सन्नाटे में अक्सर वो आवाज़ें गूंजती हैं, जिन्हें कोई सुन नहीं पाता। और राजघराना तो वो ठिकाना था, जहां हर ईंट के पीछे कोई राज, और हर चुप्पी के नीचे कोई चीख दबी थी। वहां आज फिर कुछ ऐसा घटने वाला था, जो सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि रिश्तों की हड्डियों को भी तोड़ने वाला था, क्योंकि राघव भौंसले ने ठान लिया था कि वो गजराज के बेटों को ही अब आपस में लड़वायेगा।
 
जहां एक तरफ राजघराना की ओर राघव नाम का नया तूफान बढ़ रहा था, तो वहीं दूसरी ओर उसी वक्त, जयपुर सेंट्रल जेल में जहां का अंधेरा हर रोज़ गजेन्द्र की रिहाई की उम्मीद खा जाता था, वहीं आज एक अलग सी रोशनी उतर आई थी।

जेल की कोठरी नंबर 17 में बैठा गजेन्द्र, जिसे उसके अपनों ने ही साजिशों के जाल में फंसा दिया था, आज अपनी हथेली में एक चिट्ठी और एक पुरानी पेन ड्राइव थामे बैठा था। तभी बाहर खड़े कॉन्सटेबल ने उसे बताया — "तुझसे मिलने एक लड़की आई है, रिया नाम बता रही है अपना... जल्दी कर और मुलाकात वाली सेल में आ जा...।"

ये सुनते ही गजेन्द्र की आंखों में एक चमक दौड़ गई। फटाफट उसने अपनी जेल के अंदर रखी स्टील की थाली को अपने जेल के कपड़ों से साफ कर उसमें अपनी शक्ल देखी। उसके बाल बढ़ चुके थे, चेहरा थक गया था, लेकिन आंखों में एक लौ थी — प्यार की, उम्मीद की… और इंसाफ की, जिसे लिए वो रिया से उसी हाल में मिलने चल देता है और खुद से फुसफुसाते हुए कहता है — "रिया मुझे पहचान तो जायेगी ना, उसका नाम सुनकर ही मेरी सांसों में तेजी आ गई है।"

और ठीक उसी समय जेल के गेट पर खड़ी रिया — हाथ में चूड़ियों की झंकार, आंखों में बेचैनी, और दिल में वो तूफान… जो किसी को भी मिटा सकता था।

रिया को देखते ही गजेन्द्र को जयपुर सेंट्रल जेल का वो बंद मुलाकात वाला कमरा किसी खूबसूरत रेस्टोरेंट जैसा लगने लगता है। उसके अंदर रिया को देखते ही बेचैनी और बढ़ जाती है….दरअसल रिया सिर्फ वो लड़की नहीं है, जो उसके केस में एक जर्नलिस्ट की तरह उसकी मदद कर रही है, बल्कि वो उसका सच्चा पहला प्यार है, जो रेस फिक्सिंग केस की दुश्मनी के साथ शुरु हुआ और अब प्यार की लौ के साथ जल रहा है। 

तभी रिया गजेन्द्र की तरफ नम आंखों से देखती है और अपने कांपते हाथों से उसके रूखे हाथों के छूती है, जिससे गजेन्द्र के पूरे शरीर में सिरहन सी दौड़ जाती है। तभी होंठों पर थरथराती बेचैनी, और आँखों में ढेरों सवाल लिए रिया अपना मुंह खोलती है— "कैसे हो गजेन्द्र?”

रिया एक टक बस गजेन्द्र को देखे जा रही थी। गजेन्द्र के चेहरे की हड्डियाँ उभर आई थीं, पर उसकी आँखों में अब भी वही जिद थी… खुद को बेगुनाह साबित करने की। ये देख रिया ने अगला सवाल किया— "तुम्हें किस बात की सज़ा दी जा रही है, गजेन्द्र? एक सच्चे खिलाड़ी होने की… या फिर उस खूनी राजघराना हवेली से तुम्हारा खून का नाता होने की… चलों ना, ये सब छोड़कर कही दूर निकल जाते हैं। जहां सिर्फ तुम-मैं और मुक्तेश्वर बाबा होगें।?"

