हॉस्पिटल की नीरस और ठंडी हवा में भी विराज की धड़कनें घड़ी की टिक-टिक से भी ज्यादा तेज चल रही थी। टीवी स्क्रीन पर सीधी लकीर देख चार सीनियर डॉक्टरों की टीम गजेन्द्र के ऑपरेशन वार्ड में घुसी और उसे शॉक देना शुरु कर दिया। 

गजेन्द्र की हालत इतनी गंभीर थी कि हर सांस जैसे जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी। वह बेहोश था, लेकिन बार-बार रिया का नाम उसके होठों से फिसलता रहा। विराज का दिल घबरा रहा था, पर उसे गजेन्द्र की सांसे लौटने पर यकीन था। ऐसे में उसने एक सेकेंड के लिए अपनी नजरे उस कमरे से नहीं हटाई।

दूसरी ओर रिया की आंखों में आँसू थे, पर वह खुद को मजबूत दिखाने की हिम्मत जुटा रही थी, कि तभी उसने विराज का हाथ पकड़ा और बोली, “विराज, हमें अब और इंतजार नहीं करना, हमें हर हाल में सच सामने लाना होगा। सब्र के नाम पर हम अब और गजेन्द्र की जान से नहीं खेल सकते।”

रिया की ये बात सुन विराज कुछ नहीं बोला, बस हामी में सिर हिला दिया। उसकी आंखें ठंडी और डरी हुई थीं, लेकिन जब उसने रिया की ओर देखा तो एकाएक खुद को संभालते हुए बोला— “हां, रिया। अब कोई भी कदम पीछे नहीं हटेगा। मैं गजेन्द्र को जिंदा जेल से बाहर निकालकर ही सांस लूंगी, और इस राजघराने की सारी गुत्थियां खोल दूंगा।”

जहां एक तरफ विराज और रिया जयगढ़ सीटी हॉसिटल के ऑपरेशन वार्ड के बाहर गजेन्द्र की सांसे लौटने का इंतजार कर रहे थे, तो वहीं इसी बीच, महल में एक बिल्कुल अलग ही सन्नाटा छाया हुआ था। राज राजेश्वर की पहली राजसभा के बाद से महल में खामोशी थी, क्योंकि एक अंजान शख्स ने ना सिर्फ राज राजेश्वर की वसीयत को झूठा करार दिया था, ब्लकि साथ ही उसने अपने इस दावें को 10 दिन के अंदर दुनिया के सामने पूर्फ करने का वादा भी किया था।

वहीं फिलहाल मुक्तेश्वर को अपने एकलौते बेटे की चिंता सता रही थी। वो अंदर तक टूट चुका था, लेकिन इस वक्त वो राजघराना के किसी भी सदस्य के आगे इसे जाहिर नहीं कर सकता था कि उसका बेटा जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है। वहीं राज राजेश्वर की चालबाजी और उसकी सच्चाई दोनों सामने आने के बाद शांति तो दूर की बात थी, हर किसी के दिल में संदेह था, कि आखिर कौन है वो अंजान शख्स जो नहीं चाहता कि राज राजेश्वर गद्दी पर बैठे।

राजघराना से जुडे़ इस तनावभरे माहौल के बीच, महल के पुराने तहखाने में वो एक जमींन से निकली औरत एक बार फिर तुफान मचाने आ गई था। गौर करने वाली बात ये थी, कि ये हर बार तभी तबाही मचाती थी, जब-जब बात गजेन्द्र की जिंदगी पर आती है। उस पर आज तो गजेन्द्र जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा था।

मुक्तेश्वर अकेले कमरे में बैठा था, उसके सामने उस पुरानी, टूटी कुर्सी पर एक बूढ़ा शख्स बैठा था। दरअसल ये वो शख्स था, जो कुछ दिन पहले ही जयगढ़ जेल से छुटा था और छुटते के साथ ही सबसे पहले गजेन्द्र से मिलने जयपुर जेल गया था और उसे उसके दुश्मनों के खिलाफ सचेत भी किया था। 

उसे 25 सालों बाद घोड़ों के उस पुराने टूटे और उजड़ चुके अस्तबल में देख मुक्तेश्वर एक नजर में उसे पहचान नहीं पाया, लेकिन तभी उन्होंने अपनी बूढ़ी और कांपती आवाज में कुछ ऐसा कहा जिसे सुन उसके कान सुन्न पड़ गए— “मुक्तेश्वर, बेटा कैसा है… जानता हूं जानता हूं… तुम्हें शायद मेरा नाम याद न हो, लेकिन मैं वह जादूगर बाबा हूँ, जिसने तुम्हें बचपन में छुपकर ट्रेनिंग दी थी।”

