रेनू की मां शारदा की मौत के साथ राजघराना में हंगामा मच गया था। उस पर रेनू के गुस्से और उसकी बदले की कसम ने सबको खौफ में डाल दिया।

ऐसे में जहां एक तरफ सब अपने कमरे में बैठे थे, तो वहीं रात के ढाई बजे, राजमहल की छत पर... रेनू लाल चूनर ओढ़े खड़ी है, सामने जलती मशालें और हाथ में अपनी मां शारदा की टूटी चूड़ियाँ… और उसके ठीक पीछे रिया मोबाइल कैमरा ऑन किए खड़ी उसकी इस हरकत का वीडियो बना रही थी।

अपनी मां की मौत के गहरे सदमें में डूबी रेनू आधी रात, हवाओं से बाते कर चिल्ला रही थी— "तुमने मेरी मां को मार डाला ना, अब मैं तुम्हारा और तुम्हारे खानदान का अस्तित्व मिटा दूंगी। ये वीडियो आज रात ही मीडिया के पास जाएगा, और कल सूरज उगने से पहले इस राजघराने का काला इतिहास हर न्यूज चैनल पर चमकेगा। फिर देखती हूं कौन सी शान और दौलत तेरे इस खानदान को बर्बाद होने से बचाती है गजराज सिंह..."

रेनू की बात सुन रिया धीमे से उससे सवाल करती है— "क्या तुम वाकई तैयार हो रेनू? इसके बाद पीछे हटना मुमकिन नहीं होगा।"

ये सुनते ही रेनू रिया की तरफ पलटती है। उसकी आंखें रो-रोकर लाल हो गई थी, तभी वो अपने आंसू पोछ चुपचाप अपनी मां की चूड़ियाँ महल की सबसे ऊँची दीवार से नीचे फेंक देती है और चीखते हुए कहती है— "जो औरतें इस दीवार के पीछे घुट-घुट के मरीं, वो मेरी मां थी…मां। तुम्हें पता है रिया मेरी मां इस दीवार के पीछे पिछले बीस सालों से जिंदा थी, लेकिन फिर भी मैंने इस गजराज की वजह से अनाथो वाली जिंदगी गुजारी है।"

रेनू की दर्दभरी दास्तान सुन रिया कांप जाती है और चुपचाप बस वीडियो की रिकॉर्डिंग करने लगती है। कुछ 3 घंटे के वीडियो में रेनू गजराज से लेकर अपनी मां की मौत तक की पूरी कहानी सुना देती है। 

दूसरी ओर ठीक इसी वक्त जयपुर सेंट्रल जेल में एक अलग ही तैयारी चल रही होती है जब सुबह 6:00 बजे गहरी नींद में सो रहे गजेन्द्र को एक सिपाही झकझोरता है— "उठो! तुम्हें कोर्ट ले जाया जा रहा है। केस की सुनवाई आज तय हो गई है।"

गजेन्द्र चौंक जाता है, कि इस तरह अचानक कोर्ट की सुनवाई, आखिर माजारा क्या है। जब आंखें खोलकर वो देखता है तो सामने विक्टर मुस्कुरा रहा था— “तैयार हो जा शेर… आज तुझे कुछ ऐसी चीज़ मिलेगी जो तेरे केस की धज्जियाँ उड़ा देगी।”
 
विक्टर की ये बात सुम गजेन्द्र तुरंत पलट कर पूछता है— "क्या तुम कल रात सच कह रहे थे, तुम मेरी मदद करोगे… मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा, लगता है कल से ही भगवान मेेर साथ हो गया है।"

गजेन्द्र बहुत खुश था। विक्टर की मदद से उसके अंदर रेस फिक्सिंग केस में इंसाफ और रिहाई की उम्मीद फिर से जाग उठी थी। ठीक इसी वक्त राजघराना में डॉक्टर गजराज का चैकअप कर रहे थे। डॉक्टरों का कहना था कि गजराज को कल राज महल में जो हुआ उससे गहरा शॉक लगा है। फिलहाल उन्हें लंबा आराम करने की जरूरत है।

राज राजेश्वर बगल में बैठा डॉक्टर की सारी बाते सुन खामोश रहता है, लेकिन उसकी आंखों का गुस्सा और उसके अंदर के सवाल उसके चेहरे पर साफ नजर आते है। 

ऐसे में जैसे ही डॉक्टर वहां से चले जाते हैं, राज राजेश्वर अपने पिता गजराज को झकझोरते हुए पूछता है— "पिता जी, अब तो बता दीजिए कि रेनू की मां को किससे खतरा था? किसे डर था उसके बोलने से? आखिर उन्हें किसने मारा? भूलिये मत रेनू ने कसम खाई है, कि अगर उसकी मां का कातिल खुद सामने नहीं आया तो वो एक-एक कर पूरे राजघराना के लोगों को मौत के घाट उतार देगी।"

