राजघराना की सालगिराह पार्टी ने एक झटके में पूरा नजारा बदल दिया था। पार्टी की रौनक अब खामोंशी के सन्नाटे में सिमट गई थी। महल की दीवारें सांप की तरह परत-दर-परत जैसे जहर को समेटे खड़ी थीं। महल की छत पर झील जैसी रात और हवाओं में कोई गुमसुम ख़ामोशी गूँज रही थी, लेकिन अब वह ख़ामोशी जैसे हर किसी के मन और दिमाग दोनों में घर कर रही थी।
विराज और रेनू–दोनों छत्त पर बैठे प्यार भरी बातें कर रहे थे। तभी वहां किसी के जोर से खांसने की आवाज आई। रेनू और विराज चौक कर पलटे, तो देखा कि गजेन्द्र और रिया वहां मुस्कुराते हुए बस उन दोनों को देख रहे थे।
गजेन्द्र विराज के करीब जाकर बैठ गया और बोला— "देखों वकील साहब, मेरी प्यारी सी बुआ का ख्याल रखना, वरना अगला केस मैं ही तुम पर ठोक दूंगा।"
गजेन्द्र की ये बात सुन बाकी सब लोग जोर-जोर से हंसने लगे और रेनू का चेहरा शर्म से लाल हो गया। कुछ आधे घंटे तक चारों ने मिलकर आगे दुश्मनों से कैसे लड़ना है और कैसे राजघराना का बचाना है, इस बारें में बाते करते रहें। कि तभी रिया ने गजेन्द्र को इशारा किया और वहां से चलने के लिये कहा— “चलों मुझे नींद आ रही है, और तुमसे कल के बारें में कुछ पूछना भी है। अब तुम विराज से आगे की बाते कल कर लेना फिलहाल यहां से चलों।”
रिया के कहते ही गजेन्द्र उसके साथ खड़ा हो वहां से चला गया, जिसके बाद रेनू और विराज भी कमरे में आ बैठकर बाते करने लगे। इस वक्त दोनों के बीच एक अजीब सा माहौल था। एक तरफ रेनू को जीत तो मिली थी, लेकिन पेंन ड्राइव का जोखिम कहीं ना कहीं खौफ बना हुआ था। उस पर वसीयत में गजेन्द्र का नाम आना भी परेशानी की वजह बन गया था। तो दूसरी तरफ विराज जल्द से जल्द रेनू को अपना अतीत यानि रिया और अपनी टूटी सगाई के बारे में बताना चाहता था।
रिया को सामने देखने के बाद विराज के दिमाग से ये ख्याल जा ही नहीं रहे थे, कि तभी रेनू की आवाज विराज के कानों में पड़ी— “क्या सच में ये पेंन ड्राइव... वो पूरा सच सामने ला सकती है?”
रेनू ने धीमे से पूछा, तो विराज ने अपने सीधे हाथ पर बंधी घड़ी देखी और बोला— “आधी रात होने को है, और तुम इस तरह के सवाल सोच अपने दिमाग को परेशान कर रही हो। देखों रेनू सो जाओं….मैं गजेन्द्र को अच्छे से जानता हूं। वो तुम्हारे किसी हक में हिस्सा नहीं मांगेगा।”
तभी रेनू का फोन बजा। आधी रात फोन की घंटी सुन रेनू और विराज दोनों चौक गए। रेनू ने फोन उठाया और तुंरत उसे स्पीकर पर डाल दिया। दूसरी ओर से आवाज आई….
