कहते हैं, हर इंसान दो चेहरे लेकर चलता है।

एक वह चेहरा जो दुनिया को दिखाने के लिए पहनता है और दूसरा, जो उसकी असली भावनाओं को छुपाकर रखता है।

संकेत और श्रेया, दोनों ने अपनी-अपनी ज़िन्दगी में ऐसे नकाब पहन लिए थे। लेकिन हर नकाब के पीछे एक कहानी होती है और जब आईने सामने आते हैं, तो उस कहानी को छुपाना नामुमकिन हो जाता है।

 

आज का दिन ख़ास था—college का annual cultural day.

स्टेज पर रंगीन रोशनी थी और बैकग्राउंड में म्यूजिक की तेज़ बीट्स। लेकिन संकेत और श्रेया के लिए ये दिन सिर्फ़ एक आम दिन नहीं था।

ये दिन था, जब महीनों बाद, वह एक-दूसरे का सामना करने वाले थे।

 

 

।:

संकेत कैंपस के गार्डन में खड़ा था, जहाँ ईवेंट की हलचल तेज़ी से बढ़ रही थी।

उसकी आँखें भीड़ में किसी को ढूँढ रही थीं, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब-सी उदासी छाई हुई थी।

और तभी... उसने श्रेया को देखा।

 

श्रेया, जो अपने दोस्तों के साथ स्टेज के पास खड़ी थी।

उसकी आँखों में एक अजीब-सा determination था। उसने हल्का-सा मुस्कुराते हुए ख़ुद को सबके सामने सामान्य दिखाने की पूरी कोशिश की। लेकिन उसके चेहरे की थकान और उसके भीतर की बेचैनी उसकी मुस्कान के पीछे छुप नहीं पा रही थी।

 

संकेत:

"तो ये है वह चेहरा, जिसे मैं अब सिर्फ़ दूर से देख सकता हूँ।"

 

।:

संकेत की आँखों में एक बेचैनी थी।

महीनों से दोनों ने एक-दूसरे से बात नहीं की थी।

लेकिन आज, वह सिर्फ़ कदमों की दूरी पर खड़े थे और फिर भी, उनके बीच एक गहरी खाई थी।

 

संकेत ने ख़ुद को मज़बूत किया और धीरे-धीरे श्रेया के पास गया।

श्रेया ने उसकी आहट सुनी। उसने एक पल को अपनी पलकों को झपकाया, जैसे ख़ुद को संभालने की कोशिश कर रही हो।

 

संकेत:

"हाय, श्रेया। काफ़ी दिनों बाद..."

 

श्रेया:

"हाय, संकेत। हाँ... वक़्त तेजी से निकल जाता है, है ना?"

 

।:

शब्दों में औपचारिकता थी, लेकिन उनकी आँखें सच कह रही थीं।

श्रेया के चेहरे पर वह सधी हुई मुस्कान थी, जो उसे ख़ुद से भी उसकी भावनाओं को छुपाने में मदद करती थी।

और संकेत... उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी चुभन थी। वह सवाल पूछना चाहता था, वह जवाब सुनना चाहता था, लेकिन उसने ख़ुद को रोक लिया।

 

संकेत:

"तुम तो काफ़ी बिज़ी हो गई हो। फेलोशिप की तैयारी, क्लासेस और सब कुछ... सब अच्छा चल रहा है, ना?"

 

श्रेया:

"हाँ। सब... ठीक है।"

 

।:

श्रेया के शब्द उसकी बेबसी को छुपाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उसकी आवाज़ का हल्का-सा कांपना, उसकी आँखों में छिपी नमी, ये सब संकेत से छुपा नहीं था।

दोनों के दिलों में अभी भी वह पुराने जज़्बात दबे हुए थे।

 

संकेत:

"अच्छा है। उम्मीद है, तुम्हें वह सब मिल जाए, जिसके लिए तुमने इतने sacrifice किए हैं।"

श्रेया:

"संकेत, ये बात ऐसे मत कहो। मैं कभी नहीं चाहती थी कि तुम ऐसा महसूस करो... कि मैंने तुम्हें पीछे छोड़ दिया।"

 

संकेत:

"तो क्या मैं ग़लत महसूस कर रहा हूँ? सच बताओ, श्रेया। क्या ऐसा नहीं है कि हमारी ज़िंदगी में अब सब कुछ बदल गया है?"

 

श्रेया:

"मैंने जो किया, वह हालात को देखते हुए सबसे सही लगा। पापा की तबियत, घर की ज़िम्मेदारियाँ... तुम ये सब जानते हो।"

 

संकेत:

"हाँ, मैं जानता हूँ और मैं ये भी जानता हूँ कि हम दोनों ने जो साथ में सोचा था, वह सब अब सिर्फ़ एक सपना बनकर रह गया है।"

 

श्रेया:

"संकेत, मैंने कभी भी हमारे रिश्ते को हल्के में नहीं लिया। लेकिन... कुछ फैसले प्यार से ऊपर होते हैं और उस वक़्त मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था।"

 

संकेत:

"श्रेया, प्यार में कब से comparison होने लगा? हम एक-दूसरे के साथ थे। तुम्हें लगा कि इन मुश्किलों से लड़ने के लिए तुम्हें अकेले ही सब कुछ करना होगा? क्या मैं तुम्हारे साथ नहीं खड़ा हो सकता था?"

