये गजराज सिंह का किला है, यहां मौत गिनतियों में नहीं अंबारों में होती है। तो तुम अपनी मां की हत्या के केस का जिम्मा मुझ पर छोड़ दो और सुकून से कहीं ओर जाकर अपनी जिंदगी जियो। मैं सच कहता हूं, तुम्हारी मां के कातिलों को सजा दिला कर रहूंगा।”

ACP रणविजय की बातों से रेनू के दिल को सुकून तो मिलता है, लेकिन उसके अंदर की बेचैनी खत्म नहीं होती। उसकी आंखों में अब मौत का डर नहीं था, बस न्याय की भूख थी।

एक तरफ रेनू अपनी मां के कतिलों को सजा दिलाने की कसम खाती है, तो वहीं विराज अपने एक इंटरव्यू में बहुत बड़ा खुलासा करता है…

“गजराज सिंह के छोटे बेटे राज राजेश्वर का जीवन आम लोगों से थोड़ा अलग था। उनके संबध औरतों के साथ-साथ मर्दों से भी थे और ये ही वजह थी कि गजराज सिंह अपने छोटे बेटे राज राजेश्वर से नफरत करने लगे थे। ऐसे में उन्होंने बड़े बेटे को जो बाइस साल पहले घर छोड़कर चला गया था, उसे ढूंढने की प्लानिंग शुरू की और जब वो मिला तो उसके बेटे को हॉर्स मैंच रेस फिक्सिंग केस में फंसा अपने पैरों पर झुका अपनी बात मनवानें की कोशिश की।"

विराज इतनें पर ही नहीं रुका उसने आगे कहा— "इसके बाद उन्होंने जहां एक तरफ अपने पोते गजेन्द्र को जेल में मरवाया, तो वहीं बाहर गजेन्द्र के पिता यानी अपने बड़े बेटे को भी मानसिक तौर पर काफी प्रताड़ित किया। चौका देने वाली बात ये है कि उनके इस पूरे कारनामों में उनका छोटा राज राजेश्वर और उनकी बेटी प्रभा ताई का पति राघव भोंसले भी शामिल है। ये सब एक गुप्त गठबंधन में थे, जिसमें राघव भोंसले ही सबसे बड़ा मास्टरमाइंड था।"

विराज के इस खुलासे के बाद पूरा मीडिया सड़कों पर उतर आया। सोशल मीडिया पर राजघराना को लेकर एक के बाद एक खुलासे वायरल होने लगे। चारों तरफ मचे हंगामे के बीच गजेन्द्र ने तुरंत कोर्ट में एक याचिका डाली, जिसमें लिखा था- “राजगद्दी पर असली उत्तराधिकारी को बहाल किया जाए।”

पूरा राजगढ़ इस समय दो ही मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रहा था– पहला शारदा की हत्या के कातिल की पहचान को लेकर ACP रणविजय की पूछताछ और दूसरा राजघराना की गद्दी का अगला वारिस कौन?

शारदा की हत्या हुए दस दिन बीत चुके थे, लेकिन अब तक पुलिस के कुछ हाथ नहीं लगा था, वहीं 10 दिन बाद सुबह-सुबह कुछ ऐसा हुआ जिसने इस पूरे केस को पलट कर रख दिया। 

जब राजघराना का एक गार्ड खुद आगे आया और बोला— “सर, मैं आपको पिछली गवाही के समय एक बात तो बताना भूल गया था, कि उस रात एक महिला शारदा देवी से मिलने आई थी… वो उन्हें अपनी बहन कह रही थी।”

"महिला?"

"हाँ सर... काली साड़ी में थी… और वो बहुत गुस्से में थी…उसने नाम, शायद उषा… हां उषा भोंसले ही बताया था।”

उषा का पूरा नाम उषा भोंसले सुनते ही ACP रणविजय के कान खड़े हो गए। क्योंकि भोंसले खानदान से राजघराना की दुश्मनी जग-जाहिर हो चुकी थी। लेकिन उषा का भोसले खानदान से क्या रिश्ता था और वो शारदा को अपनी बहन क्यों कह रही थी, इस बात ने ACP रणविजय का सर घुमा कर रख दिया। ऐसे में ACP रणविजय ने उषा भोंसले की पूरी कुंडली मंगवाई… और उसकी जिंदगी के एक-एक पन्ने को बारिकी से खंगालना शुरु किया।

और फिर जो सच सामने आया वो रौंगटे खड़े कर देने वाला था।

हैलों सर, मैं दिल्ली से साकिब खबरी बात कर रहा हूं। वैसे तो मैंने आपके मेल पर इस उषा भोंसले की पूरी कुंडली भेज दी है, आप पढ़ लेना। लेकिन फिर भी मै आपको एक बात बताना चाहता हूं। दरअसल इस उषा ने शारदा को सिर्फ इसलिए मारा, क्योंकि शारदा ने उसकी और राघव की असली पहचान और गद्दी की साजिश उजागर करने का सबूत ढूंढ लिया था।

"क…क...क्या.. और अगर ढूंढ लिया था, तो वो सबूत आखिर कहां गायब है?”

