शारदा के कोर्टरूम में आ जाने से कोर्टरुम की दीवारों के भीतर एक अजीब सा तूफान आ जाता है। वहीं उसकी बातों से साफ था कि राजघराना के लोगों के किए जुल्म और उसकी आपबीति की कहानी का सिरा कहीं न कहीं उस तहखाने से जुड़ता था, जहाँ वर्षों से एक आवाज़ दबाई जा रही थी।
 
शारदा की बेहोशी से वहां सन्नाटा छा गया था। तभी रिया, रेनू और मुक्तेश्वर ने झुककर पहले उसके मुंह पर पानी के छीटे मारे और उसे होश में लाने की तमाम कोशिशे की। वहीं गजेन्द्र कटघरे में खड़ा दूर से सब देख रहा था इस दौरान उसकी आंखों में अपनी मां का चेहरा और एक गहरी चेतना घूम रही थी।
 
तभी उसने देखा कि शारदा की आंखें खुल गई। ये देख जहां उसके चेहरे पर हंसी दौड़ गई तो वहीं शारदा बस एकटक जज की खाली कुर्सी की ओर देखकर बड़बड़ा रही थी — “अब मैं खामोश नहीं रहूँगी। बहुत खेल खेल लिये इस हवेली ने… अब मेरे हिस्से की चुप्पी इनके जीवन का तमाशा बनेगी”

इतना बोलते-बोलते शारदा अपने बीस साल पुराने अतीत में खो गई, जब…

बीस साल पहले राजघराना में नौकरानी का काम करने वाली शारदा ने उसके साथ छेड़छाड़ और जबरदस्ती करने वालों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। लेकिन तब राघव भौंसले, राज राजेश्वर और यहाँ तक कि गजराज सिंह ने भी मिलकर उसे ‘पागल’ करार देकर तहखाने में कैद कर दिया था। 

इतना ही नहीं जब उन लोगों को शारदा की प्रेगनेंसी का पता चला, तो उसकी बच्ची को जन्म के बाद तुंरत उससे छीन लिया और शारदा के घरवालों को ये कहकर भगा दिया कि वो अपनी बच्ची को लेकर अपने आशिक यार के साथ फरार हो गई। इतना ही नहीं इन लोगों ने ये तक कहा कि सारदा ने अपने पति का कत्ल भी किया है, उस आदमी के साथ भागने के लिए।

वहीं आज का कोर्ट का दिन—

शारदा के जिंदा लौटने के साथ ही जब सच्चाई बाहर आने लगी, तो हवेली के साज़िशकर्ता बेचैन हो उठे थे। वहीं उनकी ये बेचैनी उस समय और भी ज्यादा बढ़ गई जब जज साहब दोबारा कोर्ट में लौटे और एक विशेष अनुमति के तहत शारदा की प्राथमिक गवाही दर्ज करने को तैयार हो जाते हैं। और कहते है— “शारदा जी, आपको जो कहना है कटघरें में आकर कहिये, मैं सुन रहा हूं। ये कोर्ट आज आपके बीस सालों के दर्द की पूरी कहानी सुनने को तैयार है”
 
जज की ये बात सुनते ही शारटा की आंखों में आंसू आ जाते है, जिन्हें पोछते हुए वो अपनी कमज़ोर आवाज़ में बोलती है — “मुझे बंद किया गया था क्योंकि मैंने अपने पति की मौत का सच जान लिया था। और जब मैंने इन खूनियों के खिलाफ आवाज उठाई, तो इन लोगों ने ना सिर्फ मेरी आबरू के साथ खेला, बल्कि साथ ही मुझे कैद में भी बंद कर दिया।
 
इसके आगे जो शारदा ने कहा, उसे सुन तो जज के भी कान खड़े हो गए— इतना ही नहीं मैंने ये भी देखा था, कि राघव और राजेश्वर को, उस रात… जब मुक्तेश्वर को झूठे केस में फंसाया गया। मैंने देखा था कैसे हवेली के तहखाने में ‘खून’ साफ़ किया जा रहा था। और मैंने सुना था वो नाम… ‘विक्रम’... जो तब एक मासूम बच्चा था लेकिन आज…”

वो आगे कुछ कहती उससे पहले ही राघव का बेटा विक्रम भौंसले खड़ा हो जाता है। उसकी आंखों में एक अजीब सी बेचैनी होता है और वो चिल्लाता है— “हां ये काकी सही कह रही है, मुझे बचपन से ही एक डरावना सपना आता है, और वो बिल्कुल ऐसा ही है, जैसा शारदा जी बता रही है।”

विक्रम का ये बयान पूरे कोर्ट में हड़कंप मचा देता है और तभी राज राजेश्वर हाथ पकड़ अपने बेटे को बैठाते हुए कोर्ट से माफी मांगता है और कहता है— "मेरे बेटे की दिमागी हालत थोड़ी खराब है, जज साहब…माफ कीजियेगा।"

कुछ एक घंटे के अंदर शारदा अपनी पूरी आपबीती सुना देती है, लेकिन फिलहाल जज साहब किसी की गिफ्तारी के ऑर्डर नहीं देते। बल्कि वो मुक्तेश्वर और रेनू से गुजारिश करते है कि वह पहले उसकी मैडिकल जांच करवाये और उनकी मानसिक स्थिति की रिपोर्ट कोर्ट में सब्मिट करें।
 
