रिया का चेहरा उस पल तमतमा उठा, जब अचानक एक अनजान लड़की ना सिर्फ रिया और उसके बॉयफ्रैंड गजेन्द्र की बातों के बीच आ गई गई, बल्कि उसने तो कुछ ऐसा कहा, जिसे सुन रिया की आत्मा में आग भर गई। वह पलट कर उसे देखना चाहती थी, लेकिन उसके मन में गुस्से और जलन का एक ऐसा तूफान उठ चुका था, जो आंखों तक उतर आया था। 

जब रिया ने कहा– "मैं भी तुम्हारे साथ हूं गजेन्द्र… और तुम्हें इंसाफ दिलाने के लिए जो करना पड़े, मैं करूंगी।"

उस वक्त वो लड़की महल की चौखट पर खड़ी थी। साधारण कपड़े, लेकिन आंखों में आत्मविश्वास और चेहरे पर एक अजीब सी शांति... उसकी मौजूदगी ने जैसे रिया की दुनिया को कुछ पलों के लिए थाम दिया था।

गजेन्द्र ने पहली बार उस लड़की को देखा था। उसके चेहरे में कुछ तो था, जो जाना-पहचाना सा था... लेकिन गजेन्द्र का दिमाग जैसे कुछ समझ ही नहीं पा रहा था।

रिया ने खुद को काबू में करते हुए कहा, “और तुम कौन हो? गजेन्द्र के लिए इतना प्यार और त्याग तो ऐसे दिखा रही हो, जैसे... जैसे कोई बहुत पुराना रिश्ता हो!”

रिया की बात सुन वो लड़की मुस्कराई। उसकी मुस्कान में अपनापन भी था, लेकिन साथ ही एक चुभन भी….जिसे बिना जाहिर किए उसने धीरे से कहा, “मेरा नाम सुधा है… सुधा सिंह। मैं गजेन्द्र की बहन हूं… चचेरी बहन। मैं राज राजेश्वर की बड़ी बेटी हूं।”

उस लड़की के इतना कहते ही वहां सन्नाटा पसर गया। गजेन्द्र ने पल भर को कुछ भी नहीं कहा, क्योकि इस वक्त उसकी सांसें थम गईं थी और आंखें चौड़ी होकर मानों फटने को थी। ऐसे में उसकी चीख निकल पड़ी “क्या…?”

उसकी आवाज़ फट पड़ी, तभी सुधा कुछ कदम आगे आई। उसकी आंखें नमी से भरी थीं, लेकिन चेहरा अडिग था। उसने गजेन्द्र का हाथ थामा और बोलीं….“हां, गजेन्द्र भैया मैं तुम्हारी चचेरी बहन हूं। तुम्हारे चाचा, राज राजेश्वर की बेटी। मैं उन रिश्तों की निशानी हूं, जिन्हें इस महल की सियासत ने कभी स्वीकार नहीं किया। जब मेरे पिता ने भींखू काका के साथ दोस्ती और सच्चाई चुनी, तो सिर्फ दादा गजराज सिंह ने ही उनका साथ नहीं छोड़ा, बल्कि मेरी मां ने भी मेरे पिता को बदनामी के डर से ठुकरा दिया…और उसके बाद उसने अकेले हम दोनों बहनों को पाला। मैं तुम्हें बता दू कि हम दोनों जुड़वा है।”

रिया अब तक स्तब्ध थी। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था “और तुम अभी क्यों आई हो? जब गजेन्द्र अकेला था, तब कहां थी तुम?”

सुधा की आवाज़ ठंडी और साफ थी। ऐसे में उसने बड़ी शांति से रिया की बात का जवाब दिया और बोलीं, “मैं तब भी उसके साथ थी, पर दूर से। मां ने हमें कसम दी थी कि हम कभी भी राजघराना महल की दहलीज पर कदम नहीं रखेंगे और ना ही हम कभी अपने पिता राज राजेश्वर से मिलेंगे।"

ये सुनते ही रिया ने अपने शक भरे लहजे में सुधा पर अगला सवाल दाग दिया “अच्छा, तो फिर मैं आज यहां आने की वजह जान सकती हूं…? क्या तुमने गजेन्द्र के साथ के लिए अपनी मां की कसम तोड़ दी?”

