एक बार फिर अपनी मां शारदा देवी को अपनी आंखों के सामने जिंदा देख, रेनू फूट-फूट कर रोने लगती है। इस दौरान उसके मुंह से सिर्फ एक ही शब्द निकलता है, "म…म…मां..."
तभी प्रभा ताई के आंसुओं में डूबी आवाज़ फुसफुसाई— "सच कभी नहीं मरता रेनू… बस उसे सही वक्त पर बाहर लाना होता है और फिलहाल तुम्हारी मां शारदा का यहां से बाहर जाना ठीक नहीं है। लेकिन मेरा यकीन करो, तुम्हारी मां यहां सुरक्षित रहेगी।"
प्रभा ताई की ये बात सुन उस अंधेरे कोठी में जले उस दीए की लौ ने रेनू को एक नई सुबह की आहट की उम्मीद दे दी, जिसके बाद वो रिया के साथ शांत मन और सुकून लिए राजघराना वापस लौट गई और अपने कमरे में जाकर सो गई।
अगली सुबह महल की सीढ़ियों से एक-एक कर के सब उतर रहे थे। चाय के प्यालों की खनक, नौकरों की सरगर्मी और रोज के आने-जाने वाले मेहमानों की हलचल—सब कुछ नॉर्मल था, लेकिन महल के भीतर का माहौल कई गहराई से थरथरा रहा था। सबको रेनू के गुस्से से डर लग रहा था, लेकिन रेनू अब जानती थी कि उसकी मां शारदा जिंदा है, इसलिए वह शांत थी।
दूसरी ओर राजेश्वर सिंह इस सुबह कुछ अलग ही अंदाज़ में नजर आ रहा था। उसके चेहरे पर गुस्से की झलक और हाथों में शारदा देवी की टूटी चूड़ियों की तस्वीर थी, और वो उन्हें लेकर रेनू से सवाल करने का इरादा लिए चाय के टेबल पर बैठा, लेकिन वो कुछ कहता उससे पहले ही महल के मुख्य दरवाज़े पर गजराज सिंह अपनी पूरी शाही ठाठ के साथ दाखिल हुआ, और आते के साथ एक फरमान जारी कर दिया— "आज का दिन सिंह खानदान के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।"
गजराज की ये लाइन सुनते ही वहीं मौजूद सभी लोग चौंक गए। एक साथ सब सोचने लगे, कि आखिर अब क्या चाल चलने वाला है गजराज?
तभी गजराज सिंह हाथ उठाकर आगे ऐलान करता हैं— "आज से राज राजेश्वर ही इस राजघराने का उत्तराधिकारी होगा… और उसकी ताजपोशी के लिए इस हफ्ते एक भव्य समारोह का आयोजन भी किया जायेगा।"
जहां ये सुनते ही राजघराना के अंदर के माहौल में तुफान आ गया, तो वहीं दूसरी ओर बाहर खड़े रिपोर्टर्स के कैमरे चमकने लगते हैं। तालियां की गड़गड़ाहट से पूरा राजघराना गूंज जाता है, लेकिन अंदर कुछ चेहरों की मुस्कान कैमरों के आगे झूठी थी, जैसे वो इस खेल के पीछे का सच जानते हों।
रेनू फिलहाल गजराज के इस फैसले और असली वारिस के तमाशे से दूर रहने का फैसला करती है और वहां से निकल सीधे उस वीरान कोठी में सुबह-सुबह सात बजे अपनी मां से मिलने पहुंच जाती है।
रेनू अपनी मां शारदा के पास बैठी और एकटक बस उसे निहारती रहती है। दोनों की आँखों में रात भर की नमी अभी भी झलक रही थी। प्रभा ताई चुपचाप खड़ी बस देख रही थीं, उनके चेहरे पर भी एक मां-बेटी को मिलाने का सुकून था।
तभी रेनू ने अपनी भीगी आँखों से आंसुओं को पोछा और बोली— "मां, अब तुम चुप नहीं रहोगी। अब तुम्हें बोलना होगा… अदालत में, मीडिया के सामने, पूरी दुनिया के सामने। तुम्हारी चुप्पी ने इस महल के झूठ को छुपाया है, अब वक्त है कि तुम सच बोलो और तुम्हारे जैसी उन तमाम औरतों को इंसाफ दिलाओ, जिन्हें गजराज ने अपनी जूती समझ दबाया है।"
अपनी बेटी के बगावत भरे सुर सुन शारदा कांप जाती है और कहती है— "मैंने बहुत कुछ देखा है रेनू… और हर बार किसी अपने के हाथों टूटी हूं। लेकिन शायद तू सही कह रही है, अब शायद बोलने का वक्त आ गया है।"
