कहते हैं, कुछ रास्ते ऐसे होते हैं जो हमें हमारी मंज़िलों तक नहीं ले जाते, लेकिन वह हमारी कहानियों का हिस्सा ज़रूर बन जाते हैं।

श्रेया और संकेत के रास्ते अब अलग हो चुके थे, लेकिन उनकी कहानियाँ अब भी एक-दूसरे के इर्द-गिर्द घूमती थीं।

श्रेया ने अपने आप को परिवार और पढ़ाई की जिम्मेदारियों में उलझा लिया था और संकेत... वह अपने घर की दीवारों के बीच घुटते हुए, ख़ुद से लड़ रहा था।

 

लेकिन क़िस्मत कभी-कभी ऐसे मोड़ लाती है, जहाँ बिछड़े रास्ते फिर से एक-दूसरे से टकरा जाते हैं।

 

राज:

"अरे श्रेया! इधर आओ। देखो, मैंने क्या प्लान किया है!"

 

श्रेया:

"क्या हुआ, राज? अब किस नई चीज़ में उलझ गए हो?"

 

राज:

"एक चैरिटी इवेंट है। हम लोग बच्चों के एजुकेशन के लिए फंड जुटा रहे हैं। हम ज़रूरतमंद बच्चों को किताबें और स्टेशनरी देंगे। यह मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है।"

 

श्रेया:

"यह तो बहुत अच्छा है, राज। तुम हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हो।"

 

राज:

"और तुम्हें इसमें मेरी मदद करनी पड़ेगी। मैं अकेला ये सब नहीं कर सकता।"

 

श्रेया:

"राज, तुम तो जानते हो कि मेरे पास टाइम नहीं है। घर की जिम्मेदारियाँ, पढ़ाई... सबकुछ संभालना मुश्किल हो रहा है।"

 

राज:

"देखो, श्रेया, मुझे पता है कि तुम्हारे ऊपर कितना दबाव है। तुम अपने परिवार के लिए कितना कुछ कर रही हो। लेकिन अगर तुम ख़ुद को इस तरह पूरी तरह थका दोगी, तो लंबे समय तक ये सब संभालना मुश्किल हो जाएगा।"

 

श्रेया:

"मैं समझती हूँ, राज। पर हर दिन नए-नए खर्चे सामने आते हैं। पापा की दवाइयाँ, घर के बाक़ी काम... इन सबके बीच मुझे नहीं लगता कि मेरे पास वक़्त बचता है।"

 

राज:

"यही तो बात है, श्रेया। तुम सबके लिए इतना कर रही हो, लेकिन ख़ुद के लिए कुछ भी नहीं। ये इवेंट सिर्फ़ उन बच्चों के लिए नहीं होगा, ये तुम्हारे लिए भी होगा।"

 

(वो एक पल रुकता है, उसकी आँखों में गंभीरता झलकती है।)

 

राज:

"कभी-कभी, अपने लिए थोड़ा वक़्त निकालना भी ज़रूरी होता है। ये चैरिटी इवेंट कोई लग्जरी  नहीं है, ये उन बच्चों के लिए एक उम्मीद है और तुम्हारे लिए, ये एक ऐसा मौका होगा जहाँ तुम ख़ुद को थोड़ा हल्का महसूस कर सकती हो। अपने दिल को एक नई दिशा दे सकती हो।"

 

श्रेया:

"पर राज, सिर्फ़ एक दिन के लिए भी... मुझे लगता है कि मैं selfish हो रही हूँ। मेरे घर पर हर वक़्त मेरी ज़रूरत होती है।"

 

राज:

"श्रेया, अपने परिवार के लिए जीना कभी ग़लत नहीं हो सकता। लेकिन अगर तुम ख़ुद को खो दोगी, तो किसी और के लिए क्या बचा रहेगा? सोचो, अगर तुम एक दिन के लिए उनके लिए मौजूद नहीं हो, तो क्या सच में सब कुछ बिखर जाएगा? या हो सकता है, तुम्हारी मुस्कान देखकर वह भी सुकून महसूस करें।"

 

 

राज की बातों ने श्रेया के दिल को छू लिया।

उसे पहली बार एहसास हुआ कि शायद उसने अपने आपको इतनी जिम्मेदारियों में उलझा लिया है कि ख़ुद को खुश रहने का मौका ही नहीं दिया।

 

श्रेया:

"शायद तुम सही कह रहे हो।"

 

राज:

"तो बस! एक दिन का वादा करो। हम सब मिलकर कुछ अच्छा करेंगे और तुम भी बेहतर महसूस करोगी। बच्चों की मुस्कान देखकर तुम्हें एहसास होगा कि ये वक़्त वाकई वर्थ इट था।"

 

श्रेया:

"ठीक है, राज। मैं आऊंगी। लेकिन बस एक दिन के लिए!"

