उस असली वसीयत के दस्तावेज गायब होने के बाद से राजघराना महल की दीवारों पर फिर एक बार साजिशों की परछाइयाँ गहराने लगी थीं। रात का तीसरा पहर था, लेकिन राज राजेश्वर की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। उसके सामने रखी लाल मुहर लगी एक फाइल पर लिखा था —
“श्री गजराज सिंह की अंतिम वसीयत”
उस वसीयत के दस्तावेजों को देख राज राजेश्वर खुद से बड़बड़ाते हुए बोला— "लोग मरने से पहले वसीयत बनाते है, लेकिन मेरे बाप ने मेरे सच के साथ ही वसीयत बना उसे दीवारों में चुनवा दिया। इसे पढ़ने के बाद तो मेरी जी कर रहा है, मैं अपने जिंदा बाप को ही दीवार में चुनवा दूं। अरे कोई अपनी सगी औलाद के साथ ऐसा कैसे कर सकता है। भीखू?”
राज राजेश्वर का सबसे फवादार नौकर, जो कभी उसका प्यार भी था, वो आज गर्दन झुकाये बस उसके नशे में चूर… परिवार की नफरत से भरी बातें सुने जा रहा था। तभी राज राजेश्वर ने भीखू के सीने पर अपना सर रखा और बोला—
“ये देख... ये है ‘गजराज सिंह की आखिरी वसीयत’। आज सुबह ये लोग इस दस्तावेज़ को मीडिया के सामने पेश करने वाले थे। सब कुछ अनाउंस करने वाले थे, जिसके बाद मुक्तेश्वर भैया का बेटा गजेन्द्र इस विरासत का असली वारिस बन जाता… और मैं हर बार की तरह इस बार भी राजघराना का कलंक।”
भीखू धीरे से राज राजेश्वर के चेहरे को अपने सीने से उठा अपनी आंखों के सामने लाता है और कहता है— “आप कभी किसी की जिंदगी पर कलंक नहीं थे छोटे सरकार… बस आप अलग थे, इन लोगों से थोड़े अलग… जैसे मैं हूं।”
अलग होने की बात सुनते ही राज राजेश्वर ने भीखू को धक्का देकर खुद से दूर कर दिया और फाइल के कवर पर हाथ फेरते हुए गहरी सांस ली और बोला— “वो सच नहीं है भीखू… अगर वो मेरा सच होता, तो मेरा बाप मेरी शादी एक लड़की से जबरदस्ती नहीं कराता। तुम देखना अब इस दुनिया के सामने वो सच आयेगा, जो मैं दिखाउंगा... जो मैं कहूँगा... और वो सच ही मुझे इस राजघराना की गद्दी पर बैठाएगा।”
इतना कह राज राजेश्वर ने भीखू के हाथ में वो फाइल दी और फिर धीरे-धीरे उसके कानों की तरफ बढ़ने लगा— “मुझे वो चाहिए, जो मैंने तुमसे उस रात बीस साल पहले मांगा था, जब मेरे बाप गजराज सिंह ने हमें उस कमरे में एक साथ देख लिया था। तब तुमने मुझसे वादा किया था… कि तुम मुझे वो दोगे, लेकिन सही वक्त आने पर। मैं कहता हूं, अब सहीं वक्त आ गया है।”
राज राजेश्वर ने जिस इशारों भरे अंदाज में भीखू को ऑर्डर दिया, वो सब समझ गया और उस जायदाद के दस्तावेज लेकर सीधे वहां से जाने लगा। लेकिन तभी उसने देखा कि शराब के नशे में बुरी तरह से धुत राज राजेश्वर उसके छोड़ते ही औंधे मुंह जमींन पर गिर गया, तो भीखू ने उसे गोद में उठाया और बिस्तर पर लेटा दिया और तभी दरवाजें के दाई तरफ खड़े एक शख्स ने दोनों की ये तस्वीरें खींच ली।
पूरी रात शराब के नशे में चूर रहने के बाद राज राजेश्वर आज पूरा दिन सोता रहा। उसे कब सुबह से शाम हुई कुछ पता नहीं चला। वहीं देर रात भीखू सबकी नजरों से नजरे बचाकर उसके कमरे में आया और उसके हाथों में उन दस्तावेजों को दुबारा थमा दिया और बोला— “आपने जैसा कहा था, वो सब काम कर दिया है। आप एक-एक पन्ना और एक-एक साइन देख सकते हैं।”
भीखू की ये बात सुन राज राजेश्वर मुस्कुरा दिया और बोला— “हू-ब-हू है ना दस्तखत... वैसे तो मुझे भरोसा है कि तुम्हारी कलम का कमाल अच्छें अच्छों की आंखे फेर सकता है।”
