राजघराना महल का एक-एक कोना दुल्हन की तरह सजा था, चारों तरफ संगीत का शोर और देश-विदेश से आए मेहमानों की भीड़ थी। 

राजगढ़ में आज का नजारा देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि पूरा किला फिर एक बार सुनहरी रोशनी में नहाया हुआ था। बाहर आतिशबाज़ी हो रही थी, अंदर मंच पर एक से बढ़कर एक कलाकार नाच-गा रहे थे। लेकिन ये पूरा नजारा दिखावटी था, क्योंकि ना तो आज कोई राजघराना महल में खुश था और ना ही किसी का इस जश्न में शामिल होने का मन था। ऐसे में हर कोई अपने दिमाग में इस जश्न से परे एक नई साजिश बुन रहा था, जो आज रात राजघराना की रियासत की तक़दीर लिखने वाली थी।

महल के सबसे ऊंचे बुर्ज से लेकर तहखाने तक, आज हर कोने में हर कोई दोहरी चालें चलने की तैयारी कर रहा था। 

वहीं एक तरफ गजेन्द्र, रेनू और रिया तीनों का मन विराज की तबियत को लेकर काफी बेचैन था, क्योकि जबसे विराज को गोली लगी और उसका ऑपरेशन हुआ था, तब से लेकर आज तक डॉक्टर ने विराज की तबीयत के बारे में कुछ नहीं बताया था। 

“खटाक्!”

किसी ने झटके से महल के पार्टी हॉल का दरवाज़ा खोला… और फुल टशन स्टाइल में अंदर आने लगा। ये और कोई नहीं विराज ही था, जिसे देख सबके चेहरे पर एक लंबी सी स्माइल आ गई। उसकी चाल अभी भी थोड़ी लड़खड़ाती हुई सी थी, लेकिन उसकी आखों में हिम्मत और जज्बें की जरा भी कमी नहीं थी। 

विराज को अपनी आंखों के सामने देख रेनू खुद को रोक नहीं पाई और दौड़ती हुए उसके करीब गई और उसे कस की गले से लगा लिया। 

तभी गजेन्द्र भी आया और विराज को कसकर पकड़ लिया और बोला— "शुक्र है भगवान का कि तू जिंदा है! तूने तो हम लोगों की जान ही निकाल दी थी।" 

विराज के आ जाने से पार्टी में जान आ गई। अब गजेन्द्र, रिया, रेनू और मुक्तेश्वर सब के चेहरे पर सुकून था। इसके बाद जैसे ही सब जश्न में शामिल हुए, तभी फिर कुछ ऐसा हुआ कि राजघराना की ये सालगिराह की पार्टी का नजारा मातम में बदल गया। 

दरअसल महल के पिछले गेट पर एक काले रंग की वैन आकर रुकी, जिसमें से तीन लोग बाहर निकले, जिनके पास स्टाफ कार्ड्स थे, लेकिन उन्होंने चेहरों पर नकाब पहने हुए थे। इनमें से एक के हाथ में रेनू की तस्वीर थी। 

रेनू ने उस तस्वीर को उसके हाथ में देखते ही चिल्लाकर कहा— "य...य...ये वहीं हां, ये वहीं है, जिसने मुझपर हमाला किया था। और ये ही इतने दिनों से मेरा पीछा भी कर रहा था।"

तभी गजेन्द्र और विराज ने बड़े ध्यान से देखा, कि उसके हाथ में सिर्फ रेनू की फोटों ही नहीं थी, ब्लकि साथ ही लिया गया एक फोटो, और एक चिट्ठी भी थी… जिस पर लिखा था, "वसीयत हर हाल में चाहिए….ज़िंदा या मुर्दा—फर्क नहीं पड़ता। – उषा भोंसले"

गजेन्द्र और विराज ने जैसे ही उसके हाथ में खुली उस चिट्ठी की इस लाइन को पढ़ा, वो दंग रह गए। विराज धीरे से रेनू के करीब गया और उसके कानों में ये बात बता दी। इसके बाद रेनू बिना कुछ कहे सीधे मंच पर चढ़ी जहां पर एक सूटकेस में उस वसीयत को रखा गया था। दरअसल गजेन्द्र आज पार्टी में सबके सामने ये बताने वाला था कि राजघराना की अगली वारिस रेनू ही होगी।

लेकिन वो ये बात पूरी दुनिया को बता पाता उससे पहले ये सारा तमाशा हो गया। वहीं रेनू मंच पर उस वसीयत को छिपाने के इरादे से चढ़ती है, पर तभी मंच के नीचे से एक नकाबपोश वेटर धीरे-धीरे उसके करीब आकर उसे घेरते हुए अपनी बाहों में जकड़ लेता है।

“हम से चालकी करण चली थी के छोरी… मौत ने भी मात दे देते है हम...तो तू के चीज से?”
 
