जेल की अंधेरी कोठरी में, जहाँ गजेन्द्र डायरी के उस पन्ने को बार-बार देख रहा था। तो वहीं दूसरी ओर उसके सामने खड़ा हकीम फैयाज़ उसकी इस हरकत पर मुस्कुराते हुए बोला — “राजघराना अब तुम्हारे हाथों में नहीं रहेगा, गजेन्द्र। अब वक्त है ‘राजमाता’ के लौटने का।”
ये सुनते ही गजेन्द्र का दिल धड़क उठा। उसने उस डायरी में रखा वो लॉकेट निकाला, जिसमें लगी धुंधली तस्वीर ने बिना कुछ कहे ही अतीत का वो पन्ना खोल दिया, जिसका मतलब गजेन्द्र साफ समझ चुका था— “तो रेनू ही असली वारिस है?”
उसने आहिस्ता से पूछा, तो उस जादूगर हकीम फैयाज़ ने कहा— “हाँ,” लेकिन फिलहाल तुम्हारे और इस दुनिया के सामने उसकी सच्चाई छुपी हुई है। यह सच्चाई उसे, तुम्हें और रिया तीनों को जोड़ती है। इसलिए तुम तीनों को ये सबकुछ समझना होगा, वरना ये राजघराना फिर से ना जाने कितने तहखाने बनायेगा और ना जाने उसमें कितनी शारदा को जिंदा दफन करेगा।”
हकीम फैयाज़ के इतना कहते ही गजेन्द्र के जहन में हजार सवाल घूम गए। वो एक-एक कर अपने हर सवाल का जवाब चाहता था, लेकिन वो हकीम फैयाज से आगे कुछ पूछता उससे पहले ही जेल के सायरन की आवाज से वहां हड़कंप मच गई।
इसी बीच एक कॉन्सटेबल के चिल्लाने की आवाज आई— “तैयार हो जाओ गजेन्द, कोर्ट ने तुम्हारे केस के लिये विशेष जांच समिति यानी सीबीआई का गठन किया है, और तुम्हें जल्द ही ट्रांजिट बेल पर कोर्ट ले जाया जाएगा।”
गजेन्द्र ने हकीम फैयाज़ को देखा, उसके चेहरे पर एक अजीब सी उम्मीद और डर दोनों झलक रहे थे। लेकिन हकीम फैयाज़ बिना कुछ कहे पलटे और गजेन्द्र की सेल से बाहर चले गए।
ऐसे में जहां एक तरफ गजेन्द्र अपने ही सवालों की उलझन में फंस गया था, तो वहीं दूसरी ओर राजघराना में अपने अतीत के सारे काले कारनामों की फाइलों को समेट राज राजेश्वर एक-एक कर आग के हवाले कर रहा था।
तभी बूढ़ा भीखू एक बार फिर राज राजेशर के कमरे के दरवाज़े में आ गया और बोला— “राजेश्वर बाबू, सच को दबाना अब मुश्किल होगा। आपके हाथों से छोड़िये, राजघराना तो अब गजेन्द्र के हाथों से भी फिसल रहा है। क्योंकि धीरे-धीरे रेनू की असली पहचान और उसका अस्तित्व अब सबके सामने आ रहा है।”
ये सुनते ही राजेश्वर झुंझला उठा और चिल्लाकर बोला— “अगर सच बाहर आया तो राजघराना खत्म हो जाएगा।”
राज राजेश्वर का गुस्सा और उसका डर देख भीखू ने धीरे से कहा— “और अगर सच छुपाया तो गजेन्द्र के साथ भी.… खैर अब तुम पर है कि तुम क्या चुनते हो— ज़मीर या राजघराना।”
भीखू का ये सवाल सुनते ही राज राजेश्वर की आंखें नम हो आईं और वो बोला— “म...म...मैं… मैं सच को छुपाता रहा, पर अब शायद सच से लड़ना होगा और कोई रास्ता नहीं बचा है।”
ये ही सब सोच-सोचकर जहां एक ओर राज राजेश्वर अपने अतीत के फैसलों को कोस रहा था, तो वहीं दूसरी ओर राजघराना के अस्तबल में रिया एक आधी फटी हुई डायरी के कुछ पन्ने पलट रही थी, तभी उसमें से एक पुरानी तस्वीर उसके हाथ में आ गई फोटो में एक मासूम बच्ची थी, रिया ने ध्यान से देखा तो उसके चेहरे पर उसके होठों के ठीक ऊपर वैसा ही तिल था, जैसा रेनू के होठों पर है।
ये देख उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई तभी वहां मुक्तेश्वर आ गया और रिया के हाथ में उस तस्वीर को देखते हुए पूछा— “क्या मिला?”
