रेनू के कमरे से उसकी मां की मिली आखरी चिट्ठी में जिस चाबी का खुलासा हुआ था, उसे लेने के लिए विराज और गजेन्द्र एक साथ निकल पड़े थे। दोनों के दिमाग में उस चाबी और उससे जुड़े राज़ को लेकर तरह-तरह के सवाल चल रहे थे।
लेकिन तभी राजगढ़ की वीरान सड़कों पर तीन गाड़ियाँ पलक झपकते ही गजेन्द्र और विराज की गाड़ी के करीब आ गई थीं। विराज ने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी, लेकिन पीछा कर रही SUVs किसी शिकारी की तरह उन्हें चारों ओर से घेरने की कोशिश में लगी थीं। ऐसे में गजेन्द्र ने तुरंत एक प्लान बनाया और गजेन्द्र से बोला— “गाड़ी मंदिर की तरफ नहीं, अब सीधे पुल से नीचे के पुराने तहखाने की ओर मोड़ो…”
विराज को गजेन्द्र के इस फैसले का मतलब समझ नहीं आया, लेकिन उसने बिना समय गंवाए गाड़ी मोड़ दी। हालांकि उन गाड़ियों ने अभी भी गजेन्द्र और विराज की गाड़ी का पीछा नहीं छोड़ा।
इधर महल में रेनू की आंख खुलती है। तो वो चौक कर चारों तरफ देखती है, क्योकि इस वक्त वो अपने बिस्तर पर नहीं बल्कि एक कमरे में बंद होती है। तब उसे ये भी एहसास होता है कि कोई उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहा है। वो घबराकर खुद को समेटती है, कि तभी उसे दरवाज़े के पास एक परछाईं दिखती है। परछाई को देख उसकी आंखें छोटी हो जाती है और वो चिल्लाकर पूछती है…
“कौन है वहाँ?”
इसके बाद दरवाज़ा धीरे से खुलता है… और सामने खड़ी है- उषा भोंसले।
उषा भोंसले को देख रेनू और भी ज्यादा चौक गई, क्योकि उसकी शक्ल काफी हद तक उसकी मां शारदा देवी से मेल खाती थी। ऐसे में रेनू खुद को सवाल पूछने से रोक नहीं पाती "आप है कौन…? और मुझे यहां इस तरह आधी रात उठाकर लाने का मकसद जान सकती हूं?”
जवाब में उषा बात को घुमाती नहीं है, बल्कि साफ-साफ शब्दों में कहती है— “तू मेरी बहन की औलाद है, इसलिए तुझे जान से नहीं मार सकती… लेकिन तू याद रखना कि तू राजघराना गद्दी की दावेदार कभी नहीं बन सकती, समझी।”
सामने खड़ी उषा की बातें और उसके तीखें तेवर देख रेनू को कुछ समझ नहीं आता, कि आखिर उसका राजघराना से क्या रिश्ता है?
"लेकिन मैं दावेदार क्यों नहीं हो सकती, मेरे अंदर भी गजराज सिंह का ही खून है। मैं उनकी जायज ना सही पर नाजायज औलाद जरूर हूं।"
रेनू का जवाब सुन उषा भोंसले उसे एक जोरदार चाटा जड़ देती है और कहती है— “देख लड़की शारदा मेरी बहन थी… और जब मैंने अपनी बहन को उस गद्दी के आगे नहीं चुना, तो तू क्या चीज है? अब तू ख़ुद ही पीछे हट जा…वरना तूझे भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।”
अपनी मां की हत्यारन को सामने खड़ा देख रेनू गुस्से में तमतमा जाती और चिल्लाकर कहती है— “तूने मेरी मां को मारा? तुझे लगता है मैं चुप बैठ जाऊँगी?”