भीखू मुस्कराया, मगर उसकी मुस्कान में वफादारी बड़ी टेढ़ी सी थी, मानों जैसे वो भी कुछ तो अगल षड्यंत्र रच रहा हो। हालांकि फिलहाल ये कहना मुश्किल था कि आखिर वो किसके खिलाफ था— राज राजेश्वर के या फिर राजघराना के। तभी राज राजेश्वर ने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुन भीखू के कान भी सुन पड़ गए— “राजा वही, जिसकी मुहर चले। अब मुहर चाहे असली हो या नकली... फर्क किसे पड़ता है? और तुम भीखू, याद रखना इस राज को राज नहीं रखा, तो तुम जल्द ही यमराज के मेहमान बन जाओगा।”
एक तरफ अपनी इस नई चाल के बाद राज राजेश्वर एक अलग ही आसमान में उड़ रहा था, तो वहीं दूसरी ओर रिया और विराज अब महल से दूर पुराने सचिवालय की धूल भरी अलमारी में वसीयत से जुड़े और दस्तावेज़ तलाश रहे थे। इसी दौरान अचानक उनके हाथ एक पुराना टेप रिकॉर्डर लगा। ज़ंग खाई, लेकिन फिर भी चालू कंडीशन में... रिया ने जैसे ही बटन दबाया, उसमें एक थकी-हारी आवाज़ गूंजी—
“मैं राजघराना के महाराज श्री गजराज सिंह का वकील, अपने पूरे होशों-हवास में दो परिवार के लोग, गजराज सिंह की धरपत्नी और उनके छोटे भाई महेशवर नाथ सिंह की मौजूदी में उनकी बनाई वसीयत को सबके सामने पढ़ रहा हूं, जिसमें लिखा है, कि गजराज सिंह ने अपने बड़े सुपुत्र मुक्तेश्वर को ही अपनी मृत्यु के पश्चात अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। मैं, अधिवक्ता सुरेश दीक्षित, इस वसीयत का प्रमाणिक गवाह हूं।”
ये रिकॉर्डिंग सुनते ही रिया और विराज एक-दूसरे को देखते हैं और आंखों में आश्चर्य और क्रोध दोनों भावनाएं एक साथ दौड़ जाती है। इसके बाद विराज तिलमिलाती हुई आवाज में अपना गुस्सा जाहिर कर कहता है— “झूठ दस पैरों पर भी चलकर आये, तो सच के एक वार से मिट्टी में मिल जाता है रिया… देखों तुम्हें उस वसीयत के खोने का डर था ना… हमें उसी की दूसरी कॉपी मिल गई। शायद भगवान भी हमारे यानी सच के साथ है, गजेन्द्र से उसका हक कोई नहीं छीन सकता!”
विराज की बात सुन रिया फुसफुसाती है— “हमे इसे संभाल कर रखना होगा, और हां अब हम गजेन्द्र की जेल से रिहाई और रेस फिक्सिंग केस से बेगुनाही साबित होने के बाद ही इसे सबके सामने लायेंगे।”
दोनों उस ऑडियों वसीयत को लेकर काफी खुश होते है। इसके बाद विराज उस टेप रिकॉर्डिंग को अपने बैंक लॉकर में छिपा देता है। दूसरी ओर ठीक इसी वक्त जयपुर जेल में एक नया ड्रामा शुरू हो गया। दरअसल जयपुर जेल के पश्चिमी गेट से बाहर की ओर एक गाड़ी निकलती है, जिसमें है एक कैदी… ये कोई ओर नहीं गजेन्द्र सिंह है। उस जीप गाड़ी के आगे वाली सीट पर बैठा जेल प्रशासन अधिकारी दरवाजे पर एक कागज दिखता है जिस पर लिखा था — “अन्य जेल में ट्रांसफर”
गेट पर खड़ा वो कांस्टेबल जीप को बाहर जाने देता है, लेकिन इसी के साथ वो तुरंत गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर को फोन लगा देता है और कहता है— "वो अधिकारी उसे दूसरी जेल में ले गया। तुमने जब से यहां उसकी सेक्यॉरिटी बढ़वाई थी, वो सुरक्षित था… लेकिन आज रात वहां उसके साथ कुछ भी हो सकता है।"
विराज को जैसे ही ये खबर मिलती है, उसका चेहरे के रंग सफेद पड़ गया। उसने आव देखा ना ताव और रिया को लेकर सीधे कार में बैठ गया। विराज को इस तरह हड़बड़ाया देख रिया के भी हाथ-पैर फूलने लगे उसने पूछा, “क्या हुआ विराज...? गजेन्द्र ठीक तो है ना...? कुछ बोलों, मेरा दिल बैठा जा रहा है...”
