तहखाने की दीवारों पर झूलते चिराग अब बुझ चुके थे। गहराते अंधेरे के बीच महल के कोनों में सिर्फ बेजान-बेबस लोगों की धड़कनों की आवाजें गूंज रही थीं। और उन धड़कनों के बीच वह परछाई, जो धीरे-धीरे रोशनी की ओर बढ़ी, तो उसका चेहरा देखने के लिए सबकी साँसें थम गईं। वहीं जब वो चेहरा… धीरे-धीरे कदम बढ़ता हुआ जब वो शख्स उस तहखाने की रोशनी में आया तो उसे देख 70 साल का गजराज सिंह 22 सालों से अपने दिल में लिए बैठा नफरत अपनी जुबान पर ले आया और चिल्ला पड़ा।
"त...तुम? नहीं… ये… ये कैसे हो सकता है? तुम तो मरे गए थे…"
उस शख्स को जिंदा सामने देख गजराज सिंह की आँखें जैसे फटी की फटी रह गईं थी। वो परछाई रोशनी में आते ही अब एक चेहरा बन चुकी थी।
"धीरज भोंसले… तुम जिंदा नहीं हो सकते!"
अपने पिता के मुंह से परमेश भोंसले को धीरज भोंसले नाम से बुलाते देख मुक्तेश्वर चौक गया। उसने तुरंत सवाल किया— "ये आप परमेश भोंसले को धीरज भोंसले क्यों बुला रहे हैं पिताजी?
"क्योंकि ये धीरज भोंसले है…"
अपने पिता की बात सुन मुक्तेश्वर ने तुरंत कहा— "लगता है आपको कोई गलतफेहमी हो रही है, दरअसल ये वहीं परमेश भोंसले है, जिसकी राजनीतिक पोल खोलने हम दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने गए थे। इससे तो हम पहले भी मिल चुके हैं… और ये ही रिया के पापा और उस उषा भोंसले का पति भी है।"
एक झटके में गजराज के सामने बाइस सालों का भ्रम टूट गया। वो जिसे धीरज भोंसले समझ रहा था… दरअसल राजगढ़ से दिल्ली तक इस नाम और शक्ल का तो कोई शख्स था ही नहीं…और ये ही उसकी बाइस सालों में बार-बार हार का सबसे बड़ा कारण था।
आज से दस साल पहले गजराज ने एक हमला करवाया था, जिसमें धीरज भोंसले के मरने की खबर सोशल मीडिया से लेकर टेलिविजन तक...हर जगह छा गई थी, और इसी के बाद गजराज ने उसे मरा हुआ मान लिया गया था।
लेकिन वो आज… जिंदा था और नाम बदल कर एक नई जिंदगी ही नहीं जी रहा था, बल्कि उषा भोंसले के साथ मिलकर उसके परिवार के लिए मौत की खाई भी खोद रहा था।
विराज और रेनू के चेहरे पर हैरानी ही छाई हुई थी, तो वहीं गजेन्द्र अब फट पड़ा और बोला— “ये पूरा भोंसले परिवार झूठ और फरेब की पोटली है… क्या मां, क्या बाप.. और क्या बेटी...? अब तो मुझे खुद से घिन्न आ रही है… कि मैंने आखिर इस रिया भोंसले.. उर्फ रिया शर्मा… क्या कहूं तुम्हें…? इस जैसी लड़की से प्यार कर भी लिया, आखिर कैसे?”
रिया का दिल गजेन्द्र की नफरत देख छल्ली-छल्ली हो गया। उसकी आंखों से बहते आंसू अब रूकने का नाम नहीं ले रहे थे… वो सिसक-सिसक कर बस रोये जा रही थी। ऐसे में उसने अपनी कांपती आवाज और कांपते हाथों से गजेन्द्र का दायां हाथ अपने दोनों हाथों से थामा…
"सुनों गजेन्द्र.. प्लीज मुझे एक बार मेरा सच, मेरी बात रखने का मौका दो। फांसी की सजा सुनाने वाले गुनहगार को भी कानून एक मौका देता है, तो क्या तुम मुझे बस दस मिनट नहीं दे सकते? प्लीज गजेन्द्र… प्लीज...। हमारे प्यार के लिए, बस दस मिनट..."