जवाब में रिया ने तस्वीर दिखाते हुए कहा— “ये वही बच्ची है, जो राजघराने की असली वारिस है।”
मुक्तेश्वर की नजरें फैल गईं। उसने तुरंत रिया के हाथ से उस तस्वीर को लिया, लेकिन जैसे ही उसने उस तस्वीर को गौर से देखा वो चौंक कर बोला— “अगर ये सच निकला, तो राजघराने की नींव हिल जाएगी।”
घबराहट से रिया और मुक्तेश्वर एक-दूसरे की तरफ देखने लगे, लेकिन दोनों सच की धार को समझते थे… और ये ही वजह थी कि उन्होंने इस सच को उसी डायरी में बंद कर तहखाने में छोड़ दिया। और गजेन्द्र से मिलने जयपुर जेल पहुंच गए।
कांस्टेबल ने गजेन्द्र को जाकर बताया कि उससे मिलने उसके पिता मुक्तेश्वर और जर्नलिस्ट रिया आये हैं। जेल में दिन-ब-दिन गजेन्द्र की बिगड़ती हालत देख रिया का दिल टूट गया। तो वहीं मुक्तेश्वर के चेहरे पर भी अपने बेटे की हालत देख मायूसी छा गई। हालांकि तब भी दोनों ने खुद को संभालते हुए गजेन्द्र को वो वजह बताई, जिसके लिये वो मिलने आये थे।
कोर्ट की ओर से जज साहब ने सीबीआई के अधिकारियों को मामले की जांच-पड़ताल जल्द से जल्द करने का आदेश सुना दिया। साथ ही कोर्ट में ये भी कहा है कि शारदा के केस में तुम्हारी और रिया दोनों की गवाही बहुत मायने रखती है…तो तैयार रहना।”
पिता की बात सुनते ही गजेन्द्र ने गहरी सांस ली और कहा— “अब सच छुपाना मुमकिन नहीं….राजघराना के हर कोने को खंगाला जाएगा।”
गजेन्द्र की ये बात सुनते ही मुक्तेश्वर को अपने बचपन और बचपन के पहले टीचर हकीम फैयाज़ की याद आ गई।
फ्लैशबैक – राजघराने के अस्तबल में जादूगर बाबा हकीम फैयज़
मुक्तेश्वर और राजेश्वर छोटे बच्चे थे, जब जादूगर बाबा उन्हें घोड़ों की रेस के लिए ट्रेनिंग देते थे और कहते थे— “याद रखना, बच्चे, “सच्चा वारिस वही होता है, जो धैर्य, साहस और सच्चाई का साथ देता है।”
तभी मुक्तेश्वर ने पूछा— “क्या असली वारिस वही होगा, जो खून से नहीं, बल्कि दिल से जुड़ा हो?”
मासूम मुक्तेश्वर के ऐसे सवाल सुन जादूगर बाबा हकीम फैयाज़ ने उसकी आंखों में गहरी नजरों से देखा और फिर मुस्कुराकर कहा— “बिल्कुल, और जब वो समय आएगा… तो तुम्हें ही उसे पहचानना होगा। क्योकि तुम मन से इमानदार और दिल से सच्चे हो।”
वहीं आज का दिन
किन ख्यालों नें खो गए आप पापा, देखिए मैं आपकी हर बात समझ गया हूं। आप बेफिक्र रहिये और बस अपने तरीके से मामले की जांच कीजिये और बाकी सब पुलिस और अदालत पर छोड़ दीजिये।
गजेन्द्र के समझाने पर रिया और मुक्तेश्वर बेफिक्र होकर राजघराना लौट आये। लेकिन जैसे ही वो राजघराना लौटे, तो देखा विराज राठौर वहां पहले से रिया का इंतजार कर रहा था।
"तुम, क्या हुआ? कोई नया सबूत मिला क्या?”
