रेनू की आंखों में उस लाल फाइल की परछाईं नाच रही थी। वो जब से उस तहखाने वाले कमरे से लौटी थी तब से उस फाइल में लिखा “वास्तविक वारिस – रा.ग.ना…” के कोड को समझने की कोशिश कर रही थी। वहीं दूसरी ओर उस वारिस के नाम के नीचे किए गए साइन वाले शख्स का नाम हकीम एफ. को राजघराना का वारिस तय करने का हक किसने दिया…ये मुद्दा अभी भी बड़ा सवाल था।

उस फाइल पर हुए हकीम एफ. के हस्ताक्षर कुछ ऐसे थे, जैसे किसी बीते सौदे की मुहर हो जिसमें राजघराने की आत्मा को गजराज सिंह ने उस शख्स को वारिस बनाने के सौदे की शर्त पर गिरवी रखा हो।

इतना ही नहीं उस फाइल के नीचे एक पुरानी तस्वीर भी दबाई गई थी। वो तस्वीर गजेन्द्र के जन्म से कुछ महीने बाद की थी और उसके पीछे एक नाम लिखा था— “राजेश्वर”

उस लाल फाइल और साथ में उस तस्वीर की गुत्थी रेनू के गले की हड्डी बनती जा रही थी। ऐसे में वो उसे लेकर रात भर सोचती रही और सीने से लगा कर कब सो गई पता उसे पता ही नहीं चला। सुबह जब शोर से उसकी नींद खुली तो उसने झटके से उठ सबसे पहले उस फाइल को छिपाया और फिर भागती हुई राजघराना के हॉल एरिया में पहुंची।

जहां मुक्तेशर आज अपने बाप के आगे एक बड़ा सवाल लेकर खड़ा था और चिल्ला-चिल्ला कर उसे दौहरा रहा था, "आखिर मेरा बेटा ही क्यों पिताजी, मैंने आप से उस दिन पुणे में ही कहा था कि मेरे बेटे को अपने इस खूनी राजघराना की दौलत की चकाचौंध में मत फंसाइये...। पर आपने मेरी एक नहीं सूनी।"

मुक्तेश्वर का गुस्सा देख गजराज ने बड़ी शांति से जवाब दिया और बोला— "वारिस है वो मेरा, आज नहीं तो कल उसे लौटना ही था मुक्तेश्वर"

"और लौटकर क्या हुआ… बताइये ना क्या वो वारिस बना... नहीं। बल्कि आपके इस लालची छोटे बेटे ने मेरी तरह उसे भी झूठे रेस फिक्सिंग के केस में फंसा दिया और अब जेल में उसके साथ हर दिन चाले चल रहा है।"

"कौन सी चाले, कैसी चाले…? तुम कहना क्या चाहते हो मुक्तेश्वर... साफ-साफ क्यों नहीं बोलते।"

अपने पिता की ये बात सुनते ही मुक्तेश्वर आग बबूला हो गया और भड़क कर बोला— "मुझे मेरा बेटा जिंदा जेल से बाहर चाहिए। मैंने उसे सच के साथ रहना और जीना सिखाया है। आपने एक मासूम बीस साल के लड़के को दौलत की धुंध दिखा कर बहला लिया और फिर उसे हर दिन नर्क जैसी जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया। आखिर क्यों?"

मुक्तेश्वर के अंदर के पिता को इस तरह भड़कता देख गजराज डर जाता है और चुप होकर वहां से जाना ही वाला होता है कि तभी वहां रेनू आ जाती है, जो मामले को शांत कराने की जगह उसमें और आग लगा देती है।

“अब बस भी कीजिए आप दोनों और मुक्तेश्वर भाई साहब, आपने इन जैसे अय्याश इंसान पर भरोसा आखिर क्यों किया और कैसे सौंप दिया इन्हें अपना बेटा!”
 
उसकी आवाज़ इतनी कड़ी थी कि पूरा हॉल सन्न रह गया, लेकिन तभी गजराज ने अपनी नाजायज बेटी रेनू को जोर की फटकार लगाई और बोला— "रेनू… तुम बीच में मत आओ। ये हमारा पारिवारिक मामला है।"

रेनू ने एक कड़ी नज़र गजराज पर डाली और तीखें अंदाज में बोलीं — "अब यही तो दिक्कत है गजराज सिंह… कि आप हर रिश्ते को दौलत और ‘परिवार की शान’ के तराजू पर तौलते रहे। लेकिन ये मत भूलिए कि इस घर की नींव खून से नहीं, भरोसे से बनी थी… और आपने और आपके बेटे राज राजेश्वर ने मिलकर अपनी गंदी नियत से उसमें दरार डाल दी है, तो अब इस हवेली की राख में दब कर मरने के लिये तैयार हो जाइये।"