“रेनू मैडम, देर से फोन करने के लिए माफी चाहते हैं। पर एसीपी रणविजय साहब का आदेश था, तो देना जरूरी था, कि कल सुबह एक बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी, जिसमें आप सब लोगों का शामिल होना जरूरी है।”
उस शख्स ने इतना कहकर फोन कांट दिया। एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र सुन रेनू और विराज चौक गए, क्योंकि उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि एसीपी रणविजय भी इस एक केस में इतनी ज्यादा दिलचस्पी क्यों दिखा रहे थें।
विराज की भौंहें तमतमा उठीं और वो झल्लाते हुए बोला “लगता है आज जो कुछ पार्टी में हुआ एसीपी रणविजय उस पर अपने बड़े अधिकारियों की वाह-वाही बटौरना चाहता है, इसलिए उसने दुनिया को ये सब बताने और उषा जैसी शातिर औरत की गिरफ्तारी का तमाशा करने की प्लानिंग की है।”
लेकिन तभी रेनू ने तुरंत कहा— “ये प्रेस कॉन्फ्रेंस हमें ही क्रैक करनी होगी विराज, क्योंकि अगर मैं वसीयत की पूरी स्टोरी लाऊंगी… और तुम पेंन ड्राइव से वो सबूत दिखा अपना यानी राजघराना का पक्ष रख पाओंगे… तभी इन भोंसलों पर लगाम कसेगी। गजेन्द्र वाले मुद्दे से मैं बाद में निपट लूंगी, लेकिन फिलहाल हमारा एक साथ इस उषा भोंसले और राघव भोंसले से लड़ना जरूरी है।”
सुबह होने को थी, लेकिन सूरज अभी निकला नहीं था, कि तभी रिया से लेकर गजेन्द्र और उसके पिता मुक्तेश्वर तक सबका फोन बजने लगा। सबने जैसे ही फोन उठाया रेनू नें तुंरत सबको तहखाने वाली लाइब्रेरी में आने को कहा।
कुछ दस मिनट के अंदर एक-एक कर सब महल के तहखाने जैसी लाइब्रेरी में इकट्ठे हुए…रिया, विराज, रेनू और गजेन्द्र। इसके बाद विराज ने पेंन ड्राइव को लैपटॉप में लगाया, स्क्रीन पर प्रोजेक्शन शुरू हुआ...वॉइसओवर में गजराज की आवाज गूंज रही थी, जिसे सुनते ही सबकी नींद एक झटके में खुल गई।
“हर सता की कुर्सी के कुछ घिनौने गहरे राज़ होते है। राजघराना की राजगद्दी के भी है, जिन्हें यह पेंन ड्राइव अपने अंदर समेटे हुए है। मैं जानता हूं कि इसे देखने के बाद मेरे अपने बेटे मुझसे घिन्न करने लगेंगे और मेरे नाति-पोतें वो तो खुद को मेरा खून होने के लिए भी कोसेंगे। लेकिन ये पेनड्राइव उन सबका सच समेटे हुए है, जिन्होंने मुझे हर राह पर ब्लैकमेल किया। उनके पास मेरे राज, और मेरी खामियाँ की वजह थी, जिसके जरिये वो मुझसे ऐसे-ऐसे काम करवाते जिसके बाद मैं धीरे-धीरे अपनों की नजरों में गिरने लगा।”
गजराज की इस आवाज के साथ ही लैपटॉप की स्क्रीन पर एक तस्वीर खुली, जिसमें उषा और राघव के हाथ में एक बंदूक थी, जिसकी नोक गजराज के माथे पर लगी हुई थी। गजराज के माथे पर बंदूक तनी तस्वीर कुछ ही सेकंड तक स्क्रीन पर टिकी रही, लेकिन वो पल जैसे सबकी सांसों को थामने के लिए काफी था।
उसके बाद अगली स्लाइड पर एक दस्तावेज़ नजर आया, जिस पर लिखा था— “भोंसले खानदान और गजराज सिंह के बीच एक गुप्त समझौता – 1995”
विराज ने फाइल पर ज़ूम किया तो दस्तखत भी साफ दिखाई दिए। उस फाइल के पहले पन्ने के एक तरफ गजराज सिंह का और दूसरी तरफ उषा भोंसले और परमेश भोंसले का साइन था। उस साइन और दस्तावेज को देख गजेन्द्र ने चिल्लाते हुए कहा— “ये क्या है? दादाजी ने आखिर ऐसा कोई समझौता क्यों किया था? क्या वो अपनी सगी औलादों से प्यार नहीं करते?”