अपनी मां की ये बात सुन रेनू तुंरत गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर को फोन लगाती है और शारदा के कोर्ट में गवाही देने की बात कहती है। ये सुनते ही गजराज खुश हो जाता है— "शारदा जी, आपकी गवाही ही गजराज को कानून के कटघरे तक ला सकती है और साथ ही गजेन्द्र के केस को और मजबूत भी बना सकती है। हम रिकॉर्डिंग लेंगे… ताकि ये अदालत में पेश हो सके।"
शारदा धीरे से अपनी हामी जाहिर कर फोन वापस रेनू के हाथ में थमा देती है, जिसके बाद विराज रेनू को वीडियो कॉलिग के जरिये कनेक्ट करने को कहता है। रेनू तुरंत वीडियो कॉल करती है और उसे रिकॉर्डिग पर सेट कर देती है। फोन की स्क्रीन के सामने बैठा विराज पहले शारदा को शांत कराता है और फिर सवाल करता है— "क्या आप गजराज सिंह को पहचानती हैं?"
विराज का ये सवाल सुनते ही शारदा की आंखें चौड़ी हो जाती है। उसके होंठ कांपते हैं, लेकिन आवाज़ नहीं निकलती। वो घबराकर इधर-उधर देखने लगती हैं, लेकिन थोड़ी देर बात शारदा फुसफुसाकर कहती है— "वो… वो मुझे मार देगा… सब खत्म कर देगा..."
इतना कह वो घबराकर चुप हो जाती हैं, कांपते हाथों से अपना चेहरा ढक लेती हैं। तभी विराज मायूसी, लेकिन उम्मीद की आस लिए कहता है— "रेनू इनके अंदर बीस साल का ये फियर ट्रॉमा है। शायद अभी गवाही लेना मुमकिन नहीं, लेकिन हमें इसका एक रास्ता निकालना ही होगा। फिलहाल इन्हें साइकेट्रिस्ट को दिखाना जरूरी है, ताकि ये जल्द से जल्द नॉर्मल हो सके।"
वहीं दूसरी ओर राजघराना में गजराज सिंह पूरे मीडिया के सामने एक बड़ी सी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने अगले वारिस की अनाउंसमेंट करता है— "राज राजेश्वर सिंह अब इस राजघराने की अगली पीढ़ी का चेहरा होंगे। राजगढ़ का सिंह साम्राज्य अब राज राजेश्वर के नाम से ही पहचाना जाएगा।"
अपने पिता का ये फरमान सुन राज राजेश्वर मुस्कुरा देता है, लेकिन अंदर वो जानता था कि उसके पिता एक बार फिर अपने पापों की परतें उसके चेहरे से छुपा रहे हैं। अगर वो अपने बड़े बेटे मुक्तेश्वर से गद्दी छीन उसे नहीं देते, तो मुक्तेश्वर अपने बेटे को रेस फिक्सिंग मामले से बाहर निकालने के लिए राजघराना के अतीत की सारी परतें खोद डालेगा, जिससे राजघराना और सिंह खानदान दोनों ही खत्म हो जाएंगे।
गजराज प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज राजेश्वर को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के साथ ही गजेन्द्र के केस को लेकर भी बात करता है, और बताता है कि जल्द ही उसके केस में भी सच लोगों के सामने आ जायेगा। गजराज मीडिया के सामने आगे कुछ कहने ही वाला होता है कि तभी अचानक बिजली चली जाती है। वो नौकरों को बिजली का बोर्ड जांचने और मीडिया के लोगों को शांति बनाये रखने के लिए कहता है, लेकिन तभी अगले ही सेकेंड उस अंधेरे कमरे में…गजराज की कुर्सी के ठीक पीछे एक सफेद स्क्रीन पर प्रोजेक्टर चालू होता है।
उस स्क्रीन पर एक चेहरा सामने आता है, ये कोई और नहीं रेनू की मां और गजराज की जिंदगी की सबसे बड़ी गलती शारदा होती है। शारदा देवी का वीडियो.. रेनू और विराज की शूटिंग का एक छोटा सा क्लिप, जिसमें शारदा जी की चीख सुनाई देती है— “गजराज सिंह ने मेरी जिंदगी बर्बाद की… उसने मेरी आवाज़ छीन ली… मेरी बेटी को मुझसे अलग कर दिया… और इस महल को बना दिया, ये एक झूठ का महल है, जिसमें कई गहरे राज़ छिपे है।”
मंच पर सन्नाटा पसर जाता है और गजराज के चेहरे का रंग उड़ जाता है। राज राजेश्वर, जो पीछे खड़ा था, चुपचाप मंच से उतरने लगता है। तभी प्रेस चीखती है— “क्या गजराज सिंह बलात्कारी है? क्या ये ताजपोशी सिर्फ ढाल है?”
