मंच पर तालियों की गूंज थम चुकी थी। गजराज सिंह मंच से नीचे उतर चुके थे। मुक्तेश्वर ने अपनी आखरी लाइन से पूरा गेम ही पलट दिया था। एक तरफ गजराज को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मुक्तेशवर करना क्या चाहता है, तो दूसरी तरफ उसे अपने अतीत के पन्नों के खुल जाने का भी डर सता रहा था। इस बीच मुक्तेश्वर ने अपने छोटे भाई राज राजेश्वर का हाथ थामा, और बोला— “मैं चाहूंगा कि मेरा छोटा भाई राज राजेश्वर मेरे पिता की गद्दी पर बैठे। फिलहाल मेरे सर पर बहुत जिम्मेदारियां है, जो मुझे इस गद्दी के बिना पूरी करनी है।”
लोगों ने इसे एक भाई का त्याग समझा और जोरदार तालियों के साथ राज राजेश्वर का राजगढ़ के राजघराना के नए वारिस के तौर पर स्वागत किया, लेकिन रेनू, रिया और विराज की नजरों में ये एक चाल थी। एक ऐसी चाल, जिसके शिकार अब सिर्फ गजराज या राज राजेश्वर नहीं… ब्लकि हर वो शख्स होने वाला था, जो बीस साल पहले मुक्तेश्वर और अब उसके बेटे गजेन्द्र का गुनाहगार था।
ऐसे में मंच के पीछे चुपचाप खड़ी ये सारा तमाशा देख रही रेनू बुदबुदाई, “अब जो होगा, वो राजघराना में सिर्फ सत्ता का बदलाव नहीं दिखायेगा, बल्कि साथ ही राजगढ़ का एक नया इतिहास भी लिखेगा।”
पार्टी में मौजूद हर शख्स ने राज राजेश्वर को बधाइयां दी, और नए राजा के तौर पर उसकी जय-जयकार भी की। देर रात पार्टी खत्म हुई तो खुशी से फूला राज राजेश्वर नाचता-झूमता अपने कमरें में सोने चला गया। दूसरी ओर गजराज की बेचैनी रात के गहराते अंधेरे के साथ बढ़ती जा रही थी, वो जानता था कि मुक्तेश्वर कोई बड़ी और गहरी चाल चलने वाला है।
हवेली में पसरी गहरी खामोशी के बीच महल की छत पर विराज, रेनू और रिया मिलकर अगली चाल की योजना बना रहे थे। तभी विराज ने एक फाइल उनकी ओर बढ़ाई, जिस पर लिखा था— “राघवेन्द्र सिंह की गुमशुदगी, केस डायरी नं. 47-A”
रिया ने फाइल खोलते ही एक तस्वीर निकाली। यह वही रिपोर्टर था जिसने तीन साल पहले एक स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसका फुटेज अचानक गायब हो गया था और उसके बाद वो खुद भी।
रेनू ने चौंकते हुए कहा— “क्या ये वहीं है रिया, जिसके बारे में तुम पार्टी में बात कर रही थी। क्या ये ही है वो जो राज राजेश्वर की पहचान का असली सच उगलवाने वाला था… लेकिन फिर गायब हो गया।”
विराज की आंखों में आग थी। उसने बिना जवाब दिए पहले हां में सर हिलाया और फिर बोला— “ये केस डायरी मुझे मेरे एक सीनीयर पुलिस ऑफिसर की मदद से मिली है इस डायरी में साफ-साफ लिखा है कि उस रात रिपोर्टर को आखिरी बार राज राजेश्वर के फार्महाउस के पास देखा गया था। और…हां उस रात गजराज सिंह भी वहां था। गजराज ने उस रात पहली बार राज राजेश्वर को भीखू के साथ उस हालत में देखा था।”
विराज की ये बात सुनते ही रिया को जोरदार झटका लगा और वो बोली— “तो मतलब… दोनों बाप-बेटे उस रात साथ थे? और उस रिपोर्टर के गायब होने में भीखू और राज राजेश्वर के साथ-साथ गजराज भी मिला है…?”
विराज जवाब देता उससे पहले रेनू ने गहरी सांस लेते हुए अपना सवाल दाग दिया— “इसका जवाब अब सिर्फ एक इंसान दे सकता है… और वो है शारदा यानी मेरी मां।”
शारदा का नाम सुनते ही विराज चौक गया और बोला— “पर शारदा काकी तो मर चुकी है, तो वो कैसे हमारी मदद करेंगी रेनू… हमें किसी और का सहारा लेना होगा।”
विराज आगे कुछ बोलता उससे पहले रेनू ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा— "शारदा मां जिंदा है...”
