धुंआ छंट चुका था, कैमरे टूट चुके थे। रेनू बेहोश पड़ी थी और एसीपी रणविजय उस शख्स की नब्ज थामे खड़ा था, जो अभी-अभी गोली से घायल होकर स्टेज के सामने गिरा था। उस शख्स से खून अब भी बह रहा था, और रणविजय के माथे से पसीना भी धार बनकर निकल रहा था। वो एकसूध बस चिल्लाए जा रहा था।
"जल्दी करों, कोई डॉक्टर को बुलाया? एंबुलेंस पहुंची है या नहीं?"
तभी एसीपी रणविजय ने पीछे पलटकर देखा और एक बार फिर चिल्लाया। जवाब में एक कॉन्सटेबल आया और बोला— "सर, बस दो मिनट।"
रणविजय ने घायल शख्स की तरफ दोबारा देखा… उसकी धड़कनें हल्की थीं, मगर चल रही थीं। दरअसल ये कोई और नही, विराज प्रताप राठौर… राजगढ़ के सबसे बड़े वकील विरेन्द्र प्रताप राठौर का एकलौता वारिस था, जो इन दिनो गजेन्द्र का हॉर्स मैंच फिक्सिंग केस भी लड़ रहा है।
विराज, जिसने रेनू के लिए, गजेन्द्र के लिए, पूरे राजघराना के सच को सामने लाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दी थी… अब ख़ून से लथपथ पड़ा था। गोली उसके सीने के ऊपरी हिस्से में लगी थी, लेकिन शायद दिल को छूने से रह गई थी… और इसी की वजह से उसकी सांसे अभी भी चल रही थी।
एसीपी रणविजय की आंखों में इस वक्त गुस्से की लकीरें खिंच गईं थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, वो क्या करें। तभी वो खुद से बड़बड़ाते हुए बोला— “उषा भोंसले… अब तू बख्शी नहीं जाएगी। तू जानती भी नहीं तूने इस बार किस शेर की गुफा में सर डाला है।”
दूसरी तरफ चीख-पुकार सुन महल के अंदर से रिया और गजेन्द्र भी भागते हुए कॉन्फ्रेंस हॉल की तरफ आए, जहां उन्होंने विराज को खून से लथ-पथ देखा तो बौखला गए… तभी रिया ने घबराते हुए पूछा— "क्या हुआ? विराज को ये गोली कैसे लगी… किसने मारी?"
रिया की आवाज कांप रही थी और उसकी सांसे बोलते-बोलते टूट रही थी। तभी गजेन्द्र ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए पूछा— "रेनू? रेनू बुआ कहां है…? वो ठीक तो है ना एसीपी रणविजय?”
गजेन्द्र के सवाल का जवाब देते हुए एसीपी रणविजय ने कहा— "रेनू ठीक है, लेकिन विराज को गोली लगी है… और अगर हमने आज इसे नहीं बचाया, तो विरेन्द्र प्रताप सिंह इस पूरी राजघराना हवेली को आग लगा देगा, तुम जानते हो ना… तो जल्दी डॉक्टर को बुलाओं।"
एसीपी की बात सुन गजेन्द्र डॉक्टर को लेने महल से बाहर जाने लगा। तभी उसने देखा की एक पुलिस कॉन्सटेबल एक डॉक्टर को लेकर आ रहा है। वो तुरंत उसे लेकर हॉल एरिया में पहुंचा। जहां डॉक्टर ने विराज को देखने के बाद उसे तुरंत किसी कमरे में ले जाने के लिए कहा। एसीपी के साथ मिलकर गजेन्द्र, विराज को अपने कमरे में ले आया, जहां डॉक्टर ने उसका इलाज शुरु किया।
दूसरी तरफ एसीपी के कमरे से बाहर आते ही रिया ने उन पर सवालों की बौछार कर दी, "विराज को गोली कैसे लगी? ये प्रेस कॉन्फ्रेंस तो रेनू ने बुलाई थी।"
रिया के सवाल पर एसीपी रणविजय ने एक-एक कर पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस का माजरा समझाया, जिसे सुन गजेन्द्र और रिया दोनों के होश उड़ गए। लेकिन इसी के साथ एसीपी ने उनसे एक बात छिपाई कि इन सबके पीछे राघव भोंसले की भाभी उषा भोंसले का हाथ है, जो रेनू की मां शारदा देवी की सौतेली बहन भी है। क्योंकि वो नहीं चाहता था कि गजेन्द्र फिर किसी नई मुसिबत में फंसे।
रेनू और विराज पर हुए हमले के बारे में सुन रिया की आंखों से आंसू छलक पड़े और वो गजेन्द्र के गले से लिपट गई, “आखिर ये लड़ाई कब खत्म होगी गजेन्द्र...? आखिर सच कब जीतेगा…? आखिर कब रुकेगा ये राजघराना की गद्दी के लिए बिछती लाशों का मंजर?”
