“भरोसे की नींव जब हिलती है, तो सबसे पहले दिल टूटता है और फिर धीरे-धीरे भरोसा तोड़ने वाला वो शख्स नजरों से गिरता है… और अंत में रिश्ता जहर लगने लगता है....”
राजघराना महल का हाल भी आज कुछ ऐसा ही था, जहां महल की दीवारों में इस समय चारों तरफ खामोशी छाई हुई थी। वहीं तहखाने में पड़ा गजराज सिंह अब सिर्फ सन्नाटा से घिरा हुआ था, और उस सन्नाटे को चीरती उसकी अपनी आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी।
"राज राजेश्वर मैं पिता हूं तेरा, जन्म दिया है मैंने तूझे, तू इस तरह मुझे दुत्कार नहीं सकता…"
अपने पिता की ये सारी बाते सुन राज राजेश्वर ने मुट्ठियाँ भींची और अपनी आंखे बंद कर खुद से ही बातें करने लगा— “जानवर भी अपनी औलाद के साथ वैसा बर्ताव नहीं करता होगा, जैसा मेरे पिता ने मेरे साथ किया… और आज ये खुद के पापों को धोने के लिए उस रिश्तें की दुहाई दे रहे हैं... वाह।”
तभी गजराज सिंह ने एक बार फिर माफी की उम्मीद से आवाज लगाई…."पिता हूं मैं तेरा राज राजेश्वर, मत कर मेरे साथ ऐसा... एक बार तो मेरी बात सुन लें"
गजराज सिंह के बार-बार पुकारने की आवाज सुन राज राजेश्वर भड़क जाता है और पलटकर चिल्लाते हुए कहता है— “बस… अब एक शब्द और मत बोलना पिताजी… या शायद मुझे अब तुम्हें पिताजी कहना ही बंद कर देना चाहिए। क्योकि जिस बच्चे का बाप तुम्हारें जैसा हो, उसे दुश्मनों की क्या ही जरूरत?”
इतना कहते-कहते राज राजेश्वर अपनी 20 साल पुरानी यादों में खो गया, जब उस वक्त उसके पिता ने उसे एक रात में ठुकरा दिया था।
महल का पिछला हिस्सा, जहां घोड़े दौड़ रहे थे। हवा में धूल उड़ रही थी और दो जवान लड़के, जिनमें एक लगभग 20 साल का (मुक्तेश्वर) और दूसरा 18 साल का (राज राजेश्वर) — घोड़ों के साथ दौड़ने की कोशिश कर रहे थे। पीछे से एक लंबी दाढ़ी वाला बूढ़ा आदमी अपनी जादू वाली सीटी बजाता है और चिल्लाकर कहता है।
"सुनों मुक्तेश्वर! लगाम कंधे से नहीं, दिल से पकड़ी जाती है! और जब तक तुम अपने दिल को घोड़े के दिल से नहीं जोड़ोंगे, तब तक तुम चाहकर भी घोड़े को अपने मुताबिक नहीं दौड़ा पाओगे और ना ही रेस जीत पाओगे।"
तभी दूसरी ओर राज राजेश्वर ने घोड़े की रस्सी कसकर अपनी तरफ खींच दी और वो धड़ाम से जमींन पर गिर गया, जिसे देख मुक्तेश्वर हँसते-हँसते घोड़े के पीछे दौड़ना लगा और तभी वो बूढ़ा आदमी, जिसे दोनों जादूगर बाबा कहते थे, वो उनके लिए सिर्फ एक कोच नहीं, पिता जैसा था। वो आया और उसने राज राजेश्वर को दोनों कंधो से पकड़ते हुए उठाया और समझाने लगे।
मुक्तेश्वर और राज राजेश्वर ने जादूगर बाबा को अपनी जिंदगी में भगवान का दर्जा दे रखा था, लेकिन दोनों ही ये नहीं जानते थे कि बाइस साल पहले उसकी और आज उसके बेटे की जिंदगी बर्बाद होने की वजह वहीं जादूगर बाबा था।
दरअसल उसी रात जब राज राजेश्वर को आधी रात गजराज सिंह ने भींखू के साथ उसके कमरे में पकड़ा, तो उस वक्त राज राजेश्वर की तस्वीरें खींच उसकी सच्चाई दुनिया को बताने की धमकी देने वाला शख्स और कोई नहीं जादूगर बाबा ही था। चौका देने वाली बात ये थी, उसे ये सब करने के लिए खुद गजराज सिंह ने कहा था।