रिया की बातें सुन गजेन्द्र उसे एक मौका दे देता है, और कहता है— "ठीक है, इतनी ही बेचैन हो ना अपनी नई झूठी कहानी गढ़ने के लिए… तो चलों ठीक है, दिये तुम्हें पूरे 10 मिनट.. और उसके ग्यारहवें मिनट मैं बोलूंगा।”
ये सुनते ही रिया खुश हो गई और उसने बिना सांस लिए बोलने शुरु किया— "देखों, जिस दिन मैं तुमसे पहली बार मिली… उस दिन तुम्हारी मैंच फिंक्सिंग के पेपर और वो वीडियों जिसमें तुम उस मैंच फिक्सर से पैसें ले रहे थे… वो मुझे किसी अंजान शख्स ने मेल पर भेजा था… और कहा था, कि इस जैसे रिश्वतखोर खिलाड़ी को मुझ जैसी इमानदार पत्रकार को सजा जरूर दिलानी चाहिए। फिर क्या मैंने भी सबूत उठाये और तुम्हें सजा दिलाने वहां पहुंच गई, लेकिन बाद में मुझे उस मेल भेजने वाले का सच और तुम्हारी कहानी…"
रिया अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही वहां एक गोली आसमान में चलने की आवाज आई। सबने गोली की दिशा में देखा… तो गोली चलाने वाले शख्स का चेहरा देख दंग रह गए और एक साथ चिल्लाये…."राज राजेश्वर… अकंल आप…? जेल से कब छूटे?”
सबकी चीख और सवाल सुन राज राजेश्वर ने एक और गोली हवा में चलाई और चिल्लाकर बोला— "खामोश...मैं यहां किसी के सवालों के जवाब देने नहीं आया।"
इस वक्त राज राजेश्वर की आंखों में नफरत की वो गहराई थी, जिसे शब्दोंं से माप पाना कठिन था। इसके साथ ही दो महीने जेल में बिताने के बाद उसका चेहरा वक्त के थपेड़ों से कड़ा, लेकिन मुस्कान मानों जैसे कई सच और कड़वाहट भरे सवाल अंदर समेटे हुए थी, जिसका गुब्बार वो अपने शब्दों से बाहर निकलता है। "सच वो नहीं होता जो दिखाया जाता है… सच वो होता है, जो छिपाया जाता है। और मुझे छिपा दिया गया… खुद मेरे पिता ने, जिसे मेरे वजूद से इतनी घिन्न आती थी।"
गजराज काँपते हुए आगे बढ़ा और बोला— “मैंने तुझे नहीं छिपाया राज… मैंने तुझे बचाया था! भोंसलों ने तुझ पर उस रात हमला किया था… और वो तेरा और भीखूं का वो वीडियों भी खबरों में वायरल करना चाहता था। उस रात अगर मैं वो फैसला ना लेता, तो तू आज जिंदा ही नहीं होता…”
अपने पिता की गवाही सुन राज राजेश्वर आगे बढ़ा और अपने पिता की आंखों में आंखे डालते हुए बोला— “तो क्या? क्या हो जाता… मैं मर ही जाता ना, तो मरने देते..। रोज-रोज आपके नामर्द होने के ताने ने भी कौन सा आज तक मुझे जीने दिया है?”
राज राजेश्वर की आवाज बर्फ सी ठंडी थी। इधर रिया अब भी ज़मीन पर बैठी कांप रही थी। गजेन्द्र उसे देख रहा था, लेकिन अब उसकी आंखों में गुस्से से ज्यादा दर्द था। अपने प्यार को खो देने का दर्द….
