"जिस महल की नींव झूठ पर रखी गई हो, जिन आंखों ने अनगिनत आबरू को तमाशबीन बन लुटते देखा हो… वो ताज का भार और सच का तेज कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता…"
रेनू की इस आखिरी लाइन ने आज रात पूरे राजघराना के लोगों को सोने नहीं दिया। एक तरफ जहां गजराज रेनू की सच को लेकर उठाई तलवार से परेशान था, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर अपने पिता गजराज के काले अतीत के हर पन्नें को पढ़ चुका था। जिसकी वजह से वो जानता था कि रेनू सच्ची है और सच के लिए लड़ रही है।
पूरी रात खुली आंखों के साथ सोने के बाद सुबह गजराज के होंठ सूख गए थे और सर दर्द से फटा जा रहा था। तो वहीं राज राजेश्वर की आंखें भी कल रात पलभर के लिए भी नहीं झपकी थी। दोनों लटके चेहरे के साथ सुबह का नाशता करने के बाद डाइनिंग टेबल पर पहुंचे, तो देखा कि रेनू वहां उनका पहले से इंतजार कर रही थी— "तो क्या सोचा आपने राज राजेश्वर भैया... इंसाफ का साथ देंगे या कुर्सी के लिए अपने ज़मीर को मारेंगे?”
रेनू को एक बार सुबह-सुबह आंखों के सामने देख राज राजेश्वर की रूंह कांप गई। उसने रेनू के किसी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चाय पीने के बाद वहां से उठकर सीधे बाहर चला गया। वहीं उसके जाने के बाद गजराज भी वहां से उठकर जाने लगा, तभी रेनू ने किसी को फोन मिलाया और बोली— “सबूत और उस गवाह दोनों को संभाल कर रखना, लगता है हमे जल्द जरूरत पड़ने वाली है।”
रेनू के तेवर देख गजराज तुरंत भाप जाता है, कि ये फोन कॉल रेनू ने उसे सुनाने और डराने के इरादे से ही किया था। ऐसे में वो अपने कमरे में जाने के बजाये सीधे अपने सीक्रेट कमरे में जाकर उसे अंदर से बंद कर बैठ जाता है। बाहर खड़ी रेनू हल्का सा मुस्कुराती है और फिर वहां से सीधे प्रभा ताई के पास जाकर, उनके कदमों में हाथ जोड़कर बैठते हुए कहती है— "आपने मेरी मां को नई ज़िंदगी दी है... मैं ताउम्र आपकी आभारी रहूंगी। आज मैं दिल से ये वादा करती हूं ताई, अगर कभी जिंदगी के किसी मोड़ पर आपको मेरी जान की भी ज़रूरत पड़ी... तो मैं... वो भी आपके नाम कर दूंगी, बिना एक पल सोचे।"
रेनू के आभार भरे शब्द सुन प्रभा ताई की आंखे भर आती है और वो उस दिन को याद करती है, जब बीस साल पहले शारदा उसे बचाने के लिए एक जंगली शेर से लड़ गई थी।
बीस साल पहले—फ्लैशबैक
उस रात जंगल के बीचों-बीच घना अंधेरा फैला हुआ था। एक उजड़ा सा रास्ता, हल्की सी बूँदाबाँदी… प्रभा ताई जानकी के बच्चे यानी 2 दिन के नवजात गजेन्द्र को जिंदा दफनाने के इरादे से जंगल में जा रही थी। तभी, शेर की गहरी गरज सुनाई दी। गौर से देखा तो अंधेरे में एक विशाल शेर धीरे -धीरे कदम बढ़ाता उन दोनों की तरफ आ रहा था। काले घने अंधेरे में भी उसकी आँखें चमक रही थी उसकी दहाड़ से साफ था कि वो शिकार की तलाश में था।
तभी प्रभा ताई ने घबराते हुए कहा— “शारदा, जल्दी करो! हम यहाँ से जल्दी निकलते हैं… वरना ये हमे खा जायेगा!”