जादूगर बाबा का नाम सुनते ही मुक्तेश्वर चौक जाता है, और आंखे फाड़-फाड़ कर उन्हें देखते ही फूट-फूट कर रोने लगा— “तुम… वो? लेकिन तुम अचानक यहां वापस कैसे आ गए? उस रात के बाद से मैं तो सोचता था कि तुम हमेशा के लिए खो गए हो।”

मुक्तेश्वर की ये बात सुनते ही जादूगर बाबा ने पहले गहरी सांस ली और फिर कहा— “हां, मैं गायब हो गया था—लेकिन तुम्हारे पिता गजराज सिंह के दहशत और दबाव की वजह से। उन्होंने मुझे पैसे दिए थे कि मैं अपना नाम मिटा दूं और उस रात जो कुछ हुआ उसका इल्जाम अपने सर लेकर जेल में उस गुनाह की सजा काटने चला जाऊं। और तब से आज तक मैं जेल में ही था।”
 
जेल की बात सुन मुक्तेश्वर फिर टूट गया और बोला— “आप जानते है जादूगर बाबा, इन लोगों ने मेरी तरह मेरे बेटे को भी रेस फिक्सिंग केस में फंसा दिया है और वो जेल में है”

मुक्तेश्वर को टूटता देख जादूगर बाबा अपनी सीट से उठ जाते हैं, और उसके कंधों पर हाथ रख कहते है— "मैं तेरे बेटे गजेन्द्र से मिल चुका हूं। तू उसकी चिंता मत कर, उसकी सच्चाई और उसकी मासूमियत उसके सबसे बड़े हथियार है। तू देखना वो अपनी बेगुनाही भी साबित करेगा और इस गद्दी पर भी लौटेगा।"

जादूगर बाबा की ये भविष्यवाणी सुन मुक्तेश्वर के चेहरे पर तो सुकून आ गया, लेकिन उसके अंदर की बेचैनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। तभी जादूगर काका ने एक और बड़ा राज खोला और बताया— “ये ले मुक्तेश्वर, आज मैं तुम्हारे सामने वह पुराना जर्नल लेकर आया हूँ, जो तुम्हारे पिता की सबसे बड़ी गुप्त साजिश का सच खोलता है। और हां वो जो औरत, जमींन में दफनाई गई थी ना, उसका राज भी इसी से जुड़ा था।”

मुक्तेश्वर ने जादूगर बाबा के हाथ से उस पुराने, धूल जमें जर्नल को लिया और खोलकर पढ़ने लगा। दरअसल वो कोई जर्नल नहीं बल्कि एक पुरानी डायरी थी, जिसमें कई साल पुरानी हुकूमत, चोरी-छुपे हुए सौदे, और गजराज सिंह का काला सच सब दर्ज था। खास तौर पर अवैध घोड़ों के व्यापार से जुड़ा काला सच, जो राजघराने की नींव हिला सकता था। मुक्तेश्वर के चेहरे पर हैरानी देख जादूगर बाबा ने अपनी बात फिर दोहराई और कहा— "ये वो राज है, जिसे गजराज सिंह ने दबा रखा था, और तुम जानते हो इन सब में तुम्हारी बहन प्रभा ताई का वो लालची-निक्कमा पति राघव भौसले शामिल है। इसके जरिये तुम्हारा गजेन्द्र जेल से तो नहीं छूटेगा, पर तुम यहां राजघराना में उसके वापसी के रास्तें जरुर खोल सकते हो। मुक्तेश्वर..."

ये सुन मुक्तेश्वर की आंखों में आंसू आ गए। वह बोला— “इतने सालों से मैं अपने पिता की छवि को लेकर अंधेरे में था, और ये डायरी मेरे लिए उजाले की किरण है। अब वक्त आ गया है कि ये सच सबके सामने आए। आप जानते हैं, वो पहले मेरे बेटे गजेन्द्र को पैसों और राजघराना की चकाचौंध दिखा यहा ले आये और फिर यहां आने के बाद एक तरफ उसे रेस फिकसिंग में फंसा दिया और दूसरी तरफ यहां उनकी नजायज बेटी रेनू… हां-हां वहीं उस नौकरानी शारदा की बेटी, वो अपना हक जमाने आ गई है।”