रेनू की ये बात सुन मुक्तेश्वर कुछ कहने ही वाला था, कि तभी रेनू ने जेब से वही लाल फाइल निकाली और दोनों के सामने फेंकते हुए बोलीं।

"ये देखिए। यही है आपकी शान… एक कागज़ पर लिखी गई सौदेबाज़ी की कहानी।"

गजराज और मुक्तेश्वर दोनों चौंक कर फाइल की ओर देखने लगे और तभी रेनू फिर से चिल्लाकर बोलीं— "पढ़िये इसे, और देखिये इसमें लिखा है ‘रा.ग.ना’… और साइन है हकीम एफ. के। तो बताइये गजराज सिंह जी, क्या आपको पता था कि आपने जिस शख्स को आपने एक मामूली टीचर समझा, उसने इस राजघराने के असली वारिस की पहचान अपने हाथ से लिखी है।"

तभी मुक्तेश्वर गुस्से में बोला — "क्या कहना चाहती हो रेनू? साफ़ बोलो।"

रेनू की आंखों में अब आंसू थे, पर उसकी आवाज़ में बगावत — "ये कि तुम कभी वारिस थे ही नहीं मुक्तेश्वर... और न ही तुमसे पैदा हुई तुम्हारी औलाद वारिस बनेगी। क्योंकि वो तस्वीर... जो इस फाइल में है... वो साफ कहती है कि असली वारिस कोई और है... कोई जिसे तुम दोनों ने नजरअंदाज किया।"

गजराज सिंह की आंखों की पुतलियां कांप उठीं — "तस्वीर...? कौन सी तस्वीर?"

रेनू ने जेब से एक मुड़ी-तुड़ी पुरानी तस्वीर निकाली और दोनों को दिखाते हुए कहा — "ये देखिए... ये गजेन्द्र के जन्म के तीन महीने बाद ली गई है... और इसके पीछे लिखा है ‘राजेश्वर’। अब सवाल ये नहीं है कि गजेन्द्र किसका बेटा है, सवाल ये है कि गजेन्द्र की फोटो के पीछे उसके पिता की जगह चाचा का नाम क्यों लिखा है?"

हॉल में फिर एक बार सन्नाटा फैल गया। गजराज और मुक्तेश्वर दोनों एक-दूसरे को देखने लगे जैसे रेनू ने अंजाने में अतीत का वो राज खोल दिया हो, जिसे बीस सालों से सब भूलने की कोशिश कर रहे थे।

एक तरफ राजघराना महल के असली वारिस के नाम की गुत्थी अब और उलझती जा रही थी। तो वहीं दूसरी ओर जयपुर सेंट्रल जेल के एक कोने में बैठा गजेन्द्र अचानक एक किताब पढ़ते-पढ़ते रुक गया। उसके हाथ में वो पुराना पेन ड्राइव था जो कोर्ट में दिखाया गया था… लेकिन अब सीबीआई से चुपके से निकला एक नया सबूत उसके पास पहुंच चुका था। जेल के भीतर कोई था जो चाहता था कि गजेन्द्र बाहर आए और उसी ने गजेन्द्र तक इस सबूत को पहुंचाया था।

"सच खुद चलकर मेरे पास आ रहा है… और अब मैं किसी का मोहरा नहीं… मैं खुद अपनी लड़ाई लड़ूंगा। बस एक बार विराज से मुलाकात हो जाये, तब मैं अपनी अगली चाल चलूंगा और हर हाल में इस बार जेल से रिहा होकर रहूंगा।"

गजेन्द्र के पास खुद को बेगुनाह साबित करने का ठोस सबूत आ गया था, लेकिन वो राजघराना का असली वारिस है या नहीं इस बात की लड़ाई गजराज की नाजायज बेटी और जायज पोते के नाम के बीच अब जंग बन गई थी। यहीं वजह थी कि रेनू एक कदम और गजराज की पास बढ़ी और उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली —

"मान लो गजराज सिंह, तुम्हारी अय्याशियों के कारण जन्मी मैं यानी रेनू गजराज सिंह ही तुम्हारे इस राजघराना की असली वारिस है। अब मेरे पास लिखित सबूत है… तो फिर ये खेल अब खत्म करते हैं। क्योंकि मैं इस बार सिर्फ तुम्हारी नाजायज बेटी बनकर नहीं, इस हवेली की सबसे मजबूत आवाज़ बनकर खड़ी हूं।"