लेकिन शारदा शांत और साहस से भरपूर थी, उसने बिना डरे शेर की तरफ एक नजर देखा और प्रभा ताई को बस बिना कुछ बोले सीधे चलते रहने का इशारा किया— “छोटी रानी सा, फिक्र मत करिये, आप तक पहुंचने से पहले उस शेर को मुझसे और मेरी तलवार से गुजरना होगा।”
तभी शेर ने अचानक एक जोशीले गुर्राहट के साथ उनकी ओर घूरा और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। उसकी आँखें लाल थी और भूख के चलते मुंह से लार टपक रही थी। लेकिन शारदा ने हिम्मत नहीं हारी और बिना डर के आंखों में आंखें डालकर शेर के सामने खड़ी हो गई। उसकी आँखों में गुस्सा और सुरक्षा का भाव साफ़ दिख रहा था।
तभी प्रभा ताई ने कांपती हुई आवाज में कहा— “शारदा, नहीं... ये लाल बाग का शेर है! तुम जानती हो… ये किसी को भी नहीं छोड़ता।”
ये सुनते ही शारदा की आँखों में एक जोश की लहर दौड़ जाती है। वह धीरे-धीरे शेर के नज़दीक जाती है, और उसकी आंखों में एक पाउडर झोंक प्रभा ताई को लेकर उसके पीछे की दिशा में बैठ जाती है। तभी प्रभा ताई शारदा के कंधो पर हाथ रखते हुए कहती है— “तुमने अपनी जान की परवाह किए बिना मेरी जान बचाई है, शारदा। मैं कभी तुम्हारा ये एहसान नहीं भूलूंगी।”
वहीं आज का दिन
"मैंने तुम पर कोई एहसान नहीं किया रेनू, तुम्हारी मां का मुझ पर एक कर्ज था जिसे मैंने आज चुका दिया है।"
इतना कह प्रभा ताई वहां से चली गई। दिन से शाम और शाम से रात हो गई, लेकिन अब तक राज राजेश्वर राजघराना नहीं लौटा। महल के गलियारे उस रात कुछ ज़्यादा ही चुप थे। हर कोना किसी भारी राज़ को समेटे खामोश खड़ा था। ऊपर छत पर खड़ी रेनू और रिया, अभी भी महल के आंगन की तरफ देख रही थीं, जहां से पुलिस की गाड़ियाँ सारी जांच-पड़ताल कर वापस जा चुकी थीं… और तभी वहां गजेन्द्र का वकील विराज आया, वो रेनू को हिदायत देते हुए बोला— “रेनू, जब तक हमारे पास कोई ठोस सबूत नहीं होता, इस बार गजराज को घेरना खतरनाक हो सकता है। लेकिन जो तूने स्टेज पर किया… वो वाकई काबिले तारीफ था।”
रेनू उसकी आंखों में देखती है और बस मुस्कुराती है— "डर के आगे सच है, विराज। और इस बार हम झूठ का वो महल तोड़कर ही दम लेंगे। तुम देखना रिया तुम्हारा गजेन्द्र भी जल्द आजाद हवा में सांस लेगा।"
इतना कह सब अपने कमरे में सोने चले गये। सबको यकीन था कि राज राजेश्वर भले ही आज ना लौटा हो, पर कल अपनी ताजपोशी के लिए जरूर लौटेगा। अगली सुबह राजघराना में भव्य ताजपोशी समारोह की तैयारी जोरों पर थी। महल के दरवाज़ों पर गुलाब की पंखुड़ियां बिछाई गई थीं। स्वर्ण मुकुट, मंच पर रखा तख़्त और राजसी सजावट… सब कुछ ज़्यादा ही चमक रहा था। प्रेस, राजनयिक और विदेशी मेहमानों की मौजूदगी ने इस ताजपोशी को महज एक पारिवारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रदर्शन बना दिया था। जिसका दिखावा गजराज पूरी दुनिया में करना चाहता था, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी इस खुशी में उसकी नाजायज बेटी रेनू बड़ा ज़हर घोलने वाली है।
