तहखाने की दीवारों में गूंजती "गजेन्द्र के नाम की चीख" अभी थमी भी नहीं थी, कि रिया के आंसुओं की बूँदें गजेन्द्र के चेहरे पर गिर पड़ीं। उसका बदन खून से लथपथ ज़मीन पर पड़ा था.. और धड़कनें धीमी थी, पर रुकी नहीं थीं… उम्मीद अभी बाकी थी।
इसे उम्मीद की सांसों को हाथों में उठाए विराज कार में बैठा और मुक्तेश्वर से बोला— “अंकल कार को नाक की सीध में सीधे सीटी अस्पताल ले चलिए।”
इसके बाद मुक्तेश्वर ने कार को हवा से बात करते हुए ऐसा दौड़ाया कि 30 मिनट का सफर 12 मिनट में ही खत्म कर दिया.. और जैसे ही सीटी अस्पताल का दरवाजा सामने नजर आया विराज अपनी हाथों में गजेन्द्र को लिए सीधे अस्पताल के अंदर घुसा।
"डॉक्टर! कोई डॉक्टर बुलाओ!"
विराज की आवाज पूरे अस्पताल में गूंज रही थी। तभी राज राजेश्वर उसके आगे भागते-भागते हुए एक डॉक्टर को पकड़ कर लाया और बोला— "ये मेरा भतीजा है, राजघराना का एकलौता चिराग… इसे कुछ नहीं होना चाहिए डॉक्टर साहब… प्लीज इसे बचा लीजिए।"
राज राजेश्वर की बातें, मुक्तेश्वर का चेहरा और विराज के कांपते शरीर को देख डॉक्टर ने तुरंत गजेन्द्र को इमरजेंसी वार्ड में एडमिट कराया और चैकअप शुरु किया। लेकिन गजेन्द्र को वार्ड के अंदर ले जाने के दस मिनट बाद ही डॉक्टर बाहर आ गया और बोला— “व...व..वों दरअसल.. आप लोग”
डॉक्टर अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही मुक्तेश्वर उसके पैरों में गिर गया और विराज रोते-रोते दीवार में अपना मुंह छिपाने लगा। कि तभी डॉक्टर चिल्ला पड़ा।
"अरे मेरी बात तो पूरी सुन लीजिए, गोली छूकर निकली थी, दिल पर नहीं लगी। ऐसे में गोली हमने निकाल दी है और गजेन्द्र अब ठीक है, घबराने की जरूरत नहीं है.. उसे कुछ ही घंटों में होश भी आ जायेगा।"
डॉक्टर अभी ये बोल ही रहा था, कि तभी रिया वहां आ गई और उसने डॉक्टर की पूरी बात सुन ली और भागती हुई सीधे गजेन्द्र के कमरे में घुस गई। रिया कांपते हुए गजेन्द्र का हाथ थामे बैठ गई। उसकी आँखें रो-रो कर सूज गई थी, लेकिन आंसू अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
"गजेन्द्र, मेरी बात सुनो… तुम ऐसे मुझे छोड़ नहीं सकते… प्लीज, मैं जानती हूं मैंने बहुत बड़ी गलती की… पर आज पहली बार मैं तुम्हारे सामने खुद को नहीं, अपने प्यार को बचाने आई हूं…"
रिया के शब्दों के साथ-साथ उसकी आंखों से निकलते आंसू भी गजेन्द्र के शरीर को छूते हुए उसे जगाने की कोशिश कर रहे थे। रिया एक घंटे तक लगातार बोलती और रोती रही। आखिरकार उसके आंसूओं ने रंग दिखाया और गजेन्द्र की पलकों में हरकत हुई। उसने हल्के से आंखें खोलीं, रिया के चेहरे को देखा... और एक अधूरी सी मुस्कान दी।
"तुम… झूठ नहीं बोल रही हो न…?"
रिया की आँखों से बहते आँसू गजेन्द्र के सवाल का जवाब थे। वो ना… बोलते-बोलते गजेन्द्र की बाहों में सिमट गई। कुछ ही मिनटों बाद… गजेन्द्र ने दर्दभरी आवाज में कराहते हुए कहा— "क्या अब तुम मुझे छोड़ सकती हो, मुझे दर्द हो रहा है।"
"ओह.. सॉरी मैं.. वो … भूल… सॉरी"
इतना कह रिया शर्माते हुए अपना चेहरा छिपाने लगी, कि तभी वहां डॉक्टरों की एक टीम गजेन्द्र को स्ट्रेचर पर लेने आई और ले गई। वहीं दूसरी ओर इस घटना के साथ ही महल का माहौल राज राजेश्वर के अस्पताल से महल वापस लौटने के बाद और भी डरावना हो गया था। तहखाने के बीचोंबीच खड़ा राज राजेश्वर अब एक-एक चेहरा गिनते हुए खुद से बड़बड़ा रहा था।
“उषा भोंसले, तो अब बताओ… तुम्हारा प्यादा कौन है? और क्या मेरे भतीजे पर हमला करने वालों में तुम्हारा हाथ है?”