“क...क...क्या? कहां? और कैसे??? भूलों मत, हमने अपनी आंखों से उनकी लाश देखी थी।”
विराज के इतने सारे सवाल सुन रेनू और रिया भौच्चकी हो एक-दूसरे की तरफ देखने लगी। फिर उन्होंने एक-एक कर विराज को शारदा की जिंदा होने से लेकर प्रभा ताई के शारदा को उस रात बचाने तक की पूरी कहानी सुनाई। देर रात तीन बजे तक विराज, रिया और रेनू… राजघराना के सच और गजेन्द्र को जेल से बाहर लाने की अपनी चालों पर बात करते रहे और फिर सोने चले गए।
वहीं अगली सुबह, राजघराना महल में एक नया तमाशा शुरु हो गया, जिसकी खबर ने पूरे राजगढ़ को हिला कर रख दिया। दरअसल सुबह राजघराना के दरवाजे पर कोई औरत खून से लथपथ खड़ी है। गजराज से लेकर राज राजेश्वर, प्रभा ताई तक कोई भी उसे नहीं पहचान रहे था। हालांकि उसकी हालत भी पहचानने की अवस्था में न थी, लेकिन उसकी आंखें... हू-ब-हू रेनू की आंखों से मेल खाती थी।
प्रभा ताई ने जैसे ही उस औरत की आंखों में देखा, वो पीछे हट गईं—“श…शारदा?”
महल में हलचल मच गई। रेनू और रिया दौड़ती हुई आईं और जैसे ही शारदा ने रेनू को देखा, उसका चेहरा मुस्कुरा उठा।
“बिटिया… अब वक्त आ गया है कि मैं वो सब कह दूं जो बीस साल से दिल में दबाकर रखी थी…”
शारदा की ये बात सुन रेनू और विराज दोनों समझ गए कि, अब शारदा की मानसिक हालत ठीक हो गई है। ऐसे में रेनू ने अपनी मां शारदा को शांत करा फिलहाल के लिए अपने साथ महल के अंदर ले गई। लेकिन वो उस जंगल की काली कोठरी से राजघराना महल तक अकेली और खून से लथपथ हालत में कैसे पहुंची… इस सवाल ने सबको हिला कर रख दिया था।
हजार सवाल जहन में होने के बावजूद रेनू ने अपनी मां से कुछ नहीं पूछा और सबसे पहले उसके खून से लथपथ कपड़े बदलवाये और फिर डॉक्टर को चेकअप के लिए फोन मिलाने लगी, लेकिन तभी शारदा कमरे से निकल वापस उसी हॉल एरिया में आ गई, जहां सब लोग बैठे हुए थे… और विराज के पास जाकर बोलीं—
“मेरी बात ध्यान से सुन तू वकील...। जिस रात रिपोर्टर गायब हुआ, उस रात मैंने गजराज और राज राजेश्वर दोनों को फार्महाउस में देखा था। वो रिपोर्टर उस रात नौकर भीखू के साथ इस राज राजेश्वर के रिश्तें का खुलासा दुनिया के सामने करने की धमकी देकर इन्हें ब्लैकमेल कर रहा था। फिर गजराज ने पहले उसे बहुत समझाया और जब वो नहीं माना तो गजराज के इशारे पर भीखू ने ही उसे बेहोश किया और फिर राज राजेश्वर के कमरे में उसके बिस्तर पर सुलाकर आ गया। इसके बाद उस रात वहां क्या हुआ मुझे नहीं पता, लेकिन अगली सुबह मैंने देखा कि गजराज, भीखू और राज राजेश्वर तीनों मिलकर उस तहखाने के अंदर एक दीवार बना रहे थे। मुझे यकीन है, वो उस दीवार के पीछे ही होगा।”
ये सुनते ही रेनू कांप गई, “क्या? मतलब… वो हत्या…?”