देर शाम ताजपोशी शुरु हो गई। गजराज सिंह मंच पर मुस्कराते हुए खड़ा था, लेकिन उसकी आंखें सिर्फ एक कोना खोज रही थीं—रेनू का चेहरा... पर रेनू वहां नहीं थी। उसने खुद को इस तमाशे से दूर रखा था। उसने पहले ही तय कर लिया था कि वो अंत में ही आयेगी।
तभी मंच के पीछे से शाही कपड़ों में, मुस्कराता चेहरा मंच पर चढ़ा, ये कोई ओर नहीं, राज राजेश्वर सिंह था। हाथ में तलवार, कंधों पर सिंह वंश की चादर, और माथे पर जीत का तिलक लगाये वो गजराज की तरफ बढ़ता है और पैर छूकर खड़ा हो जाता है।
चारों तरफ खुशी का माहौल था। हर कोई राज राजेश्वर को अगला उत्तराधिकारी बनने की बधाईयां दे रहा था, लेकिन तभी वहां मुक्तेश्वर सिंह, गजराज का बड़ा बेटा जिसे उसने अपने छोटे बेटे के ताजपोशी में आने का न्यौता तक नहीं दिया था वो आ गया। इतना ही नहीं वो सीधे मंच पर जाकर खड़ा हो गया। तभी गजराज ने पूछा— "त...त..तुम तो अपने पूणे वाले घर गए थे, फिर इस तरह अचानक यहां कैसे?”
इतना कहते-कहते गजराज के माथे पर पसीना छलक उठा। राज राजेश्वर की आंखें सकपका गईं। मंच पर दोनों भाई आमने-सामने खड़े थे… और तभी मुक्तेश्वर ने माइक हाथ में लिया और बोला— "आप मुझे उत्तराधिकारी बना रहे हैं, पिता जी, मुझे राज राजेश्वर ने फोन कर यहां बुलाया है?"
मुक्तेश्वर की आवाज़ में तीखा व्यंग्य था, उसके इस खुलासे ने गजराज को दंग कर दिया। गजराज ने तुरंत पलटकर राज राजेश्वर की तरफ देखा, तो उसने धीरे से कान के पास आकर कहा— “मैं मजबूर हूं पिताजी… क्योंकि जिस तरह आपके अतीत के राज मेरे पास है, ठीक वैसे ही मेरे अतीत के राज़ मुक्तेश्वर भैया के पास है।”
ये सुनते ही गजराज का चेहरा फीका पड़ गया, उसने अपने बेटे की आँखों में देखा। उसकी आंखों में न विद्रोह था, न प्यार... बस एक अजीब सा खालीपन। जैसे हर बार की तरह इस बार भी कोई युद्ध लड़ते-लड़ते खुद से हार गया हो। तभी गजराज चिल्लाया, “क्या बकवास कर रहे हो? ये बताओ वो डायरी कहां है?”
अपने पिता को इस तरह गरजता देख राज राजेश्वर डरा नहीं, और पलट कर बोला— “आपके ज़ुल्म की कहानी डायरी में है, और वो डायरी और मेरी बेबसी की कहानी सिर्फ एक इंसान के पास है — मुक्तेश्वर भैया। और अगर मैंने उन्हें चुप न कराया, तो इस महल की दीवारें ताश के पत्तों की तरह गिर जाएंगी। आपके साथ-साथ मेरा अतीत भी तमाशा बन जायेगा।”
गजराज और उसके छोटे बेटे के बीच हो रही फुसफुसाहट देख मंच पर सन्नाटा फैल चुका था। तभी गजराज ने धीमी आवाज में पूछा— “राज़, तेरा कौन सा राज है मुक्तेश्वर के पास…?”