इतना कह वो नकाबपोश रेनू को बालों से घसीटता हुआ नीचे लाने लगता है, लेकिन तभी एसीपी रणविजय अपने बगल में खड़े शो के एंकर से माइक छीन कुछ ऐसा कहता है, कि सभी का ध्यान एसीपी पर टिक जाता है— "रुको! इस जश्न के पीछे छिपे हुए कातिलों को आज बेनकाब किया जाएगा।"

लोग चौंक जाते हैं... तभी रणविजय इशारा करता है… और 10 से 12 कांस्टेबल्स दौड़ते हुए पार्टी के अंदर फैल जाते हैं। एक-एक कर सारें नकाबपोशों को पुलिस अब अपनी गिरफ्त में कर लेती है, लेकिन तभी अचानक से एक नकाबपोश आसामान में गोली चलाता है और वहां से भाग जाता है।

“ठांय!”

गोली की आवाज सुनते ही रेनू डर से चिल्ला पड़ती है… लेकिन गोली उसके नहीं, सामने खड़े गजेन्द्र के बाजू को छूती निकली थी। भीड़ में अफरा-तफरी मच जाती है। चारों तरफ लोग यहां से वहां भागने लगते है, जिसके बाद एसीपी रणविजय भी हालातों को संभाल नहीं पाता और उसका सारा प्लान धरा का धरा रह जाता है।

हालातों को बेकाबू होता देख एसीपी रणविजय एक बार फिर माइक को अपने होठों के पास लाता है और चिल्लाकर कहता है— “हालात काबू में है और नकाबपोश भी पुलिस की गिरफ्त में है, प्लीज आप लोग जहां है वहीं रुक जाइये… भागिए मत। पार्टी जिस वसीयत के ऐलान के लिए रखी गई थी, हम जल्द ही वो कार्यक्रम शुरु करेंगे।”

एसीपी की ये बात सुन सब शांत हो गए और कुछ ही देर में पार्टी का माहौल फिर से पहले जैसा हो गया। फिर दुबारा एसीपी रणविजय ने वसीयत के काग़ज़ अपने हाथ में लिए और पूरे महल के सामने माइक पर बोलना शुरु किया।

"ये है गजराज सिंह की असली वसीयत, जिसमें साफ लिखा है कि इस रियासत की असली उत्तराधिकारी है—रेनू।"

ये सुनते ही सब लोग दंग रह गए। लेकिन उषा भोंसले की चीख सबके बीच गूंज उठी— "झूठ! ये सब झूठ है! ये वसीयत भी झूठी है…"

उषा भोंसले की इस चिल्लाहट पर एसीपी रणविजय ने तुरंत पूछा— "आप होती कौन है ये सवाल करने वाली और आप कैसे कह सकती है कि ये झूठ है… आखिर क्या रिश्ता है आपका राजघराना से?" 

रणविजय के इस सवाल पर उषा भोंसले ऐसे चुप हुई जैसे मानों कोई सांप सूंघ गया हो। उसके बाद रणविजय ने दुबारा माइक होठों के पास किया और कहा….."ये सिर्फ वसीयत नहीं सबूतों की पोटली भी है, जो राजगढ़ के साथ-साथ दिल्ली की राजनिति को भी हिला सकती है। इतना ही नहीं ये लोगों को फांसी के फंदे तक ले जाने का दम भी रखती है।" 

एसीपी की ये सारी बातें सुन उषा भोंसले के चेहरे का रंग उड़ने लगा, लेकिन असली हकीकत तो तब सामने आई जब एसीपी रणविजय ने जेब से एक मोबाइल निकालकर उस पर एक वीडियो चलाया। उस एक मिनट के वीडियों ने पूरी पार्टी में हंगामा मचा दिया। वहीं उसे देख रेनू का चेहरा भी फीका पड़ गया। वहीं मीडिया के कैमरों ने जब इसे लाइव टेलिविजन पर चलाया, तो दिल्ली में बैठे पूरे भोंसले खानदान की नींव ऐसी हिली की लोग दरवाजे पर पत्थरों और तलवारों से स्वागत करने के लिए खड़े हो गए।

दरअसल उस वीडियो में खुद गजराज सिंह कैमरे के सामने बैठा था, और कह रहा था….

