राज राजेश्वर की आपबीति से लेकर उसकी असली पहचान के सच ने महल की हवा को बदल कर रख दिया था। पिछली रात जो कुछ हुआ, उसने हर आत्मा को झकझोर दिया था। राज राजेश्वर की आंखों से झलकता डर, शारदा की जुबान से उगला गया सच, और मुक्तेश्वर का बरसों का दर्द — इन तीनों ने मिलकर महल को नींव को हिला दिया था।

वहीं आज सुबह की पहली किरणें महल की बुर्जों से टकरा रही थीं, लेकिन भीतर छाया काला अंधेरा एक अजीब सी खामोशी समेटे बैठा था। हर कोई अपने कमरे में था और एक-एक कर अतीत की बातों को मन में दोहरा रहा था। 

वहीं रिया भी अपने कमरे में बैठी थी और उसके सामने वहीं पुराना संदूक रखा था, जिसमें शारदा ने अपना सारा सच छिपा कर रखा था, लेकिन अब उस संदूक में ना कोई सच था और ना ही शारदा की किसी बात का कोई सबूत। बस पड़े थे, तो कुछ कागज... रिया ने एक-एक कागज़ को पलटते हुए जैसे ही उन मुड़े-तुड़े दस्तावेज़ को खोला, उसकी आंखें चौंधिया गईं।

उस पर लिखें शब्दो को पढ़ रिया कांपने लगी—

“इच्छापत्र — श्री गजराज सिंह द्वारा, दिनांक: 6 मार्च, 2005”

और नीचे, गजराज के दस्तखत भी मौजूद थे...

लेकिन हैरानी की बात ये नहीं थी, ब्लकि सबसे चौंकाने वाली बात तो ये थी कि वो कोई मामूली कागज नहीं बल्कि राजघराना की जायदाद के दस्तावेज थे, जिसमें मुक्तेश्वर को राजघराने की सारी जायदाद और अधिकारों का एकमात्र उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। रिया हक्का-बक्का रह गई। वो बिना एक सेकेंड गवाएं कार में जा बैठी और कार को सीधे विराज के घर की तरफ दौड़ा दिया। 

विराज के घर पहुंचते ही उसने वो दस्तावेज कार से निकाले और सीधे उसके घर के दरवाजे की घंटी बजा दी। विराज ने दरवाजा खोला… तो रिया बिना सांस लिए उस दस्तावेज के बारे में बताने लगी। विराज ने उस दस्तावेज को रिया के हाथ से लेकर एक नहीं दो नहीं, ब्लकि कई बार पढ़ा... उसकी आंखें सख्त थीं, चेहरा तनाव से भरा… ऐसे में उसने धीरे से लेकिन चेतावनी भरे लहजे में कहा—

“रिया, अगर ये इच्छापत्र असली है और ये इस वक्त सबके सामने आ गया… तो सिर्फ़ गद्दी नहीं बदलेगी, इस राजघराने में गृहयुद्ध छिड़ जाएगा। और फिलहाल हमे इन लोगों के बीच से उस मुजरिम को ढूंढना है, जिसने गजेन्द्र को रेस फिक्सिंग के मामले में फंसाया है। गद्दी से ज्यादा गजेन्द्र कीमती है हमारे लिए...भूलो मत।”

विराज की बात सुन रिया ने चौंकते हुए पूछा— “तो क्या हमें ये सच सबके सामने नहीं लाना चाहिए? क्या हम भी गुनहगारों की तरह चुप बैठ जाएं?”
 
ये सुन विराज एक पल के लिए गहरी सांस लेता है, और फिर रिया को समझाने के इरादे से बोलता है….

“मैं ये नहीं कह रहा कि हमें ये छुपाना चाहिए, लेकिन सही वक्त का इंतज़ार ज़रूरी है। इस परिवार की नींव में पहले ही कई दरारें आ चुकी है। अगर अभी ये दस्तावेज़ गजराज या राज राजेश्वर के हाथ लग गए, तो वो इसे जला देंगे। और अगर जनता को पता चल गया, तो लोग मुक्तेश्वर को राजा मानने लगेंगे... इससे पूरा सियासी संतुलन बिगड़ जाएगा। और साथ ही हमारे लिए गजेन्द्र को बाहर निकालना राजनीति के खेल का किस्सा बन जायेगा। लोग यहीं कहेंगे कि बाप राजा बन गया, इसलिए बेटे का देशद्रोह जैसा जुर्म भी माफ हो गया। बाकी तुम खुद सोच लो, तुम्हें अपने हिस्से में अपना पवित्र प्यार चाहिए… या फिर ये दागदार कुर्सी।”
 
रिया ने गुस्से में मुट्ठियाँ भींच लीं और बोली— “तो हम क्या करें? ये सच भी दबा दें? जैसे उन्होंने गजेन्द्र को दबा दिया? जैसे शारदा की आवाज़ को सालों तक बंद रखा गया? और ना जाने कितनी औरतों को उस तहखाने की जमींन में दफन कर दिया… बोलों विराज?”