“तुमने मुझसे नहीं, खुद से झूठ बोला रिया। तुमने मेरा प्यार नहीं, खुद पर विश्वास खोया है। और हां तुम्हारे दस मिनट अब खत्म होते है।”
ये सुनते ही रिया फूट-फूट कर रोने लगी। और गजेन्द्र के पैरों में गिरकर माफी की भीख मांगने लगी, लेकिन गजेन्द्र उसे पैरों से ठुकराकर वहां से चला गया।
दूसरी तरफ राज राजेश्वर ने चारों को देखा, और फिर मेज पर अपनी जेब से निकाल कर एक नई पेन ड्राइव रखीं और बोला— “ये रही असली कहानी… असली वसीयत… असली राज…”
इसके बाद राज राजेश्वर ने उस पैन ड्राइव को लैपटॉप से अटैच किया और इसके बाद जो वीडियो लैपटॉप की स्क्रीन पर चली, उसे देख सबकी आँखें स्क्रीन पर टिक गईं।
दरअसल इस वीडियों में गजराज सिंह किसी से फोन पर बात कर रहा था और वो बोल रहा था— “अगर तूने राज राजेश्वर को ज़िंदा रखा, तो मैं रेनू और उसकी माँ को मिटा दूंगा। भले वो औलाद मेरी हो, पर है तो नाजायज...!”
गजराज की आंखें उस फुटेज को देख भीगी थीं। वहीं ये शब्द जैसे ही स्क्रीन पर गूंजे, उसके अगले ही सैकेंड तहखाने की हवा जहरीली हो गई… जिसमें सांस लेना भी अब कुछ रिश्तों के लिए मुश्किल हो गया था।
पास खड़ी रेनू की आँखें उस वीडियो को घूर रही थीं, मानो किसी ने उसकी पूरी पहचान… उसका पूरा वजूद एक झटके में छीन लिया हो।
गजराज के वो शब्द उसके दिल को ऐसे चुभे कि वो कांपते हुए पीछे हट गई, और फिर एकदम चुपचाप खुद में बड़बड़ाने लगी— “नाजायज...? मैं… नाजायज हूं? जब ये शब्द लोगों ने कहे, तो मुझे इतने नहीं चुभे… लेकिन आज मेरे खुद के बाप ने मुझे नाजायज कह दिया। ऐसा लग रहा है किसी ने मेरे वजूद को ही गाली दे दी है।”
गजराज सिंह ने वीडियो की ओर देखा, फिर रेनू की ओर… लेकिन अब उसके चेहरे पर पश्चाताप नहीं, बल्कि एक सर्द खामोशी थी।
“रेनू… ये सब… तुम्हारे भले के लिए…” गजराज अपनी बात पूरी करता उससे पहले रेनू ने उसका हाथ झटक दिया और चीख कर बोलीं— “झूठ मत बोलिए, मिस्टर गजराज सिंह!”