उषा के चेहरे पर वो मुस्कान वापस लौट आई जो किसी बाज़ीगर के पास आखिरी चाल से पहले आती है और वो अपने हाथों को हवा में लहराते हुए बोली— "तुम सब सोचते हो कि मैं अकेली आई हूं? अरे बेवकूफों, मैं तो वो मोहरा हूं… जो आज नहीं, सालों से खेला जा रहा है।"
उसके इतना कहते ही एक और दरवाज़ा पीछे से खुला, जिसके खुलने की आवाज के साथ सबका ध्यान उधर गया। और सामने से जो शख्स आया, उसे देख रेनू की सांसें थम गईं और वो चिल्लाकर बोली, “मां… आप जिंदा है…?”
इसके बाद मुक्तेश्वर भी चौक कर फुसफुसाया— “शारदा… मरी नहीं थी, जिंदा है… पर शारदा की लाश हमने उस रात अपनी आखों के सामने देखी थी।”
मुक्तेश्वर का मुंह खुला हुआ था… रेनू की आंखों में आँसू थे… सामने उसकी मां “शारदा देवी” खड़ी थी — जिसे कुछ दिन पहले ही महल में किसी ने गोली मार दी थी… और खुद रेनू ने अपने हाथों से उसका अंतिम संस्कार किया था। शारदा का जिंदा खड़ा होना सबके लिए किसी गहरे सदमें से कम नहीं था।
“आप... आप तो मर गई थीं...” रेनू ने कंपकंपी भरी आवाज में सवाल किया, तो शारदा देवी... धीमे कदमों से उसके ठीक सामने आकर खड़ी हो गई। उनका चेहरा सूखा हुआ था, आँखों में उम्र भर का दर्द और माथे पर बिंदी की जगह अब एक बदले की आग थी।
"नहीं रेनू… मैं मरी नहीं थी। मुझे गजराज सिंह ने मरवाने की चाल चली थी, जिसे मैंने भी पूरा करने का नाटक किया। कम से कम दुनिया को यही दिखाया कि मैं मर गई, ताकि मैं आज यहां गजराज की मौत की हकीकत बन ज़िंदा लौट सकूं।
"उस रात उषा ने मुझे बचाया… और आज, मैं यहां हूं… तुम्हारे नाजायज पिता से वो हर सवाल पूछने जिसे सालों तक मैंने खुद के अंदर दबा कर रखा।"
पोते गजेन्द्र के गोली लगने के सदमें में औंधे मुंह उस कमरे में पड़े गजराज की सांसें अब अटकने लगी थीं। उसकी आंखों से साफ था — वो इस मोड़ के लिए तैयार नहीं था। ऐसे में उसने डर-डर कर अटकती सांसों के साथ पूछा, "तू मरी क्यों नहीं शारदा!"
शारदा ने भी चिल्लाकर जवाब दिया “क्योंकि तेरा पाप जिंदा था, गजराज सिंह। मैं सिर्फ तुझे सजा दिलाने के इरादे से नहीं लौंटी हूं… बल्कि मैं मेरी जैसी उन तमाम औरतों के लिए इंसाफ लेने लौटी हूं, जिनकी औलादों को तूने नाजायज कहां… मै जानकी की मौत का बदला लेने लौटी हूं… जो अपनी आखरी सांस के वक्त अपनी औलाद को एक नजर देख भी नहीं पाई। तूने अपनी गद्दी और अपनी सत्ता को बचाने के लिए जो-जो पाप किये गजराज… मैं एक-एक का बदला लूंगी।”
इसके बाद शारदा देवी ने अपनी जो कहानी सुनाई… उसने रेनू, राज राजेश्वर, भीखूं… सबके होश उड़ा दिए।
“गजराज सिंह इंसान नहीं शैतान है, जिसने एक राजगद्दी के लिए पहले अपने बड़े बेटे को झुठे केस में फंसा कर उसकी जवानी नर्क बना दी और उसकी बीवी को सिर्फ इसलिए बेरहमी से मारवा डाला, क्योंकि वो एक गरीब घर से ताल्लुक रखती थी। और फिर अपने छोटे बेटे को इसलिए हमेशा बेइज्जत किया, क्योंकि उसका जीवन जीने का नजरिया अलग था। उसे औरतों के बजाये मर्दों के साथ रहना पसंद था। इतने पर ही इस शैतान का मन नहीं भरा… इसके बाद इसने, जो किया मुझे तो उसे बोलते हुए भी अब शर्म आ रही है। छी… गजराज सिंह…।”