गजराज एक पल को कांपता है, फिर बुदबुदाता हुए कहता है— "तहखाने की बंद तिजोरी… शारदा देवी की डायरी… अगर वो खुल गई, तो सब खत्म हो जाएगा, लेकिन उसकी मौत और उसके कातिल का राज़ भी उसी में मौजूद है।"

ये सुनते ही राज राजेश्वर भड़क उठता है और चिल्लाकर कहता है— "फिर मैं उसी डायरी को हथियार बनाऊंगा, और आपके हर पाप का हिसाब इस महल की दीवारों पर चिपकाऊंगा! मैं आपके किए की सजा इस घर के हर लोगों को नहीं भुगतने दूंगा। समझे आप..."

इतना कह राज राजेश्वर तहखाने में जाता है और शारदा देवी की डायरी को ढूंढने लगता है। वहां पड़ी लकड़ी की टेबल से लेकर शारदा के कपड़ों और अलमारी तक हर एक जगह को खंगाल डालता है, लेकिन उसे वो डायरी कही नहीं मिलती। ऐसे में वो पागलों की तरह उस तहखाने के हर सामान को यहां-वहां हवा में फेंकने लगता है। 

दूसरी तरफ रेनू, रिया के साथ अपनी मां शारदा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेने जयपुर सिटी हॉस्पिटल पहुंच जाती है, जहां उसे देखते ही डॉक्टर काफी सीरियस हो जाता है, और कहता है— "शारदा देवी की मौत ज़हर से हुई है, जो रात 8:30 बजे चाय में मिलाया गया था। लेकिन खास बात ये है कि उनके शरीर पर संघर्ष के निशान भी हैं… जो ये साफ-साफ बताते है कि वो जानती थीं कि वो मरने जा रही हैं और उन्हें मारने वाला उस वक्त उनके सामने ही था।"

ये सुनते ही रेनू का गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुंच जाता है— "तो उन्होंने किसी को देखा होगा… उस आदमी को जिसने उन्हें ज़हर दिया था और पक्का उन्होंने अपने बचाव में ही हाथ-पैर चलाए होंगे, जिसकी वजह से उनकी चुड़िया टूटी थी!"

और तभी वो डॉक्टर कुछ ऐसा कहता है, जिसे सुन रिया और रेनू दोनों के कान खड़े हो जाते हैं— “मरने से पहले उन्होंने एक चिट्ठी लिखी थी।”
 
इतना कह डॉक्टर धीरे से लिफाफा आगे करता है, जिसे चारों और देखने के बाद रिया ले लेती है। तभी डॉक्टर कहता है, "ये उनके ब्लाउज में छिपाया गया था….इसमें शायद किसी का नाम लिखा है।"

रेनू रिया के हाथ से वो कागज ले लेती है और खोलती है, उस पर सिर्फ दो शब्द लिखे थे— "भानू... तहखाना’"

उसे पढ़ते ही रिया और रेनू दोनों हॉस्पिटल से तेज रफ्तार में भागती हुई अपनी कार में बैठती है और उसे सीधे राजघराना महल की तरफ दौड़ा देती है। 

दूसरी तरफ, ठीक उसी वक्त गजेन्द्र की कोर्ट में पेशी होती है। सामने सरकारी वकील, गजेन्द्र के खिलाफ तेज़ दलीलें दे रहा था— “जज साहब, ये आदमी सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक देशद्रोही, साजिशकर्ता और धोखेबाज़ है, जो अपने परिवार की सत्ता हासिल करने के लालच में मानवता की सारी हदे भूल बैठा है।”
 
गजेन्द्र अचानक खड़ा होते बोला— “जज साहब! एक गवाह है, जो आज ये साबित करेगा कि इस केस की सारी स्क्रिप्ट किसी और ने लिखी थी। और वो गवाह यहीं का है…जेल का।”
 
तभी दरवाजे से विक्टर दाखिल होता है, हाथ में एक पुराना रिकॉर्डर लिए, गजेन्द्र का वकील विराज प्रताप राठौर विक्टर को कटघरे में बुलाने की इजाज़त जज से मांगता है, जिसके बाद कोर्ट के कटघरे में खड़ा विक्टर बोलना शुरु करता है— “नाम विक्टर… और ये रही उस रात की रिकॉर्डिंग, जब भानू ने खुद कुबूला था कि राघव के कहने पर उसने रेस फिक्सिंग की प्लानिंग की, और गजेन्द्र को फंसाया था।”

कोर्ट में तुरंत उस रिकॉर्डिंग को लाइव चलाया जाता है, आवाज हू-बू-हू राघव से मेल खाती है। ऐसे में जज साहब उस वॉइस क्लिप की जांच के लिए उस ड्राइव को फोरेंसिक टीम को देने आ आदेश सुना देते हैं। जिसके बाद गजेन्द्र चैन की सांस लेता है और विक्टर का आंखों ही आंखों में धन्यवाद करता है। 