राज राजेश्वर ने गहरी साँस ली और कहा— “वही, जिसे जानने के बाद मेरी पत्नी ने मुझे छोड़ दिया। मेरी पत्नी सिर्फ मेरा सच ही नहीं जानती, बल्कि उसने मेरा वो असली चेहरा भी देख लिया है, जिसे आप मेरी जवानी से आज तक इस दुनिया से छिपाने की कोशिश कर रहे थे। वो सच अब मेरी पत्नी के अलावा मुक्तेश्वर भैया भी जानते हैं।”
मंच के पीछे खड़ी रिया और रेनू जैसे ही गजराज और राज राजेश्वर के बीच की ये सारी बातें सुनती है, उनकी साँसें अटक जाती है। रिया फुसफुसाते रेनू से कहती है— “इसका मतलब वो रिपोर्टर... जो तीन साल पहले गायब हुआ था, उसने राज राजेश्वर को लेकर जो कहा था वो सब सच था?”
रिया की ये बात सुन रेनू के चेहरे पर डर उतर आता है, एकाएक वो कांपती हुई आवाज में कहती है— “मतलब राज राजेश्वर भी उस नौकर भीखू की तरह...?”
रेनू आगे कुछ कहती उससे पहले ही वहां, मंच के ठीक ऊपर एक ड्रोन मंडराता है, जिसकी आवाज के शोर से पूरी पार्टी में हंगामा मच जाता है। गजराज से लेकर पार्टी में मौजूद बाकी लोगों तक कोई कुछ समझ पाता, उससे पहले अचानक एक बड़ी स्क्रीन पर लाइव वीडियो स्ट्रीम चालू हो जाती है।
वीडियो में राज राजेश्वर एक कमरे में अकेले बैठा है, सामने एक लड़का रो रहा था, और राज राजेश्वर से उसे माफ कर देने की भीख मांगते हुए बस एक ही बात दोहरा रहा था— “तुम अपने पिता गजराज सिंह से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो। मैं अपना मुंह बंद रखूंगा, प्लीज तुम मुझे जाने दो।”
इतने पर वो वीडियो कट हो जाता है। राज राजेश्वर अपने चेहरे पर आये पसीने की धार को अपनी उस राजसी शॉल से पोंछ इधर-उधर चारों तरफ देखता है और तभी उसकी आंखे मुक्तेश्वर की आंखों से टकराती है। जिसके बाद मुकेश्वर एक लाइन में कहता है— “लगता है पेन ड्राइव खराब हो गई, पूरा वीडियो नहीं चला। पर तुम टेंशन मत लो, मेरा पास बैकअप फाइल है।”
मुक्तेश्वर की ये बात सुन गजराज और राज राजेश्वर दोनों डर जाते हैं और तभी गजरात मुक्तेश्वर को अपना उतराधिकारी घोषित कर देता है और माइक उसकी तरफ बढ़ाते हुए मंच से नीचे उतर जाता है। लेकिन तभी मुक्तेशर एकबार फिर अपने बयान से पूरा गेम पलट देता है और कहता है—
"मैं अपने पिता के मुझे उत्तराधिकारी बनाने के फैसले का सम्मान करता हूं, लेकिन मैं बता दूं कि मैं पिछले बीस सालों से राजगढ़ और राजघराना दोनों से दूर था। ऐसे में मेरे लिए फिलहाल मौजूदा राज्य और यहां के लोगों को समझना थोड़ा मुश्किल है। ऐसे में मैं चाहूंगा कि मेरा छोटा भाई राज राजेश्वर ही मेर पिता की गद्दी पर बैठे।"
"आओ, मेरे छोटे भाई राज राजेश्वर और संभालों अपने अधिकार को।"
मुक्तेश्वर की ये चाल हर किसी को हैरान कर देती है। गजराज से लेकर प्रभा ताई और राज राजेश्वर किसी को समझ नहीं आता, कि उसे सत्ता की गद्दी चाहिए ही नहीं थी तो उसने आखिर इतना तमाशा क्यों खेला?
आखिर क्या करना चाहता है मुक्तेश्वर? क्या मुक्तेश्वर के खेल में रेनू और रिया भी शामिल है?
राज राजेश्वर की जवानी से जुड़ा कौन सा ऐसा राज़ है, जो बर्बाद कर देगा पूरे राजघराना को?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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