रिया की बात और उसकी बेचैनी देख गजेन्द्र धीरे से मुस्कुराता है और कहता है—  "मुझे लगता है… मेरी सज़ा ये नहीं कि मैं जेल में हूँ… मेरी सज़ा ये है कि तुमसे दूर हूँ…"

ये सुनते ही रिया की आँखें छलक उठीं। उसने दरवाज़े के उस पार से अपनी उंगलियाँ उसकी हथेलियों पर रख दीं और बोलीं— "मैं हर बार सोचती थी कि तुम्हारे उस खूनी खानदान से कहीं दूर भाग जाऊं, जहां हर रात किसी नई औरत के जज्बात से खेला गया है... लेकिन हर बार मेरे दिल ने कहा, 'तुमने किसी का कुछ नहीं छीना… सिर्फ प्यार किया है, और तुम्हें मैं इस सिंह खानदान के नाम और बदनामी दोनों से आजाद करा कर रहूंगी।'"

गजेन्द्र रिया की उन भरोसे भरी बातों और प्यार भरी आंखों में देख खो जाता है और धीरे से कहता है—  "और तुम्हारा यही प्यार मुझे जीने की वजह देता है, रिया।"

तभी वहां जेल का गार्ड आ गया और बोला— "समय खत्म हुआ, चलो मैंडम जी बाहर चलो।"

रिया उठने लगी, पर जाने से पहले उसने गजेन्द्र के कान में कुछ फुसफुसाते हुए कहा — "तुम अकेले नहीं हो। सबूत बाहर है, अब सच को कोई नहीं रोक पाएगा।"

रिया ये कहने के लिए जैसे ही गजेन्द्र के कानों के पास गई, वैसे ही गजेन्द्र ने उसके गालों को पकड़ माथे को चुम लिया। रिया ने हल्की सी नजरे झुकाई और शर्माती हुई गजेन्द्र को अलविदा कहकर चली गई।

दूसरी ओर गजेन्द्र भी चेहरे पर सुकून और कोर्ट की अगली सुनवाई में खुद की आजादी के भरोसे की उम्मीद लिए अपने सेल में लौट आया। 

ठीक उसी शाम, राजघराना महल के दीवान-ए-खास हॉल एरिया में, पूरे खानदान को इकट्ठा किया गया, जहां सामने वाली सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठा गजराज सिंह भारी आवाज में बोला— "आज मैं अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता हूं। और ये कोई और नहीं… राज राजेश्वर होगा।"

गजराज के इस ऐलान के साथ पूरा हॉल सन्न हो गया। रेनू, मुक्तेश्वर, यहां तक कि राज राजेश्वर खुद भी चौंक पड़ा। और तभी प्रभा ताई झटके से अपनी सीट से खड़ी हुई और बोलीं— “कल तक तो आप कहते थे, ‘राज राजेश्वर के पास सत्ता को चलाने का दिमाग है पर राज्य और अपने लोगों से प्यार करने वाला दिल नहीं।’ तो आज ऐसा क्या हो गया पिता जी, आखिर अब कौन सा खेल खेल रहे हैं आप...?”
 
गजराज पल भर को झिझका, क्योंकि कुछ दिन पहले उसने यही बात कहते हुए अपने बड़े बेटे मुक्तेश्वर को अपने बाद अपनी गद्दी पर बैठाने का फैसला लिया था और साथ ही ये भी ऐलान किया था कि 25 साल का होते ही मुक्तेश्वर को कुर्सी से उतार गजेन्द्र उसका वारिस बन जायेगा।
 
लेकिन तभी उसने झिझकते हुए प्रभा ताई के सावालों के जवाब में कहा— “राज राजेश्वर कम से कम वफादार है, राजघराने के बारें में तो सोचता है। ये मुक्तेश्वर तो अपने बेटे के लोभ में राजघराना के एक-एक राज़ को कुरेद रहा है।
 
ये सुनते ही गजराज की नाजायज बेटी रेनू गुस्से में फटी पड़ी, “और गजेन्द्र...? जिसे आपने जेल में मरने के लिए छोड़ दिया? क्या वो आपके खून से नहीं, सिर्फ नाम से जुड़ा है?”
 