दूसरी ओर कोर्ट में उस वॉइस नोट के चल जाने से सन्नाटा छा जाता है और तभी जज साहब केस को अगली सुनवाई के लिए टालते हुए अगली तारीख पर फैसला लेने का ऑर्डर देकर वहां से चले जाते हैं।।

गजेन्द्र अपनी इस खुशी को अपने प्यार रिया और अपने पिता मुक्तेश्वर के साथ बांटना चाहता था। लेकिन रिया इस वक्त रेनू के साथ छुपते-छुपाते तहखाने में कुछ अलग ही तालाश कर रही थी।

काफी देर तक तहखाने के कौने-कौने को तलाशने के बाद भी जब रेनू और रिया को कुछ नहीं मिलता, तो वो वहां से जाने लगते है। कि तभी रिया का पैर फिसल जाता है और वो झटके से बाई तरफ की दीवार से जा टकराती है, जो रिया के हल्के धक्के से ही ढ़ह जाती है। 

ये देख रेनू चौक जाती है, दोनों दीवार के उस पार जाते है, तो वहीं उसके हाथ एक तिजौरी लगती है, जिसमें ताला नहीं लगा होता। रेनू उसे तुरंत खोलती है, तो देखती है कि उसमें एक डायरी रखी है। 

रिया फटाक से उस डायरी को खोलती है और पढ़ती है….

"23 जून 1999 

आज मैंने गजराज सिंह को एक नौकरानी के साथ देखा… और उसी दिन मैंने गजराज की नाजायज औलाद रेनू को जन्म दिया।"

ये सुनते ही रेनू कांपते हाथों से डायरी लेती है और कहती है— "य...य...ये डायरी मेरे जन्म और मेरे नाजायज बाप की कहानी का सबूत है। और अब ये डायरी बनेगी उनके खिलाफ चार्जशीट… और मैं बनूंगी इस कहानी की वो जलती लौ जिसमे जलेगा मेरा नाजायज बाप गजराज।"

रिया और रेनू की सारी बातें दरवाजे के पीछे अंधेरे में छिपकर खड़ा राज राजेश्वर सुन लेता है। ऐसे में वो उसी सेकेंड ये प्लान करता है कि वो किसी भी हाल में रेनू और रिया को इस डायरी के साथ पुलिस स्टेशन तक नहीं पहुंचने देगा। 

वो उन दोनों के पास जाकर उनसे उस डायरी को छीनने ही वाला होता है, कि तभी रेनू के फोन की घंटी बजने लगती है। वो फोन की स्क्रीन पर देखती है तो लिखा नजर आता है— "अननोन कॉलिंग"

ऐसे में रेनू झुंझलाकर फोन उठाती है और कहती है— "कौन?"

दूसरी तरफ एक अजनबी की फुसफुसाती आवाज़ आती है— "तेरी मां मरी नहीं… जिंदा है। उसे देखना है तो प्रभा ताई का पीछा कर… देर मत करना, वरना इस बार पक्का खो देगी अपनी मां को।"

रेनू सुन्न रह जाती है। रिया घबराई नज़रों से पूछती है— "क्या हुआ? किसका फोन था…क्या कह रहा था?"

रेनू कांपती आवाज़ में बुदबुदाती है— "अगर मेरी मां जिंदा है… तो ये खून किसका हुआ? क्या हमे उस लाश का डीएनए टेस्ट भी करवाना चाहिए?"

ये ही बड़बड़ाती हुई रेनू तुरंत उस डायरी को वापस वहीं छिपा देती है और फटाफट रिया को अपने साथ चलने के लिए कहती है। दोनों राजघराना के एक कौने में खड़े रात 11 बजे प्रभा ताई के बाहर निकलने का इंतजार करते हैं। रिया बार-बार रेनू से वहीं सवाल करती है, लेकिन रेनू फिलहाल कुछ नहीं बताती और बस साथ देने के लिए कहती है।

तभी प्रभा ताई अकेली, एक काली शॉल ओढ़े, महल से निकलती हैं। उनकी चाल में डर नहीं, बल्कि वर्षों पुराना बोझ जो उनकी लड़खड़ाती चाल में साफ नजर आता है। वो तुंरत एक पुरानी जीप में बैठकर निकल जाती है, रेनू भी रिया के साथ कार में सवार होकर उनकी जीप का पीछा करती है। जीप राजगढ़ से 20 किलोमीटर दूर एक वीरान कोठी पर पहुंच कर रुक जाती हैं, जिसके बाद प्रभा ताई जीप से निकल उस वीरान कोठी के अंदर जाती है। 

दूसरी ओर जीप से कुछ दूरी पर कार को रोक कर छुपी बैठी रिया और रेनू दोनों प्रभा ताई का पीछा करती है। तभी रिया धीमे से फुसफुसाती है— "क्या लगता है, किससे मिलने आई है?"

