महल की पुरानी दीवारों में अब किसी वक्त का ठहराव नहीं था, न कोई रॉयल्टी, न कोई सम्मान... हर ईंट, हर पत्थर, बस अपनी पुराने अतीत के काले पन्नों को याद कर रहा था। मानों जैसे समय ने इन दीवारों में पिघलते हुए विश्वास को समेट लिया हो। लेकिन आज कुछ अलग था, क्योंकि राजघराना के इतिहास का एक और काला सच सामने आ चुका था।
गजेन्द्र के खिलाफ घोड़ा रेस फिक्सिंग का मामला दरअसल उसकी किस्मत नहीं, बल्कि उसके पिता के पुराने कोच जादूगर बाबा और उसके अपने दादा गजराज सिंह की रची साजिश का हिस्सा था, जिसने ना सिर्फ उसके जीवन को दांव पर लगाया, बल्कि उसके पिता मुक्तेश्वर सिंह को भी एक ऐसी गिरफ्त में फंसा दिया था, जिससे वह आज तक उबर नहीं पाए थे।
मुक्तेश्वर सिंह, जिनकी आंखों में अब भी बसी हुई थी अपने परिवार की इज्जत की तस्वीर, वे आज अपने बेटे के सामने एक चुप्पी के घेरे में खड़े थे। गजेन्द्र के मामले में फंसे हुए हर एक पहलू को देखकर, मुक्तेश्वर का दिल अपनी ही हार से टूटा हुआ था।
गजेन्द्र का नाम जिस केस से जुड़ा था, वह वही मामला था, जिसमें मुक्तेश्वर सिंह को गजराज सिंह ने बाइस साल पहले फंसाया गया था। यह वही केस था, जिसमें मुक्तेश्वर के पिता ने उसे झूठे आरोपों के चलते जेल भेजने का फैसला किया था।
वहीं बाइस साल बाद अब उन्होंने गजेन्द्र की मासूमियत को नुकसान पहुंचाने के लिए वहीं चाल दुबारा चली। मुक्तेश्वर ने बहुत कुछ सहा था, लेकिन उसे भी इस बात का एहसास नहीं था कि उसका खुद का पिता, वो शख्स है, जिसने उसके बेटे के भविष्य को अंधकार में धकेला। वो आज तक अपने भाई राज राजेश्वर और अपनी बहन प्रभा ताई के पति राघव भोंसले को इसका गुनहगार मानता आ रहा था।
मुक्तेश्वर का मन अब बुरी तरह टूट चुका था। एक पिता के रूप में, वह सिर्फ अपने बेटे को न्याय दिलवाना चाहता था, लेकिन अब उसे यह समझ में आया कि जिस दुनिया में वह बसा था, वहां सब छलावा था। उसकी सारी आशाएं और सपने टुकड़ों में बिखर गए थे।
वो दिन जब मुक्तेश्वर पहली बार अपने पिता गजराज सिंह के खिलाफ सिर्फ खड़ा ही नहीं था, बल्कि अब वो अतीत का बदला लेना चाहता था। वो पल आज भी उसके दिल में ताजे घाव की तरह थे, जब महल के आंगन में फैली सर्द हवा के बीच गजराज ने अपने बेटे को पहले फंसाया और फिर उस पर उसके खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला देने का आरोप भी लगाया।
बाइस साल पहले उस रात—
"मुक्तेश्वर, तुम अब राजघराने की जिम्मेदारियों के लायक नहीं हो। हॉर्स रेस फिक्सिंग मामले को अंजाम देकर तुमने राजघराना की शान में ना सिर्फ दाग लगाया, बल्कि तुमने मेरा सर भी झुका दिया है। अब तुम्हारें पास एक ही रास्ता है कि तुम अपनी जिंदगी अब मेरी शर्तों पर जियो।"
20 साल का मुक्तेश्वर काफी डरा हुआ था। एक तरफ पुलिस की पूछताछ, तो दूसरी तरफ जेल की सलाखें… बेगुनाह होकर भी उसे डर लग रहा था। ऐसे में उसने अपने पिता के आगे घुठने टेकने के बारें में सोचते हुए सवाल किया।
"आखिर आप चाहते क्या है पिताजी, आप जो कहेंगे मानूंगा।"
मुक्तेश्वर ने जैसे ही हामी भरी, गजराज ने अपना अगला पासा फेंक दिया और बोला— "सबसे पहले तो तुम्हें अपनी जिंदगी से अपनी उस दौ कोड़ी के गरीब बीवी को निकाल कर फेंकना होगा। वो किसी भी लिहाज से राजघराना की बहू बनने लायक नहीं है... और फिर…”
गजराज अपनी अगली शर्त रखता, उससे पहले ही मुक्तेश्वर चिल्ला पड़ा, "आपका दिमाग तो नहीं खराब हो गया पिताजी? प्यार करता हूं मैं उससे… उसकी कोख में मेरा बच्चा है… और आप चाहते हैं कि मैं उसे ऐसी हालत में छोड़ दूं।”
"हां-हां, मैं यही चाहता हूं कि तू उसे छोड़ दे। और फिर राजघराना के लायक किसी विरासत की राजकुमारी को लेकर आ। बेटे जायदाद का मान बढ़ाने के लिए होते है, ना कि घटाने के लिए। चल जा और उस जानकी को निकाल कर महल से बाहर फेंक दे।"
गजराज सिंह के ये शब्द मुक्तेश्वर के कानों में गूंज रहे थे। उसका दिल जकड़ा हुआ था, और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी जिंदगी के इस दौर के लिए किसे दोषी ठहराए। अपने पिता को, जिसने उसकी जिंदगी को हमेशा अपनी तरह से मोड़ा था, या फिर उस घेरते हुए सच को, जिसने उसके परिवार के भीतर की साजिशों को उजागर किया था?