 

श्रेया:

"संकेत, अगर मैंने तुम्हें अपने साथ इन मुश्किलों में खींचा होता, तो क्या तुम्हारी ज़िंदगी आसान हो पाती? मैं तुम्हें अपनी लड़ाई का हिस्सा बनाकर तुम्हारे सपनों पर बोझ नहीं डालना चाहती थी।"

 

संकेत:

"तुम्हें लगता है कि मैं बोझ समझता? श्रेया, रिश्ते बोझ नहीं होते। हम एक-दूसरे के साथ होते हैं, तो मुश्किलें भी हल्की लगती हैं। लेकिन शायद... शायद हम इस बात पर कभी एक-दूसरे से सहमत नहीं होंगे।"

 

श्रेया:

"शायद। लेकिन मैं तुम्हें कभी hurt नहीं करना चाहती थी।"

 

संकेत:

"पता है, श्रेया। कभी-कभी जो सबसे ज़्यादा hurt करता है, वह शब्द नहीं, बल्कि वह decisions होते हैं जो बिना कहे लिए जाते हैं। तुम्हारा 'ना' भी उस दिन सिर्फ़ एक शब्द नहीं था। वह उन सारे पलों का इनकार था, जो हमने साथ जीने के सपने देखे थे।"

 

श्रेया:

"संकेत, मैं जानती हूँ... लेकिन..."

 

संकेत:

"लेकिन कुछ बातें अब अधूरी ही रहनी हैं, है ना?"

 

।:

उनके बीच की खामोशी अब पहले से भी भारी हो गई थी।

शब्द तो ख़त्म हो गए थे, लेकिन भावनाएँ अभी भी बह रही थीं।

दोनों ने अपने-अपने नकाब पहने हुए थे, लेकिन उन नकाबों के पीछे उनकी सच्चाई झलक रही थी।

 

कुछ पलों तक दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे।

फिर, बिना कोई और शब्द कहे, श्रेया ने अपने दोस्तों की ओर वापस जाने का बहाना बनाया।

 

श्रेया:

"अब मुझे जाना होगा, संकेत। अपना ख़्याल रखना..."

 

संकेत:

"तुम भी, श्रेया।"

 

।:

श्रेया और संकेत, दोनों ने एक-दूसरे से दूरी बना ली थी। लेकिन उनके दिल अब भी उसी पुराने मोड़ पर अटके हुए थे।

दोनों ने अपनी-अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन कहीं न कहीं, उनके दिलों ने उन्हें पीछे खींचे रखा।

दोनों के बीच जो खामोशी छा गई, वह किसी भी शब्द से ज़्यादा भारी थी।

कुछ देर तक दोनों बिना कुछ कहे एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे।

फिर, श्रेया ने अपने दोस्तों के पास लौटने का बहाना बनाते हुए ख़ुद को इस पल से अलग कर लिया।

संकेत वहीं खड़ा रह गया, उसके दिल में एक गहरी खालीपन महसूस हो रहा था।

 

संकेत की माँ:

"संकेत, हमें मिश्रा जी से बात करनी चाहिए। सान्या बहुत अच्छी लड़की है। वह हमारी फैमिली के लिए एक परफेक्ट मैच होगी।"

 

संकेत:

"माँ, मैंने कहा था कि मुझे थोड़ा वक़्त चाहिए। मैं अभी इन सबके लिए तैयार नहीं हूँ।"

 

संकेत की माँ:

"वक्त? संकेत, तुम अब बड़े हो गए हो। ये सब डिसिशन  लेने का यही सही वक़्त है।"

 

संकेत:

"लेकिन इतनी जल्दी क्यों? मेरी पढ़ाई अभी ख़त्म भी नहीं हुई।"

 

संकेत की माँ:

"संकेत, ये सिर्फ़ तुम्हारे बारे में नहीं है। ये हमारी फॅमिली कि रेप्यटैशन का सवाल है और सच कहूँ तो, सान्या जैसी कल्चर्ड  लड़की हमारे परिवार में बिल्कुल फिट बैठेगी।"

 

संकेत के चेहरे पर हल्की झिझक दिखाई देने लगी। लेकिन इस बार, उसने अपने अंदर छुपी बात कहने की हिम्मत जुटाई।

 

संकेत:

"माँ, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।"

 

संकेत की माँ:

"क्या बात है?"

 

संकेत:

"माँ, मेरे दिल में पहले से ही कोई और है।"

 

कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। संकेत की माँ का चेहरा हैरानी से कठोर हो गया। संकेत के डैड, जो अब तक अख़बार पढ़ रहे थे, ध्यान से संकेत की तरफ़ देखने लगे।

 

संकेत की माँ:

"क्या? कौन है वह लड़की?"