“अगर मेरी दूसरी बेटी रेनू, जिसे मेरी नौकरानी शारदा ने जन्म दिया था, वह जिंदा है... तो वही मेरी अगली वारिस बनेगी। उषा और राघव ने जो किया, वो धोखा था। मुझे मजबूरी में चुप रहना पड़ा, लेकिन मेरी आत्मा को सुकून तभी मिलेगा जब शारदा की बेटी या मेरे मुक्तेश्वर का बेटा मेरा पोता गजेन्द्र मेरी गद्दी को मेरे बाद संभालेगे। मैं जानता हूं मैने परिवार मोह में आकर कई गलत फैसले लिए, लेकिन मुझे मेरे पोते गजेन्द्र पर पूरा विश्वास है, वो अपनी मौत को सामने देखकर भी गलत का साथ नहीं देगा।”

वीडियो खत्म हो गया, जिसके साथ ही पूरी पार्टी में सन्नाटा छा गया। उषा भोंसले फर्श पर गिर गई… उसकी आंखों से खून की तरह आंसू टपकने लगे। उषा इस हार से बुरा तरह टूट गई थी। 

तभी रणविजय आगे बढ़ा और उषा को घूरते हुए बोला— "उषा भोंसले, आपको गिरफ्तार किया जाता है…"

रणविजय उषा को गिरफ्तार करता उससे पहले रेनू ने सवाल किया, "लिखित वसीयत के हिसाब से तो मैं राजघराना की गद्दी की अकेली वारिस थी, फिर ये इस वीडियों में गजेन्द्र का नाम कहां से आ गया?”

रेनू का ये सवाल पूरे माहौल को बदल देता है। दूसरी ओर राजगढ़ जेल के अंदर तक भी राजघराने के इस तमाशे की गूंज मिनटों में पहुंच जाती है। जहां राघव अपनी हार का नजारा सुन अपने हाथ-पैर पटकने लगा, कि तभी दो महिला पुलिस कॉन्सटेबल उषा को धक्के मारते हुए राजगढ़ जेल के अंदर डाल देती है। 

अब उषा और राघव दोनों आमने-सामने एक ही जेल के कैदी, लेकिन अलग-अलग बैरक में बैठे अक-दूसरे को निहार रहे थे। इस वक्त जहां राघव की आंखों में बदले की आग जल रही थी, तो वहीं कुछ देर पहले अपने ही प्लान में घिरी उषा भोंसले अपने कमजोर गुंडों को कोस रही थी। 

तभी राघव ने पूछा— "आखिर तुम यहां कैसे पहुंची, कल जब मिलने आई थी तो कह रही थी कि जीत का प्लान तैयार किया है, फिर हारी कैसे?"

"मैं नहीं हारी… वो किस्मत से जीत गई। उसकी मां की किस्मत जितनी खोटी थी, ये उतनी ही चमकदार किस्मत लेकर आई है।"

तभी राघव ने तिलमिलाते हुए पूछा— "अभी कुछ बाकी है? क्या परमेश भाई सा को ये सब पता है? और आगे क्या करना के इरादें हैं?

राघव के इन सारे सवालों का जवाब देते हुए उषा धीरे से अपनी साड़ी के अंदर छिपाई एक पैन ड्राइव निकालती है और उसे फेंककर थमाती है, "फिलहाल हमें राजघराना छिनने से ज्यादा भोंसले विला को बचाना पर ध्यान देना होगा। क्योंकि अगर ये पैन ड्राइव उनके हाथ लग गई, तो वो हमारी रियासत को सिर्फ छीन नहीं लेंगे… बल्कि उसे नया नाम भी दे देंगे। और फिर हम इतिहास में भी ज़िंदा नहीं बच पायेंगे… याद रखना।"

