हल्की ठंडी हवा चल रही थी। कॉलेज कैंपस के एक कोने में उसी पुराने गुलमोहर के पेड़ की छांव तले, एक अजीब-सी खामोशी फैली थी।

 

कहते हैं, हर रिश्ते में कुछ बातें ऐसी होती हैं जो कभी भी पूरी तरह से कह नहीं पाते।

ये अनकही बातें हमारे दिलों के सबसे गहरे हिस्से में छिपी होती हैं, बोझ बनकर।

संकेत और श्रेया के बीच भी कुछ ऐसा ही था।

प्यार तो था, लेकिन उस प्यार के साथ-साथ जिम्मेदारियों और अधूरी उम्मीदों का भार भी था।

आज वह बोझ अपनी हदें पार कर चुका था।

 

संकेत एक बेंच पर बैठा हुआ था, हाथों को मरोड़ता हुआ। उसकी सांसें तेज़ थीं और उसकी आँखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थीं। वह घड़ी की तरफ़ बार-बार देख रहा था।

 

 

आज का दिन उसके लिए आसान नहीं था।

संकेत ने श्रेया को बात करने के लिए बुलाया था।

इतना वक़्त बीत चुका था, लेकिन आज भी उसकी बातों में वही दर्द, वही प्यार झलक रहा था।

 

फिर श्रेया वहाँ आई। उसकी चाल में झिझक थी। दूर से संकेत को देखते हुए वह कुछ पल रुकी, फिर धीरे-धीरे उसके पास आकर खड़ी हो गई।

 

संकेत:

"श्रेया... थैंक्स यू , तुम आई।"

 

श्रेया:

"तुम्हारा मैसेज मिला, तो लगा... शायद बात करनी चाहिए।"

 

 

दोनों के बीच कुछ पलों तक एक खामोशी रही।

यह वह खामोशी थी, जो उनके दिलों में छिपी हुई अनकही बातों को बयान कर रही थी।

संकेत ने अपने भीतर के सैलाब को और रोकना मुनासिब नहीं समझा।

 

संकेत:

" श्रेया, मुझे समझ नहीं आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ।

लेकिन इतना जानता हूँ कि इस दूरी ने मुझे अंदर से तोड़ दिया है।

जब से तुमने 'ना' कहा है, तब से हर दिन ऐसा लगता है जैसे मैं कुछ खो रहा हूँ। "

 

 

संकेत रुका, अपनी भावनाओं को संभालने की कोशिश करने लगा।

 

संकेत:

" तुम्हें पता भी है, जब मैंने तुम्हें प्रपोज़ किया था, मैं कितना sure था कि हम ये सब साथ में करेंगे।

पर तुम्हारा इनकार... उस एक शब्द ने सबकुछ बदल दिया।

मैं हर दिन यही सोचता रहा कि शायद मैंने ही कुछ ग़लत किया।

क्या मैं तुम्हारे लिए कभी ईनफ  नहीं था? "

 

 

संकेत के शब्द उसके भीतर की टूटन को बयाँ कर रहे थे।

वो लड़का जो हमेशा आत्मविश्वासी और स्थिर दिखता था, आज उसकी आवाज़ में दर्द और असुरक्षा की परतें खुल गई थीं।

 

श्रेया:

" संकेत... मैंने कभी ये नहीं चाहा था कि तुम्हें ऐसा महसूस हो।

तुम्हारे लिए मेरी फीलइंग्स  कभी भी कम नहीं थीं। "

 

श्रेया  की आँखें हल्की-सी नम हो गईं। लेकिन फिर वह अपनी भावनाओं को काबू में करने की कोशिश करने लगी।

 

श्रेया:

" लेकिन तुम ये समझते क्यों नहीं कि मेरे पास और भी जिम्मेदारियाँ हैं?

पापा की तबियत, घर का हर छोटा-बड़ा खर्चा, माँ की चिंता...

मेरे लिए ये सब सिर्फ़ रीस्पान्सबिलटी  नहीं हैं। ये मेरे होने का हिस्सा हैं।

अगर मैं इनसे मुँह मोड़ लूँ, तो क्या मैं अपने आपको देख पाऊँगी? "

 

संकेत:

" और हमारे बारे में क्या, श्रेया? क्या वह भी सिर्फ़ एक हिस्सा था?