मुक्तेश्वर सिंह ने उस दिन राजघराना छोड़ने का फैसला किया। वह महल से बाहर जाने लगा और तभी पुलिस मुक्तेश्वर को रेस फिक्सिंग के केस में पकड़ कर ले गई। तीन महीने बाद जब वो जेल से बाहर आया, तो उसकी पत्नी जानकी मर चुकी थी। तब उसके सामने उसकी प्रभा ताई नवजात एक महीने के लड़के को लेकर आई और उसे उसके हाथ में देकर बोलीं— ये तेरा बेटा है, गजेन्द्र सिंह… तेरी पत्नी ने इसका ये ही नाम रखा है।
उस दिन उसके पिता के झूठ ने उसे पूरी तरह तोड़ दिया था। राजघराना घर की दीवारों में बसा विश्वास अब एक ध्वस्त इमारत जैसा लग रहा था, जो किसी के एक गलत कदम से बिखर गया था।
वहीं आज का दिन—
अपने पिता का घिनौना चेहरा सामने आने के बाद मुक्तेश्वर महल छोड़कर अपने बेटे गजेन्द्र को बचाने के लिए पुणे चला गया था, ताकि अपने बेटे के लिए वह सबूत इक्ठ्ठा कर सके। गजेन्द्र का वकील विराज प्राताप राठौर वहां पहले से मौजूद था।
गजेन्द्र को बेगुनाह साबित करने की राह जरा भी आसान नहीं थी, क्योंकि गजेन्द्र को जितनी जरूरत अपनी विरासत को जानने की थी, उतनी ही जरूरत उसे उस राजघराने की सच्चाई को भी समझने की थी, जो उसका परिवार हमेशा से छुपाने की कोशिश करता था।
समय अपनी चाल चलता गया, और अब गजेन्द्र खुद उस रास्ते पर था, जिस रास्ते पर कभी मुक्तेश्वर चला था। अब वह खुद जेल के चक्कर काट रहा था, सिर्फ इसलिए क्योंकि उस केस में गजेन्द्र के दादा गजराज सिंह का हाथ था।
गजेन्द्र और उसके वकील विराज की पूरी जिंदगी अब इस मामले में बंधी हुई थी, लेकिन गजेन्द्र को पता चल चुका था कि वह बस एक प्यादा था। उसका घोड़ा, उसकी रेस, उसकी मेहनत— सब कुछ साजिश का हिस्सा था। वह अपने आपको अपने दादा के द्वारा फंसे गए जाल से मुक्त करना चाहता था, लेकिन जिस फिक्सिंग के आरोप में वह फंसा था, उसके पीछे का सच वह अब तक नहीं जानता था।
विराज ने गजेन्द्र को सच बताया था कि उसके दादा ने उसकी जिंदगी को रेसिंग के खेल से जोड़कर एक साजिश रची थी। लेकिन वह इससे भी ज्यादा हैरान था, जब उसे यह पता चला कि उसके दादा ने मुक्तेश्वर सिंह को भी सजा दिलवाने के लिए उसे फंसाया था। यह सारी सच्चाई एक काले रहस्य के रूप में सामने आई थी, और गजेन्द्र के लिए यह मानना आसान नहीं था कि उसके दादा ने सिर्फ एक राज गद्दी और इटों से बने एक महल के लिए पहले अपने बेटे और फिर अपने पोते की जिंदगी बर्बाद कर दी थी।
गजेन्द्र के दिल में भी एक गहरी टीस उठ रही थी। उसका यह विश्वास टूट चुका था कि उसके दादा ने उसे कभी अपना प्यार और सम्मान दिया था। वो एक दिन अचानक से उसके घर आए और उसे बताया कि वो उनका पोता है यानि एक रईस खानदान का वारिस… और फिर उसे महल लाकर रोड के भिखारी से भी बदतर जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया।
गजेन्द्र सदमें मे था, इस वक्त विराज और रिया… दोनों उसके साथ थे, लेकिन फिर भी उसके अंदर ऐसी शांति थी...मानों जैसे किसी सुनसान जंगल में खड़ा हो। तभी रिया ने कुछ ऐसा बोला कि गजेन्द्र के भीतर जो सन्नाटा था, वह अचानक दरक गया।
"गजेन्द्र… मुक्तेश्वर अंकल कहीं नहीं मिल रहे। मैंने उन्हें हर जगह ढूंढ लिया और हां, राज राजेश्वर अंकल भी गायब है।"
अपने पिता मुक्तेश्वर के गायब होने से ज्यादा उसे अपने चाचा के गायब होने की बात से सदमा लगा। दरअसल गजेन्द्र जानता था, कि उसके पिता को उसके दादा की करतूतों के बारे में सुनकर बहुत गहरा झटका लगा है। ऐसे में वो अपने दोस्त कमल के पास पुणे कुछ समय के लिए रहने गए होंगे। लेकिन उसके चाचा राज राजेश्वर अचानक से कैसे गायब हुए... इस बात का उसे जरा भी अंदाजा नहीं था।
उसने चौक कर रिया से पूछा— "रिया कहीं तुमने उन्हें भींखू काका के बारे में तो नहीं बता दिया था?”