"नहीं, हमने मां को वादा दिया था कि इस महल की साजिशों से बाहर रहेंगे। लेकिन जब मुझे पता चला कि मेरे दादा गजराज सिंह ने न सिर्फ मेरे पापा राज राजेश्वर, बल्कि मेरे बड़े पापा मुक्तेश्वर और अब भाई गजेन्द्र की जिंदगी बर्बाद की है… तो मैं चुप नहीं रह सकती थी। और जब कल रात पापा मां के पास वापस लौटे, तो मां ने अपनी कसम भी वापस ले ली और कहा- जाओं अपने भाई का साथ दो।”

गजेन्द्र की आंखें अब भी सुधा पर टिकी थीं। शब्द जैसे होठों तक आते-आते सूख रहे थे। एक पल में वह खुद को इतना अकेला महसूस कर रहा था, और अगले ही पल उसकी जिंदगी में एक बहन खड़ी थी—जो वर्षों से अंधेरे में छिपी थी। इतना ही नहीं इसके अलावा उसके पास एक और बहन भी थी।

“तुम्हें मेरे बारे में कैसे पता चला?” इस बार रिया ने नहीं गजेन्द्र ने पूछा।

“मैंने बताया तो कि कल रात पापा… मां के पास लौट आए। दरअसल उन्हें कल रात भीखूं काका के धोखे का पता चल गया, कि वो उनसे कभी प्यार नहीं करते थे। बल्कि वो तो दादा और जादूगर बाबा के साथ मिलकर पापा को फंसाने की चाल चल रहे थे।"

"ये बात उन्होंने खुद हमें बताई, कि अब तुम्हें फंसाया जा रहा है। उसी तरह जैसे मेरे पापा और बड़े पापा को कभी फंसाया गया था। मुझे अपना खून पहचानने में देर तो लगी, पर अब मैं पूरी सच्चाई के साथ तुम्हारा साथ देना चाहती हूं।”

रिया अब थोड़ा शांत हो चुकी थी, लेकिन उसके भीतर एक असुरक्षा की लहर दौड़ रही थी। उसे लगने लगा था कि अब गजेन्द्र की लड़ाई में उसका अकेला वजूद खतरे में है। कि तभी वहां गजेन्द्र का वकील विराज आ गया और बोला….“हमें सबूतों की जरूरत है।”

विराज ने माहौल को संभालते हुए कहा, “और अगर सुधा वाकई राज राजेश्वर की बेटी है, तो उसके पास शायद ऐसे सच होंगे जो अदालत में काम आ सकते हैं। खास तौर पर उसकी मां और राज राजेश्वर के रिश्ते का सच और भीखूं का असली चेहरा भी, जिसे अब खुद राज राजेश्वर अंकल भी दुनिया के सामने लाना चाहते होंगे।”

सुधा ने सिर हिलाया और बोली “मेरे पास मेरे पिता की पुरानी डायरी है, जिसमें उन्होंने गजराज सिंह की बहुत सारी चालों का जिक्र किया है। और कुछ कागज़ात भी हैं, जिन्हें उन्होंने भींखू काका के पास सुरक्षित रखा था। दरअसल मेरी मां ने जब ये महल छोड़ा तो वो उस डायरी को अपने साथ ले गई थी और उसे मैंने कई बार पढ़ा है।”

अब माहौल में एक नई ऊर्जा भर गई थी। गजेन्द्र की आंखों में पहली बार उम्मीद की झलक थी। लेकिन साथ ही दिल में एक दर्द भी… इतने साल तक वह अपने सगे खून से अंजान कैसे रहा?

