रिया के हाथ में अब भी वही डायरी थी, जिसकी परतों में छिपी वो धुंधली तस्वीर राजघराने की सांसों के जिंदा होने की वजह बनी हुई थीं।
दूसरी ओर मुक्तेश्वर के चेहरे पर हकीम फैयाज़ की यादें और विराज के मन में पुलिस स्टेशन के रजिस्टर में मिले उस “एफ. हकीम” की छवि... तीनों के बीच एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी, लेकिन तीनों के दिमाग में सवाल एक ही घूम रहा था…
“अगर हकीम बाबा ही असली सूत्रधार थे…तो वो कौन से खेल का हिस्सा थे? और वो आखिर रेनू को राजघराना का असली वारिस क्यों कह रहे थे।”
इस सवाल ने रिया, विराज और मुक्तेश्वर के भीतर एक अजीब सी हलचल मचा दी थी। कि तभी एक भारी-भरकम आवाज गूंजी… ये आवाज राजमहल के पुराने घंटाघर की घड़ी में 12 बजने की थी, जिसकी गूंज ने सबको उनके सवालों से बाहर निकाला।
आधी रात हो चुकी थी, विराज मुक्तेश्वर और रिया से बात कर अपने घर लौट गया। जिसके बाद राजघराना महल में शांति पसर गई और सब अपने-अपने कमरे में कैद हो गए। लेकिन ये रात राजघराना के लोगों के जीवन में बहुत बड़ी काली रात साबित होने वाली थी, जिसका गहरी नींद में सोये किसी शख्स को एहसास भी नहीं था।
दरअसल राजगढ़ के राजघराना से दूर जयगढ़ के आसमान तले कोई था, जो इस वक्त गजेन्द्र की बर्बादी की कहानी लिख रहा था। यही वजह थी जयगढ़ की रात आज बहुत खामोश थी, लेकिन उस खामोशी को चीरती हुई आग की लपटें अब रेस सर्किट के चारों तरफ फैल गई थीं।
ये शख्स कोई ओर नहीं गजराज की बेटी प्रभा ताई का पति वहीं राघव भौंसले था, जो पिछले बीस सालों से राजघराना की नींव में नफरत के बीज बो रहा था।
राघव भौंसले—राजघराना का सबसे खामोश लेकिन चालाक खिलाड़ी… आज आग की उन लपटों को हवा में लहराता हुआ देख मुस्कुरा रहा था। पास में उसकी एक चमकदार SUV कार खड़ी थी, जिस पर लगे कार के शीश में देख वो खुद से ही बातें कर रहा था।
"अब देखता हूं, कौन बचाता है राजघराने के उस वारिस गजेन्द्र को… जैसे बाप जिंदगी भर बेगुनाह होते हुए भी राजघराना छोड़ दर-दर का भिखारी बनकर जिया था। अब बेटा भी वैसी ही जिंदगी जियेगा।"
ये ही बड़बड़ाता हुआ राघव भौंसले दहाड़े मार-मारकर हंस रहा था और उसके पीछे जयगढ़ का रेस सर्किट धूं-धू कर जल रहा था। दरअसल ये वो रेस सर्किट था, जहाँ गजेन्द्र की आखिरी ‘क्लीन रेस’ की वीडियो रिकॉर्डिंग रखी थी, जो यह साबित कर सकती थी कि वह ‘रेस फिक्सिंग स्कैंडल’ का हिस्सा नहीं था।
लेकिन अब… सबकुछ राख हो चुका था।
वहीं दूसरी ओर अगली सुबह राजघराना महल में रिया की आंखें सूजी हुई थीं, उसकी सांसें तेज़ चल रही थी, वो बेसूध बस रोये जा रही थी। तभी वहां मुक्तेश्वर आया और उसने रिया को इस तरह बेसूध रोते देखा, तो पूछा— "क्या हुआ… तुम इस तरह बदहवास रोये क्यों जा रही हो तबियत तो ठीक है ना तुम्हारी?”
रिया मुक्तेश्वर के किसी सवाल का कोई जवाब नहीं देती और बस एक सांस में रोती रहती है। ये देख मुक्तेश्वर का दिल बैठ जाता है और वो तुरंत चिल्लाकर प्रभा ताई और रेनू को बुला कर कहता है— "प्लीज प्रभा ताई इससे पूछिये इसे क्या हुआ है? इसकी ये हालत देख मेरा दिल बैठा जा रहा है।"
प्रभा ताई आगे बढ़ती है और रिया के कंधे पर हाथ रख उससे सवाल करने ही वाली होती है, कि तभी रिया उनका हाथ पीछे झटक देती है और चिल्लाकर कहती है— “क्यों… आखिर क्यों, हर बार गजेन्द्र को ही सब कुछ सहना पड़ता है… क्यों?”