वहीं, आज का दिन—
शायद किसी भूले हुए पन्ने का दोबारा लिखा जाना था। राज राजेश्वर गुस्से में कांप रहा था, लेकिन उस कांपते शरीर के भीतर कुछ और भी चल रहा था। एक उलझन, एक टीस, जो उसे खोखला कर रही थी, कि आखिर वो जादूगर बाबा को सजा कैसे देगा।
तभी मुक्तेश्वर आया और उसने दीवार की ओर देखा, जहाँ बचपन की एक धुंधली सी तस्वीर अब भी टंगी थी, जिसमें वो और राज राजेश्वर, माँ की गोद में बैठे मुस्कुरा रहे थे। उसकी आँखों में पानी आ गया, लेकिन अगले ही पल उसने मुट्ठियाँ कस लीं, जैसे आंसुओं पर भी गुस्से से बंदिशें लगाना चाहता हो... और खुद से बड़बड़ाते हुए बोला।
“मैं तुम्हें माफ़ नहीं कर सकता, जादूगर बाबा… क्योंकि तुमने मेरे विश्वास को तोड़ा है... एक तरफ हमारे पिता ने हमारी जिंदगी को मजाक बना दिया। तो दूसरी तरफ हमारे कोच, जिन्हें हमने भगवान का दर्जा दिया वो भी हमारी जिंदगियों से खेल रहे थे…”
उसने धीमी आवाज़ में ये सब कहा, लेकिन फिर भी वो आवाज़ गूंजती रही — जैसे महल की हर ईंट अब खोखली हो गई हो। आज राज राजेश्वर और मुक्तेश्वर दुनिया के सामने अपने पिता और घोड़ों की दुनिया के जादुगर बाबा कहे जाने वाले उस बूढ़े आदमी की सच्चाई हर हाल में दुनिया के सामने लाना चाहते थे।
उसी वक़्त, महल के पिछले गलियारे में जहां तूफानी हवाएं महल की पुरानी खिड़कियों को थपथपा रही थीं। रिया शर्मा चुपचाप अपनी डायरी में कुछ नोट कर रही थी, कि तभी वहां धीमें कदमों के साथ चलता हुआ अचानक गजेंद्र उसके पीछे आ खड़ा हुआ।
"तुम सच में शामिल होना चाहती हो हमारे परिवारों के इस घिनौने खेल में?"
गजेन्द्र ने साफ शब्दों में पूछा, इस वक्त उसकी आवाज में एक थकावट सी थी। तभी रिया ने अपनी डायरी और पेन दोनों को नीचे रखा और उसकी आंखों में झाँकते हुए बोलीं।
“मैं सिर्फ खबरों के लिए नहीं लड़ रही थी, गजेंद्र… अब ये लड़ाई मेरी भी है, क्योंकि जहां मेरे प्यार का अपमान हुआ.. उसके सम्मान को ठेस पहुंचाई गई, मेरे लिए उसे लौटा लाना मेरे जिंदगी में सांस लेने की तरह है। मैं कौन सही है कौन गलत ये साबित नहीं करना चाहती। मैं तो बस ये चाहती हूं कि दुनिया को ये पता चले कि हॉर्स रेसर किंग गजेन्द्र मुक्तेश्वर सिंह ने मैंच फिक्सिंग के नाम पर कभी किसी से कोई रिश्वत नहीं ली।”
गजेंद्र कुछ पल चुप रहा, फिर जेब से वही पुरानी पेन ड्राइव निकाल कर रिया को थमाकर बोला — "देखो, मैं इस परिवार का हिस्सा हूं रिया, तो मुझे ये सब झेलना ही होगा। लेकिन सोच लो, तुम्हारे पास ऑपशन है... तुम मुझे छोड़कर, अब भी इस रिश्ते से आजाद हो सकती हो"
गजेन्द्र की इस बात से रिया को थोड़ा बुरा लगता है, लेकिन फिर भी वो बात को संभालते हुए कहती है— "जिसके लिए मैंने अपनी जन्म देने वाली मां को ठुकरा दिया। जिसके सच को साबित करने के लिए मैंने अपने पिता को झूठा साबित करने की कसम खा ली... मैं उसे कैसे छोड़ सकती हूं...। प्यार करती हूं मैं तुमसे गजेन्द्र… प्यार!”