मुक्तेश्वर थोड़ा डगमगाया, पर उसने रेनू की आंखों में देखा और बोला — "अगर तू ये साबित कर दे रेनू… तो मैं इस हवेली से अपने बेटे गजेन्द्र को अपने कंधों पर बैठाकर बाहर ले जाऊंगा, उसकी बेगुनाही का बिगुल बजाकर।"

रेनू और मुक्तेश्वर के बीच लगी इस शर्त को सुन गजराज का चेहरा पत्थर की तरह जम गया। और तभी उसने कुछ ऐसा कहा, जिसने इस पूरी कहानी का रूख ही पलट दिया। 

गजेन्द्र की तस्वीर के पीछे राज राजेश्वर का नाम असली वारिस की पहचान है। तो तुम दोनों को अगले 48 घंटों में पता चल जायेगा कि अगला वारिस कौन है?

गजराज अपने 48 घंटों का ऐलान कर वहां से चला गया और रेनू और मुक्तेश्वर बस बुत बने उसे देखते ही रह गए। दूसरी ओर राजघराना से कुछ मील दूर, एक घने जंगल में बने पुराने बंगले में, राज राजेश्वर अपनी गाड़ी से उतरता है और जेब से फोन निकाल किसी का नंबर डायल कर कहता है — "अब वक्त आ गया है… राघव भौंसले के खिलाफ शतरंज की आखिरी चाल चलने का। मैं आ रहा हूं कोर्ट में, और इस बार मैं सिर्फ भाई नहीं… गजेन्द्र का गवाह बनकर बोलूंगा।"

राज राजेश्वर का सुधरना और जिस भाई भतीजे की जिंदगी खुद ने तबाह की उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाना... कोई चाल थी, या सच में राजघराना में खूनी रिश्तों में प्यार जाग गया था। ये बात कोर्ट की अगली सुनवाई में ही बाहर आने वाली थी। 

इसी बीच आज की सुबह राजघराना महल की हवाओं में कुछ अलग ही सन्नाटा था। जैसे सदियों पुरानी कोई रूह जाग उठी हो। उस पर गजराज के 48 घंटों की घड़ी भी टिक-टॉक करने लगी थी। मुक्तेश्वर और रेनू दोनों को असली वारिस के नाम के ऐलान का बेसब्री से इंतजार था। 

इसी बीच महल के हॉल एरिया में खड़ी प्रभा ताई हाथ में एक पीतल की डिब्बी को थामे खड़ी थीं। उन्होंने धीरे से उसे खोला, तो उसमें एक मुड़ी-तुड़ी चिट्ठी निकली, जिसकी स्याही भले धुंधली हो चुकी थी, पर हर शब्द साफ-साफ नजर आ रहा था।

"प्रिय गजराज,

अगर ये चिट्ठी तेरे हाथ लगी है, तो समझ कि वो दिन आ चुका है जिससे तुझे हमेशा डर था…"

प्रभा ताई आगे वो चिट्ठी पढ़ती उससे पहले ही वहां गजराज सिंह आ गया और कांपते हाथों से उसने चिट्ठी प्रभा के हाथों से छीन ली और फिर खुद उसे पढ़ने लगा— 

"मुक्तेश्वर तेरा बेटा नहीं है..."

ये पढ़ते ही गजराज के चेहरे का रंग उड़ गया। और उसने तुरंत प्रभा से उस चिट्ठी का दूसरा हिस्सा मांगा जो फटा हुआ था। प्रभा ताई ने जवाब में कहा— मुझे नहीं पता, इस डिब्बी में इतना ही हिस्सा रखा था, लेकिन क्या आप मुझे बतायेंगे कि आखिर इसमें ऐसा क्या लिखा है, कि आप इसे पढ़कर पागल से हो गए है। बताइये आखिर असली वारिस कौन है?"

गजराज के होंठ सूखे थे। जवाब देने के बजाये वो एक शब्द बोलकर बेहोश हो गया"गजेन्द्र..."