“हां, और उसकी जांच के लिए तुम्हें मेरे साथ चलना होगा, वो भी अभी।”
रिया तुरंत तैयार हुई और गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर के साथ उस सबूत की जांच के लिए चल पड़ी। दोनों कहा गए और किन सबूतों की जांच कर रहे थें, ये कोई नहीं जानता था। वहीं करीब 6 घंटे बाद जब दोनों राजघराना लौटे तो विराज और रिया की आँखों में थकान तो थी, लेकिन मन में कुछ ऐसा था जो उन्हें चैन से बैठने नहीं दे रहा था। ऐसे में लंबी चुप्पी को तोड़ रिया ने विराज से पूछ ही लिया— “अगर ये सबूत सही निकला, तो सिर्फ वारिस नहीं, पूरा अतीत सामने आ जाएगा और सब बर्बाद हो जायेंगे।”
“सही कहा तुमने रिया, अब इस राजघराने का कोई राज… राज नहीं रहेगा।”
विराज और रिया ये बाते करते हुए महल के अंदर जा रहा थे, और तभी उनकी नजर मुक्तेश्वर पर पड़ी। जो इस समय अस्तबल में खड़ा घोड़े की पीठ पर हाथ फेरते हुए पुरानी यादों में खोया हुआ था। तभी रिया ने आवाज लगाई… और विराज ने उसके कंधे पर धीरे से हाथ रखते हुए कहा— “सर… आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।”
मुक्तेश्वर ने पलट कर तुरंत पूछा— “परेशान लग रहे हो, बताओ...क्या हुआ?”
“हकीम फैयाज़... उसके बारे में मुझे सब जानना है और मैं जानता हूं, आप सब कुछ जानते हैं।”
मुक्तेश्वर एक पल ठहरता है, फिर उसकी आंखों में हल्की सी मुस्कान उभरती है.… मानो जैसे विराज ने उसके किसी भूले-बिसरे रिश्ते की याद दिला दी हो।
तीस साल पहले, घोड़ो का अस्तबल
धूल से भरा मैदान, बच्चों की खिलखिलाहट और घोड़ों की टापें। हकीम फैयाज़ एक लंबा, दुबला, शांत पर तेज आंखों वाला टीचर, अपने हाथ में एक चमकदार चाबुक लिए हुए, दो बच्चों को सिखा रहा था — राजेश्वर और मुक्तेश्वर।
“घोड़ा तेज नहीं, सवार सच्चा होना चाहिए। एक सच्चा वारिस सिर्फ घोड़े की लगाम नहीं, दिल की लगाम भी संभालता है। और तब उसका घोड़ा सारी दुनिया को पीछे छोड़ उसे आगे लेकर जाता है।”
मुक्तेश्वर उस समय शायद 10-12 साल का रहा होगा। उसकी आंखों में चमक थी और चेहरे पर मासूमियत...वो उसी मासूमियत से हकीम फैयाज से सवाल करता है— “गुरु जी… क्या आप मुझे कभी धोखा देंगे?”
हकीम फैयाज़ ने मुस्कुराकर कहा — “नहीं बच्चे, लेकिन तुम्हारी किस्मत एक दिन तुम्हें जरूर धोखा देगी। अगर तुमने अपनी इस मासूमियत को नहीं छोड़ा तो...। तुम राझघराना के वारिस हो बेटा, खुद को पहचानों।”
वहीं आज का दिन
विराज जैसे ही दुबारा मुक्तेश्वर के कंधे पर हाथ रखता है, वो अतीत की उन खूबसूरत यादों से बाहर आ जाता है और विराज के सवालों के जवाब में कहता है— “हकीम फैयाज़ सिर्फ घुड़सवारी के उस्ताद नहीं थे, वो हमें जिंदगी की चाल चवना भी सिखाते थे। वो कहते थे, ‘हर राजा के दिल में एक वज़ीर भी होता है, और हर वज़ीर की परछाईं एक अलग ही शतरंज का खेल खेलती है।’
“क्या आप जानते है, कुछ दिन पहले गजेन्द्र से जेल में मिलने वहीं शख्स आया था?”