 

 

श्रेया के मन में हलचल मच गई। राज की बातों में सच्चाई थी। वह ख़ुद से और अपने आसपास की जिम्मेदारियों से इतना उलझ चुकी थी कि उसे अपने लिए सांस लेने का भी मौका नहीं मिला था।

 

श्रेया ने अपने मन की दुविधा को पीछे छोड़ते हुए, राज की बात मान ली।

उसने ख़ुद से ये वादा किया कि इस एक दिन में, वह अपने दिल को हल्का महसूस करने देगी।

और शायद, ये दिन उसे उसके भीतर छिपी उस ख़ुशी की याद दिला सके, जिसे उसने जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा दिया था।

उधर दूसरी तरफ...

संकेत की मॉम:

"संकेत, तुम जानबूझकर इस बात को टाल रहे हो। मिश्रा जी कब तक इंतज़ार करेंगे? हमें अगली मुलाकात फिक्स करनी होगी।"

 

संकेत:

"माँ, मैंने पहले भी कहा है, मैं अभी इस बारे में बात नहीं करना चाहता। हर बार यही बात दोहराना ज़रूरी है क्या?"

 

संकेत के डैड:

"संकेत, ये सिर्फ़ तुम्हारे लिए नहीं है। ये परिवार और बिज़नेस दोनों के लिए अहम है। हमें तुम्हारी प्राइऑरटी  ठीक करनी होंगी।"

 

संकेत:

"मेरी प्राइऑरटी  तो पहले ही तय थीं, पापा। आप ही ने कहा था कि पढ़ाई पर ध्यान दो। अब अचानक से शादी ही क्यों सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई?"

 

संकेत की मॉम:

"क्योंकि शादी से सिर्फ़ एक रिश्ता नहीं जुड़ता, संकेत। ये हमारी सोशल स्टैन्डींग  और बिज़नेस की मजबूती का भी सवाल है। तुम्हारी पढ़ाई के बाद का हर क़दम अब फैमिली के भले के लिए होना चाहिए।"

 

संकेत:

"तो मेरे फैसलों में मेरी कोई जगह ही नहीं है? सिर्फ़ बिज़नेस और सोसाइटी की बातें रह गई हैं?"

 

संकेत के डैड:

"ये तुम्हारा इमट्युर  सवाल है। परिवार के हर सदस्य का काम होता है अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठाना। तुम जितनी जल्दी ये समझोगे, उतना अच्छा होगा।"

 

 

संकेत के भीतर मानो हर शब्द बर्फ की तरह पिघल रहा था, लेकिन उसके माता-पिता की आवाज़ में कोई नरमी नहीं थी। उनकी निगाहों में सिर्फ़ उम्मीदें थीं—ऐसी उम्मीदें जो संकेत को अपने प्यार और सपनों से दूर ले जा रही थीं।

 

संकेत की मॉम:

"संकेत, हम जो कर रहे हैं, तुम्हारे भले के लिए ही कर रहे हैं। ये जिद्द  अब छोड़ दो।"

 

संकेत:

"भले का मतलब सबके लिए एक जैसा नहीं होता।"

 

संकेत की मॉम:

"अब कहाँ जा रहे हो?"

 

संकेत:

"बस थोड़ा अकेला रहना चाहता हूँ।"

 

 

कमरे में सन्नाटा छा गया।

संकेत के क़दम धीरे-धीरे दरवाजे की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन उसके दिल में एक तेज़ उथल-पुथल थी।

उसके माता-पिता के लिए, ये केवल एक व्यवहारिक मुद्दा था। लेकिन संकेत के लिए, ये उसके प्यार और आत्म-सम्मान की लड़ाई थी।

 

संकेत के डैड:

"अभी समझ नहीं रहा है, पर वक़्त आने पर उसे पता चलेगा कि हम सही कह रहे थे।"

 

संकेत की मॉम:

"वो चाहे जितना वक़्त ले, लेकिन शादी तो वही होगी जो इस परिवार के लिए सही है।"

 

 

और इसी फैसले के साथ, संकेत का घर एक ऐसा अजनबी मैदान बन गया था, जहाँ उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था।

संकेत घर से निकल गया, उसके क़दम तेज़ थे, लेकिन उसके दिल में एक गहरी उदासी थी।

अब चलते हैं चैरिटी इवेंट की तरफ, जहाँ का माहौल हल्का और खुशनुमा था।

बच्चों के चेहरों पर मुस्कान देखकर श्रेया के दिल में एक अजीब-सा सुकून महसूस हुआ।

राज, हमेशा की तरह, हर किसी के चेहरे पर ख़ुशी लाने की कोशिश कर रहा था।

 