रेनू की आवाज इस वक्त कांप नहीं रही थी, बल्कि आग उगल रही थी, “आपने मुझे सिर्फ इस्तेमाल किया, अपनी ‘इज़्ज़त’ की ढाल बना कर। कुछ दिन पहले आप मेरे पैरों पर नाक रगड़ कर माफी मांग रहे थे, और आज आप कह रहे हैं, कि मैं सिर्फ आपकी गलती का बोझ हूं… नाजायज हूं।”
राज राजेश्वर ने धीरे से एक तस्वीर उठाई और हवा में लहराते हुए बोला— “ये रहा तुम्हारा सच, रेनू। ये तुम्हारी मरी हुई माँ की औकात थी हमारे घर में… वो मेरी मां की नौकरानी और मेरे पिता गजराज सिंह की रखैल थी.. बस रखैल।”
इतना कहते के साथ राज राजेश्वर ने वो तस्वीर गजराज सिंह के पैरों के पास गिरा दी… और ये नजारा देख गजराज घबरा गया और उसके कांपते हाथों से अचानक से लैपटॉप छूटकर गिर गया, जिसके बाद स्क्रीन पर चलता वीडियो रुक गया।
लेकिन तभी पीछे से किसी की आवाज़ आई— “इतना आसान नहीं है गजराज सिंह… तुमने सिर्फ एक नहीं, ना जाने कितनी ज़िंदगियाँ झूठ में जलाकर रख की है… अब बारी तुम्हारी है।”
सब पलटे… दरवाज़े पर उषा भोंसले खड़ी थी। उसके हाथ इस वक्त हथकड़ी में जकड़े हुए थे, लेकिन उसके चेहरे पर शिकार नहीं, शिकारी जैसी मुस्कान थी। मानों जैसे उसका कोई बरसों पुराना बदला पूरा हो रहा हो। ऐसे में वो दो कदम आगे चलकर आई और गजराज की आंखों में आंखे डालकर बोलीं।
“क्या सोचते थे… मैं जेल से चुपचाप तमाशा देखती रहूंगी? मुझे हर चीज़ की खबर है… और मैं अपना हिस्सा लेने वापस आई हूं। तुमने मुझसे मेरी एकलौती बहन छीनी थी, वो भी अपनी हवस की भूख के लिए… तुमने उसके साथ प्यार का नाटक किया। अब भले मैं जेल में मरूं पर सुकून रहेगा कि जेल के बाहर तुम्हारी जिंदगी भी नर्क से कम नहीं होगी।”
तभी राज राजेश्वर ने अपने दुश्मन के सुर में सुर मिलाते हुए कुछ ऐसा कहा, जिसे सुन गजराज का दिल छल्ली-छल्ली हो गया।
“तू अब भी बाज नहीं आई उषा…? खैर सजा वैसे दमदार दी है तूने मेरे अय्याश पिता को, जिसने अपनी जवानी में मेरी मां को और अब अपने बुढ़ापे में अपनी औलादों को अपनी अय्याशी के फैलते किस्सों से सर झुकाकर चलने पर मजबूर किया है।”
उषा मुस्कुराई और बोलीं— “अब तक तो मैं सिर्फ खेल देख रही थी… अब मेरा ‘प्यादा’ अपना आखिरी चाल चलने को तैयार है…”
उसके उतना कहते ही तहखाने के लाइट चली गई। चारों तरफ अंधेरा छा गया… और इसी के साथ एक धमाके की आवाज़ गूंजी… जिससे दीवारें हिल उठीं और तभी एक जोरदार चीख सुनाई दी — “गजेन्द्र!!!”
जब लाइट वापस आई… तो गजेन्द्र फर्श पर पड़ा था… सीने में गोली… और खून…सब चीख उठे और इस नजारे को देख रिया तो बेसुध हो जमींन पर गिर गई।
विराज चिल्लाया— “गजेन्द्र! गजेन्द्र!”
रिया ने किसी तरह खुद को संभाला और लड़खड़ाते कदमों से भागते हुए गजेन्द्र के पास पहुंची, लेकिन उसकी चीख में अब आंसू नहीं, एक दिल दहला देने वाला पछतावा था। गजेन्द्र की धड़कनें धीमी पड़ रही थीं… वो रिया की आंखों में देखते हुए फुसफुसाया— “शायद… तुम सच कह रही थी… लेकिन अब… बहुत देर… हो गई है…” और इतना कहते-कहते ही गजेन्द्र की आंखें… बंद हो गईं।
क्या गजेन्द्र की मौत सच है?
आखिर किस बात का बदला लेना चाहती है उषा भोसलें? कौन है उषा भोंसले का आखिरी प्यादा?
क्या रेनू अब अपने असली अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी या टूट जाएगी अपने पिता के कड़वे शब्द सुनकर ?
और राजराजेश्वर का असली मकसद क्या है — बदला या वारिस बनने की लालसा?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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