विराज की ये बात सुन मुक्तेश्वर हैरान हो जाता है, लेकिन साथ ही उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान भी दौड़ जाती है।
“अगर वो जिंदा है… तो ये खेल अधूरा नहीं छूटेगा, मुझे यकीन है वो मेरे बेटे का साथ भी देंगे और उसे हिम्मत भी।”
मुक्तेश्वर का हकीम फैयाज पर इतना भरोसा देख विराज काफी हैरान हो जाता है। क्योकि उसके हाथों में जो सबूत थे, वो कोई और ही कहानी बयां कर रहे थे। ऐसे में वो बिना समय गवाएं गजेन्द्र से मिलने जयपुर जेल पहुंचता है, जहां वो गजेन्द्र से मिलने वालों का रिकॉर्ड सेक्शन भी चैक करता है।
विराज अकेले जेल के विज़िटर लॉग्स खंगाल रहा था। इस दौरान उसे रजिस्टर में दर्ज कुछ अजीब नाम भी नजर आते है, जो पिछले कुछ दिनों में गजेन्द्र से मिलने आये थे। उसकी नजर कुछ नामों पर टिक जाती है— “तारा चंद सिंह”, “नरसी मेहता”, “बाबा साहब” और एक — “एफ. हक़ीम”.…
"पक्का ये एफ. हकीम की हकीम फैयाज़ है।"
विराज की आंखें फटी रह गईं, क्योंकि वो जानता था कि ‘तारा चंद सिंह’ और ‘एफ. हक़ीम’, गजराज सिंह के वो पुराने नाम हैं, जिनका इस्तेमाल वह अपने राजनीतिक दिनों में गुप्त बैठकें और चुनावी खरीद-फरोख्त के समय करता था।
उन नामों को वहां विजिटर रजिस्टर में देख विराज मन ही मन खुद से सवाल करने लगा— “तो क्या फैयाज़ सिर्फ गुरु नहीं… राजघराना के गुप्त खेलों का हिस्सा भी था?”
विराज ने तुरंत फोन निकाला और ये सारी जानकारी मुक्तेश्वर को दी और बोला— “सर, ये आदमी सिर्फ आप लोगों का टीचर नहीं था। वो गुप्त तौर पर आपके पिता गजराज सिंह के लिए काम करता था।”
ये सुनते ही मुक्तेश्वर हक्का-बक्का रह गया, “तो वो सिर्फ जादूगर बाबा नहीं… शायद राजघराना के शतरंज का पहला खिलाड़ी था।”
जहां एक तरफ मुक्तेश्वर और विराज गजेन्द्र को बचाने के लिये अतीत के पन्नों का सच खंगाल रहे थे, तो ठीक उसी वक्त राज राजेश्वर अपने स्टडी रूम में बैठा शराब के प्याले में डूबा हुआ था। उसके एक हाथ में शराब का ग्लास था, तो दुसरे हाथ में सीलन खाई हुई कुछ पुरानी कटी-फटी फाइल…वो उन फाइलों में से एक पुरानी, लेकिन बेहद धुंधली तस्वीर को बाहर निकालता है। ये तस्वीर किसी ओर की नहीं हकीम फैयाज़ और गजराज सिंह की थी और उसके साथ ही थी एक चिट्ठी, जिस पर लिखा था…
“विज़न प्रोजेक्ट: वारिस योजना — 1975”
राज राजेश्वर उसे खोलने ही वाला होता है कि तभी वहां गजराज सिंह आ जाता है और उसके हाथ में अपनी पुरानी फाइल देख हकबका जाता है। और चिल्लाकर कहता है— ये तुम स्टडी रुम में क्या कर रहे हो राज राजेश्वर? और तुम जानते हो ना इस कमरे में शराब पीना मना है।
ठीक इसी वक्त राजघराना महल के दूसरे कौने में विराज, रिया और मुक्तेश्वर... हकीम फैयाज़ और रेनू के बीच के कनेक्शन को तलाश रहे थे। और तभी विराज ने कहा— “अगर गजराज सिंह ने रेनू की पहचान छुपाई… और फैयाज़ उसे उजागर करने लौटा है… तो ये केवल सत्ता की जंग नहीं रही। मामला राजघराना की बर्बादी नहीं मौत की कहानी लिखने का है। हमे जल्द से जल्द कुछ करना होगा मुक्तेश्वर अंकल।”
विराज के ये बात सुनते ही रिया तुरंत अपना फोन निकालती है, और एक नंबर डायल कर कुछ कहने ही वाली होती है कि तभी दूसरी ओर से आवाज आती है— “अब मैं नहीं, रेनू राजघराना की आवाज़ बनेगी। वो वारिस भी होगी और आवाज भी…और अब तुम देखना, आगे से राजघराना के फैसलें तहखाने में नहीं, अदालतों में होंगे। और अब राजघराने के किसी मर्द की वजह से कोई औरत बेआबरू नहीं होगी।”
आखिर कौन था ये शख्स, जिसे रिया ने फोन किया था?
वो क्यों कर रहा था राजघराना की भविष्यवाणी?
कौन है रेनू? और इसका क्या कनेक्शन है हकीम फैयाज़ से?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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