गजेन्द्र के पास रिया के इन सवालों का कोई जवाब नहीं था, ऐसे में वो शांत और चुप खड़ा बस उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे शांत करने की कोशिश करता रहा। लेकिन तभी एसीपी रणविजय ने मुंह खोला और कुछ ऐसा बोला, जिसने रिया और गजेन्द्र दोनों के मन में सवालों का अंबार खड़ा कर दिया।
"देखों रिया, ये लड़ाई सच और झूठ… शैतान और इंसान के बीच की है, इसे जीतना इतना आसान नहीं होगा। हमे बहुत हिम्मत रखनी होगी, क्योकि हमें ये भी नहीं पता कि आखिर हमारा दुश्मन कौन है...? हम परछाइयों से लड़ रहे हैं, रिया। ये शैतान ऐसी परछाइयां है, जो सिर्फ अंधेरे में वार करती हैं। लेकिन अब वक़्त है इन्हें रोशनी में खींच कर लाने का और इनका खात्मा करने का, तो घबराओं नहीं और पूरी हिम्मत से लड़ों… जैसे रेनू लड़ रही है।"
ठीक उसी वक्त राजगढ़ की जेल में बंद राघव भोंसले से कोई मिलने पहुंचा, ये कोई और नहीं उषा भोंसले थी। लाल साड़ी में बैठी वो वेटिंग रुम में अपने देवर राघव भोंसले का इंतजार कर रही थी। कुल दस मिनट के इंतजार के बाद एक सिपाही राघव को लेकर आया और वहां छोड़कर चला गया। सिपाही के जाते ही राघव भोंसले ने सीधे एक लाइन बोलीं— "रेनू या विराज… बताओं किसकी मौत की खुशखबरी लेकर आई हो?"
जवाब में उषा भोंसले ने मुंह लटका लिया, "फिलहाल तो कोई नहीं मरा… अभी सब ज़िंदा है।"
राघव का चेहरा एक पल के लिए तो गुस्से से तिलमिला उठा, लेकिन दूसरे ही पल उसने हंसते हुए कहा— "पर ज़्यादा वक्त नहीं…इन लोगों को जल्द ही मरना होगा, तभी हमारा सपना पूरा होगा। वैसे ये तो बताओं मेरी वो कुल्टा-कुलक्ष्णी पत्नी प्रभा कहा है? एक दिन भी मेरा हाल जानने जेल में नहीं आई। लगता है अपने भाई और भतीजे के लिए उसका प्यार उमड़-उमड़ कर बाहर आ रहा है। जरा उसे एक सबक तो सिखाओं"
उषा ने हां में सर हिलाया। इस वक्त उसकी आंखों में एक ठंडा सन्नाटा था। मानों जैसे वो भी अपने हाल से बौखलाई हुई थी। तभी राघव ने उसे एक और काम बताया।
"रेनू के पास जो चाबी और कैसेट है… वो जल्द से जल्द हमारे हाथ लगनी चाहिए, वरना सब खत्म हो जाएगा।"
"मैंने लोगों को भेज दिया है। आज रात तक या तो वो चाबी हमारे पास होगी… या फिर रेनू इस दुनिया में नहीं होगी।"
यहां राजगढ़ जेल में रेनू की मौत की साजिश रची जा रही थी। तो वहा महल की एकांत छत पर बैठी रेनू बस विराज के होश में आने का इंतजार कर रही थी। विराज को जब से गोली लगी थी, रेनू बेचैनी और बेबस महसूस कर रही थी। उसे अपनी जिंदगी में पहली बार सच्चे दोस्त का साथ नसीब हुआ था, और वो उसे इतनी आसानी से खोना नहीं चाहती थी।
दूसरी तरफ रिया और गजेन्द्र विराज के कमरे के बाहर खड़े डॉक्टर के बाहर आने और विराज की हालत का अपडेट जानने के लिए बेचैन थे। कि तभी रेनू छत से भागती हुई नीचे आई।
"सुनों गजेन्द्र… अब और चुप नहीं रहूंगी। उषा भोंसले ने मेरी मां को मारा… और अब विराज को भी उसी के भेजे आदमियों ने गोली मारी है। मैं और अपनों को नहीं खो सकती, चलों इस भोंसले खानदान का किस्सा ही खत्म करते है।"
रेनू की बेचैनी और विराज के लिए उसके मन में उठती भावना को गजेन्द्र समझ गया, लेकिन फिलहाल वो उसे शांत कराने की कोशिश करता है और कहता है— "मैं जानता हूं रेनू, पर फिलहाल तुम शांत हो जाओं… तुम देखना अब हम सब मिलकर भोंसले खानदान को खत्म करेंगे।"
तभी रिया पूछती है— "वो कैसे?"