तभी रिया और रेनू दौड़ती हैं और तहखाने में उस तिजोरी तक पहुंचती हैं जहां डायरी छिपाई गई थी। लेकिन… तिजोरी खुली हुई थी और अंदर से वो डायरी गायब थी। ये देख रेनू चौंक जाती है और तभी बाहर से गजराज के चीखने की आवाज आती है….अगर ये सच है, तो सबूत पेश करो। मैं जानता हूं कि इस स्क्रीन पर ये वीडियो किसने चलाया है.… रेनू.… रेनू। कहां मर गई, ये बदतमीज लड़की, इसे अभी मेरे सामने यहां मीडिया के सवालों का जवाब देने के लिए बालों से घसीट कर लाओ।
ये आवाज सुनते ही रेनू चौंक जाती है और एकाएक पूरा खेल उसे समझ आ जाता है। फिलहाल वो मीडिया के सामने चाहकर भी ये नहीं बता सकती थी कि उसकी मां जिंदा है। दूसरी ओर वो आखरी ठोस सबूत उसकी मां की लिखी डायरी अब उस संदूक से गायब थी।
रेनू घबराती हुई कांपते कदमों के साथ स्टेज पर चढ़ती है, उसके हाथ कांप रहे थे लेकिन जुबान पर सच की तेज़ धार और आंखों में चमक अभी भी बरकार थी। ऐसे में उसने हिम्मत की और गजराज पर उठे मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए बोली, "मेरे पास गजराज के गुनाह साबित करने का एक पुख्ता ठोस सबूत था, लेकिन फिलहाल वो मुझसे खो गया है। मैं वादा करती हूं कि जल्द आप लोगों के सामने उस सबूत के साथ खड़ी नजर आउंगी।"
इतना कह रेनू वहां से जाने लगती है और तभी गजराज पीछे से आवाज देते हुए कहता है— “ना इसके पास कोई सबूत है और ना ही मैं उस औरत का गुनाहगार हूं… ये सब इन दोनों मां-बेटी की पैसों को हड़पने की साजिश है।”
रेनू गजराज की इस बात का कोई जवाब नहीं देती और सीधे बाहर की तरफ चली जाती है। रिया भी रेनू के पीछे-पीछे बाहर जाती है और तभी उसके ज़हन में सवाल उठता है— "रिया! किसी ने डायरी ले ली… यानि कोई जानता है कि ये डायरी कितनी कीमती थी।"
तभी एक साया उनके पीछे से गुजरता है, लेकिन दोनों उसका चेहरा नहीं देख पाती। तभी रिया अपनी आवाज धीमे करते हुए कहती है— "मैंने देखा था, उस रात हमारे तहखाने से निकलने के बाद राज राजेश्वर भी वहीं से बाहर आ रहा था। पक्का उसने हमारी उस रात की सारी बाते सुन ली थी और डायरी भी उसी के पास होगी, तभी उसने अपने पिता गजराज को ब्लैकमेल कर खुद को वारिस घोषित करने की धमकी दी होगी।"
रिया का ये तुक्का रेनू की सोच को हिला कर रख देता है और वो सारा माजरा समझ जाती है, लेकिन इसी के साथ वो अंदर तक कांपने लगती है, और कहती है— "इसका मतलब… अब ये लड़ाई सिर्फ मेरे और गजराज की नहीं… अब उसका बेटा भी उसके सामने तलवार लेकर खड़ा है।"
ठीक उसी वक्त राजघराना के अंदर एक अलग तूफान उफान पर था। गजराज अकेला अपने उस सीक्रेट रूम में बैठा था। तभी राज राजेश्वर अंदर आता है। उसके हाथ में वही डायरी थी, वो उसे खोलता है और धीरे-धीरे पढ़ने लगता है। हर पन्ना उसके पिता के पापों को उजागर कर रहा था। काली करतूतें, सत्ता के खेल, और रेनू के असली जन्म की सच्चाई… इन सबका सच ने जहां राज राजेश्वर को हिला कर रख दिया, तो वहीं गजराज अपने अतीत का एक-एक किस्सा सुन खुद ही कांप उठता है। गजराज का सूखा चेहरा देख राज राजेश्वर गुस्से से बुदबुदाता है….