रिया को इतना परेशान देख विराज ने उसकी ओर देख कर कहा— “रिया, इस कागज़ पर सिर्फ़ दस्तखत नहीं हैं… ये ना जाने कितने लोगों के खून से लिखा गया है। और खून, कभी छुपता नहीं। लेकिन जब खून बहाने वाला खुद तुम्हारा अपना हो, तो सच्चाई बोलने से पहले कुछ और रिश्ते बचाना भी ज़रूरी हो जाता है। और फिलहाल मैं तुम्हारे प्यार को बचाने की ही लड़ाई लड़ रहा हूं...समझों।”

एक तरफ विराज रिया को मिले विरासत के दस्तावेज़ फिलहाल कुछ दिनों के लिए छुपाने को कह रहा था, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर राजघराना के महल में एक अलग ही खेल खेलने की प्लानिंग रच रहा था— "मुझे कोई ना कोई प्लानिंग करनी ही होगी, मैं इस तरह सबसे दब कर और डर-डर कर नहीं रह सकता।"

राज राजेश्वर इन दिनों बहुत शांत था, लेकिन उसकी ये शांति राजघराना में कोई नया तुफान लाने वाली थी। अपनी सच्चाई इस तरह सबके सामने खुलने के बाद उसे ये अंदाज़ा हो गया था कि कहीं न कहीं, कोई ऐसा कागज़ ज़रूर है, जो उसकी सत्ता को खतरे में डाल सकता है और उसके बड़े भाई मुक्तेश्वर को उसके बारें में पता भी है। तभी उसने बिना किसी डर के इस तरह राजघराना की कुर्सी पर फिलहाल उसे बैठा दिया, लेकिन सब कुछ ठीक हो जाने के बाद वो उससे ये उत्तराधिकारी का अधिकार छीन अपने बेटे को बैठा देंगे।

ऐसे में उसने गुपचुप तरीके से भीखू को पहले अपने कमरे में आधी रात बुलया और फिर आदेश दिया, कि….“महल में जितने भी पुराने दस्तावेज़ हैं, हर कमरे की तलाशी लो… और अगर कुछ भी असामान्य या संदेह जनक मिले, तो सबसे पहले मुझे दिखाओ। एक भी चीज़ छूटनी नहीं चाहिए।”

भीखू इस समय राज राजेश्वर के लिए सिर्फ एक नौकर था, ऐसे में उसने राजेश्वर का आदेश सुना और सिर झुकाया कर हामी भरी, लेकिन उसकी आंखें बता रही थीं कि अब महल में सिर्फ़ लोग नहीं, दीवारें भी चुप नहीं रहेंगी क्योंकि उनके बीच का रिश्ता अब सबके सामने आ गया है।

राज राजेश्वर के आदेश के बाद भीखू ने महल के कोने-कोने की तालाश शुरु कर दी। दूसरी ओर शारदा इन दिनों ज्यादातर समय अपनी बेटी रेनू के साथ बिताती थी। आज शारदा की आंखें बुझी हुई थीं, लेकिन भीतर कोई तूफ़ान अब भी पल रहा था। शारदा खामोश लेकिन एक टक बस रेनू को निहार रही थी। 

एकाएक वो बोलीं— “रेनू, अगर कभी तेरे पास कोई ऐसा कागज़ आये, जो इस घर का भविष्य बदल सके… तो उसे सही जगह ले जाना। इस राजघराने की गद्दी पर बैठना आसान है, लेकिन उस गद्दी के नीचे जो सच दफन हैं, उनसे जीतना सबसे मुश्किल होता है। ये गद्दी ना जाने कितनों के खून से लाल है मेरी बच्ची।” 

रेनू ने मां का हाथ थामा, “मैं आपकी बात याद रखूंगी मां… लेकिन इस बार, सिर्फ़ एक गद्दी नहीं बदलेगी, पूरा इतिहास बदलेगा।”