रेनू की कड़वाहट देख राज राजेश्वर का गुस्सा भी उबाल मारने लगा और वो सख्त आवाज़ में बोला— "मैं इस सत्ता को नहीं चाहता, पिता जी। मैं गजेन्द्र की रिहाई चाहता हूं क्योंकि सच्चाई यही है कि वही इस घर का वारिस है…।"

गजराज कुछ बोल पाता इससे पहले ही एक नौकर दौड़ता हुआ आया और कांपती हुई आवाज में लड़खड़ाते-हांफते हुए बोला, “सरकार… शारदा देवी… रेनू की मां… उनका खून हो गया है!”
 
ये सुनते ही जहां रेनू लड़खड़ा कर जमीन पर बैठ गई, तो वहीं मुक्तेश्वर, राज राजेश्वर, प्रभा ताई संग 70 साल का बूढ़ा गजराज भी दौड़ता हुआ उस नौकर की बताई दिशा में भागने लगा।

पीछे से लड़खडाते सबके साथ भागती हुई रेनू जब मां के शव के पास पहुँची, तो उसकी रूह कांप उठी। खून से सनी चूड़ियां, टूटी बिंदी, और उनकी आखिरी साँस की बेचैनी अभी भी कमरे में तैर रही थी।

रेनू कांपती आवाज़ में बोली— “जिसने मेरी मां को मारा… मैं उसे कानून में नहीं, इतिहास के पन्नों में जलाऊंगी। और गजराज सिंह, अगर तुम्हारा इसमें हाथ निकला… तो याद रखना, तुम्हारे इस राजघराना महल को राख में बदल कर हवा में उड़ा दूंगी। फिर ना रहेगा राजघराना और ना रहेंगी उसके औरतों की आबरू को चीरते कमरे...। तुम देख लेना तुम्हारे खून से लिखूंगी इस कहानी का अंत अगर मेरी मां की मौत में सिंह खानदान के एक भी शख्स का नाम सामने आया तो...।
 
रेनू का ये रूप देख गजराज की रूंह कांप उठी। रेनू की आंखों में रेंगता लाल खून इस बात का गवाह था, कि वो जो कह रही है… उसे कर के दिखायेंगी। ऐसे में वो डर से कांपता हुआ घबराहट में वहीं लड़खड़ा कर गिर गया, जिसके बाद राज राजेश्वर और प्रभा ताई ने उसे संभाला और उसके कमरे में लाकर लेटाते के साथ डॉक्टर को फोन लगा दिया। 

दूसरी ओर रेनू ने भी पुलिस को फोन लगा अपनी मां की मौत की रिपोर्ट दर्ज कर शारदा के शरीर का पोस्टमार्टम करने की डिमांड रख दी। साथ ही कहा कि वो इस केस में हत्या के लिहाज से जांच-पड़ताल चाहती है।

पुलिस ने शारदा के मृत शरीर को कब्जें में लेकर मामले की जांच-पड़ताल शुरु कर दी। शारदा का शरीर तो पुलिस ले गई, लेकिन उसकी हत्या के बाद रेनू के गुस्से के खौफ ने आज की रात राजघराना में किसी की पलक भी नहीं झपकने दी। प्रभा ताई से लेकर बूढ़े गजरात तक ने पूरी रात जागकर हत्यारों का जल्द से जल्द पता लग जाये… ये ही दुआ करते हुए निकाल दी।

दूसरी ओर जेल में, आज रिया से मुलाकात करने के बाद उसकी खुशबू की खुमारी में खोया गजेन्द्र जब सोने जा रहा था, तो एक सिसकती आवाज़ सुनाई दी। वो दौड़कर गया….सामने एक कैदी रस्सी से लटकने ही वाला था, कि तभी गजेन्द्र ने उसे फौरन पकड़ लिया और ज़मीन पर गिरा दिया और उसे एक जोरदार थप्पड़ जड़कर चिल्लाते हुए बोला— "तू खुद को मारकर उन लोगों को जीतने देगा, जो हमारी जिंदगी की कद्र नहीं करते?"

ये सुनते ही वो कैदी फूट-फूटकर रो पड़ा और बोला, "मुझमें कोई दम नहीं रहा…अब ना रिहाई की उम्मीद बची है, ना मेरे बेगुनाह साबित होने की, तो तुम ही बताओं जीकर क्या करूं?"