रिया की चीख और उसका सवाल सुन मुक्तेश्वर की धड़कने रूक जाती है और वो तुरंत रिया के पास जा उसके दोनों कंधो को अपने हाथ से पकड़ते हुए कहता है— "ये तुम क्या कह रही हो रिया बेटा… क्या हुआ गजेन्द्र को। कल रात को ही तो हम मिलकर आये थे… तब तो वो बिल्कुल ठीक था। बोलो रिया बोलो… मेरा दिल बैठा जा रहा है।"
तभी वहां गजेन्द्र का वकील विराज राठौर भागता हुआ आता है, लेकिन वहां के तमाशे को देख वो खामोश खड़ा हो जाता है… और तभी रिया चीख कर मुक्तेश्वर के सवाल का जवाब देते हुए कहती है— “गजेन्द्र को बचाने वाला आखिरी सबूत जलाया जा चुका है।”
इतना कह वो फूट-फूट कर रोने लगती है। पास खड़ा विराज उसे चुप कराने के लिए थामता है और बैठने के लिए कहता है। विराज भी एक शब्द नहीं बोलता… मानो जैसे उसके शब्द खो चुके थे। वो जानता था, ये सिर्फ एक रेस का मामला नहीं, ये किसी की ज़िन्दगी की आखिरी उम्मीद थी।
तभी मुक्तेशर ने धीरे से कुछ ऐसा कहा, जिसने एकाएक सबके टूटे विश्वास को एक उम्मीद की किरण दे दी— “अब वक्त आ गया है रेस की दिशा मोड़ने का… मैं कुछ लाया हूं।”
रिया और विराज दोनों चौंककर उसकी ओर देखने लगे।
फ्लैशबैक – आज से ठीक तीन दिन पहले
मुक्तेश्वर उस पुराने अस्तबल में गया था, जहाँ बचपन में हकीम फैयाज़ उसे घुड़सवारी सिखाया करते थे। जहां उसे एक पुराना, बंद पड़ा संदूक मिलता है। संदूक के अंदर रेस ट्रैक के एंगल से रिकॉर्ड की गई एक बेहद पुरानी वीडियो थी।
दरअसल हॉर्स रेसिंग के बारें में मुक्तेश्वर से हकीम फैयाज़ ने बरसों पहले कहा था— “हर रेस की एक परछाईं होती है… अगर सामने वाला ट्रैक रिकॉर्डिंग मिटा दे, तो पीछे की परछाईं सच्चाई बोलती है।”
मुक्तेश्वर वही परछाईं लेकर लौटा था।
वहीं आज का दिन
ये क्या है, क्यों है… ये सवाल बाद में पूछ लेना। फिलहाल कोर्ट की सुनवाई का वक्त हो रहा है, जल्दी करो।
मुक्तेश्वर ने इतना कहा….रिया और विराज दोनों कोर्ट के लिए तैयार होने चले गए। कुछ आधे घंटे बाज गजराज सिंह, प्रभा ताई के साथ तीनों जयपुर कोर्ट पहुंचे तो देखा अदालत के बाहर भारी भीड़ उमड़ी थी। ये केस अब पूरे देश को झकझौरने लगा था, कि कैसे सत्ता के खेल में पहले परिवार और अब देश की आन के साथ खेल रहा था राजगढ़ का राजघराना परिवार।
सीबीआई की टीम अदालत में पहुंच चुकी थी। गजेन्द्र को कड़ी सुरक्षा में कोर्ट रूम में लाया गया। उसके चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी, लेकिन जब उसने अपने पिता को सामने देखा तो उसकी आंखों में हल्की सी चमक आ गई।
कुछ ही देर में कोर्ट की कार्रवाई शुरु हो गई और जज ने सीबीआई की टीम को जांच की रिपोर्ट पेश करने का ऑर्डर दिया, जिसके बाद सीबीआई अधिकारी ने कोर्ट के सामने गवाही दी— “प्राइमरी एविडेंस नष्ट हो चुका है, लेकिन हमारे पास एक नई क्लिप है जो एक वैकल्पिक कैमरे से रिकॉर्ड हुई थी। यह क्लिप रेस फिक्सिंग की कहानी को पलट सकती है।”
सीबीआई अधिकारी की ये रिपोर्ट सुन राघव भौंसले के होश उड़ जाते हैं। क्योकि कल रात तो उसे लग रहा था, कि उसने अपने खिलाफ खड़े सारे सबूत मिटा दिये है, तो फिर ये नया वीडियो कहा से आ गया।
तभी सीबीआई अधिकारी ने उस रिकॉडिग की पेन ड्राइव जज साहब के दाई तरफ खड़े सहायक दरबान को दी। उसने उसे कोर्ट में लगे टीवी के साथ कनेक्ट किया। जब कोर्ट में वो वीडियो चला, तो पूरा कमरा सन्न रह गया।
दरअसल उस पेन ड्राइव में रेस की जगह एक मैजिक शो की फुटेज थी, जिसे देख जज साहब भड़क गए— “ये क्या मज़ाक है? इस अदालत को सर्कस समझ रखा है क्या?”