उसने धीरे से सुधा का हाथ थामा और बोला “बहन हो तो आज साथ निभाना… क्योंकि ये लड़ाई अब सिर्फ मेरे नहीं, हमारे पूरे टूटे हुए परिवार की है।”

सुधा की आंखों से आंसू बह निकले, जिन्हें संभलते हुए उसने कहा “मैं तुम्हारे साथ हूं, भाई… अंतिम सांस तक। हम दादाजी को उनकी गलतियों का एहसास भी कराएंगे और उनसे माफी भी मंगवाएंगे।”

रिया एक कोने में खड़ी थी। दिल भारी था, लेकिन आंखें मानों गजेन्द्र को अपनों के साथ देख खुश थी। क्योंकि वह जानती थी कि अगर इस रिश्ते की गहराई और सच्चाई सच्ची निकली, तो शायद गजेन्द्र जल्द ही रेस फिक्सिंग केस में बेगुनाह साबित हो जाएगा। दूसरी ओर वो ये भी अच्छे से जानती थी कि नए रिश्तों की मौजूदगी उसके और गजेन्द्र के रिश्ते को एक नई कसौटी पर लाकर खड़ा कर देगी….क्योकि पिछले बाइस सालों में रिया के परिवार ने गजेन्द्र के परिवार के साथ बहुत बुरा किया है, जिसके चलते दोनों की दुशमनी काफी गहरी है।

तभी रिया ने सुधा से सवाल किया, "क्या तुम्हारे पास सच में ऐसे सबूत हैं, जो गजेन्द्र को निर्दोष साबित कर सकते हैं?”

सुधा रिया की ओर मुड़ी, इस वक्त उसकी आंखों में कोई घमंड नहीं था, बल्कि गहरी ईमानदारी थी। उसने अपना कंधे पर टंगा बैग खोला और एक पुरानी, चमड़े की जिल्द वाली डायरी निकालकर गजेन्द्र और विराज की ओर बढ़ा दी।

“ये लीजिए, ये वहीं डायरी है जिसके बारें में मैं बता रही थी। आप खुद इसे खोलकर पढ़िये, इसका हर पन्ना इस राजघराना महल की एक गंदी परत खोलता है। इसमें जिक्र है उस दिन का जब हमारे दादा गजराज सिंह ने मेरे पापा को उस रात भीखूं के साथ पहली बार पकड़ा और फिर उनकी तस्वीरे लेकर उन्हें फंसाने की योजना जादूगर बाबा के साथ मिलकर बनाई थी। उसमें ये भी दर्ज है कि कैसे भींखू काका शुरू से ही गजराज सिंह का आदमी था, और कैसे उन्होंने बड़े पापा मुक्तेश्वर की बीवी जानकी को अलग करने की साजिश रची।”

विराज ने डायरी को उलट-पलट कर देखा। उसकी आंखों में चमक थी और वो बोला “अगर यह डायरी असली है, तो ये केस बदल सकता है और गजेन्द्र सिर्फ जेल से ही नहीं छूटेगा.. बल्कि राजघराना का वारिस भी वहीं बनेगा।”

रिया अब भी सुधा को गौर से देख रही थी, जैसे वो उसे समझने की कोशिश कर रही हो।

“तुमने कहा तुम जुड़वा हो… तो तुम्हारी बहन कहां है?”

सुधा ने रिया की तरफ देखा। उसकी पलकें एक पल के लिए झपकीं… फिर उसने धीमी आवाज में कहा “अस्पताल में… कोमा में है। पिछले पांच साल से।”

गजेन्द्र और रिया दोनों ये सुनते ही सन्न रह गए। दोनों का चेहरा इस वक्त सफेद पड़ गया था “क्या… कैसे?”

सुधा ने गहरी सांस ली और फिर सारा सच बताया…..“उसे ज़हर दिया गया था, क्योकि वो मां के मना करने के बाद भी हर रात सबसे छिपकर यहां राजघराना महल आती थी। शायद एक दिन किसी को उसके बारें में पता चल गया।"

रिया ने चौकते हुए पूछा– "फिर आगे क्या हुआ?”