इतना बोल रिया ने गजेन्द्र को कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और तभी गजेन्द्र की चीख निकल गई।
“आह रिया, गोली लगी थी मुझे, और जख्म अभी बाकी है, जिनमें दर्द हो रहा है। कहीं ऐसा ना हो गोली से ना सही, पर तुम्हारे इस गले मिलने से मर जाऊं।”
गजेन्द्र का ताना सुन रिया शर्मा गई और वो झटके से गजेन्द्र से दूर हो गई। वो कुछ कहती उससे पहले ही गजेन्द्र बोला— "ये जादूगर बाबा की असली पहचान से जुड़ा है। इसमे कुछ पुरानी रेस वीडियो हैं… और एक नाम… जो हम दोनों को हैरान कर देगा।"
रिया ने पेन ड्राइव ली और फिर उस कमरे के दरवाजे को जल्दी से जाकर बंद कर दिया। इसके बाद उसने सामने टेबल पर रखे लैपटॉप में उस पैन ड्राइव को लगाया। वीडियों में गजराज और जादूगर बाबा के साथ खड़े उस शख्स को देख रिया चौंक गई।
“भींखू काका… हे मेरे भगवान, इसका मतलब राज राजेश्वर चाचा को उनके सबसे करीबी आदमी ने धोखा दिया। क्या वो ये सच जानते है, कि जिस शख्स के प्यार में उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया, उन्हें धोखा देने वाला वहीं है?”
एक तरफ रिया, भींखू की सच्चाई खुलने के बाद से सदमें में थी, तो वहीं तहखाना में जहाँ गजराज बंद था, वहां का नजारा भी सर से पैर तक हिला देने वाला था।
गजराज सिंह माफी की गुहार लगा-लगाकर अब थक चुका था। तभी उसने उस तहखाने के एक कोने की जमींन को काफी गहराई तक खोदा और फिर उसमें से एक लकड़ी का बॉक्स निकाला, जिसमें एक पुरानी चिट्ठी थी। उसे साफ कर वो उसे पढ़ने लगा। दरअसल उसने ये चिट्ठी बाईस साल पहले उस रात लिखी थी, जब मुक्तेश्वर घर छोड़कर जा रहा था, लेकिन वो उसे ये दे ना सका। उसे कांपते हाथों से उसने आज फिर उसे खोला।
"काश उस दिन मैंने ये भेज दी होती… तो आज मेरा बेटा मुझसे यूं दूर न होता…"
तभी तहखाने का दरवाज़ा खुलता है और कोई उस दरवाजे से तहखाने के अंदर आता है। लंबा कद, झुकी कमर, और हाथ में एक भारी लाल किताब...
"अब इस कहानी का आखिरी अध्याय मैं लिखूंगा, महाराज…"
ये आवाज सुनते ही गजराज सिंह चौक गया, उसने एक बार फिर अपनी आंखों को मला… तो सामने देखा—वहीं था, जादूगर बाबा।
कभी जिसके हाथों में उसने अपने बेटों का भविष्य सौंपा था, आज वही शख्स उसके सामने एक साये की तरह खड़ा था। पर उसकी चाल में आज बदलाव था।
"त...तुम... यहाँ?" गजराज की आवाज़ जैसे सूखी टहनी की तरह फड़फड़ा रही थी, जिसे देख जादूगर बाबा की मुस्कान और गहरी हो गई। जैसे बरसों से छुपाए जहर को अब उगलने का समय आ गया हो।
"हाँ महाराज, मैं... तुम्हारा सबसे वफादार प्यादा... लेकिन आज, मैं आपसे अपनी उस वफ़ादारी का हिसाब मांगने आया हूँ… जिसकी वजह से मैंने पिछले बाइस साल जेल में गुजारे है।"
गजराज खिसककर पीछे हटने लगा, लेकिन जादूगर बाबा आगे बढ़ा और बोला— “तुमने मेरी ज़िंदगी बर्बाद की थी, गजराज सिंह। सिर्फ इसलिए कि मैं गरीब था, तो तुमने मुझे अपनी हर गलती की ढ़ाल बनाया। इतना ही नहीं अपने बेटों की जिंदगी को किसी शिकारी की तरह हर दिन नोचा तूने… और इल्जाम मेरे सर लगा दिया। अरे तू बाप नहीं कसाई है कसाई...”