क्या वह प्यार, वह ख्वाब, सब कुछ तुमने बस यूँ ही छोड़ दिया? "

 

श्रेया:

" संकेत, प्यार करने का मतलब ये नहीं है कि हर सपने को पूरा किया जा सके।

मैं तुमसे प्यार करती थी, अब भी करती हूँ। लेकिन अपने परिवार को छोड़कर मैं तुम्हारे साथ कैसे आगे बढ़ सकती थी?

तुम्हारा साथ मेरे लिए ख़ुशी थी, लेकिन मेरे परिवार का बोझ मैं किसी और पर नहीं डाल सकती। "

 

 

श्रेया की आवाज़ में उसके अंदर की लड़ाई साफ़ सुनाई दे रही थी।

वो प्यार और जिम्मेदारियों के बीच के इस संघर्ष में फँसी हुई थी।

 

संकेत ने कुछ पलों तक कुछ नहीं कहा। उसकी मुट्ठियाँ कसकर बंध गईं, फिर धीरे-धीरे उसने अपने आप को रीलैक्स  किया। उसकी आँखों में आँसू झलकने लगे, लेकिन वह ख़ुद को शांत करने की कोशिश करता रहा।

 

संकेत:

"तो, मतलब... ये कहानी यहीं ख़त्म हो गई?"

 

श्रेया:

" नहीं, संकेत। ये कहानी ख़त्म नहीं हुई।

लेकिन कभी-कभी हमें अपनी कहानियों को अधूरा छोड़ना पड़ता है... ताकि हम उन लोगों को बचा सकें, जिनसे हम प्यार करते हैं। "

 

दोनों के बीच एक गहरी खामोशी छा गई। हवा की सरसराहट, पत्तों की हल्की आवाज़—सब कुछ उनकी चुप्पी के बीच एक सन्नाटे जैसा महसूस होने लगा।

प्यार सिर्फ़ वह नहीं होता जो एक साथ रहने की ख़ुशी में झलकता है।

प्यार कभी-कभी वह दर्द भी होता है, जो एक-दूसरे को दूर से खुश देखने की मजबूरी में छुपा होता है।

संकेत और श्रेया दोनों ने अपने दिल की परतें खोलीं।

 

श्रेया:

" संकेत, मैंने उस दिन जो कहा था, वह किसी भी तरह आसान नहीं था।

पर मेरे लिए सही था। "

 

संकेत:

" पर क्या सही और ग़लत के बीच कोई बीच का रास्ता नहीं हो सकता?

श्रेया, क्या हम दोनों साथ रहकर कोई हल नहीं निकाल सकते?

प्यार इतना कमजोर कैसे हो सकता है कि जिम्मेदारियों के आगे टिक ही न पाए? "

 

 

संकेत की आवाज़ में एक उम्मीद की झलक थी।

वो अब भी इस प्यार को बचाने की कोशिश कर रहा था।

लेकिन श्रेया के चेहरे पर एक अजीब-सा संयम था।

 

श्रेया:

"संकेत, मैं फिर से वही सब दोहराना नहीं चाहती।"

 

संकेत:

"मतलब?"

 

श्रेया:

" मतलब ये कि जब मैंने तुम्हें पहले उस रास्ते पर अकेला छोड़ दिया था, तुम्हें पता भी है, मैं कितनी गिलट  में रही हूँ?

तुम्हें हर बार अकेले लड़ते हुए देखना... हर बार ख़ुद को रोकना... मैं ये दोबारा नहीं कर सकती। "

 

 

श्रेया के शब्द जैसे दोनों के बीच एक दीवार खड़ी कर रहे थे।

वो प्यार जो कभी उनकी ताकत था, अब उनके फैसलों के बोझ तले दब गया था।

 

संकेत:

"तो बस? तुम्हें लगता है कि फिर से कोशिश करने का कोई मतलब नहीं है?"

 

श्रेया:

" संकेत, मैं तुमसे दोबारा वह वादा नहीं कर सकती, जिसे मैं निभा नहीं पाऊँगी।

मेरी जिम्मेदारियाँ, मेरा परिवार... ये सब मेरे लिए किसी भी रिश्ते से बड़ा है।

 

 

संकेत:

" सच... सच तो ये है कि मैंने हमेशा तुम्हारे लिए अपनी जगह को ग़लत समझा।

शायद मैं कभी तुम्हारी प्राथमिकताओं में वह जगह नहीं पा सका, जो मैंने तुम्हें अपनी ज़िन्दगी में दी। "

 

श्रेया:

" संकेत, ऐसा मत कहो।

तुम्हारी जगह मेरे दिल में हमेशा थी और हमेशा रहेगी।

लेकिन जो हालात हमारे सामने हैं, वह प्यार से ज़्यादा मज़बूत हैं।

और मैं तुम्हें इन हालातों का शिकार बनते हुए नहीं देख सकती। "

 

उनके शब्द एक-दूसरे से टकरा रहे थे, लेकिन उनका प्यार अभी भी उन शब्दों के पीछे सांस ले रहा था।

शब्द जो नज़दीकी नहीं, बल्कि दूरी बढ़ा रहे थे।

 

श्रेया:

" संकेत, मैं चाहती हूँ कि तुम खुश रहो।

लेकिन मैं तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा बनकर तुम्हें और परेशान नहीं कर सकती।

हमारी कहानी यहीं ख़त्म होनी चाहिए। "

 

 

श्रेया मुड़ी और हल्के कदमों से वहाँ से चली गई...

संकेत और गुलमोहर का वह पेड़ वहीं अकेले रह गए।

 

संकेत ने एक गहरी सांस ली।

उसके आसपास सबकुछ वैसा ही था—ठंडी हवा, पत्तों की सरसराहट, वह गुलमोहर की शाखें।

लेकिन उसके भीतर... सब बदल चुका था।

 

संकेत:

" हाह! शायद यही प्यार का सबसे बड़ा इम्तिहान है।

जब तुम्हारे दिल में कोई हो, लेकिन उसकी दुनिया में तुम्हारे लिए कोई जगह न हो।

जब हर सवाल का जवाब तुम पहले से जानते हो, फिर भी जवाब सुनने का इंतज़ार करते हो।

 

मैंने सोचा था, प्यार हमें सब मुश्किलों से लड़ने की ताकत देता है।

पर शायद, प्यार ही वह जंग है, जिसे लड़ने के लिए दोनों तरफ़ के सैनिक चाहिए।

मैं अकेला लड़ा... और हार गया।

 

श्रेया ने अपनी ज़िन्दगी में सही को चुना—अपना परिवार, अपनी जिम्मेदारियाँ।

पर मेरे लिए, सही और ग़लत का फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि वह मेरी ज़िन्दगी में थी या नहीं।

 

वो कहती है, उसने मुझे कभी चोट नहीं पहुँचानी चाही।

लेकिन कभी-कभी, सबसे गहरी चोटें उन्हीं चीज़ों से लगती हैं, जो कोई जानबूझकर नहीं करता।

 

क्या ये मेरा प्यार कम करता है? नहीं।

पर ये ज़रूर बताता है कि प्यार हर सवाल का जवाब नहीं होता।

 

गुलमोहर का ये पेड़...

शायद इसका हर फूल मेरी वह उम्मीदें हैं, जो मैंने उसके साथ संजोई थीं।

और आज, जब वह चली गई है, ये फूल भी बिखर रहे हैं।

 

शायद मैं भी उसकी तरह इन फूलों को गिरते हुए देखूं।

पर क्या मैं आगे बढ़ पाऊंगा?

क्या मैं इस पेड़ के नीचे एक और मुलाकात का इंतज़ार करूँगा?

या ये मुलाकात... हमारी आखिरी कहानी थी? "

 

 

संकेत की आँखों में वह सारे पल घूम गए जो उसने और श्रेया ने इस पेड़ के नीचे बिताए थे।

हर हँसी, हर वादा, हर खामोशी।

लेकिन अब... इस खामोशी में सिर्फ़ उसके अकेलेपन की आवाज़ गूंज रही थी।

 

उसने एक बार और उस रास्ते की ओर देखा, जहाँ श्रेया गायब हो चुकी थी।

लेकिन वह जानता था... वह रास्ता अब उसके लिए नहीं था।

 

 

 

शायद कुछ प्यार सिर्फ़ अधूरा रहकर ही मुकम्मल होता है।

और संकेत, जो अब भी उसी गुलमोहर के पेड़ के नीचे खड़ा था,

अपनी अधूरी कहानी को अपने दिल में लेकर...

वहाँ से धीरे-धीरे वापस अपनी ख़ामोश दुनिया की तरफ़ बढ़ गया।

क्या ये दूरी उनकी कहानी का अंत है?

या फिर प्यार, समय और समझ से एक नई शुरुआत की ओर ले जाएगा?

जानने के लिए पढ़िए ... "कैसा ये इश्क़ है" का अगला एपिसोड।

 

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