ठीक उसी वक्त जेल की सलाखों के पीछे बैठा गजेन्द्र जेल के सख्त फर्श पर हाथ फेरते हुए कोर्ट की पिछली सुनवाई को याद करने लगा, कि कैसे उसके पक्ष में सबूत होते हुए भी उसे रिहाई नहीं मिली। तभी एक बूढ़ा कैदी उसके पास आया, और गजेन्द्र की तरफ देखते हुए बोला— "तू राजगढ़ से है ना?" तेरे बाप के कहने पर उसके एक दोस्त ने मेरा केस लड़ा था... बाईस साल पहले। मैं उस वक्त राघव भौंसले का ड्राइवर था। बहुत कुछ देखा है मैंने… बहुत कुछ…"

गजेन्द्र की आंखें चमकीं। "क्या तुम मेरे लिए गवाही दोगे? क्योंकि जो मेरे बाप का गुनहगार है, वहीं मेरा भी गुनहगार है।"

बूढ़ा कैदी मुस्कराया और बोला— "गवाही तो नहीं दे पाउंगा, पर ये बता दूं कि अगर तेरा गुनहगार भी राघव भौंसले ही है, तो पक्का उसने वहीं चाल चली होगी, घोड़े की नाल में इंजेक्शन वाली, तू जांच करा ले। दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा…"

ये सुनते ही गजेन्द्र की आंखे चमक उठीं

रात का अंधेरा गहरा गया था। राजघराने का हर शख्स नींद की आगोश में था। लेकिन गजराज की नाजायज बेटी रेनू अब भी उस लाल फाइल के पन्नों को पलट रही थी। फाइल पर उभरे सुनहरे अक्षरों ने उसकी नींद, चैन सब छीन लिया था। उस पर गजाराज का वो 48 घंटों वाला खेल, सोचते हुए वो खुद से बड़बड़ाते हुए बोलीं— “वास्तविक वारिस – रा.ग.ना” आखिर क्या है ये “रा...ग...ना? ये कोड नहीं, पक्का किसी के नाम का पहला अक्षर है...”
 
हकीम फैयाज़ के साइन पर हाथ फेरती हुआ वो फिर से बुदबुदाई — "राघव... गजराज... नारायणी..."

और तभी उसे एक अधूरी लाइन याद आई, जो उसने अपनी मां से सुनी थी— "वास्तविक वारिस वह है, जो नारायणी की कोख से जन्मा था और गजराज की रगों का खून उसके शरीर में दौड़ता है।"

रेनू की आंखें चमक उठी और वो चिल्लाई— "इसका मतलब... गजेन्द्र ही है असली वारिस। ना राघव, ना मुक्तेश्वर ना राज राजेश्वर…"

उसके होंठ कांपने लगे, लेकिन उसके भीतर की आग और गजेन्द्र की मां के मौत का असली राज… दोनों उसे साफ-साफ समझ आ गए थे।

"अब बारी मेरी है... मैं बोलूंगी — कोर्ट में, मीडिया में, दुनिया के सामने। और राघव भौंसले को उसकी हर झूठी चाल का ब्याज सूत समेत लौटाऊंगी।"

ठीक उसी वक्त जयगढ़ पैलेस में आराम से सौफे पर बैठा राघव भौंसले व्हिस्की हाथ में लिए अपने अगले दांव की प्लानिंग कर रहा था, कि तभी टीवी पर एक ब्रेकिंग न्यूज फ्लैश हुई जिसे देख राघव तिलमिला उठा।

"सीबीआई को मिली नई क्लिप, जेल में मिले पुराने ड्राइवर की गवाही से पलट सकता है गजेन्द्र रेस फिक्सिंग मामला और साथ ही सामने आ सकता है राजगढ़ के राजघराना के अगले वारिस का नाम।"

ये देख राघव चिल्लाया और ग्लास को टीवा पर दे मारा—  "हर तरफ से घिर रहा हूं... लेकिन एक आखिरी पत्ता अभी बाकी है। राज राजेश्वर… अगर ये राजघराना मेरा नहीं हुआ, तो किसी का नहीं होगा।"

उसने फोन उठाया — "उसे एक्टिव करो। अब वक्त आ गया है कि गजराज का अपना बेटा उसके पोते के खिलाफ खड़ा हो।"

वहीं दूसरी ओर गजराज के 48 घंटों का खेल अपने अतिंम छोर पर था, जिसके लिए उसने पूरे परिवार को इकट्ठा भी कर लिया था। सबके हॉल एरिया में आते ही रेनू ने अपना पहला सवाल गजराज पर दाग दिया और बोली — तो बताइये, कौन है राजघराना का असली जायज वारिस—

 

आखिर कौन बनेगा राजघराना का वारिस? 

क्या करने वाला है राघव भौंसले? क्या वो दोबारा राज राजेश्वर को खड़ा कर पायेगा उसके भाई और पिता के खिलाफ?
 
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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