ACP रणविजय को जैसे ही रेनू की मां शारदा देवी की हत्या के मामले में नई लीड मिली, वो इसके बारे में बात करने तुंरत रेनू के पास राजघराना महल पहुंचे। लेकिन वहां का नजारा देख उनकी आंखे ही चौंधिया गई। शाम का समय था और रेनू ने महल के सामने एक विशाल सभा बुलाई हुई थी, जिसमें हजारों लोग जमा थे।

… और रेनू मंच पर खड़े होकर उन लोगों को महल के लोगों के खिलाफ भड़का रही थी।

“राजगढ़ के इस राजघराना महल की ये गद्दी एक और मासूम औरत की जिंदगी को निगल गई। बीस साल पहले इस राजघराना के लोगों नें मेरे जन्म के तुरंत बाद मुझे आनाथ आश्रम भेज मुझे मेरी मां से दूर कर दिया था। और वहीं बाईस साल बाद जब मुझे मेरी मां मिली, तो इन लोगों ने अपने घिनौने राज छिपाने के लिए मेरी मां को मौत की नींद सुला दिया। आज मैं इस बात का खुलासा करना चाहती हूं कि गजराज सिंह की तीन नहीं चार औलादे है… और वो चौथी औलाद मैं हूं… शारदा देवा और गजराज सिंह की नाजायज औलाद...”

ये सुन वहां मौजूद बच्चों से लेकर बूढ़े… सब चौक गए। ऐसे में जहां कुछ लोग रेनू के समर्थन में बात करते हुए उसके दर्दभरे जीवन पर दुख जता रहे थें, तो वहीं कुछ लोगों ने तो रेनू को पत्थर मारना शुरु कर दिया... लेकिन तभी लोगों और रेनू के बीच विराज आ खड़ा हुआ।

"रेनू आप लोगों को सिर्फ अपने जीवन का सच बता रही है, वो राजघराना की गद्दी पर हक जताने नहीं आई है। राजगद्दी पर हक आपके प्यारे मुक्तेश्वर सिंह के बेटे गजेन्द्र का ही रहेगा।"

और तभी गजेन्द्र भी वहां आ गया और मंच पर चढ़कर रेनू का हाथ थामते हुए बोला….“राजगद्दी मेरी नहीं, हम सबकी जिम्मेदारी है। और मेरा पहला काम होगा, माँ जानकी और शारदा दादी की हत्या के दोषियों को फांसी के फंदे पर लटकाना।”

उस मंच के दाई तरफ एक खंबे के पास खड़े एसीपी रणविजय ये सारी बातें सुन रहे थें। ऐसे में उन्हें फिलहाल इस मुद्दे पर रेनू से बात करना ठीक नहीं लगा, क्योंकि रेनू के दिल और दिमाग पर लगे जख्म अब उसके अपने ही भर रहे थे। गजेन्द्र के हाथ थामने के बाद रेनू काफी शांत थी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वो कुछ देर पहले राजघराना के लोगों को मौत की नींद सुलाने की बातें कर रही थी।

सभा खत्म होने के बाद गजेन्द्र अपनी बुआ रेनू को शांत करा उसके कमरे में ले गया। रेनू, विराज और गजेन्द्र हमउम्र थे, तो ऐसा में उनके लिए रेनू को संभालना मुश्किल नहीं रहा। कमरे में जाने के बाद रेनू रोती-रोती आराम से बिस्तर पर सो गई, जिसके बाद गजेन्द्र और विराज उसे बिस्तर पर छोड़ वहां से जाने लगे, कि तभी गजेन्द्र की नजर खिड़की के पास टंगे एक थैले पर गई। उसने उसे खोलकर देखा तो उसमें रेनू की मां की लिखी एक और चिट्ठी मौजूद थी, जिसमें लिखा था—

“मेरी बेटी रेनू,

अगर कभी मैं न रहूं, तो तुम अपनी लड़ाई जरूर लड़ना। कभी भी मेरी तरह किसी की गुलाम मत बनना। तुम भी राजघराना की राज गद्दी की रक्षक बन सकती हो, अगर खुद पर विश्वास करों तो… बस कभी कमजोर मत पड़ना।

… और हां मैंने तुम्हारे लिए एक चाबी भी पुराने मंदिर की मुर्ती के पीछे रखी है, उसका इस्तेमाल सिर्फ तब करना जब तुम्हें लगे कि अब वक्त है राज को उजागर करने का।

— तुम्हारी माँ, शारदा।”

चाभी का जिक्र सुनते ही गजेन्द्र और विराज के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान दौड़ गई और दोनों कार में सवार हो तुरंत पुराने मंदिर की ओर जाने लगे, लेकिन तभी रास्तें में गजेन्द्र ने देखा की तीन कारें उनका लगातार पीछा कर रही हैं। 

ये देख विराज भी डर गया, "अब क्या करना है, इनसे पीछा कैसे छुड़ाएं"



आखिर कौन कर रहा है गजेन्द्र और विराज की कार का पीछा? 

क्या होने वाला है अब दोनों के साथ? 

क्या है उस चाभी का पूरा राज? 

क्या अगली लड़ाई रेनू बनाम भोंसले की रह जायेगी और खत्म हो जाएगा गजेन्द्र का नाम?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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