शारदा का नाम सुनते ही जादूगर बाबा के चेहरे का रंग उड़ गया और उन्होंने मुक्तेशर को जल्द से जल्द गजेन्द्र को जेल से छुड़ाने के तरीके तलाशने को कहा— “अब तुम्हें सावधान रहना होगा मुक्तेश्वर। राज राजेश्वर तुम्हारे हर कदम पर नजर रखे हुए है। वो खुद को राजा बताता है, पर असली ताकत इस डायरी में है। इसे सुरक्षित रखो, और सही वक्त पर इसे सामने लाना।”
 
जादूगर बाबा मुक्तेश्वर को आगे और कुछ कहते या बताते उससे पहले ही उसका फोन बजता है— "हैलों, कौन?”
 
“अंकल मैं विराज बोल रहा हूं, गजेन्द्र की हालत बहुत गंभीर है

ये सुनते ही मुक्तेश्वर औंधे मुंह जमींन पर गिर जाता है, और महल में ये खबर तेज़ आंधी की तरह फैल जाती है। दूसरी ओर गजेन्द्र की हालत अभी भी नाजुक थी, और अस्पताल के डॉक्टर लगातार उसकी जान बचाने की कोशिश में लगे थे। रिया और विराज उसके ऑपरेशन वार्ड के बाहर खड़े थे, उनकी आंखों में उम्मीद और डर दोनों झलक रहे थे। तभी विराज ने धीरे से रिया का हाथ थामा— “ये लड़ाई आसान नहीं होगी, पर मैं तुम्हें वादा करता हूं…मैं कभी तुम्हारा और गजेन्द्र का हाथ नहीं छोड़ूंगा।”
 
रिया की आँखों से आसुओं की धारा बहने लगती है और वो एकाएक विराज से लिपट जाती है और फूट-फूट कर रोने लगती है। इसके बाद वो अपनी कांपती और डरी हुई आवाज में पूछती है— “विराज, गजेन्द्र ठीक तो हो जायेगा ना…? अभी तो हमे उसकी बेगुनाही के सबसे अहम गवाह वो जादूगर बाबा मिले थे, अब अगर उसे ही कुछ हो गया… तो हम गवाहों और सबूतों का क्या करेंगे… कहीं ये खूनी राजघराना महल इस बार मुझसे मेरा प्यार तो नहीं छीन लेगा ना… जैसे मुक्तेश्वर अंकल से उनका प्यार जानकी आंटी को छीन लिया था। मुझे बहुत डर लग रहा है विराज”

विराज के पास फिलहाल रिया के इस डर और इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। उस पर वो खुद भी गजेन्द्र की हालत को देखकर डरा हुआ था। ऐसे में उसने रिया को अपनी दोनों बाहों के बीच कसकर गले लगाते हुए बस हम्म… बोलते हुए बात को टाल दिया।

दूसरी ओर, महल में राज राजेश्वर ने अपनी चालों को अब तेज धार देना शुरु कर दिया था। क्योंकि वो जानता था राजघराना की गद्दी पर हक जमाने का ये सबसे अच्छा मौका था। एक तरफ उसका बूढ़ा बाप गजराज इस समय बिस्तर पर बिमार था, तो वहीं दूसरी ओर इस घर का एकलौता वारिस गजेन्द्र जेल में हुई पिटाई की वजह से जिंदगी और मौत के बीच झूल रह था।

ऐसे में वह राजगढ़ की अपनी जनता के सामने ‘अपनी’ वसीयत तो पहले ही पेश कर चुका था, बस अब वक्त था सिंघासन पर बैठने का... लेकिन फिलहाल उसके अंदर का डर और उसकी जिंदगी के सच की घुटन उसे अभी भी लगातार बेचैन कर रही थी। भीखू, जो राज राजेश्वर का सिर्फ सबसे करीबी नौकर ही नहीं बल्कि उसका प्यार भी था… वो भी इन दिनों उसके खिलाफ अंदर ही अंदर कोई साजिश रच रहा था।

राज राजेश्वर के साथ अपने रिश्तें की सच्चाई सामने आने के बाद इन दिनों भीखू की आँखों में अब एक नयी चमक थी। ऐसा लग रहा था कि कहीं ना कहीं उसके मन में भी कोई बड़ा खेल चल रहा था, जिसे राज राजेश्वर तक भी समझ नहीं पा रहा था।