रेनू की आँखों में नमी है… गुस्से से ज्यादा उम्मीद… वो अब भी रिया के सवालों का जवाब नहीं देती।

अंदर प्रभा ताई घुटनों के बल बैठकर एक बूढ़ी औरत के हाथों को थामे कहती हैं— "शारदा, तू जिन्दा है, ये राज़ जब भी किसी को पता चलेगा… सब कुछ खत्म हो जाएगा। लेकिन मेरी बात याद रखना, गजराज को नहीं पता चलना चाहिए, नहीं तो वो सच में तुझे मार डालेगा।"

रेनू दूर खड़ी ये नज़ारा देख टूट जाती है। चेहरा झुर्रियों से भरा, लेकिन आँखें वैसी ही तेज़ — जीवन से भरी। 24 घंटों बाद एक बार फिर अपनी मां को अपनी आंखों के सामने जिंदा देख रेनू की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं, होंठ कांपते हैं— "म..म...मां..."

ठीक उसी वक्त जेल में अकेले में गजेन्द्र दीवार पर बार-बार रिया का नाम लिख उसे चूम रहा था, कि तभी विक्टर वहां आया… और गजेन्द्र को खुद देख बोला— “भाई, तेरे केस की स्क्रिप्ट तो किसी ने इतनी गहराई से लिखी है, कि इसमें सिर्फ तेरे नहीं, कई जिंदगियों की कब्रें खुदी हैं।”

ये सुनते ही गजेन्द्र पलटता है और विक्टर की बात का जवाब देते हुए कहता है— "तो अब वक्त आ गया है कि हम भी वो कलम पकड़ें जिससे कहानी पलटेगी। मुझे मेरे हर दुश्मन का नाम चाहिए विक्टर… सबका! राजघराना के भीतर बैठे उसके दुश्मनों ने बहुत खेल खेल लिए… बस अब और नहीं। तुम मेरी मदद करोगे ना…?"

सवाल पूछ गजेन्द्र विक्टर के जवाब का इंतजार करने लगता है। तो वहीं उस काली अंधेरी कोठी में रेनू भी प्रभा ताई पर चिल्ला पड़ी है और पूछती है— "क्यों छिपाया आपने मां को यहां...? और क्यों रची आपने मेरी मां की झूठी मौत की कहानी? आखिर किससे बचा रहीं थीं आप मेरी मां को? या फिर कुछ और ही है आपके इरादें?"

एक साथ इतने सारे सवाल सुन प्रभा ताई की आँखें डबडबा जाती हैं, लेकिन वो जानती थी कि रेनू के सारे सवाल जायज़ थे और नफरत भी… क्योंकि दोनों के बीच रिश्ता ही कुछ ऐसा था। रेनू प्रभा ताई के पिता की रखैल शारदा की बेटी थी। ऐसे में अपने बाप की रखैल को मौत से बचाना, ऐसा लग रहा था कि प्रभा ताई जैसे को धरमातमा बन गई हो।

लेकिन तभी प्रभा ताई ने मुंह खोला और कुछ ऐसा बोला जिसने सबके होश उड़ा दिये— "मैंने उस दिन अपने पिता गजराज को कहते सुना था…'अगर शारदा अदालत पहुंची, तो उसकी लाश को ही पहुंचाऊंगा'… उसी दिन मैंने ये सारा खेल रच दिया, और शारदा की इस झूठी मौत का ड्रामा खेल वहां एक दूसरी औरत की लाश रख दी।"

प्रभा ताई की ये बात सुन रेनू फूट-फूट कर रो पड़ती है और ना चाहते हुए भी अपनी सौतली बहन प्रभा ताई को गले लगा लेती है। जहां एक तरफ राजघराना से सगे-सौतले खून का मेल-मिलाप हो रहा था, तो वहीं दूसरी ओर प्रभा ताई का वही चालाक पति राघव भौंसले एक नया खेल रच रहा था, कि तभी उसका फोन बजा। राघव ने फोन निकाला तो देखा कि फोन पर एक SMS आया है…

“जिसे तूने मरा समझा, वो ज़िंदा है… और जब वो बोलेगी, तब तेरी कब्र खुदेगी। उलटी गिनती शुरू कर, राघव भौंसले…”

उस SMS को पढ़ते ही राघव का चेहरा सफेद पड़ जाता है, और वो दहाड़ता है— "कौन है ये...? कौन खेल रहा है मेरे साथ...?"

 

आखिर क्या होने वाला है राघव भौंसले के साथ

किसने भेजा है राघव को ये SMS? 

क्यों प्रभा ताई जा रही है अपने ही पिता के खिलाफ? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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