जवाब में गजेन्द्र कुछ ऐसा कहता है, जिसे सुन रेनू के चेहरे पर सुकून साफ नजर आने लगता है।
“शारदा दादी की चाबी, और उस तहखाने से मिली कैसेट… दोनों को इस्तेमाल करेंगे।”
"क्या है उस कैसेट में?"
"कुछ ऐसा जो गद्दी के असली वारिस को साबित कर देगा… और उषा भोंसले को झूठा," रणविजय पीछे से बोल पड़ा।
ये सुन गजेन्द्र काफी हैरान हो जाता है, कि एसीपी को उस कैसेट और राज़ के बारें में कैसे पता चला, क्योंकि उसने और विराज ने तो अब तक उस कैसेट के बारे में किसी से बात नही की थी।
वहीं अगले दिन ACP ऑफिस में गजेन्द्र ने वो कैसेट रणविजय को दी, जिसे उसने एक पुराने रिकॉर्डर में डाल कर चालाया। आवाज़ crackle के साथ शुरू हुई…
“मैं, गजराज सिंह, ये आखिरी संदेश उस वक्त के लिए छोड़ रहा हूं, जब सच की कीमत खून से चुकाई जाएगी। अगर ये कैसेट तुम्हारे हाथ में है, तो समझो मैं जरूर या तो मर गया हूं, या फिर अपने गुनाहों की सजा जेल में कांट रहा हूं। उषा और राघव… वो दोनों मिलकर इस राजघराने को गिरा देना चाहते हैं। मैंने जो गलती की, उसे मेरे बच्चें न दोहराएं। असली वारिस… वही है जिसकी रगों में सच्चाई का खून दौड़ता है, चाहे वो जायज़ हो या नाजायज़। गद्दी की लकीरें महल की दीवारों में नहीं, दिल की ईमानदारी में होती हैं।”
और… मेरी वसीयत की असली कॉपी… राजपुर के पुराने चर्च में रखी है, जिसके लॉकर का कोड नंबर है— 1127।"
इतना कहते के साथ वो कैसेट खत्म हो गया। कैसेट की आखरी लाइन सुन सब एक-दूसरे की तरफ देखने लगते हैं और तभी एसीपी रणविजय चौक कर कहा— "राजपुर चर्च? यानी उषा के पास जो दस्तावेज़ हैं, वो नकली हैं?"
"बिल्कुल और हमें असली दस्तावेज़ तक पहुंचना ही होगा।"
गजेन्द्र ने कहा और फिर बोला, कि हमें जल्द से जल्द उसे वहां से हटाना होगा। कहीं ऐसा ना हो कि हम से पहले वो उषा भोंसले उस वसीयत तक पहुंच जाये। तभी रेनू ने कहा— "तुम चिंता मत कर मैं आज और अभी राजपूर चर्च के लिए निकलती हूं।"
रेनू अपनी बात पूरी करती उससे पहले एसीपी रणविजय उसे रोक देता है “नहीं, तुम्हें लेकर अब हम और कोई खतरा नहीं उठा सकता, क्योकि वो तुम्हें ही सबसे पहले रास्ते से हटाने की कोशिश करेंगे।”
तभी रेनू गुस्से भरे लहजे में जवाब देती है— "पर अब डरने का वक्त नहीं, मुझे मेरी मां की मौत का हिसाब, और विराज की गोली का जवाब देना है… और ये काम अब मैं खुद करूंगी।"
इतना कह रेनू अकेले ही कार लेकर राजपुर के पुराने चर्च के लिए निकल पड़ती है। आसमान में गरजते बादल, और भीतर शांति से भरा सन्नाटा… रेनू को देख रिया, गजेन्द्र और रणविजय तीनों को अजीब सा डर लगने लगता है। ऐसे में गजेन्द्र और रणविजय दोनों छुपके से रेनू की कार का पीछा करते हैं।
रेनू चार घंटे का सफर तय कर फाइनली राजपुर के पुराने चर्चा पहुंच जाती है, जहां जाते के साथ वो लॉकर रुम में जाती है और गजराज सिंह के नाम से दर्ज वहां की अलमारी में शारदा मां की चिट्ठी के साथ मिली चाबी को लगा... कोड नंबर – 1127 दबाती है।
जैसे ही वो चर्च की उस अलमारी में वो नंबर डायल करती है, धीरे से वहां एक और गुप्त दरवाज़ा खुलता है। उसके अंदर एक काली अलमारी थी, जिसमें रखे थे दस्तावेज़… जिसपर लिखा था- एक आखिरी पत्र।
रेनू तुरंत उसे खोलकर पढ़ती है।
“अगर ये तुम तक पहुंचे हैं, तो समझो अब वक़्त है सच्चाई को सामने लाने का। मेरी असली वसीयत ये है, कि मेरी बेटी यानी शारदा की औलाद, चाहे किसी भी हाल में पैदा हुई हो, वही इस गद्दी की असली उत्तराधिकारी है। – गजराज सिंह”