इतना कहते हुए शारदा देवा आगे बढ़ीं और उसकी आंखों में आंखे डालकर बोलीं— ये दुनिया कहती है, कि मूल से प्यार सूद होता है… लेकिन इस हैवान ने तो अपने बेटे छोड़ों अपने पोते तक को इस कुर्सी के लालच में मारने की कोशिश की। उसे जेल में भिजवाया… उसे पिटवाया।
शारदा के ये आरोप सून गजराज तिलमिला उठा और बोला— “नहीं मैंने मेरे पोते को कभी कुछ नहीं किया… मैंने तो उसे जिंदा रखने के लिए मौत की स्याही से लिखी ये वसीयत भी तेरी बेटी रेनू के नाम की… ताकि अगर भोंसले किसी को मौत के घाट उतारे तो वो रेनू हो… मेरा पोता नहीं”
ये सुनते ही रेनू के कदम लड़खड़ा गए, जिन्हें संभालते हुए शारदा ने कहा— "देखा, जिसे बाप समझ तू अनाथ आश्रम से यहां आई… मुझसे लड़ी और ये तक कहने लगीं कि तेरा बाप तेरे साथ की अपनी नाइंसाफी पर शर्मिंदा है और तुझे अपनी जायदाद का एकलौता वारिस घोषित करना चाहता है… देख और सुन अपनी आंखों से उसकी असलियत क्या है? वो तुझे अपना वारिस सिर्फ अपने पोते की मौत तेरे नाम करने के लिए बना रहा है।”
आगे शारदा ने रेनू के जन्म के समय गजराज सिंह ने क्या किया था, वो किस्सा भी सुनाया।
“रेनू…तेरे जन्म के बाद मैं तुझे छोड़कर नहीं गई थी। मुझे जिंदा दफना दिया गया था, उस तहखाने की दीवारों के पीछे, जहां ये पिछले बीस सालों से मुझे किसी जानवर की तरह मुझे खाना देते थे, लेकिन एक दिन उषा ने, जिसे मैंने अपनी बहन कम अपने प्यार का दुश्मन ज्यादा माना… उसने रिया के जरिये मुझे उस कब्र से निकाल कर नया जीवन दिया। और तभी मैंने उषा के साथ मिलकर खुद से एक वादा किया — कि एक दिन हम गजराज को उसके पापों का आइना ज़रूर दिखाएंगे।”
शारदा के गजराज पर आरोपों का दौर जारी था, इसी बीच राज राजेश्वर भी बोल पड़ा— "अरे जिसकी आंखों में उसकी अपनी औलाद हमेशा चुभी हो, वो तुम्हारा सगा क्या ही होगा। मेरा सच जानने के बाद इन्होंने मुझे कभी मरने नहीं दिया, क्योंकि ये अपने सारे पापों का ठिकरा मेरे सर फोंड़ते थे। मेरे भाई मुक्तेश्वर को फंसाने का काम इन्होंने राघव भोंसले के साथ किया, लेकिन जब बात लोगों के सामने आई तो मुझे कुर्सी का लालच देकर खड़ा कर दिया। फिर मेरी भाभी जानकी को मारने का आरोप भी इन्होंने मुझे पर ही लगा दिया, जिसके बाद दो सगे भाई एक-दूसरे के दुश्मन बन गए।
“और बचपन से मैं हमेशा समझता रहा कि मेरी मां ही इस घर की सबसे बड़ी अभागिन रही… पर हक़ीकत में… तो इस महल के हर कमरे में कोई न कोई औरत अभागिन थी।”
राज राजेश्वर आगे कुछ कहता उससे पहले शारदा आगे आई और बोली— “लेकिन अब ये खेल खत्म होगा। बस अब इस लालची भेड़िये की शिकार ना कोई औलाद होगी और ना कोई राजगढ़ की औरत”
शारदा ने जैसे ही ये कहा— वैसे ही महल की छत पर एक लाल रोशनी चमकी। उषा ने एक रिमोट निकाला, जिसे देख राज राजेश्वर ने चौकते हुए पूछा— "ये क्या है?"
"ये… तुम्हारी विरासत का फाइनल टेस्ट है.. जिसमें तुम्हारा ये बाप गजराज सिंह या तो जिंदा जलेगा या फिर अपने सबूतों का खुलासा खुद करेगा।"
उषा बोली और रिमोर्ट का मुंह सीधे गजराज की तरफ कर दिया। तभी गजराज सिंह ने भी अपनी रिवॉल्वर अपनी जेब से निकाली और उसे उषा पर तानते हुए चौक कर पूछा— "क्या मतलब?"