तभी गजराज की आवाज फिर सुनाई दी, लेकिन इस बार गजराज वीडियो के अंदर नहीं बाहर था। दरअसल आज ही उसके वकील ने सुबह-सुबह उसकी बेल करा दी थी, जिसके बाद जब वो महल लौटा, तो उसके नौकर भींखू ने बताया कि सब लोग तहखाने में इक्कठा हुए है। इसके बाद गजराज भी वहां पहुंच गया और गजेन्द्र का सवाल सुन सफाई देते हुए बोला—
“मैंने उस वक्त शारदा, राज राजेश्वर की असली पहचान और अपनी दो दिन पहले जन्मी बेटी को बचाने के लिए ये डील की थी। मुझे धमकी दी गई थी कि अगर मैंने राजघराने की संपत्ति का हिस्सा भोंसलों को नहीं सौंपा, तो वो इन सबकों मार डालेंगे। मैं मजबूर था, क्योकि एक तरफ मुझे मेरा बड़ा बेटा मुक्तेश्वर छोड़कर चला गया था, और दूसरी तरफ मेरा खानदान गोली के निशाने पर था। लेकिन अब... इस वीडियो में वो सब है जो मेरे अंतर्मन में सालों से सड़ता रहा...”
इतना कहकर गजराज सिंह ने उस वीडियो को आगे बढ़ाया और इस बार जो फुटेज शुरू हुई, वो एक सीसीटीवी फुटेज की रिकॉर्डिंग थी, जिसमें उषा भोंसले और परमेश भोंसले किसी अनजान आदमी से काले ब्रीफकेस का लेन-देन कर रहे थे।
ये देख विराज ने तुरंत सवाल किया— “ये रहा सबसे बड़ा सबूत... ये ट्रांजैक्शन शायद उसी ‘ब्लैकमेलिंग’ का हिस्सा है।”
उसके इतना कहते ही अब सभी की नज़रें उस आखिरी फाइल पर टिक गईं, जो स्क्रीन पर लोड हो रही थी। उसमें एक ऑडियो रिकॉर्डिंग जुड़ी थी, और जैसे ही प्ले बटन दबाया गया, अंदर से एक औरत की सर्द, भारी आवाज़ गूंजी।
“अगर मैं मरी, तो मेरी मौत भी इस राजघराने को तबाह कर देगी। मेरी फाइल खोलते ही सबकुछ राख हो जाएगा — न रिया बचेगी, न गजेन्द्र, न रेनू और न ये तुम्हारे पोते का वकील विराज प्रताप राठौर...सबकी कब्र खुदेगी...”
विराज ने चौंक कर स्क्रीन की ओर देखा।
“ये… ये तो उषा भोंसले की आवाज़ है! लेकिन उसने ‘रिया’ का नाम क्यों लिया?”
अब सबकी नज़र रिया की तरफ मुड़ी, रिया का चेहरा एकदम पीला पड़ चुका था।
रेनू ने धीरे से पूछा— “रिया… ये सब क्या है? तुम इसमें कैसे शामिल हो सकती हो?”
रिया ने गहरी सांस ली, उसकी आँखें गीली थीं। उसने खुद को सँभालते हुए कहा— “क्योंकि… मैं सिर्फ गजेन्द्र की दोस्त नहीं हूं… मैं भी भोंसले खानदान की एक बेटी हूं… उषा भोंसले की सबसे बड़ी बेटी।”
रिया का ये खुलासा सुन सबके पैरों तले जमींन खिसक गई। गजेन्द्र ने एक झटके में रिया को खुद से दूर कर दिया। वो इस वक्त कुछ बोलने की हालत में नहीं था। कि तभी रेनू और विराज की आवाज उस कमरें में गूंज उठी।
“क्या?! इसका मतलब तुम परमेश भोंसले और उषा भोंसले की बेटी हो…? और आज तक हम लोगों के बीच रहकर हमारे साथ खेलती रही?”