कार चलाते-चलाते विराज ने रिया के तरफ देखा, उसकी आंखें गुस्से में किसी आग की तरह जल रही थी, वो बोला— “गजेन्द्र को ट्रांसफर नहीं किया जा रहा... उसे खत्म करने की साजिश है! वो लोग उसे मार डालेंगे वहां… हमें अभी के अभी पहुचना होगा।”
विराज की ये बात सुनते ही रिया के चेहरे पर डर उतर आता है, वो कांपती हुई आवाज में कहती है, "मतलब... वो सब कुछ जानते हैं? वसीयत... विरासत... और अब, उसे रास्ते से हटाया जा रहा है?"
विराज की आंखें में अब तेज़ और गुस्सा एक साथ उतर आता है— “अब हमें तेज़ चलना होगा। हमारे पास समय नहीं है फिलहाल इन बातों के लिए… रिया।”
एक तरफ यहां विराज अपनी कार को हवा से बात करते हुए जोधपुर जेल की तरफ दौड़ा रहा था, तो वहीं दूसरी ओर आज रात अचानक से राजघराना महल में एक सभा बैठाई गई थी। ये सभा किसी ओर ने नहीं बल्कि राज राजेश्वर के आदेश पर बैठी थी, जहां राज राजेश्वर बड़ी शानो-शौकत से सबके सामने "गजराज की आखिरी वसीयत" पेश करने की तैयारी कर रहा था।
एक-एक कर रेनू, भीखू, शारदा, प्रभा ताई, मुक्तेश्वर… के साथ-साथ घर के सारे नौकर, सारे सदस्य सभी उस सभा में आकर बैठ गए, जिसके बाद राज राजेश्वर ने वसीयत का वो दस्तावेज बाहर सबके सामने रखा और बोला—
“ये रहा दस्तावेज़, जिसमें मेरे पुज्य पिता जी, गजराज ने साफ लिखा है — उनका उत्तराधिकारी मैं यानी राज राजेश्वर बनूंगा और मेरे बाद मेरा बेटा इस पदभार को सांभालेगा।”
उसके इतना कहते है राजघराना के हॉल में सन्नाटा पसर गया। मुक्तेश्वर सिर झुकाए खड़ा है। लेकिन तभी पीछे से आवाज आई, एक जोरदार बुलंद आवाज— “ये वसीयत झूठी है!”
दूसरी ओर कार को 400+ km/h की रफतार से दौड़ा रहे विराज के मोबाइल पर एक कॉल आता है, जिसे रिया उठाती है और स्पीकर पर डाल देती है— “क्या पता चला, जल्दी बताओं…”
दूसरी ओर से आवाज आई— "जयगढ़ जेल में हुआ है ट्रांस्फर…”
ये सुनते ही विराज ने एक लाइन बोलीं और फोन काट दिया— "तुम लोग जल्दी वहां पहुंचों, बस मैं भी आ ही रहा हूं… गजेन्द्र को एक खरोच भी नहीं आनी चाहिए।"
इतना कह विराज कार की रफ्तार और बढ़ा देता है। रिया का चेहरा भी अब हैरान-परेशान सफेद पड़ने लगता है। वो हाथ जोड़ बैठ जाती है, और भगवान से गजेन्द्र की हिफाजत करने की भीख मांगने लगती है। उसकी आंखों से बहते आंसू रुकने का नाम नहीं लेते और तभी विराज कहता है…."बस दस मिनट और रिया, हम लोग पहुंचने वाले है, तुम परेशान मत हो, सब ठीक होगा। मैं तुम्हारे गजेन्द्र को कुछ नहीं होने दूंगा।"
विराज की बात सुन रिया में एक उम्मीद जागती है, लेकिन तभी उसे वो रात याद आ जाती है जब पहली बार जयपुर जेल में गजेन्द्र पर हमला हुआ था। उस रात के बारें में सोचते ही रिया अंदर तक कांप जाती है और विराज से पूछती है— "हम उसे बचा तो लेंगे ना विराज, इस बार उसे कुछ नहीं होगा ना।"
"हां-हां, बिल्कुल बचा लेंगे। तुम फिक्र मत करों, बस दो मिनट ओर...। देखों हम पहुंच गए।"
इतना कह विराज अपनी कार को जयगढ़ जेल के बाहर रोकता है। रिया तुंरत कार से उतर अंदर की तरफ भागने ही वाली होती है, कि तभी विराज का फोन दुबारा बजता है… और ना चाहकर भी रिया के कदम अपने आप रुक जाते हैं। क्योंकि वो उस फोन कॉल को सुनना चाहती थी। विराज फोन उठाता है—
"हैंलों, हां बताओं क्या अपटेड है, वैसे मैं बाहर ही हूं"
फोन के दूसरी तरफ से घबराई हुई आवाज़ आती है— "हम... हम बहुत लेट हो गए विराज साहब... हमला हो चुका है!"