गजराज के हाथों में रिवॉल्वर देख उषा जोर-जोर से हंसने लगी और बोलीं, “मतलब ये, कि अब कोई भी वारिस तब तक नहीं बन सकता जब तक कि गजराज सिंह खुद सामने आकर सबको अपनी जुबान से ये न बता दे… कि उसका असली वारिस कौन है। वरना इस महल का वो तहखाना फट जाएगा… जहां उसने सालों तक अपने गुनाहों को दफनाया है।”
उषा की धमकी सुनते ही गजराज की साँसे फूल गई थीं। उसके पैर लड़खड़ाने लगे और वो कांपती हुए आवाज में बोला— "नहीं… ये सब झूठ है…"
उसने कहा तो शारदा देवी भी चिल्लाई और बोली— "नहीं… ये सब सच है गजराज सिंह। अब ये तुम पर है… या तो तुम खुद अपने गुनाहों का चिट्ठा दुनिया के सामने खोलों… या फिर अपने इस राजघराना की आग में दफन होकर खत्म हो जाओं।"
तभी उषा ने कहा— ये अंत की शुरुआत है गजराज सिंह सोच लों...।
मौत को सामने देख गजराज सिंह ने एक-एक कर अपने सारे गुनाह कुबूल कर लिए। फिर क्या तहखाने की लाइट चली गई, जिसे बाद गजराज सिंह ने अपने चारों तरफ देखा तो वो पुलिस से घिरा हुआ था। एकाएक महल के बाहर से भी पुलिस के सायरन की आवाज सुनाई देने लगी। सीबीआई की टीम गेट पर पहुंच चुकी थी, उषा के चेहरे पर अब संतोष था।
“मैं अब जा रही हूं… पर तुम्हारी ज़िंदगी में ऐसा ज़हर घोल चुकी हूं, जो तुम्हारी आत्मा तक को गला देगा, गजराज। हाहाहाहा”
उषा को पुलिस ने कस्टडी में लिया। शारदा ने रेनू को गले लगाया और बोली, "अब मैं तुम्हारे साथ हूं, बेटी। अब कोई तुझे नाजायज नहीं कह सकेगा।"
शारदा के इसी डायलॉग के साथ मुक्तेश्वर का फोन बजा, उसने फोन की स्क्रीन पर देखा और फटाक से फोन उठाया। दूसरी ओर से आवाज आई, अंकल अच्छी खबर है, गजेन्द्र खतरे से बाहर है। उसे होश भी आ गया है। एक और अच्छी खबर है अंकल, रिया और गजेन्द्र के बीच सब ठीक हो गया है।
दूसरी ओर अस्पताल में गजेन्द्र ने एक बार फिर आंख खोली और देखा, तो रिया अभी भी उसका हाथ थामें उसके पास ही लेटी हुई थी। गजेन्द्र ने उसकी ओर देखा, फिर मुस्कुराया।
"अब मैं तुम्हें नहीं, हमें एक और मौका दूंगा… अगर तुम साथ चलने को तैयार हो… मेरे सच के लिए अपने परिवार से लड़ने के लिए तैयार हो… तो मैं मेरी आखरी सांस तक तुम्हारा साथ दूंगा।"
नींद का नाटक करते हुए लेटी रिया ये सब सुन कर धीरे-धीरे मुस्कुरा और शर्मा रही थी, जिससे साफ था कि वो गजेन्द्र की हर शर्त पर राजी है।
वहीं तहखाने में जहां पुलिस उषा को दुबारा जेल ले गई और शारदा अपनी बेटी रेनू को अपने साथ… जिसके बाद राज राजेश्वर अपने पिता को वहीं तहखाने में छोड़ वहां से जाने लगा और जाते-जाते बोला….
तुम इसी नर्क वाली मौत के हकदार हो… इंतजार करों मैं तुम्हारे राज़ को भी कुछ ही दिनों में सबके सामने घसीटता हुआ यहां लेकर आउंगा।
राज राजेश्वर के मुंह से ये लाइन सुनते ही गजराज सिंह समझ गया कि अब उसके सारे गुनाहों के पत्ते खुल चुके है। राज राजेश्वर को जादुगर बाबा का असली सच पता चल गया है।
आखिर कैसे पता चला राज राजेश्वर को जादुगर बाबा का सच?
मुक्तेश्वर और राज राजेश्वर के साथ आखिर कौन सा खेल खेल रहे थे जादुगर बाबा?
क्या गजराज सिंह के गुनाहों की लिस्ट अभी और लंबी है?
क्या असली वारिस कोई और है, जो अब तक परदे के पीछे है?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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