गजराज का चेहरा जादूगर बाबा की ये बात सुनते ही सफेद पड़ गया था। उसे याद आने लगा वो अतीत, जिसे वो मिटा चुका था और आज उसके पुराने पाप भी मानों जैसे उसके पीछे हाथ-धो कर पड़ गए थे।
"मैंने तुझे हर सुविधा दी थी… मेरे बच्चों को घोड़ों की लगाम पकड़ना तूने ही सिखाया। क्या वो तेरी ‘बर्बादी’ थी?"
बाबा का चेहरा अब तमतमाने लगा और वो गजराज सिंह पर भरस पड़ा— "हाँ, उन्हें लगाम पकड़ना सिखाया… लेकिन असल में मैं ही वो लगाम था, जिससे तूने अपने बेटों को काबू किया। तूने मुझे मोहरा नहीं… गुलाम बनाया और जब तुझे लगा कि मैं सच जान गया हूं कि तेरे बड़े बेटे मुक्तेश्वर की पत्नी की मौत एक हादसा नहीं, बल्कि तूने ही उसे मरवाया था, तब तूने मुझे ही दूसरे केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया।"
गजराज की आंखों में अब साफ डर झलक रहा था। वो कुछ बोलने को हुआ ही था कि जादूगर बाबा ने लाल किताब ज़मीन पर फेंकी और एक भड़कती हुई आवाज़ में कहा।
"यह देख रहा है? ये तेरे सारे गुनाहों की दास्तान है, कि कैसे तूने मुक्तेश्वर को अपने जुएं की लत में धकेला, कैसे तूने राज राजेश्वर के समलैंगिक रिश्ते को अपने खिलाफ़ हथियार बना दिया, और कैसे गजेन्द्र के नाम पर तूने रेसिंग में ब्लैकमेलिंग करवाई।"
गजराज अब काँप रहा था। उसकी आवाज़ डगमगा रही थी— "मैंने सब कुछ अपने परिवार को बचाने के लिए किया… पर मैंने गजेन्द्र को कभी नहीं फंसाया। अरे, वो तो मेरा एकलौता..."
जादूगर बाबा ने गजराज की बात को बीच में ही काटते हुए कहा — "बचाने के लिए? नहीं गजराज, तूने परिवार नहीं, सिर्फ अपनी कुर्सी बचाई… अपने अभिमान को… अपने अहंकार को, और उसी अहंकार ने तुझे अंधा कर दिया। तुझे कभी दिखा ही नहीं कि मैं तुझसे कहीं ज़्यादा समझदार था।"
गजराज अब ज़मीन पर बैठ गया — टूटा हुआ, थका हुआ। इसके बाद उसने हारे हुए खिलाड़ी की तरह एक लाइन में सवाल किया— “अब क्या चाहता है?” उसने धीमे स्वर में पूछा।
जादूगर बाबा उसकी ओर झुकते हुए फुसफुसाया — "अब मैं चाहता हूँ कि तू ज़िंदा रहे… लेकिन तेरे हर राज़ को तेरा बेटा खुद सुने… ताकि उसे पता चले कि ‘राजघराना’ का असली राक्षस तू है, न कि मैं।"
दूसरी ओर महल की लाइब्रेरी में रिया, अभी भी गजेन्द्र के साथ पेन ड्राइव की वीडियो की रिकॉर्डिंग खंगाल रही थी। तभी एक क्लिप में, एक पुरानी... 25 साल पुरानी रेस की वीडियों खुला, जहाँ एक घोड़ा गिरा था और एक नौजवान ने जान गंवा दी थी।
"ये क्या है?" – रिया ने वीडियो को रोक कर गजेन्द्र से सवाल पूछा।
गजेन्द्र ने नज़रें चुराईं, लेकिन फिर धीमे से कहा — "ये वही हादसा है, जिसके बाद से मेरे दादा जी ने रेसिंग बंद करवा दी थी। लेकिन… बाद में पता चला कि वो घोड़े को ज़हर दिया गया था।"