रेनू के इस गुस्से पर उषा मुस्कराती है “ये गुस्सा और ये अपने तेवर बचा कर रखा... कहीं ओर काम आएंगें। इनसे तू ऊषा भोंसले का कुछ नहीं बिगाड़ सकती समझी। और हां तेरे पास शारदा की जो आखरी चिट्ठी और चाबी है ना, वो अगले दस घंटे के अंदर मुझे लाकर दे, वरना तू भी तैयार हो जा अपनी मां से मुलाकात के लिए...।
उषा भोंसले ने रेनू को ये धमकी दी और छोड़ दिया। रेनू के कदम इस वक्त भी लड़खड़ा रहे थे, जैसे उसे बेहोशी के लिए कोई इंजेक्शन दिया गया हो। धीरे-धीरे चलती हुई रेनू वहां से बाहर जाने लगी, लेकिन तभी उषा भोंसले ने उसे एक बार फिर से पीछे से आवाज दी।
"जाते-जाते ये भी सुनती जा, कि अगर अपनी ये छोटी सी जुबान खोली, तो तेरे साथ वो सब भी खत्म हो जाएंगे जो अब तक तेरे साथ खड़े हैं।”
उषा ने दरवाज़ा बंद कर दिया और रेनू को चेतावनी देकर चली गई। उधर, गजेन्द्र और विराज दोनों किसी तरह उनका पीछा करने वाली उन गाड़ियों को चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं। इसके बाद वो आराम से उस पुराने मंदिर के तहखाने में पहुंचते हैं। जहां वो मूर्ति की पीठ के पीछे हाथ डालते हैं और वहाँ उन्हें एक छोटा सा छेद मिलता है। वो आराम से वहां से उस चाबी को उठाते है और जाने लगते हैं, लेकिन तभी उनकी नजर मूर्ति के पीछे के दरवाजे पर पड़ती है, जो उस चाबी को मुर्ति से अलग करते ही अपने आप खुल जाता है।
दोनों हिम्मत कर के उस दरवाजे के अंदर जाते हैं, तो देखते है कि वहां एक छोटी सी कोठरी है, जिसमें रखी थी एक लोहे की पेटी। पेटी को खोलते ही उन्हें अंदर मिले कुछ पुराने दस्तावेज़ और एक कैसेट, जिस पर लिखा था…. “वारिस की पहचान – अंतिम प्रमाण।”
गजेन्द्र उसे देखते के साथ कहता है— "पर वारिस वाले असली कागजात तो वो थे ना, जो शारदा दादी ने अस्तबल में छिपाये थे। फिर ये कौन से पेपर है।"
विराज फिलहाल गजेन्द्र को शांत होने के लिए कहता है, और साथ ही उस कैसेट और चिट्ठी दोनों को मंदिर से लेकर जल्द से जल्द निकलने का इशारा करता है। लेकिन जैसे ही गजेन्द्र उस कैसेट को उठाता हैं, पीछे से एक गोली चलती है।
गजेन्द्र की चीख निकल जाती है और दोनों भागकर मंदिर के दाई तरफ बने आश्रम में छिपकर हमलावर को देखने लगते हैं। इस हमले में गजेन्द्र और विराज बच जाते हैं लेकिन साथ ही ये भी समझ जाते हैं, कि अब कोई तो हैं, जिसकी नजर उनके हर कदम पर है। तभी विराज दाई तरफ इशारा करता है।
“चलो जल्दी, यहाँ से निकलते हैं… लगता है ये कैसेट बहुत बड़े-बड़े राज़ खोलने वाली है। तभी ये लोग इसे हासिल करना चाहते हैं।"
इधर ACP रणविजय अब उषा की हर हरकत पर नजर रखे हुए है। उसे अब पूरा यकीन है कि उषा सिर्फ साजिश का हिस्सा नहीं, बल्कि राजघराना में हुए खून में भी शामिल है। ACP रणविजय राजघराना की लड़ाई और शारदा देवी की मौत के मामले को सुलझाने में बुरी तरह उलझ चुका था। वो शक के दायरे में आने वाले हर शख्स के बारे में बारिकी से जांच कर रहा था, कि तभी उसका फोन बजा और दूसरी ओर से आवाज आई…
"दिल्ली वाली जांच टीम की रिपोर्ट आपको मेल कर दी है। उसमें आपके सारे सवालों के जवाब है।"
इतना कह जहां वो शख्स फोन कांट देता है, तो वहीं दूसरी ओर एसीपी रणविजय बिना एक सैंकेड गवाएं तुरंत अपना मेल खोलता है और रिपोर्ट पढ़ना शुरु करता है।
