कभी-कभी लोग अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने की चाहत में पुराने रिश्तों और यादों को पीछे छोड़ देते हैं। उस वक्त ये फैसला सही लगता है, लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीतता है, एहसास होता है कि पीछे कुछ अनमोल चीजें छूट गईं हैं।
अब अनीशा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। फर्क बस इतना है कि यहां किसी रिश्ते को सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ा गया कि क्योंकि कहीं और इंटेरेस्ट बढ़ गया, बल्कि यहां करियर और बड़े सपनों के लिए अनीशा को सब कुछ पीछे छोड़ना पड़ा।
कुछ फैसले ऐसे होते हैं जो सिर्फ एक पल में लिए जाते हैं, लेकिन वो ज़िंदगी भर के लिए ज़ख्म छोड़ जाते हैं। अनीशा के लिए भी ऐसा ही एक फैसला था—उसका अपनी बच्ची को छोड़कर चले जाना। आज उसे उस सबसे बड़े पछतावे का सामना करना होगा, जिसे उसने बरसों तक छुपाने की कोशिश की।
लाइब्रेरियन: "अनीशा, ये लाइब्रेरी तुम्हें उस वक्त में वापस ले जाएगी, जब तुमने सोचा था कि तुम सही कर रही हो।"
अनीशा, एक सक्सेसफुल और एम्बिशियस औरत, जिसने अपने करियर को अपने जीवन का केंद्र बना लिया था। वो कंपनी की सबसे सफल फ़ीमेल बॉस थी, जिसकी प्रोफेशनल अचीवमेंट्स ने उसे समाज में एक ऊंचा मुकाम दिया था लेकिन इस मुकाम के लिए उसने एक बड़ी कीमत चुकाई थी, जिसके बारे में कोई नहीं जानता।
अनीशा के सामने उसका अतीत एक फिल्म रील की तरह चलने लगता है।
ट्रेन स्टेशन की भीड़, धुआं छोड़ती ट्रेन, रेलवे स्टेशन पर लोगों की आवाज़, सूटकेस के पहियों की घिसटती आवाज़, और कहीं दूर से आती हुई किसी बच्चे के रोने की आवाज़।
माहौल में एक बेचैनी है और वहीं, एक तरफ उसका पति, दूसरी तरफ उसकी मासूम सी बेटी, दोनों उसे रोकने की आखिरी कोशिश कर रहे हैं। यहां करियर और परिवार के बीच की वो कश्मकश है, जो अनीशा को एक बेहद मुश्किल मोड़ पर ले आई है।
अनीशा की बेटी... उसकी छोटी सी उंगली अपनी मां की उंगली को कसकर पकड़े हुए है, उसकी आंखों में आंसू हैं। वो कुछ नहीं बोल रही है, बस मासूमियत भरी उन आंखों से अपनी मां को देख रही है, जैसे कहना चाहती हो, ‘मम्मा, मत जाओ।’ हर आंसू, उसकी मां को रोकने की एक और कोशिश कर रहा है।
अनीशा: "आर्या बेटा, मैं आउंगी वापिस, आपसे मिलने आती रहूंगी। आप रोना बंद करो।"
बेटी को दिलासा देती अनिशा, खुद में उलझी हुई है। एक तरफ़ उसका परिवार, उसकी बेटी, और दूसरी तरफ उसका करियर, जो उसे बुला रहा है। अनीशा के दिल में एक हलचल सी उठी, एक पल के लिए उसने सोचा कि शायद वो कुछ गलत कर रही है। बेटी की वो मासूमियत, वो भीगी आंखें... सब कुछ जैसे उसे रोकने की कोशिश करने लगे।
फिर, उसने गहरी सांस ली, अपने दिल को कड़ा किया। बड़ी मुश्किल से, धीरे-धीरे उसने अपनी बेटी की पकड़ से खुद को छुड़ा लिया। बेटी ने अपनी उंगली से उसकी उंगली वापस पकड़ ली, जैसे उसे पता है की अगर उसने छोड़ा तो उसकी मां हमेशा के लिए चली जाएगी।
अनीशा का पति पीछे खड़ा है। उसकी आंखों में मिन्नतें हैं, जैसे हर शब्द में उसकी दुनिया टूट रही हो। वो बार-बार अनीशा की ओर देख रहा था, उसकी आंखों में वही सवाल— “क्या सच में जाना ज़रूरी है? क्या करियर इन सब से बड़ा है? क्या हमारा परिवार कुछ भी नहीं है?”