जज की आवाज से कोर्ट का कमरा गूंज उठा। रिया और विराज एक-दूसरे की तरफ हैरानी से देखने लगे। वहीं मुक्तेश्वर भी उस वीडियो क्लिप को देख हक्का-बक्का खड़ा था…"ये कैसे हो गया? मैंने तो सहीं क्लिप दी थी सीबीआई को… फिर...।"
कोर्ट रुम में उस सर्कस की क्लिप का तमाशा अभी खत्म भी नहीं होता कि तभी कोर्ट के गेट पर एक आदमी हांफता हुआ दाखिल होता है। उसके फटे हुए कोट, हाथ में एक पुराना कैमरा, और गले में एक बेमेल-सा स्कार्फ था... और कोर्ट में दाखिल होने के साथ ही वो अपनी कांपती हुई टूटी फूटी आवाज में कहता है — "रुको…मैं वो सबूत लेकर आया हूं जो जलाया नहीं जा सकता!"
उस शख्स की आवाज इतनी तेज थी कि सबकी निगाहें उस पर टिक गईं। तभी मुक्तेश्वर और विराज ने गौर से उस शख्स का चेहरा देखा… और दोनों उसे पहचान गए। दरअसल वो कोई और नहीं, हकीम फैयाज़ था।
जज ने तुरंत रुखे अदाज में सवाल किया, “आप कौन हैं? और ये क्या तमाशा है?”
हकीम फैयाज़ ने जेब से एक पुराना फ़्लिप कैम निकाला और कहा— “मुझे पता था राघव भौंसले जैसे लोग कभी हार नहीं मानेंगे। इसलिए मैंने बैकअप लिया था। ये है असली रिकॉर्डिंग… गजेन्द्र की आखिरी रेस की बिना किसी कट और मैनिपुलेशन के...।”
विराज तुरंत आगे बढ़ा और वो कैमरा कोर्ट असिस्टेंट को दे देता है। कुछ सेकेंड्स बाद जब असली वीडियो स्क्रीन पर चली, तो पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया।
वीडियो में गजेन्द्र अकेले रेस जीतता दिख रहा था, साफ तौर पर बिना किसी फिक्सिंग के… लेकिन वीडियो की फुटेज में सिर्फ रेस के दौरान का वीडियो था, रेस से पहले या बाद का नहीं। ऐसे में ये सबूत भी कोर्ट की नजरों में अधुरा था। क्योंकि विपक्ष की ओर से जो सबूत जमा किये गए थे, उसका आधार था कि गजेन्द्र ने मैच शुरु होने से पहले ही रिश्वत ले ली थी।
ऐसे में कोर्ट में फिर से तमाशा शुरु हो गया, तब जज ने फिर से टेबल पर हथौड़ा मारते हुए कहा— “सीबीआई को आदेश दिया जाता है कि वो पहले इस वीडियो की जांच करे और दूसरा जयगढ़ रेस कोर्स में लगी आग के मामले की भी जांच पड़ताल करें... और तब तक इस केस का अहम आरोपी गजेन्द्र सिंह जेल में ही बंद रहेगा और पूछताछ जारी रहेगी। फिलहाल आज के लिए अदालत का काम स्थगित किया जाता है… अगली सुनवाई में आरोप तय किए जाएंगे और सबूतों के आधार पर आगे की कार्रवाई होगी।”
राघव भौंसले जिसे पिछली सुनवाई के बाद से ही गिरफ्तारी के सपने आ रहे थे, वो इस वक्त सुकून की सांस लेता है और खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है— “ना तू आज बचा है, ना कल बचेगा… तेरे बाप की तरह तुझे भी दर-दर का भिखारी ना बनाया तो कह देना…।”
उसी पल, गजेन्द्र की आंखों से आंसू निकल पड़ते है और वो पुलिस के साथ जेल जाने से पहले अपने पिता से गले मिलकर…सिर्फ एक ही लाइन कहता है— “हर बार मैं ही क्यों पापा… हर बार मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?”