जवाब में सुधा ने जो बताया वो सर से पैर तक हिला देने वाला था।

"हम तब कॉलेज में थे, और उसने यहां से कुछ ऐसी फाइल्स चुरा ली थीं, जिनमें गजराज सिंह के पुराने अपराधों के सबूत थे। शायद उन्हें ये भनक लग गई थी। तभी एक दिन किसी ने कॉलेज में ही उसकी कॉफी में कुछ मिला दिया…जिसे पीने के बाद उसे पैरालाइज अटैक आया और वो तब से कोमा में है।”

गजेन्द्र का चेहरा पथरा गया, वो सांस भी नहीं ले पा रहा था। उसके कांपते हुए लहजे में पूछा“और तुम और तुम्हारी मां... ये सब अकेले झेल रही हो?”

“अब तक हां,” सुधा बोली और फिर हंसते हुए कहा“लेकिन अब मैं अकेली नहीं हूं और न ही तुम। क्योंकि अब वक्त आ गया है कि हम इस महल की चुप दीवारों को चिल्लाकर सच बताएं। कानून से दादाजी को सजा दिलवाये।”

सुधा ये सब कह ही रही होती है, कि तभी अचानक, विराज की जेब में रखा मोबाइल फोन तेज़ी से वाइब्रेट करने लगा। उसने कॉल उठाया और सुनते ही उसका चेहरा सख्त हो गया।

“क्या?… कहां?”

गजेन्द्र और रिया ने चौंक कर उसकी तरफ देखा।

विराज ने कॉल काटा और काफी हैरान-परेशान लहजे में बोला— “हमें तुरंत अस्पताल चलना होगा।”

“क्यों? क्या हुआ?” गजेन्द्र ने पूछा, तो विराज ने गहरी सांस ली।

“तुम्हारे पापा मुक्तेश्वर सिंह को किसी ने गोली मार दी है। हालत गंभीर है… और पुलिस को शक है कि ये हमला आत्महत्या नहीं, हत्या का हो सकता है। लेकिन पहली नजर में इसे आत्महत्या दिखाने के लिए मुक्तेश्वर अंकल के पास से एक सुसाइड नोट भी मिला है।”

विराज की ये बातें सुन एक बार फिर उस कमरे में सन्नाटा छा गया। गजेन्द्र के पांव मानों जमीन में धंस गए थे, वो चाहकर भी अपने कदम आगे नहीं बढ़ा पा रहा था, क्योंकि उसके पास असल में अपना कहने को सिर्फ उसके पापा मुक्तेश्वर ही थे, जिन्होंने बचपन से आज तक उसे अकेले मां-बाप दोनों बनकर पाला था।।

और तभी सुधा ने रोती-लड़खड़ाती आवाज़ में कहा “…हमें अभी के अभी वहां के लिए निकलना होगा गजेन्द्र भैया… मुझे यकीन है, बड़े पापा को कुछ नहीं होगा।”

गजेन्द्र की आंखों में क्रोध का एक ज्वाला सुलग उठा, ऐसे में वो चिल्लाकर बोला— “अब और नहीं। अब मैं सिर्फ अपना नाम नहीं, पूरी हकीकत लेकर अदालत जाऊंगा… चाहे इसके लिए मुझे अपने ही खून के खिलाफ क्यों ना खड़ा होना पड़े।”

गजेन्द्र के चेहरे पर इस वक्त गुस्सा और गुरुर एक साथ थे। ऐसे में रिया को डर था कि कहीं वो कुछ गलत ना कर बैठें। उसने गजेन्द्र का हाथ थामा और बोलीं— “सुनों गजेन्द्र शांत हो जाओं और ध्यान से सुनों… ये बहुत नाजुक समय है, फिलहाल हमें मुक्तेश्वर अंकल से मिलने अस्पताल चलना चाहिए। फिर आगे जो करना है, वो बाद में सोचेंगे। मुझे यकीन है मुक्तेश्वर अंकल बिल्कुल ठीक होंगे।”


 

क्या रिया की बात मान शांत हो जायेगा गजेन्द्र? 

क्या जिंदा है मुक्तेश्वर या फिर आज सच में अनाथ हो गया है गजेन्द्र? या फिर मुक्तेश्वर अपने बेटे को राजघराना महल से दूर पुणे वापस लाने के लिए चल रहा है कोई गहरी चाल?

सुधा की बहन को जहर देने के पीछे भी गजराज सिंह का हाथ था? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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