रेनू का सवाल सुन शारदा ने सिर झुका लिया और बोली— “नहीं, वो उस रात नहीं मरा नहीं था। वो बस बेहोश हुआ था, लेकिन गजराज ने अगली सुबह उसके शरीर को जिंदा ही जलवा दिया। ये सोचकर कि वो मर चुका है।”
शारदा की बेबुनियादी बातें सुन गजराज भड़क उठा और चिल्लाकर बोला— "ये इस पागल-सनकी औरत ने क्या तमाशा लगा रखा है। इसके पास इसकी किसी भी बात का कोई सबूत नहीं है और भूलों मत विराज कोर्ट बेबुनियादी बयानों को नहीं सुनता।"
शारदा के पास अपनी किसी बात का कोई ठोस सबूत नहीं था। उस पर जब गजराज ने शादरा को घूर कर देखा, तो शारदा किसी बेजान-डरे हुए जानवर की तरह रेनू की चुन्नी हाथों में चपेल मुंह छिपा कर बैठ गई। तभी विराज ने कुछ ऐसा कहा, जिसने सबके होश उड़ा दिया— “सबूत तो पहले से थे मेरे पास गजराज सिंह, बस गवाह की कमी थी जिसे आज शादरा काकी ने पूरा कर दिया। अब इस हवेली के घिनौने पापों को दुनिया के सामने आने से कोई नहीं रोक पायेगा।”
तभी विराज ने एक USB ड्राइव आगे बढ़ाई और बोलीं— “इसमें कुछ ऐसे ऑडियो क्लिप्स हैं, जो मुझे उसी रिपोर्टर के पुराने कैमरे से मिले थे। आवाजें साफ हैं… राज राजेश्वर की और गजराज की। इसे कोर्ट में पेश किया जाए, तो पूरा महल हिल जाएगा।”
विराज की बात सुनते ही गजराज कांप जाता है और राज राजेश्वर समझ जाता है, कि अब उसका सच सामने आने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे में विराज के राजघराना महल से जाते ही राज राजेश्वर सीधे उस सीक्रेट कमरे में गया, जहां उसके अतीत का सबसे जरूरी पन्ना दफन था।
वहां जाते ही उसने अलमारी में रखी एक छोटी सी लकड़ी की किताब निकाली और बोला— “अब खेल मेरी शर्तों पर होगा,”
तभी राज राजेश्वर का पीछा करते हुए वहां मुक्तेश्वर भी आ गया और बोला— मैं जानता था कि तुम यहां जरूर आओगे…
कहना क्या चाहते है आप मुक्तेशवर भैया, साफ-साफ कहिए….राज राजेश्वर अभी भी अपनी असली पहचान सबके सामने नहीं लाना चाहता था। ये देख मुक्तेश्वर चिल्ला पड़ा।
साफ-साफ सुनना है, तो सुनों… भीखू ने तुम्हारे और उसके रिश्ते का सच उगल दिया है। साथ ही उसने ये भी बता दिया कि तुम्हारे ही कहने पर उसने बीस साल पहले मेरे घोड़े की नाल में इंजेक्शन लगाया था, ताकि मैं उस रेस फिक्सिंग केस में फंस जाऊं।
मुक्तेश्वर के शब्दों से कमरे में सन्नाटा छा गया। लकड़ी की किताब को हाथ में थामे खड़ा राज राजेश्वर हक्का-बक्का रह गया।
और तभी मुक्तेश्वर फिर बोला, लेकिन इस बार उसका गुस्सा सांतवें आसमान पर था और उसकी आवाज कांप रही थी— “कह दूँ? सबके सामने बोल दूँ कि तू कौन है? या तू खुद बताएगा कि उस दिन तूने मेरे साथ क्या किया था, और क्यों?”
राज राजेश्वर अपने बड़े भाई मुक्तेश्वर की धमकी सुन डरने के बजाये मुस्कुराने लगता है और कहता है— “क्यों भैया? अब तो आपने गद्दी भी मुझे दे दी है... सब कुछ तो मेरे पास है। फिर क्या सच, क्या झूठ? लोग वही मानते हैं जो उन्हें दिखाया जाता है।”
राज राजेश्वर की सत्ता के लालच से भरी खुशी देख मुक्तेश्वर जोर-जोर से हंसने लगता है और कहता है— "तूने गद्दी नहीं ली है, एक श्राप लिया है। ये जो किताब तूने अलमारी से निकाली है, इसी में वो सारे सबूत हैं, जो मैं सालों से इकट्ठा कर रहा था। याद रखना मेरे बीस साल तुम्हारे झूठ की वजह से नर्क जैसे गुजरे है, लेकिन मैं मेरे बेटे को इस राजघराना के श्राप से मुक्ति दिला कर रहूंगा।"
राज राजेश्वर किताब बदलने की बात सुन चौक जाता है और तुरंत पलट कर कहता है— “ये... ये किताब? इसमें तो मेरे अतीत की रातों की तस्वीरे थी, वो सब कहां है… प्लीज मुक्ति भैया, मुझे बताइए वो कहा है...”