“उषा भोंसले और राघव भोंसले ने मिलकर गजराज सिंह को ब्लैकमेल किया था। उनके पास गजराज सिंह की जिंदगी के निजी राज़ और राज राजेश्वर की अपने ही घर के एक नौकर के साथ कुछ प्राइवेट तस्वीरे थी, जिसके जरिए वो पूरे राजघराना को अपने इशारों पर चला रहे थे। वहीं शारदा देवी ने उनकी ब्लैकमेलिंग के सबूत इकट्ठे कर लिए थे, और वो जल्द ही उन्हें गजेन्द्र को सौंपने वाली थी। यही उनके मारे जाने की वजह भी बना।”
राजगढ़ के सबसे ताकतवर रईस परिवार और उसके राजा गजराज सिंह की ऐसी बेबसी भरी जिंदगी के बारे में जानकर एसीपी रणविजय के रौंगटे खड़े हो गए, कि कैसे दिल्ली में बैठा एक आम राजनैतिक परिवार राजगढ़ के राजा के घर की नींव हिला रहा था। उसने एक-एक कर उसके पूरे परिवार को उसके खिलाफ कर दिया था…
जहां एक तरफ ये सब सुन एसीपी रणविजय सदमें में था, तो वहीं दूसरी ओर रेनू, उषा के चंगुल से छूटकर राजघराना लौट आई थी। रेनू के चेहरे पर डर की लकीरें बिल्कुल नहीं थी, लेकिन उसकी खामोशी ये जरूर बता रही थी कि वो अब तक ये फैसला नहीं कर पाई है कि वो उषा भोंसले के बारे में गजेन्द्र, रिया और विराज को बताएगी या नहीं।
महल लौटने के बाद रेनू खुद को अपने कमरे में बंद कर लेती है और लगातार उषा की धमकी के बारे में सोचती रहती है। तभी उसके फोन पर एक मैसेज आता है।
“मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं रेनू… कभी भी किसी भी हालात में लगे कि मेरी जरूरत है, तो बस एक फोन कॉल कर लेना मैं दौड़ा चला आउंगा।”
फोन पर आए इस मैसेज को पढ़ते ही रेनू के चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल आ जाती है और साथ ही रेनू अब डर से नहीं, रणनीति से सोचना शुरु कर देती है। कुछ देर सोचने के बाद वो ये फैसला करती है, कि अगली सुबह वह प्रेस के सामने सब कुछ बताएगी। उषा भोंसले ने जो कुछ भी उसके सामने कुबूला है वो सब कुछ मीडिया और पुलिस को बताएगी।
अगले दिन की सुबह राजघराना में रोज की तरह सन्नाटा पसरा रहता है। मुक्तेश्वर अपने पिता की गिरफ्तारी और राजघराना की बदनामी से बुरी तरह बिखर चुका था। बस अब उसके मन में अपने बेटे के बेगुनाह साबित होने की एक उम्मीद बाकी थी। तो वहीं रेनू के सामने उसकी मां की कातिल खड़ी थी, लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।
ऐसे में रेनू ने रिया का सहारा लिया और एक मीडिया कॉन्फ्रेंस रखी। शाम के चार बज रहे थे, राजघराना के अंदर आज फिर चारों तरफ माइक और कैमरे ही नजर आ रहे थे। तभी पूरे मीडिया के सामने रेनू आकर खड़ी हो गई और बोलना शुरु किया।
“मैं रेनू, स्वर्गीय शारदा देवी की बेटी हूं… आज मैं राजघराना की उस गंदगी को उजागर करूंगी, जिसे अब तक रस्मों के नाम पर छिपाया गया। मेरे पास ऐसे प्रमाण हैं जिनसे साबित होगा कि राजगद्दी का असली हकदार कौन है… और कौन इसके नाम पर खून करवा रहा है। इतना ही नहीं ये भी बता दूं कि अभी चार दिन पहले यहां राजघराना में मेरी मां का जो बेरहमी से कत्ल हुआ उसके पीछे भी ये राजगद्दी ही वजह थी।”
लेकिन तभी एक धमाका हुआ… और प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच चारों तरफ अफरा-तफरी मच जाती है। रेनू माइक हाथ में लेकर चिल्लाती है—
"कौन हो तुम…? और आखिर चाहती क्या हो…? कभी भी सामने से वार क्यों नहीं करती…? हर बार जब सच सामने आने वाला होता है, तो तुम आ जाती हो धमाका करने…मैंने कहा सामने आओ!!!’