ये पढ़ते ही रेनू की आंखों से आंसू निकल आए… उसे एक पल के लिए पिता का सर पर हाथ और साथ दोनों महसूस हुआ। भले ही वो चिट्ठी के जरियें क्यों ना हो।
"मां… आपने सच को बचाया… अब मैं उसे न्याय दिलाऊंगी।"
एक तरफ रेनू के हाथ राजघराना को हासिल करने का सबसे बड़ा हथियार लग गया था, तो दूसरी तरफ उषा भोंसले, एक पुराने कमरे में कुछ तस्वीरें जला रही थी। तभी उसके फोन पर एक मैसेज आया, जिसमें लिखा था…
"असली वसीयत… वो रेनू के हाथ लग चुकी है।"
ये मैसेज पढ़ते ही उषा के चेहरे से रंग उड़ गया और वो कांपते हुए बोली— "इसका मतलब… अब सब खत्म? हम बरसों की इस लड़ाई को एक झटके में हार गए।"
लेकिन कभी उसने एक बार फिर उस मैसेज को पढ़ा और खुद से बड़बड़ाते हुए बोलीं— “नहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं होने दूंगी… हम इतनी दूर आकर हार नहीं सकते।”
"अब सिर्फ एक रास्ता बचा है… रेनू को खत्म करना होगा। आज रात, रियासत के सबसे बड़े जश्न में… जहां सब होंगे… वहीं उसका अंत भी होगा।"
दरअसल आज राजघराना में हर साल की तरह सबसे बड़े जश्न की रात थी। ये दिन हर साल बड़े नांच-गानें के साथ मनाई जाती है। ये वो दिन था, जब सिंह खानदान ने राजघराना की पहली नींव रखी थीं। पूरे राजगढ़ में रोशनी, संगीत, शेरवानी, गहने… महल एक बार फिर जाग चुका था।
गजेन्द्र आज पहली बार राजघराना महल की सालगिराह के जश्न में शामिल हुआ था। वो बहुत खुश था, लेकिन उसे क्या पता था कि इस बार जश्न के पर्दे के पीछे कोई गहरी साज़िश चल रही है, और अगर वो अपनी साजिश में कामयाब हुआ, तो आज फिर राजघराना की गद्दी किसी के खून से रंगी जाएगी।
रेनू उस आखरी वसीयत के कागज को लेकर रिया के साथ महल के मुख्य हॉल में पहुंची, वो महल के अंदर कदम रख ही रही थी, कि तभी एक नकाबपोश वेटर धीरे से उसके पीछे आया। उसके हाथ में ट्रे के नीचे, एक साइलेंसर लगी पिस्तौल थी।
और तभी… ठांय! एक गोली चली, नकाबपोश ज़मीन पर गिरा।
रेनू कांप रही थी। पीछे पलट कर देखा…तो विराज खड़ा था… और उसके हाथ में बंदूक… और शरीर पर पट्टियां थी। उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। लेकिन फिर भी वो कांपते पैरों के साथ रेनू के करीब आया।
"मैंने कहा था रेनू… एक कॉल करोगी, तो दौड़ा चला आऊंगा…"
गोली की आवाज सुन महल की रखवाली में बाहर खड़ा एसीपी रणविजय भी दौड़कर महल के दरवाजे पर पहुंचा, लेकिन इस बार उसकी बात में काफी गुस्सा और नफरत एक साथ झलकती है।
"उषा भोंसले… तुम पर हत्या, साज़िश और धोखाधड़ी के आरोप में वारंट जारी हो चुका है। तुम्हें अभी के अभी हमारे साथ चलना होगा।"
उषा मुस्कराती है…"आप समझते हैं ये कहानी खत्म हो गई?"
रणविजय ठंडे स्वर में जवाब देता है— "नहीं… अब असली लड़ाई शुरू हुई है। पर अपना अगला दांव खेलने से पहले जरा ये वीडियो देख लो।"
इतना कहने के साथ रणविजय अपना फोन उषा की तरफ बढ़ा देता है। फोन पर चल रहे वीडियो को देख उषा के कदम लड़खड़ा जाते हैं, और वो रणविजय के पैरों में गिर अपनी नाक रगड़ने लगती है।
आखिर क्या था उस वीडियो में ऐसा, जिसे देख एक झटके में टूट गया उषा का झूठा गुरुर?
क्या सच में उषा भोंसले की गिरफ्तारी से खुलने वाले है कई बड़े राज…?
क्या रेनू को मिलेगा वो जवाब, जो उसकी पूरी ज़िंदगी बदल दे…?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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