तभी, अनीशा का फोन बजने लगता है। वो ऑफिस से आने वाले लगतार कॉल्स हैं। फोन की स्क्रीन बार-बार चमक रही है, और हर कॉल उसे याद दिला रही है कि वहां, दूर उस नए शहर में, उसकी नई ज़िंदगी उसका इंतज़ार कर रही है।
पति की आवाज़ और फोन की रिंग... दोनों एक साथ गूंज रहे हैं, लेकिन अनीशा के कदम एक जगह पर ठहरे नहीं। वो लगातार फोन की रिंग और पति की आवाज़ के बीच झूल रही है। आखिरकार, वो अपना फोन निकालती है, पति की ओर देखती है, और फोन उठा लेती है।
अनीशा: “येस सर, आई एम गोइंग टु बोर्ड द ट्रेन नाउ। जी, मैं टाइम पर पहुँच जाऊँगी।”
उसकी बेटी की पकड़ उसके दिल पर भारी पड़ रही है, लेकिन उसके कदम... वो ट्रेन की ओर बढ़ते जा रहे हैं। वो जानती थी कि ये पल उसके लिए और उसके परिवार के लिए कितना अहम हैं, लेकिन उसे इस वक़्त शायद अपने सपनों के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा। ट्रेन के पहिए घूमने लगते हैं, और अनीशा मुड़कर देखती है, लेकिन फैसला तो हो चुका है।
अनीशा: "ये सही है... मुझे जाना होगा। मैं इन सबको बाद में समझा लूँगी। मैं आर्या को मना लूँगी। अभी मुझे जाना ही होगा।"
दरअसल, जब अनीशा छोटी थी तो उसका एक ही सपना था कि एक दिन बड़ी होकर किसी बड़ी कंपनी में किसी बड़ी पोज़ीशन पर काम करे, जब भी उसकी माँ उसके सामने कोई लड़के का रिश्ता रखती थी तो वो हर बार नाराज़ हो जाती थी। उसकी माँ को उसके सपने और करिअर से ज़्यादा उसकी शादी की चिंता थी। जैसे भारत में हर लड़की के साथ होता है लेकिन अनीशा के लिए करियर कोई ऑप्शन नहीं बल्कि उसकी ज़िन्दगी था। उसने ज़ोर ज़बरदस्ती में शादी और गृहस्थी तो बसा ली थी लेकिन अपने सपनो को पीछे नहीं छोड़ पाई।
जब अनीशा को ऑफिस में प्रमोट करने की बात चली तो, उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही न रहा लेकिन उसका परिवार उसके प्रमोशन से खुश नहीं था क्योंकि इसके लिए उसे दिल्ली से बेंगलुरु शिफ्ट होना था और उसका परिवार इसके लिए तैयार नहीं था। उन्होंने उसके सामने एक ही ऑप्शन रखा कि प्रोमोशन को ठुकरा कर काम्प्रमाइज़ कर ले क्योंकि महिलाओं से यही उम्मीद की भी जाती है। उनके सपनों को कौन समझता है इस देश में?
आज अनीशा की ज़िंदगी सफलताओं से भरी है। उसके पास वो सब कुछ है, जिसके लिए उसने सालों तक मेहनत की लेकिन इस कामयाबी की कीमत उसकी ज़िंदगी पर ज़रूर पड़ी है। उसके दिल में हमेशा से एक घाव रहा, जिससे वो खुद को कभी माफ नहीं कर पाई—अपने बच्चे को छोड़ने का घाव, आओनी आर्या से दूर होने का घाव..