राजघराना महल का हर कमरा इस समय उस जायदाद दस्तावेज को तलाश रहा था, जिसे रिया सबकी नाक के नीचे से निकाल विराज को सौंप आई थी। दूसरी ओर मुक्तेशर अपने ही गम में डूबा हुआ था, और अपने छोटे भाई की जिंदगी का गुनाहगार खुद को मान रहा था। 

दरअसल मुक्तेश्वर अपने कमरे में था। उसके सामने उसके पिता की तस्वीर थी और वो उस तस्वीर से बातें कर रहा था— “पिताजी… आप तो हमेशा मुझे कहते थे कि मैं परिवार को संभालूंगा। लेकिन आज, जब सच सामने आ रहा है… तब सब मुझे खलनायक समझ रहे हैं। क्योकि आपने मुझे सबकी नजरों में खलनायक बना दिया है।”

इसके बाद उसने अपनी मेज़ पर रखी वही पुरानी फोटो हाथ में उठाई, जिसमें वह, प्रभा ताई और राज राजेश्वर तीनों बच्चे थे… हँसते हुए घोड़ों पर बैठे थे। तीनों ने शाही कपड़ें पहने थे, लेकिन तब तक ना उन्हें शाही परिवार के नाम का भार और उत्तरदायित्वों का पता था… और ना ही एक दूसरे से कोई बैर-दुश्मनी… था तो बस प्यार...। बेमतलब-बेपरवाह भाई-बहनों वाला प्यार, जिसे गजराज ने राजघराना की गद्दी के नाम पर बांट दिया। 

उन तस्वीरों को देख मुक्तेशर बोला— “काश… वो विरासत का कागज़ कभी न लिखा गया होता, या काश हम सारे इस राजघराना का हिस्सा ही ना होते… जहां एक इंसान से ज्यादा हमारा शाही होना लोगों की नजरों में चढ़ता है।”

एक रात पहले हुए तमाशे का आलम कुछ ऐसा था, कि आज सुबह से शाम तक एक छत के नीचे होने के बावजूद भी किसी ने किसी की शक्ल नहीं देखी थी। लेकिन देर शाम को महल के बड़े ड्रॉइंग रूम में एक-एक कर सब इकट्ठा हुए। ना चाहते हुए भी सबकी आंखे एक-दूसरे से टकराई….जिसमें रेनू, रिया, विराज, और मुक्तेश्वर सब मौजूद थे, लेकिन राज राजेश्वर अब भी गायब था।

तभी रिया ने धीरे से टेबल पर वो जायदाद दस्तावेज़ रखा और बोलीं— “ये देखिए, ये हैं राजघराना की असली वसीयत।”

असली वसीयत का नाम सुनते ही मुक्तेश्वर चौक गया, कि आखिर ये रिया के हाथ कैसे लगीं। उसने धीरे से उसे उठाया और जैसे ही उसने उसे पढ़ा वो दंग रह गया— “ये… ये तो मैं भूल ही गया था। मैंने पिताजी से कहा था कि सबकुछ राज राजेश्वर के नाम कर दें, लेकिन उन्होंने...”

तभी विराज मुक्तेश्वर को बीच में काटता है और टोकते हुए बोलता है— “नहीं, उन्होंने आपकों ही उत्तराधिकारी चुना था। फिर क्या हुआ? ये कागज़ क्यों छुपा दिया गया, ये जानना हमारे लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि इन विरासत के दस्तावेजों को छिपाने वाला ही गजेन्द्र का असली गुनाहगार है। वो नहीं चाहता था, कि राजघराना की गद्दी पहले आपको और फिर आपके बाद गजेन्द्र को मिले। और हां गजराज वो इंसान हरगिज नही हो सकता, क्योकि वो तो गजेन्द्र को पूणे से अपना वारिस घोषित करने के इरादे से ही राजगढ़ लेकर आये थे।”

इतना कहकर विराज चुप नहीं हुआ उसने आगे मुक्तेश्वर के कानों में कहा— "सोचिये अंकल सोचिये, आखिर कौन है आपका असली दुश्मन, क्योकि वहीं गजेन्द्र को रेस फिक्सिंग मैच में फंसाने का असली आरोपी भी है? तो सोचिये!!!”