रेनू इतना चिल्लाती ही है कि तभी वहां चारों तरफ धुएं का अंबार लग जाता है। रेनू इस वक्त पूरी तरह से धुएं के घेरे से घिरी हुई थी, कि तभी एक काली सी परछाई उसके सामने से गुजरती है और एक औरत की आवाज रेनू के कानों में पड़ती है।
"जल्द होगी हमारी मुलाकात… बस थोड़ा और वक्त बाकी है। तब तक इंतजार करों"
इतना कहते हुए वो परछाई रेनू के पास से गुजर जाती है, लेकिन वो उसका चेहरा नहीं देख पाती और जोर-जोर से चिल्लाने लगती है— "सामने आओं… मैंने कहा उषा भोंसले सामने आओं…!”
रेनू के मुंह से उषा भोंसले का नाम सुनते ही ACP रणविजय दौड़ते हुए स्टेज की तरफ भागता है, और चिल्लाता है— “रेनू! नीचे झुको!”
रेनू कुछ समझ पाती या करती उससे पहले वहां एक गोली सीटी की तरह हवा चीरते हुए आती है… और किसी के सीने में धंसती है। रेनू गोली की आवाज सुनते ही चीख पड़ती है। एसीपी रणविजिय रेनू को संभालता है और ऊपर से नीचे तक उसे गौर से देखने के बाद चैन की सांस लेता है, क्योंकि हवा में चली वो गोली रेनू को नहीं लगी थी। धुंए के छटते ही एसीपी रेनू को लेकर स्टेज से नीचे उतरता है, तो देखता है कि यहां-वहां चारों तरफ मीडिया के माइक और कैमरे टूटे पड़े थे। वो रेनू को वहां से संभल कर चलने के लिए कहता है, कि तभी रेनू कुछ ऐसा देख लेती है कि बेहोश होकर वहीं गिर जाती है और तभी एसीपी रणविजय भी सामने खून से लथपथ शख्स को देखता है और उसके होश उड़ जाते हैं।
एसीपी रणविजय की जुबान लड़खड़ाने लगती है— "न… न… नहीं… ये सच नहीं हो सकता… अगर ये सच हुआ तो राजघराना के एक-एक आदमी को वो तड़पा-तड़पा कर मारेगे।"
इतना कहते के साथ एसीपी रणविजय भागकर सामने पड़े शख्स की सांसे चैक करता है, जिसके बाद उसकी जान में जान आती है और वो चिल्लाकर अपनी बाकी पुलिस साथियों को बुलाता है।
"जल्द से जल्द एंबुलेंस को यहां बुलाओं… और हां याद रखना बाहर किसी को भनक भी नहीं लगनी चाहिए कि इसे गोली लगीं है, वरना राजगढ़ में आज खून की नदिया बह जायेगी। भागों अब जल्दी और डॉक्टर को लेकर आओं।"
आखिर किसे लगी थी गोली? किसकी मौत के डर से कांप रहा था शहर का सबसे बड़ा पुलिस ऑफिसर एसीपी रणविजय?
क्या होने वाला है अब रेनू और राजघराना के साथ?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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