रिया सदमें मे आ गई— "तो ये सब पहले से प्लान था, यानि बाइस साल पहले जब पहली बार तुम्हारे पापा रेस फिक्सिंग के केस में फंसे, तो तुम्हारे दादा ने उन्हें फंसाया था। और वो भी इसलिए कि वो खेल छोड़कर राजघराना की गद्दी के काम संभाले।"
गजेन्द्र ने गहरी सांस ली और बोला— "हाँ, और वो ज़हर की शीशी… किसी और के नहीं, जादूगर बाबा के लॉकर से मिली थी।"
रिया उठ खड़ी हुई, उसकी आंखों में अब केवल गुस्सा नहीं, मकसद था… गजेन्द्र के दादा गजराज सिंह के सारे काले कारनामों को दुनिया के सामने लाने का मकसद।
"मुझे उनसे मिलना है… आज… अभी।"
रिया गजेन्द्र के आगे उसके दादा गजराज से मिलने की जिद्द करती है। तो वहीं गजराज अब लगभग बेसुध था। तभी, बाहर से किसी के भारी कदमों की आवाज़ आई।
तहखाने का दरवाज़ा फिर से खुला — और इस बार राज राजेश्वर, मुक्तेश्वर और गजेन्द्र एक साथ खड़े थे।
जादूगर बाबा ने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन अब उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था… थी तो बस शांति… अपने अतीत को अपना लेने की शांति।
राज राजेश्वर आगे बढ़ा और बिना कुछ कहे लाल किताब उठाकर पलटने लगा। कुछ पन्ने पलटते ही उसने कांपते होंठों से पूछा — "ये… ये मेरे बारे में है?"
जादूगर बाबा ने सिर हिलाया — "हाँ, और जो तू जानता है, वो अधूरा है।"
तभी मुक्तेश्वर ने भी पूछा — "और मुझे रेसिंग के जुए में फंसाने वाली पूरी कहानी, वो किसने लिखी थी.. क्या वो भी..?"
मुक्तेश्वर सवाल करते-करते रुक गया, तो जादूगर बाबा ने शांत स्वर में कहा…."तुम दोनों को बर्बाद करने का बीज किसी और ने नहीं, तुम्हारे पिता ने बोया था। और मैं… बस उस बाग़ का माली बना रहा… ताकि ज़हर फल दे सके।"
तहखाने के दरवाजे पर खड़ा गजेन्द्र ये सब सूनकर टूट गया उसके होंठ कांप रहे थे— "और मेरी माँ?"
गजेन्द्र के इस सवाल पर जादूगर बाबा ने पहली बार नजरें झुका लीं। "वो एकमात्र इंसान थी जो मुझे समझती थी। शायद हमारी गरीबी ने हमे जोड़ा था। शायद उसी ने मुझे रोका होता, अगर समय पर तुम सबने उसकी आवाज़ सुनी होती। लेकिन तुम सब व्यस्त थे- रेस जीतने में, राज बचाने में, और रिश्ते खत्म करने में…और इन सबके बीच तुम्हें उसकी चीख नहीं सुनाई दी।"
तभी अचानक रिया भी गजेन्द्र के पीछे से आगे आ जाती है। इस वक्त उसके हाथ में एक और फाइल थी, जो किसी सरकारी कागज जैसी लग रही थी।
"राजघराना से जुड़े ये सारे केस अब सीबीआई के पास जा चुके हैं और इस फाइल में भी दर्ज है। मैं चाहती हूं कि राजघराना से जुड़ा एक-एक मामला कोर्ट में खुले और सुनवाई हो।"
अब क्या होगा गजराज के साथ? क्या अतीत के गुनाहों की सजा अब उसे मिलेगी या फिर वो बचने के लिए फिर रचेगा कोई नई साजिश?
क्या होगा रिया के साथ, जिसने ठान ली है गजेन्द्र को बेगुनाह साबित करने की कसम?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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