ये सुनते ही जहां विराज कांप उठता है, तो वहीं दूसरी ओर रिया बेहोश होकर गिर जाती है। विराज उसे पकड़कर कार की ड्राइविंग सीट पर बैठाता है— "क्या?! हमला... किस पर?"
इतना कहते-कहते विराज की सांसें अटक जाती है, और तभी दूसरी ओर से आवाज आती है— “गजेन्द्र पर! कोई जेल स्टाफ की वर्दी में आया था... उसने सिक्योरिटी के नाम पर उसे अलग सेल में भेजा... और फिर अचानक शोर हुआ, और जब सब दौड़े— तब तक…”
फोन करने वाले की आवाज धीमी सुन विराज, चिल्ला पड़ा— "तब तक क्या?!"
विराज की चिल्लाहट सुन… सामने वाले ने कांपती हुई आवाज में कहा— "साहब... वो खून में लथपथ पड़ा था... उसकी नब्ज़ बहुत धीमी थी। हम उसे हॉस्पिटल लेकर जा रहे हैं... लेकिन हालत गंभीर है!"
विराज वहीं पर खड़ा रह गया, मानों जैसे उसके पैरों के नीचे से किसी ने ज़मीन खींच ली हो। तभी रिया हल्का-हल्का होश में आने लगी और लड़खड़ाती आवाज में बोलीं— "क्या हुआ विराज...? बोलो... गजेन्द्र?"
विराज की आंखों में आंसू थे, गुस्सा था, बेबसी थी।
"रिया... उन्होंने उसे खत्म करने की कोशिश की है। हां गजेन्द्र को, जो इस राजघराना का असली वारिस है और तुम्हारा प्यार...! लेकिन फिलहाल हमें उसकी जिंदगी की दुआ मांगनी होगी, उसे अस्पताल ले गए है।"
ये सुन रिया ने तुरंत विराज को कार दौड़ाने का इशारा किया, उसकी आवाज उसके गले में ही अटक गई थी।
यहां गजेन्द्र अस्पताल के बेड पर लेटा जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था, तो वहीं दूसरी ओर राजघराना के सभा हॉल में सब कुछ थम सा गया था। भीखू एक कोने में चुपचाप खड़ा था, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी— मानो उसने ये सब पहले से भांप रखा हो, कि राज राजेश्वर के इरादों पर जल्द कोई पानी फेरने वाला है।
दूसरी ओर यहां जयगढ़ जेल हॉस्पिटल में, जहां स्ट्रेचर पर गजेन्द्र को अंदर ले जाया जा रहा था। उसकी आंखें अधखुली और होंठों से बस एक ही शब्द तैर रहा था— “रिया…”
वहीं जैसे ही गजेन्द को एमरजेंसी वॉर्ड में ले गए और उसके शरीर की सांसों को मशीन से नांपना शुरु किया… एकाएक मशीन की बीप... और सामने रखे उस टीवी पर एक लकीर सीधी बन गई।
क्या गजेन्द्र मर गया?
क्या राज राजेश्वर जैसा आदमी सच में बन बैठेगा राजगढ़ के राजघराना का उत्तराधिकारी?
आखिर क्या होगी मुक्तेश्वर की हालत, बेटे की मौत की खबर मिलने के बाद?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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