गजेन्द्र की वो टूटी हुई आवाज पूरे कोर्टरुम के गलियारे में गूंज जाती है। उसके रोने की आवाज से वहां का पूरा माहौल जैसे एक पल के लिए जम सा जाता है। वहीं बेटे को फूट-फूट कर रोते देख मुक्तेश्वर की भी आंखें भर आती है… वो कुछ कह नहीं पाया, ये बात उसके दिल में किसी तलवार की तरह चुभने लगती है और उसे एहसास होता है जैसे बरसों पुराना कोई अधूरा ज़ख्म फिर से हरा हो गया।
तभी गजेन्द्र पुलिस के साथ जेल की ओर बढ़ जाता है। दूसरी ओर रिया, जो अब तक खुद को संभाल रही थी, अचानक घुटनों के बल गिर पड़ती है। उसकी आंखों से बहते आंसुओं में सिर्फ प्रेम नहीं, आत्मग्लानि का भी एहसास होता है। क्योंकि वो भी ये ही सोचती है, कि आखिर वो इतने दिनों में अपने बेगुनाह प्यार गजेन्द्र के लिये क्यों कुछ नहीं कर पाई।
तभी कोर्ट के बाहर अचानक से मीडिया का शोर और कैमरों की चकाचौंध तेज़ हो जाती है…
आज की सबसे बड़ी खबर—
— “राजघराने की असलियत सामने आने लगी है!”
— “क्या गजेन्द्र सिंह निर्दोष है या सब कुछ एक खेल है?”
— “राघव भौंसले पर शक गहराता जा रहा है!”
आखिर कौन दोषी है, देश के नाम पर लगे मैच फिक्सिंग के दाग का...आखिर कौन?
मीडिया के इन सवालों भरे शोरगुल के बीच, एक बुज़ुर्ग साया अदालत की सीढ़ियों पर चुपचाप खड़ा था...ये कोई और नहीं गजेन्द्र के दादा गजराज सिंह थे। गहरे भूरे रंग की धोती, चमचमाता सफेद कुर्ता, माथे पर सफेद चंदन की रेखा और आंखों में वर्षों का पछतावा लिए... वो बस गजेन्द्र को जाते हुए देख रहे थे।
प्रभा ताई उनके पास आई और बोली— “अब और चुप मत रहिये पिताजी, राज राजेश्वर से कहिये वो कोर्ट के आगे आकर सारा सच बता दे। वो बोलेंगे तो राघव की भी सारी चालों की पोल खुल जायेगी और गजेन्द्र रिहा हो जायेगा। मैं अपने हिस्से का पछतावा कर रही हूं, आप भी कर लीजिये और बचा लीजिये अपने वारिस को… कही बेटे का लालाच पोते को मौत के हवाले ना कर दें।”
प्रभा की बात सुन गजराज सिंह ने धीरे से सिर उठाया और उसने अपनी कांपती उंगलियों से जेब से एक पीतल की छोटी सी डिब्बी निकाली और प्रभा के हाथ में रख दी।
प्रभा चौंक गई और झल्लाकर बोलीं— “ये क्या है?”
गजराज ने पलटकर बेटी की बात का जवाब देते हुए कहा— “इसमें वो चिट्ठी है… जो मैंने बीस साल पहले नहीं खोली थी… वो चिट्ठी, जिसे खोल लिया होता… तो शायद आज गजेन्द्र जेल में न होता। शायद इसे खोल लिया होता, तो मेरे बेटा मुक्तेश्वर कभी मेरे पोते को लेकर घर छोड़कर भागता ही नहीं।
जहां आज का कोर्टरुम तमाशा खत्म हो गया था और गजेन्द्र को आज भी रिहाई और बेगुनाही दोनों नहीं मिली थी, तो वहीं दूसरी ओर महल के एक पुराने तहखाने में रेनू खड़ी थी। उसके सामने दीवार में जड़ी एक पुरानी अलमारी खुली हुई थी। रेनू उस अलमारी में से एक लाल रंग की फाइल, जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था—
“वास्तविक वारिस – रा.ग.ना... हस्ताक्षर – हकीम एफ.”
उसे पढ़ते ही रेनू किसी जलती आग की ज्वाला सी भड़क जाती है, और खुद से ही बात करते हुए एक वादा करती है— “अब बारी मेरी है... सच बाहर आएगा, चाहे कोई भी रुकावट क्यों ना हो। एक-एक को मौत की नींद सुलाउंगी और उस राजघराने का सच बाहर लाउंगी।”
आखिर क्या करने वाली है रेनू ? ऐसा क्या लिखा है उस फाइल में, जिसे देख तिलमिला उठी रेनू?
कौन है राजघराना का असली वारिस? और अब आगे क्या होगा गजेन्द्र के साथ?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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