राज:

"ये लो, तुम्हारे लिए। ख़ूब मन लगाकर पढ़ाई करना।"

 

 

श्रेया दूर से ये देखकर मुस्कुरा रही थी और सोच रही थी कि राज का ये पहलू कितना अच्छा है... हमेशा इतना पाज़िटिव , इतना गइविंग . शायद इसलिए सब उससे इतने जुड़ाव महसूस करते हैं।

श्रेया ने राज को पहले सिर्फ़ एक दोस्त के रूप में देखा था। लेकिन आज, इस इवेंट में, उसने उसके भीतर छुपे उस इंसान को देखा जो दूसरों की मदद करने में अपनी ख़ुशी ढूँढता था।

लेकिन उसके दिल के किसी कोने में, संकेत की यादें अब भी गहराई से जमी हुई थीं।

लेकिन ये क्या, संकेत भी उसी इवेंट के वेन्यू में दाखिल हो रहा था। वह भीड़ के बीच से गुजर रहा था तो उसे पता चल कि श्रेया और राज भी वहीं हैं।

संकेत की नज़र श्रेया पर पड़ी। वह बच्चों के बीच हंसती-मुस्कुराती नज़र आ रही थी और उसके पास... राज।

राज, जो श्रेया के साथ इतना comfortable था, जैसे वह उसकी दुनिया का सबसे ख़ास हिस्सा हो।

 

संकेत:

"तो ये है अब उसकी दुनिया..."

 

संकेत के दिल में एक अजीब-सी जलन थी। उसने ख़ुद को समझाने की कोशिश की कि श्रेया अपनी ज़िन्दगी में खुश है और यही मायने रखता है। लेकिन उसका दिल अब भी उस प्यार के खोने का शोक मना रहा था। संकेत श्रेया की ओर बढ़ और तभी राज उसकी तरफ़ आ गया।

 

राज:

"अरे संकेत! यहाँ कैसे?"

 

संकेत:

"बस... ऐसे ही। देखा कि कोई इवेंट हो रहा है, तो आ गया।"

 

 

श्रेया, जो राज के साथ खड़ी थी, संकेत को देखकर थोड़ी अनीज़ी  हो गई।

 

राज:

"अच्छा किया। ये बच्चों के लिए चैरिटी है। तुम भी चाहो तो वॉलंटियर कर सकते हो।"

 

संकेत:

"शायद... किसी और दिन।"

 

 

उस चैरिटी इवेंट पर, जब संकेत ने श्रेया और राज को साथ देखा, उसके दिल में एक अजीब-सी हलचल हुई।

वो उन्हें दूर से देखता रहा और हर गुजरते पल के साथ, उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे श्रेया उसकी ज़िन्दगी से पूरी तरह दूर जा रही है।

 

संकेत के लिए वह लम्हा किसी तीर की तरह था।

श्रेया की हंसी, जो कभी उसके दिल को राहत देती थी, अब उसके लिए दर्द का सबब बन गई थी।

उसने देखा कि राज और श्रेया के बीच की केमिस्ट्री कितनी सहज थी।

जब उसने हिम्मत जुटाकर श्रेया से बात करने की कोशिश की, राज बीच में आ गया।

 

प्यार, दोस्ती और जिम्मेदारियाँ...

ये वह धागे थे, जिनसे इन तीनों की जिंदगियाँ जुड़ी हुई थीं।

लेकिन हर धागा अब उलझने लगा था।

संकेत, जो अपने परिवार और प्यार के बीच पिस रहा था,

श्रेया, जो अपने सपनों और जिम्मेदारियों के बीच बैलेंस बनाने की कोशिश कर रही थी,

और राज, जो दोस्ती की आड़ में अपने दिल की छिपी भावनाओं को छुपाने की जंग लड़ रहा था।

अधूरी भावनाओं की गहराई

इन तीनों के रिश्ते किसी धुंधले आईने की तरह थे।

हर कोई अपनी परछाईं देख सकता था, लेकिन सच्चाई की तस्वीर अभी भी साफ़ नहीं थी।

क्या श्रेया और संकेत अपने दिलों की खाई को कभी पाट पाएंगे?

क्या राज अपने जज़्बातों को दोस्ती तक सीमित रख पाएगा?

और सबसे अहम, क्या प्यार इन उलझनों के बीच अपनी सही जगह बना पाएगा?

 

 

जानने के लिए पढ़िए ... कैसा ये इश्क़ है का अगला एपिसोड।

 

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