मुक्तेश्वर आगे बढ़ते हुए किताब उससे छीन कर कहता है— "तेरे हाथों मेरी ज़िंदगी बर्बाद हुई, मेरे बेटे को अपराधी बना दिया गया, और अब तू सोचता है कि तेरा राज हमेशा चलेगा? भूल जा। अब वक्त आ गया है कि तुझे और तेरे गुनाहों को उसी गद्दी के नीचे दफनाया जाए, जिस पर तू बैठने का सपना देख रहा है।"
ये सुनते ही राज राजेश्वर के माथे पर पसीना आ जाता है। वह दीवार के पास रखी कुर्सी पर बैठ जाता है, थका हुआ और हारा हुआ सा, धीमे से कहता है— "तुम नहीं समझते मुक्तेश्वर भैया... मुझे सिर्फ गद्दी नहीं चाहिए थी, मुझे पहचान चाहिए थी। हमेशा आप, प्रभा ताई और आपका बेटा गजेन्द्र ही पिता जी की जुबान पर रहते थे। मुझे तो उन्होंने आज तक अपनी औलाद नहीं माना। उस पर जब पिताजी ने मुझे उस रात भीखू के साथ बिस्तर पर देखा... तो उनकी आंखों में घिन और गुस्सा था — वो लम्हा मैं कभी नहीं भूला… और फिर अगली सुबह उन्होंने जबरदस्ती एक लड़की से मेरी शादी करा दी, वो भी इसलिए कि कहीं दुनिया मेरी नामर्दानगी के बारें में ना जान जाये। मैं हमेशा से इस महल में सिर्फ एक परछाईं ही बनकर रह गया…"
ये सब सुन मुक्तेश्वर का दिल पसीज जाता है और तभी मुक्तेश्वर उसे गंभीर आवाज में समझाते हुए कहता है— "पहचान मेहनत से मिलती है, साजिश से नहीं। और तुमने तो मेरी बर्बादी के बाद मेरे बेटे की बर्बादी की कहानी भी लिखना चाही, ऐसे में मैं तुम्हें कैसे छोड़ दूं।"
मुक्तेश्वर आगे कुछ कहता, उससे पहले वहां रिया, रेनू और विराज भी कमरे में आ जाते हैं। शारदा दूर खड़ी सब देख रही होती है। रिया के हाथ में कोर्ट का समान था, जिसे वो राज राजेश्वर की तरफ बढ़ाते हुए कहती है— “अब ये पहचान कोर्ट तय करेगा, राज राजेश्वर जी। और वो भी सबूतों के साथ।”
विराज भी खामोश नही रहता और चिल्लाते हुए कहता है— "और याद रखो, ये सिर्फ गजेन्द्र की लड़ाई नहीं है, ये हर उस इंसान की लड़ाई है जिसे तुम जैसे लोगों ने झूठ और ताकत के दम पर मिटा दिया।"
शारदा की आंखों में आंसू हैं। वह धीरे से बोलती है… “इन लोगों ने मुझसे तो मेरी पैदा हुई औलाद तक छीन ली थी, मुझे ये तक नहीं बताया था कि बेटा हुआ या बेटी...। अब बहुत हुआ राज राजेश्वर… अब तेरे गुनाहों की फसल काटने का समय आ गया है।”
विराज, रेनू और शारदा… तीनों के दिलों में भरी कड़वाहट और इल्जाम सुनते-सुनते राज राजेश्वर आखिरकार फूट पड़ता है और चिल्लाकर कहता है— लेकिन मैं इन सबका गुनाहगार नहीं हूं… मैं तो खुद विक्टिम हूं… एक मासूम विक्टिम। जो सिर्फ अपनी नामर्दानंगी के कलंक को दुनिया से छिपाना चाहता था। और इसे ही छिपाने की शर्त में मुझसे पहला गुनाह मेरे बाप ने करवाया… और फिर मैं उस गुनाहों से भरी खाई में गिरता गया… गिरता गया।
क्या है राज राजेश्वर की आप बीति?
आखिर गजेन्द्र को किसने फंसाया?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.