ये सुनते ही मुक्तेश्वर की आंखों में अब दर्द से ज्यादा अपराधबोध की भावना घूम रही थी। ऐसे में वो धीरे से खुद से बड़बड़ाते हुए बोला— “शायद… शायद मैंने ही इसे नजरअंदाज कर दिया, क्योंकि मुझे लगा… मैं उस गद्दी के लायक नहीं हूं। लेकिन फिर भी मेरे उस दुश्मन ने मेरे बेटे को हमेशा-हमेशा के लिए रास्तें से हटाने का प्लान बनाया।”

मुक्तेश्वर का एकदम सहीं निशाना-अंदाजा सुन विराज तपाक से बोला— "अब आप अपने दुश्मन की चाल को एकदम सटीक समझ रहे हैं अकंल मुक्तेश्वर, तो याद करिये… आखिर आपका असली दुश्मन कौन है, जो इस सत्ता का वारिस भी बन सकता हो।"

तभी मुक्तेश्वर की नाजायत सौतली बहन भी इस बहस में कूद पड़ी और बोलीं— “नहीं, आप तब भी लायक थे… और आज भी हैं मुक्ति भैया...। इस कागज़ को छिपाना गुनाह नहीं था, लेकिन अब इसे बाहर ना लाना… गुनाह होगा। क्योंकि आप सच में इस गद्दी के साथ इंसाफ कर सकते हैं।”

रेनू से लेकर शारदा तक सबके समझाने के बाद भी मुक्तेशर फिलहाल उन दस्तावेजों को अपने पास रखने से मना कर देता है। उस पर वो ये भी कहता है कि— फिलहाल इन्हें रिया को अपने पास ही रखना चाहिए, क्योंकि उनके बेटे गजेन्द्र के जेल से बाहर आने के बाद वहीं इस घर की बहूं बनेगी… और तब ये पेपर घूम-फिरकर उसी के पास जायेंगे।

जहां एक तरफ मुक्तेश्वर की ये बाते सुन रिया का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है, तो वहीं हॉल के दाई तरफ खंबे के पीछे खड़ा राज राजेश्वर ये सारी बातें सुन एक पल के लिए तो दंग रह जाता है, तो वहीं दूसरे ही पल मुस्कुराते हुए कहता है— "चलों पिताजी के डुप्लीकेट हस्ताक्षर का असली खेल खेलने का समय आ गया है।"

खंबे के पीछे खड़ा राज राजेश्वर अपनी अगली चाल की प्लानिंग कर अपनी नजरें उन कागजों पर गड़ा लेता है, जो इस समय रिया के हाथ में थे। तो वहीं दूसरी ओर सब रात का खाना खाने के बाद अपने-अपने कमरों में सोने चले गए और विराज भी अपने घर लौट गया।

अगली सुबह—

“गायब हो गया, वो दस्तावेज गायब हो गया… मुक्तेश्वर अंकल… रेनू, शारदा काकी… जल्दी आइये, देखिये”

रिया के कमरे से आ रही चिल्लाने की आवाज सुन सब एक साथ उसके कमरे की तरफ भागे, तो देखा रिया अपने कमरे के हर कोने में उस फाइल को ढ़ूंढ रही थी। उसका पूरा कमरा, अलमारी, किताबे सब-कुछ जहां-तहां फर्श पर फैली हुई थी।

"क्या हुआ रिया चिल्ला क्यों रही हो? और ये तुमने कमरे की क्या हालत कर दी है?” 

रेनू की बात सुन रिया तपाक से बोलीं— "मैं जब सुबह नींद से जागी तो देखा, मेरी अलमारी और मेरे कमरे की खिड़की खुली है। इसके बाद जब मैं फाइल चेक करने गई, तो उसमें से वो दस्तावेज़ गायब थे।"

कुछ ही देर में वहां भागता हुआ विराज भी आ जाता है, दरअसल रिया जैसे ही अपने कमरे की अलमारी खुली देखती है वो तुरंत मदद के लिए विराज को फोन कर देती है। वहीं विराज हैरान-परेशान रिया के कमरे में कदम रखता है, तभी रिया चिल्ला पड़ती है— “विराज! वसीयत… चोरी हो गई!”

ये सुनते ही विराज चौंक जाता है, एकाएक महल की दीवारों में फिर से साजिशें गूंजने लगती हैं। जहां एक कमरें में मात का मंजर था, तो वहीं राजघराने का एक दूसरा कमरा जीत का जश्न मना रहा था… लेकिन ये था कौन?
 

"सत्ता की भूख में जब खून से ज़्यादा कागज़ की कीमत हो जाए...तो समझ लेना कि अब सिर्फ़ गद्दी नहीं, सच के खून के साथ खेलने वालों का अंत नजदीक आ गया है और इस बार, राजघराना सिर्फ़ देखेगा नहीं — लड़ेगा भी...कैसे

इस खेल में अब आखिर किसकी होगी जीत और किसकी हार?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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