उसी वक्त वहां एक दुबला पतला, पर चेहरों की परख रखने वाला कैदी — "विक्टर भाई" आया, जिसे जेल में सब जुल्मी भाई कहते थे। उसने गजेन्द्र को गले लगाया और बोला— "आज तूने इसको बचाया… तू अलग है, गजेन्द्र। तेरी रिहाई और बेगुनाही के लिए मैं तेरी मदद करूंगा। मेरी मां कहती है, बुरा काम भी अच्छें अंदाज में करना चाहिए… तो भगवान सजा नहीं मजा देता है। 

“तुम मेरी क्या मदद कर सकते हो, तुम तो एक खतरनाक मुजरिम हो मैंने सुना है।”
 
गजेन्द्र की मासूमियत देख विक्टर हंस पड़ा और बोला— “भानू के बारे में कुछ बातें जानता हूं, जो तुझे फायदा पहुंचा सकती हैं। मेरा साथ दे, तो मैं तुझे सब बताऊंगा, मैं जानता हूं तू रेस फिक्सिंग मामले में फंसा है और उस मामले में भानू राघव भौंसले के दाहिने हाथ का काम करता है। तू चाहे तो मैं उसका कुबूलनामा भी तेरे केस में दिलवा सकता हूं, अब समझा...।
 
विक्टर की बात सुनते ही गजेन्द्र की आँखों में उम्मीद की लौ जल उठी। अब उसके पास वीडियो सबूत के साथ-साथ गवाह की उम्मीद भी जाग उठी थी। तभी वो खुद से बड़बड़ाते हुए बोला— “आज जब से रिया मुझसे मिलने आई है, तब से सब अच्छा ही अच्छा हो रहा है। मेरी रिहाई की उम्मीद अब बढ़ रही है। हे भगवान ऐसे ही मेरा साथ देते रहना।”
 
दूसरी ओर अपनी मां की मौत से टूट चुकी रेनू बिलख-बिलख कर रो रही थी और चिल्ला रही थी, "अगर ऐसे ही दोबारा छोड़कर जाना था, तो तहखाने से बाहर ही क्यों आई तू मां… वहां कम से कम जिंदा तो थी। वैसे गलती मेरी ही है, मुझे तुझे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था, क्योंकि तुझे तो यकीन था कि ये लोग तुझे मार डालेगें। तू मुझे बार-बार कहती रहीं, लेकिन मैंने ही तेरी बात के भार को ना समझा।"

इतना कह रेनू दोबारा दहाड़े मारकर रोने लगी और तभी वहां रिया आ गई। रिया ने रेनू को चुप कराया और बोलो— "देखो रेनू उनकी जिंदगी इतनी ही थी, तुम ये सोचो कि कम से कम अपनी मां के आखरी पलों में तुम उन्हें देख तो पाई। अब उनकी अच्छी यादों को जहन में रखो और उनके कातिलों को मौत का दरवाजा दिखाओ। ये ही तुम उनके प्रति अपना फर्ज निभा सकती हो।"

रिया की बात सुन रेनू ने तुरंत अपनी मां की टूटी चुड़ियों को हाथ में उठाया और राजघराना महल की दीवारों के सामने खड़े होकर चिल्लाकर बोली, "इस बार ताज किसी खूनी के सिर नहीं, इंसाफ की मुट्ठी में होगा। और मैं वो आग बनूंगी जो पूरे राजघराने की नींव हिला देगी। अब मेरी मां की मौत के साथ मरी सारी औरतों के इंसाफ की कहानी शुरू होगी। उल्टी गिनती शुरु कर दे गजराज सिंह… मेरी मां को मारकर तूने अपने खानदान की मौत का पंचनामा लिख लिया है।"

"अब तैयार हो जा। अब कत्ल भी तेरे खून का होगा और कातिल भी तेरा ही खून होगा।"

 

आखिर क्या करने वाली है रेनू? क्या वो सच में ढूंढ पायेगी अपनी मां शारदा के कातिल को? 

क्या सच में ढहने वाली है राजघराना की दीवारे और बहने वाली है सिंह खानदान में खून की लहरें?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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