गजेन्द्र का आरोप सुन रिया ने तुरंत पलटकर जवाब दिया और बोली— "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या… मैं क्यों उन्हें इतना बड़ा सच बताऊं? और खासकर तब जब मैं जानती हूं कि भीखूं काका के लिए उन्होंने अपनी पत्नी और दो बेटियों को छोड़ दिया था तब…”
रिया की बात सुन गजेन्द्र ने अपने चाचा को ढूंढने के लिए विराज और उसके कुछ खास दोस्तों की मदद ली। दूसरी तरफ अब गजेन्द्र खुद को अकेला महसूस कर रहा था, क्योंकि उसे महसूस हो रहा था कि उसके दादा ने जो कुछ भी किया, वह सिर्फ उसे एक छलावे में घसीटने के लिए था। लेकिन उसके दादा ने उसके चाचा और पापा की तो पूरी जिंदगी ही बर्बाद कर दी थी।
"मुझे इस साजिश से बाहर निकालो रिया... मुझे मेरी मां की यादें वापस दो, मुझे मेरे परिवार से जुड़ी शानो-शौकत से अब घुटन हो रही है। अब इस महल में रहकर मैं कोई सजा नहीं भुगत सकता, क्योंकि यहां सब तो सिर्फ झूठ है।"
गजेन्द्र की आवाज़ में टूटन साफ सुनाई दे रही थी। रिया ने उसका हाथ पकड़ा और कहा— "हम मिलकर इस सच को सामने लाएंगे। मैं तुमसे वादा करती हूं। तुम अकेले नहीं हो, गजेन्द्र।"
लेकिन गजेन्द्र के भीतर एक अजीब सी बेचैनी थी। वह जानता था कि अब राजघराना में उसकी एक नई पहचान बन चुकी है— एक शिकार, जो अपने ही दादा गजराज सिंह की साजिश का हिस्सा था।
"यह सच्चाई अब कभी नहीं छुप सकती, रिया। हमें इस महल का सच दुनिया को बताना होगा, क्योंकि अब मेरे पापा भी मेरे दादा के आगे घुटने टेक चुके हैं। लेकिन मैं हम तीनों की लड़ाई लड़ना भी चाहता हूं और उनसे बदला भी लेना चाहता हूं।"
गजेन्द्र की आवाज़ में गुस्सा और दर्द दोनों था। अब, जब सब कुछ सामने आ चुका था, तो गजेन्द्र ने भी खुलकर लड़ाई लड़ने का मन बना लिया। क्योंकि वह रिया के परिवार यानि भोंसले खानदान को पहले ही विराज के साथ मिलकर जेल पहुंचा चुका था, तो वहीं अब बारी उसके अपनों से लड़ने की थी, जिसमें उसके पापा मुक्तेश्वर सिंह मन से तो उसके साथ थे, लेकिन तन से नहीं।
वहीं रिया आज भी उसके साथ खड़ी थी। अपने परिवार और गजेन्द्र के बीच अपने प्यार को चुन रिया पहले ही अपना प्यार और विश्वास गजेन्द्र के आगे साबित कर चुकी थी। अब बारी उसके कंधे से कंधा मिलाकर उसके सगे खूनी रिश्तों वालों दुश्मनों से लड़ने की थी।
“देखों गजेन्द्र मैं तुम्हे बेगुनाह साबित करने के लिए अपनी मौत से भी लड़ जाउंगी, तो तुम्हें जो लड़ाई लड़नी है लड़ों मैं साथ हूं।”
रिया अभी अपनी बात बोल ही रहीं होती है, कि तभी पीछे से एक और लड़की की आवाज आती है, “मैं भी तुम्हारे साथ हूं गजेन्द्र… और तुम्हें इंसाफ दिलाने के लिए जो करना पड़े मैं करूंगी।”
आखिर कौन है ये नई लड़की? क्या रिश्ता है इसका गजेन्द्र के साथ?
क्या करने वाले है अब गजेन्द्र और रिया?
वहीं मुक्तेश्वर को यह समझ में आ गया था कि उसका और उसके बेटे का जीवन उसके पिता की साजिश का हिस्सा था, तो क्या वह अपने पिता के खिलाफ खड़ा होगा? या फिर वह इस बार भी खामोशी से अपनी ही तरह अपने बेटे की जिंदगी को भी तमाशा बनते देखेगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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