 

संकेत:

"श्रेया।"

 

संकेत की माँ:

"श्रेया? ये कौन है? मैंने उसका नाम पहले कभी नहीं सुना।"

 

संकेत:

"श्रेया मेरी क्लासमेट है। हम कॉलेज के पहले साल से एक-दूसरे को जानते हैं। वह बहुत मेहनती और ईमानदार है। माँ, वह एक मिडल-क्लास फैमिली से आती है। उसके पापा का बिज़नेस फेल हो गया था और तब से उनकी फैमिली बहुत मुश्किलों का सामना कर रही है। उसके पापा की तबीयत भी खराब रहती है।"

 

संकेत ने अपनी माँ के चेहरे के बदलते भावों को देखा। लेकिन संकेत की माँ का चेहरा अब पूरी तरह से ठंडा और गंभीर हो चुका था।

संकेत की माँ:

"तो तुम कहना चाहते हो कि वह एक मिडल-क्लास लड़की है।"

 

संकेत:

"हाँ, माँ। लेकिन वह अपनी मेहनत से सब कुछ संभाल रही है। उसने अपनी पढ़ाई और अपने परिवार को हमेशा प्राइऑरटी  दी है और यही बातें मुझे उसके बारे में सबसे ज़्यादा पसंद हैं।"

 

 

संकेत की माँ:

"संकेत, तुम जानते हो, वह हमारी तरह नहीं है। उसकी फैमिली हमारे स्टैंडर्ड के आसपास भी नहीं है। तुम्हारा उस लड़की के साथ कोई फ्यूचर नहीं है।"

 

संकेत:

"माँ, आप सिर्फ़ उसके बैकग्राउंड की वज़ह से उसे जज कर रही हैं। क्या कभी आपने ये जानने की कोशिश की है कि वह कैसी इंसान है? वह कितनी मेहनती और मज़बूत है?"

 

संकेत की माँ:

"संकेत, लाइफ में सिर्फ़ फीलइंग्स  नहीं, प्रकटिकालिटीस  भी देखी जाती हैं। शादी के बाद सिर्फ़ दो लोगों का नहीं, दो परिवारों का रिश्ता बनता है और हमारा परिवार उसके परिवार के साथ... ये सब संभव नहीं है।"

 

संकेत के डैड:

"संकेत, तुम्हारी इन दईस्ट्रक्शनस  की वज़ह से हमारा बिज़नेस भी सफर  कर रहा है। हमें तुम्हारी पूरी इनवॉलवेमनेट  चाहिए। ये शादी सिर्फ़ परिवार के लिए नहीं, बल्कि बिज़नेस के लिए भी ज़रूरी है।"

 

 

संकेत:

"पापा, क्या आपको लगता है कि मेरे दिल और मेरे फैसलों की कोई अहमियत नहीं है? क्या सबकुछ सिर्फ़ बिज़नेस और सोसाइटी के लिए है?"

 

संकेत की माँ:

"संकेत, हम तुम्हारे भले के लिए ये सब कर रहे हैं। तुम समझ क्यों नहीं रहे? तुम्हें अपनी फैमिली के लिए सही फैसले लेने होंगे। श्रेया जैसी लड़की... वह हमारी फैमिली का हिस्सा नहीं बन सकती।"

 

संकेत:

"माँ, प्यार के लिए स्टेटस या सोसाइटी की अप्रूवल  ज़रूरी नहीं होनी चाहिए। लेकिन मुझे लगता है, आप ये कभी नहीं समझेंगी।"

 

संकेत के दिल में अपनी माँ की बातों से गहरी चोट लगी थी। प्यार, जो उसकी दुनिया का सबसे बड़ा सच था, उसकी माँ और पापा के लिए सिर्फ़ एक प्रकटिकाली  थी।

लेकिन संकेत अब अपने मन की बात कह चुका था।

 

संकेत:

"मैं जानता हूँ कि आपको मेरी बातें समझना मुश्किल है। लेकिन माँ, पापा... ये मेरी ज़िन्दगी है और मेरे लिए, श्रेया ही मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा है।"

 

संकेत की माँ:

"संकेत, इस घर में परिवार की परंपराएँ और उसकी इज़्ज़त सबसे ऊपर हैं। हमें उम्मीद है कि तुम सही फ़ैसला लोगे।"

 

 

संकेत ने कमरे से बाहर निकलते हुए अपने माता-पिता के कठोर शब्दों को पीछे छोड़ दिया।

उसके दिल में अब एक गहरी खलिश थी, लेकिन साथ ही, अपने प्यार के लिए खड़ा होने का संतोष भी।

क्या संकेत अपने परिवार की उम्मीदों के खिलाफ जाकर अपने दिल की सुनेगा?

क्या उसका प्यार और विश्वास श्रेया के साथ उसकी राह को आसान बनाएगा?

जानने के लिए पढ़िए .. "कैसा ये इश्क़ है" का अगला एपिसोड।

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