विराज और रेनू के इन सवालों को सुन गजेन्द्र के कदम भी लड़खड़ा गए और वो एक कदम पीछे हट गया। उसकी आंखे नम थी, और हाथ-पैर बुरी तरह से कांप रहे थे।
“रिया… तुमने हमसे ये क्यों छिपाया?” उसने धीमे लेकिन सख्त लहजे में रिया से पूछा।
रिया भी अब कांप रही थी, गजेन्द्र का चेहरा देख उसकी आंखे अपने आप झुक गई थी। कि तभी उसने एक पेनड्राइव की ओर इशारा किया और बोलीं— “हां मैं ही थी वो… जो हर बार गजराज दादा जी की उस पेन ड्राइव को गायब कर देती थी। उस रात जब रेनू वो संदूक और सबूत लेकर आई, तो हां लाइट आउट कर के मैंने ही उसे गायब किया था… और हां जब लाइब्रेरी में आग लगी थी, तो वो भी मैंने ही लगाई थी, क्योंकि…मैं जानती थी कि उस पेनड्राइव में सिर्फ गजराज सिंह का अतीत नहीं, मेरा सच भी छिपा है। और अगर वो गजेन्द्र के सामने आया, तो वो मुझे छोड़ देगा… मुझसे नफरत करेगा। मैं गजेन्द्र से बहुत प्यार करती हूं, मैं मौत भी झेल सकती हूं पर गजेन्द्र की नफरत नहीं।”
रिया की ये बाते सुनते ही गजेन्द्र ने हाथ उठा दिया, लेकिन वो रिया को थप्पड़ मार नहीं पाया… उसके हाथ कांपते-कापतें रूक गए… और वो चिल्लाकर बोला।
“तुम जानती थी कि मुझे झूठ से नफरत है। तुम जानती थी कि भोंसले खानदान मेरे परिवार से 22 सालों से नफरत करता है। मेरी बुआ प्रभा ताई के पति राघव भोंसले… पिछले दो सालों से तुम्हारे सामने थे हर दिन-हर रात… लेकिन तुमने कभी नहीं कहा, कि वो तुम्हारे चाचा है। तुम सबसे अपनी पहचान छिपा कर बस मुझ पर और मेरे परिवार पर जुल्म करने वाले इन शैतानों का साथ देती रही। तुम धोखेबाज नहीं.. बेशर्म-बेहया… औरत हो रिया। मैं कहता हूं दूर हो जाओं मेरी नजरों से… वरना कहीं ऐसा ना हो कि अगली बार मैं अपने हाथों को रोक ना पाउं।”
इतना कह जहां गजेन्द्र ने रिया को धक्का देकर खुद से दूर कर दिया, तो वहीं रेनू आगे बढ़ी और उस वीडियों को दुबारा चलाने लगीं, लेकिन तभी रिया लड़खड़ाते कदमों से उस लैपटॉप पर गिर गई, जिसके बाद उसकी स्क्रीन अचानक काली हो गई।
सबने रिया पर अपनी इस नई चाल के लिए चिल्लाना शुरु कर दिया। रिया ने सबको बताने और समझाने की कोशिश की, कि वो गजेन्द्र के धक्के की वजह से गिरी है, लेकिन किसी ने उसकी एक नहीं सुनी। लेकिन तभी अचानक से उस लैपटॉप की स्क्रीन की लाइट जली और उस पर लिखा आया।
"फाइल लॉक हो चुकी है – डिलीटिंग इन 10… 9… 8…"
विराज झट से कीबोर्ड की ओर लपका…और चिल्लाया— “नहीं! नहीं! इसमें हमारी पूरी लड़ाई का सबूत है… ये नहीं मिटनी चाहिए…”
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
“3… 2… 1…डिलीटेड”
सबकी आँखों के सामने स्क्रीन पर ‘All Files Deleted’ एक लाइन लिखी आई… और उसी पल तहखाने की लाइट भी चली गई। चारों तरफ अंधेरा छा गया। इतना ही नहीं महल का हर कोना अंधेरे में डूब गया। फिर अचानक छत से किसी के जोर से गिरने की आवाज़ आई — धड़ाम!
सबने ऊपर देखा तो एक परछाई भागती हुई महल की सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी… और उसके हाथ में थी — एक और पेन ड्राइव। जब सब चिल्लाकर उससे उसकी पहचान और नाम पूछने लगा तब उस परछाई ने रुककर कहा।
“तुम लोग समझे कि सच सिर्फ तुम्हारे पास है? असली कहानी अभी बाकी है... राजघराना का अगला अध्याय मेरा होगा… उसे मैं ही लिखूंगा… हाहाहाहाहा।”
इसके बाद वो परछाई धीरे-धीरे लाइट की रोशनी में आई… और उसके चेहरा देख सबके होश उड़ गए।
गजराज सिंह उसे देखते ही चिल्ला पड़ा और बोला— "त...त...तुम, जिंदा हो…?”
आखिर कौन था वहां जिसे देख गुस्से से तिलमिला उठा गजराज सिंह? किसे जिंदा देख रूक गई गजराज सिंह की सांसे?
क्या गजेन्द्र माफ कर पाएगा रिया के इस झूठ, इस बेवफाई को?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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