एक तरफ जेल में एक नई ही कहानी शुरु हो गई थी, तो दूसरी तरफ राजघराना के अंदर भी एक नई प्रेम कहानी परवान चढ़ रही थी। ये कहानी थी विराज और रेनू की, लेकिन आज वसीयत का दूसरा पन्ना खुल जाने और उसमें गजेन्द्र का नाम पढ़ने के बाद रेनू थोड़ा मायूस थी। 

राजघराना महल की छत पर चांदनी रात में विराज और रेनू साथ बैठे बातें कर रहे थे। कुछ देर तक तो रेनू ने वसीयत का जिक्र किया, फिर विराज का चेहरा चांदनी की रोशनी में देख वो सब भूल गई और उसने पूछा, "अब क्या होगा?"

विराज मुस्कराया और बोला— "अब, इस रियासत को नए नाम से, नई नीयत से चलाना होगा। जिसमें ना खून बहेगा, ना विरासत के लिए कोई मरेगा।"

रेनू ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा…"तुम रहोगे ना मेरे साथ?"

"अपनी आखरी सांस तक, रानी साहिबा।" 

विराज ने जवाब दिया और मुस्कुराने लगा। तभी रेनू ने अपना सर धीरे से उसके दायें कंधे पर रख दिया। रेनू की साँसें अब विराज के कानों में गूंज रही थीं। दोनों के दिल जैसे धड़कनों से बातें कर रहे थे। ये पहली बार था, जब दोनों ने एक-दूसरे के सामने अपने मन की भावनाएं खुलकर रखी थी। तभी रेनू ने धीरे से अपने सर को उठाते हुए विराज से पूछा— "तुम्हारी बाँहों में ऐसा लगता है जैसे सारी जंगें थम गई हों… बस शांति रह गई हो… तुम्हारे और मेरे बीच की शांति।"

विराज ने अपना सर झुकाया और रेनू की आँखों में देखते हुए बोला— "और तुम्हारी एक मुस्कान… वो मेरे सारे घाव भर देती है। तुम हो, तो मैं हूँ… वरना मैं भी किसी वीराने में खो चुका होता। रेनू मैं तुम्हें किसी दिन मेरे अतीत के बारें में बताउंगा। तुम्हारा उसे जानना बहुत जरूरी है।"

रेनू ने मुस्कराकर उसकी उंगलियाँ थामीं और बोलीं— "ठीक है, जब तुम्हें लगे कि सहीं वक्त है बता देना, मैं सुनने के लिए तैयार हूं। सुनों विराज, क्या तुम जानते हो तुम्हारे बिना… ये महल, ये रियासत… सब अधूरा है मेरे लिए...तुमने जिस तरह मुझ पर चलने वाली उस गोली को अपने सीने पर ले लिया… मैं उसी पल तुम्हारी हो गई थी।"

इतना सुन विराज ने धीरे से अपना माथा झुकाया और अपने होठों से रेनू के माथे को चूमते हुए बोला— "अब ये ख्वाब नहीं… हक़ीक़त है, रानी साहिबा। मेरी हर सुबह अब से तुम्हारे साथ शुरू होगी… और हर रात तुम्हारे नाम पर खत्म।"

इस वक्त रेनू की आँखों में नमी थी, लेकिन चेहरे पर मुस्कान और सुकून भी साफ नजर आ रहा था। "तो चलो… एक नई रियासत बनाएँ, जहाँ सिर्फ मोहब्बत का राज हो…"

रेनू की ये बात सुन विराज धीरे से मुस्कराते हुए बोला "और उस रियासत की रानी… सिर्फ तुम रहोगी।"

विराज आगे कुछ कहता उससे पहले ही वहां किसी के जोर से खांसने की आवाज आई, जिसे सुन विराज और रेनू दोनों चौक कर खड़े हो गए। 


 

आखिर कौन था, जिसे देख उड़ गए रेनू और विराज के होश? 

कौन बनेगा राजघराना को असली उत्तराधिकारी? 

क्या गद्दी के लिये रेनू और गजेन्द्र बन जायेंगे एक-दूसरे के दुश्मन? 

और क्या वाकई राघव और उषा की चालें अब थम चुकी हैं? ऐसा क्या है उषा की उस पेंड्राइव में जो आने वाला है एख नया तूफान?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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