गजेन्द्र की हालत गंभीर होने की खबर मिलने के बाद से जहां मुक्तेश्वर बेहोश पड़ा था, तो वहीं राज राजेश्वर अपने कमरे में बैठा था, और अपने दिमाग की गहरी गलियों में खोया हुआ खुद से ही बातें कर रहा था— “ये खेल अब बड़ा हो चुका है, लेकिन जादुगर बाबा के लौटने से मुक्तेश्वर के हाथों में एक ऐसा हथियार है, जो मेरी सारी चालों को नाकाम कर सकता है। वो बीस साल पुरानी उस रात का सच जानते है, और अगर वो बाहर आया, तो मेरी हर चाल सबके सामने खुले ताश के पत्तों की तरह बिखर जायेगी।”

तभी उसने भीखू को बुलाया और बोला— "तैयार रहो, अब असली लड़ाई शुरू होने वाली है। राजघराना सिर्फ राज़ नहीं, एक लड़ाई है, जहां जीतने वाला ही असली राजा कहलाएगा। जादूगर बाबा लौंट आये है..."

भीखू ने मुस्कुराते हुए कहा— "सरकार, मैं तैयार हूं। इस बार इस खेल की जीत हमारी होगी।"

इतना कह भीखू एक अजीब सी टेढ़ी मुस्कान हंसता है, जिसके पीछे छुपी उसकी साजिश भरी नजरें बगावत का ऐलान कर रही थी, लेकिन आगे क्या होने वाला था ये कोई नहीं जानता था।
 
तभी अपने कमरे में पिछले तीन घंटों से बेसूध पड़े मुक्तेश्वर को होश आ गया। वो आंखें खुलते के साथ अस्पताल जाने और गजेन्द्र से मिलने की जिद्द करने लगा, लेकिन जादूगर बाबा ने उसे रोक लिया। इसके बाद उन्होंने मुक्तेश्वर को अपनी अगली योजना के बारें में बताया। साथ ही कहा कि डायरी की सच्चाई को धीरे-धीरे बाहर लाने के लिए उन्होंने पुरानी यादों और पुराने साथियों से मदद मांगनी शुरू कर दी है।

"सुनों मुक्ति ये समय धैर्य और समझदारी का है, हमे इसे सही वक्त पर एक विस्फोट की तरह सबके सामने लाना होगा, ताकि राज राजेश्वर की सारी चालें बेकार हो जाएं।"

मुक्तेश्वर ने आह भरी और बोला— "मैं तैयार हूं, बाबा। अब ये राजघराना फिर से अपने असली सूरज की रोशनी देखेगा। पर मेरा बेटा… वो"

मुक्तेश्वर आगे कुछ कहता उससे पहले जादूगर बाबा ने समझाया— “उसका इस गद्दी पर बैठना अगर नियति ने तय कर लिया होगा, तो कोई कुछ नहीं कर सकता… तू बस वक्त और ईश्वर के इंसाफ पर सब छोड़ दे।”

ये सुनते ही मुक्तेश्वर शांत हो गया और इस विश्वास के साथ, दोनों ने अपनी नई लड़ाई की शुरुआत की जीत सच की ही होगी, लेकिन तभी फिर मुक्तेश्वर का फोन बजा, उसने फोन की स्क्रीन पर देखा तो विराज का नंबर फ्लैश हो रहा था...।

मुक्तेश्वर ने कांपते हाथों से फोन उठाया, दूसरी ओर से विराज की भारी-रूदन भरी आवाज— “अंकल एक तस्वीर भेजी है, देख लीजिये… मै आपसे माफी चाहता हूं अंकल…”

इतना कह विराज फोन काट देता है, दूसरी ओर मुक्तेश्वर जैसे ही विराज की भेजी उस तस्वीर को खोलता है उसे देख उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं...और वो लड़खड़ता हुआ जमींन पर गिर जाता है… और फोन उसके हाथ से फिसलकर दूर जा गिरा। फोन की स्क्रीन पर अभी भी वही तस्वीर चमक रही थी— एक खून से सना चेहरा, जिसकी आंखें अब भी खुली थीं।

 

आखिर क्या था उस तस्वीर में…? क्या गजेन्द्र मर गया...? 

क्या मुक्तेश्वर अपने पिता गजराज सिंह के काले राज की सच्चाई को दुनिया के सामने ला पाएगा? 

जादूगर बाबा की रहस्यमयी डायरी राजघराने की सियासी जंग में नया मोड़ दे पायेगी और राज राजेश्वर के झूठी विरासत के दस्तावेज के खेल की पोल खुलेगी?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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