अनीशा ने कभी नहीं सोचा था कि वो एक दिन इस फैसले पर पछताएगी। उसे लगता था कि उसने अपनी बेटी को छोड़कर सही किया है, क्योंकि वो अपने करियर को ऊंचाई पर ले जाना चाहती थी लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, वो समझने लगी कि उसकी कामयाबी के पीछे कितनी बड़ी कुर्बानी छिपी हुई है।
उस दिन, जब उसने अपनी बच्ची को आखिरी बार देखा, वो पल उसकी यादों में ताजा हो गया। एक रेलवे स्टेशन, ट्रेन की तेज़ आवाज़, और एक बच्ची जो अपनी मां से लिपट कर उसे रोकने की कोशिश कर रही है लेकिन अनीशा के कदमों में वो ठहराव नहीं है।
वो ट्रेन में चढ़ती है, अपना बैग रखती है और पीछे से टी.टी ट्रेन का दरवाज़ा बंद कर देता है। सब कुछ पीछे छोड़ कर ट्रेन आगे बढ़ जाती है।
अनीशा भारी मन से अपनी सीट पर बैठती है। उसके हाथों में टिकट है, लेकिन उसकी आंखों में उसकी बच्ची है, जो प्लेटफॉर्म पर खड़ी रो रही है।
अनीशा: "मैं... मैंने क्या किया? क्या ये सही था? आरु को छोड़ना सही था?"
वो ट्रेन की खिड़की से बाहर देखती है। प्लेटफॉर्म धीरे-धीरे पीछे छूटता जा रहा है लेकिन उसकी नज़रों में अब भी उसकी बच्ची का चेहरा है। उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। ट्रेन ने प्लेटफॉर्म को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन अनीशा का दिल वहीं अटक गया है। उसने वो फैसला लिया, जिससे उसकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई।
अनीशा की आंखों के सामने उसकी बच्ची का चेहरा बार-बार आ रहा है। उसकी रोने की आवाज़, उसकी आंखों में वो मिन्नतें—सब कुछ उसे अब भी सुनाई दे रहा है। उसने उस वक़्त सोचा था कि ये सब उसके करियर के लिए सही है, लेकिन अब उसे समझ आ चुका है की उस ग़म के साथ रहना कितना मुश्किल है।
अनीशा: "मैंने उसे छोड़ दिया... मेरे पास वापस जाने का रास्ता नहीं है। मेरी आरु.. कहीं वो मुझसे नफरत तो नहीं करने लगी?"
अचानक, अनीशा की आंखें खुलीं, और वो खुद को फिर से लाइब्रेरी के उसी ठंडे और रहस्यमयी कमरे में पाती है। उसके घुटने काँप रहे हैं जैसे अपनी जगह खड़े रहने की कोशिश करते-करते थक गए हों। माथे पर पसीने की बूंदें, और आंखों से आंसुओं की धाराएं उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही हैं। वो हांफते हुए इधर-उधर देखती है, मानो सच और सपना मिलकर उसे हिला रहे हों।
लाइब्रेरी में लौटते ही, अनीशा का दिल फिर से उस दर्द से भर गया। वो जानती है कि उसने जो किया, वो सही नहीं था और अब उसे उस सच का सामना करना होगा।
लाइब्रेरी अब एक गहरे, रहस्यमयी कुएं की तरह बनती जा रही है जिसकी गहराइयों में क्या है, कोई नहीं जानता। हर एक पल के बाद मानो, जैसे कमरे की दीवारें और करीब आ रही हों, और उस घुटन भरी खामोशी का बोझ धीरे-धीरे पूरे माहौल पर छा रहा हो।
लाइब्रेरियन की छाया फिर से उभरती है। उसकी आंखों में राघव और सक्षम के बाद अनीशा के लिए भी कोई सहानुभूति नहीं है, लेकिन वो अनीशा की ओर गहरी नज़रों से देख रही है।
लाइब्रेरियन: "तुमने अपना फैसला खुद लिया था, अनीशा.. ये दर्द तुम्हारा हिस्सा है।"
अनीशा की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे हैं। उसने सब कुछ खो दिया, और वो जानती है कि इस पछतावे से उसे मुक्ति नहीं मिलेगी।
अनीशा:"मैंने उसे छोड़ दिया... मैंने उसे छोड़ दिया..."
वो अचानक घुटनों के बल गिर पड़ती है, जैसे उसके पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई हो। उसके हाथ कांपते हुए ज़मीन को थामने की कोशिश कर रहे हैं, मगर वो खुद को संभाल नहीं पा रही है। उसकी सांसें तेज़ हो चुकी हैं, जैसे हर सांस लेना अब मुश्किल हो गया हो।
अनीशा ने अपनी सबसे बड़ी गलती को देखा, उसे फिर से जिया लेकिन अब उसे इस सच्चाई का सामना करना होगा।
क्या वो इस दर्द को सह पाएगी?
क्या वो अपने करियर के ऊपर अपनी बेटी को चुनेगी?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में
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