"तो मैं सिर्फ मोहरा था आपके लिए… मेरे नामर्द होने का सच आप पहले से जानते थे। यही वजह थी कि आपका झुकाव हमेशा से मुक्तेश्वर भैया की तरफ था और आपने पूरी जिंदगी मुझे उनके बचाव के लिए एक ढ़ाल की तरह इस्तेमाल किया…मैं पागल ये सोचता रहा कि आप मुझसे ज्यादा प्यार करते हैं।"
ये बोलते-बोलते राज राजेश्वर अपने ही पैरों पर घुटने के बल लुड़क जाता है। वहीं दूसरी ओर रेनू, रिया और विराज एक बार फिर महल की ऊपरी छत पर खड़े होते हैं और तभी नीचे महल के आंगन में पुलिस की गाड़ियाँ दाखिल होती हैं।
ये देख रेनू दमदार आवाज के साथ कुछ ऐसा कहती है, जिसे सुन विराज और रिया दोनों दंग हो जाते है— "ये सिर्फ मेरी मां की कहानी नहीं है… ये हर उस औरत की कहानी है जिसे इस महल की दीवारों ने चुप रहने को मजबूर किया। लेकिन अब ये दीवारें गवाही देंगी… झूठ का महल अब ढहने वाला है। डायरी भले ही तुमने मुझसे छीन ली हो गजराज, लेकिन असली वार अभी भी बाकी है मेरा..."
पुलिस की टीम के साथ एक ब़ड़ा ऑफिसर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आता है और कहता है— “रेनू जी, हमे आपके बयान की ज़रूरत है। और उस वीडियो की भी, जिसका जिक्र आपने मीडिया के सामने किया था… क्या आपके पास वो अभी मौजूद है?”
रेनू थोड़ा रूकती है और एक नजर गजराज की तरफ देखती है, फिर रिया को आंख मारते हुए कहती है— “डायरी हमारे पास नहीं है। लेकिन डायरी से भी एक बहुत बड़ा सबूत हमारे पास है, जिसे हम सीधे दो महीने बाद कोर्ट की तारीक वाले दिन कोर्ट में ही पेश करेंगे डीसीपी साहब। बाकी आप डायरी के लिए राजघराना की तालाशी लेना चाहे तो ले सकते हैं, मुझे लगता है उस रात लाइट गई, तब मैने डायरी को यहीं कहीं छोड़ दिया था, लेकिन अब वो मुझे याद नहीं आ रही।”
पुलिस अफसर सिर हिलाता है और चुपचाप वहां से चला जाता है। लेकिन रेनू की कहीं बातें पूरे महल में हंगामा मचा देती है। गजराज से लेकर राज राजेश्वर तक दंग हो जाते हैं कि आखिर अब भी इसके पास कौन सा सबूत है।
गजराज की परेशान आंखे और राज राजेश्वर की चेहरे की घबराहट देख रेनू फिर अपनी बात दोहराती है और कहती है— "जिस महल की नींव झूठ पर रखी गई हो, जिसने अनगिनत आबरू को तमाशबीन बन लुटते देखा हो… वो ताज का भार और सच का तेज कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता… अभी भी वक्त है राज राजेश्वर भैया, सुधर जाइये। भले मैं आपके पिता की नाजायज औलाद हूं, पर सच कहती हूं आपसे जायज़ बहन का रिश्ता निभाना चाहती हूं।"
आखिर कौन सी चाल चलने वाली है रेनू? क्या रेनू की बाते सुन राज राजेश्वर अब अपने पिता गजराज के खिलाफ हो जाएगा?
उस डायरी में और कौन सा बड़ा सच छिपा है?
राघव भौंसले अपने ससुर की दौलत हड़पने के लिए अब क्या नया षड्यंत्र रच रहा हैं?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.