कोर्ट की कार्रवाई के बाद सभी लोग राजघराना लौट जाते है और पुलिस गजेन्द्र को वापस जेल में ले जाती है और कोर्ट के ऑर्डर के आधार पर उसकी सिक्योरिटी बढ़ा देती है।

ठीक इसी वक्त जैसे ही सारे लोग राजघराना हवेली लौटते है, सब एक-दूसरे को नफरत भरी नजरों से घूरते हुए अपने-अपने कमरे में चले जाते है, लेकिन तभी मुक्तेश्वर राघव को रोकता है और कहता है— "अब कैसे अपने इस मानसिक रुप से बिमार बेटे को राजघराना की कुर्सी का वारिस बनाओंगे। तुमने खुद कोर्ट में जज के सामने बयान दिया, कि तुम्हारा बेटा विक्रम एक मानसिक रोगी है। देखों तुमने अपनी क्रब खुद खोद ली।"

मुक्तेश्वर की ये बात सुन राघव तिलमिला जाता है। लेकिन वो जानता था, कि अगर वो कोर्ट में अपने बेटे के खिलाफ बयान ना देता तो सीधे-सीधे कोर्ट शारदा के बयान पर विक्रम को गवाह मानते हुए उसे और राज राजेश्वर को गिरफ्तार करने का ऑर्डर दे देते। ये ही सोचते हुए उसने मुक्तेश्वर की बात का जवाब दिया और बोला— “मैंने अभी अपने सारे पत्ते फेंके ही कहा है मुक्तेश्वर सिंह, थोड़ा इंतजार करो। सब्र का फल बहुत कड़वा मिलेगा इस बार तुम्हें। और हां मुझे सजा दिलाने से ज्यादा अपने बेटे की रिहाई और उसकी इस रखैल रिया की जान बचाने पर ध्यान दो।”

इतना कह जहां एक ओर राघव भौंसले अपने बेटे के साथ अपनी पत्नी प्रभा ताई के पास चला गया, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर अपने कमरे में पुराने दस्तावेज़ जलाने की कोशिश करता है, लेकिन तभी वहाँ बूढ़ा भीखू आ जाता है, जो उसे ये सब जलाते हुए देख लेता है, और कहता है — “बहुत जल चुका राजेश्वर बाबू, अब खुद को बचाना है तो सच बोल दीजिए।”

राजेश्वर के चेहरे पर हिचक है, पछतावा.. जैसे भाव एक साथ नजर आने लगता है। ऐसे में वो धीरे से कहता है — “अगर मैं बोलूंगा, तो राजघराना खत्म हो जाएगा… और अगर चुप रहा, तो गजेन्द्र।”
 
भीखू बस मुस्कुराता है और कहता है — “इस बार फैसला आपको नहीं, आपके ज़मीर को करना होगा राज राजेश्वर बाबा, मैंने आपको पाला है, मैं हमेशा से जानता था एक दिन आपके अंदर का अच्छा इंसान जरूर जाग जायेगा।”
 
“भीखू मुझे गजेन्द्र की बहुत चिंता हो रही है। कहीं ये राघव भौंसले उसे जेल में ही मरवा ना दें। तुम अच्छे से जानते हौ मेरा सच…मैं ना वारिस दे सकता हूं ना बन सकता हूं। ऐसे में राजघराना को बचाने के लिए जरूरी है कि गजेन्द्र सलामत रहें।”
 
राज राजेश्वर के जागते जमीर और गजेन्द्र के लिये उसके परेशान मन को देख भीखूं उसके सर पर हाथ रखते हुए कहता है— “चिंता मत करों। देखना इस केस में अब कोर्ट स्वतंत्र जांच कमेटी गठित करेगा, जिसमें सीबीआई भी शामिल होगी। यह जांच न केवल गजेन्द्र पर लगे आरोपों की होगी, बल्कि शारदा देवी के बयानों के आधार पर पूरे राजघराने के काले कल को भी खंगोलेगी। और जांच में राघव भौंसले का सच और उसके वो सारें कांड सामने आयेंगे, जिसमें तुम्हें मोहरा बनाकर उसने खेला था।”
 
जहां एक तरफ भीखू जिसने राज राजेश्वर को उसके जन्म के बाद अपने बच्चें की तरह पाला था। भीखू कहने को तो महल का एक मामूली नौकर था, लेकिन उसे राज राजेश्वर से अपनी सगी औलाद से ज्यादा प्यार था। ऐसे में एक लंबे समय बाद आज राजेश्वर के अच्छे रास्तें पर लौटने की खुशी ने उसके दिल को गदगद कर दिया था। 
 
वहीं दूसरी ओर दरवाजे पर खड़ा गजराज सिंह अपने बेटे राज राजेश्वर और अपने नौकर भीखू की बात सुन इमोशनल हो जाता है। और थक कर वहीं जमीन पर बैठा रह जाता है। उनकी आंखों से टपकती आंसू की बूंदें अब उनके गुस्से की नहीं, प्यार को कुरेदती है, जिसने राज राजेश्वर को बिगाड़ दिया था। और तभी—गजराज की आखों में एक पुरानी याद लौटती है।

फ़्लैशबैक: मुक्तेश्वर-राज राजेश्वर का बचपन, राजघराना अस्तबल

एक रहस्यमयी टीचर, जो मुक्तेश्वर और राजेश्वर दोनों को घोड़े की रेस के लिये तैयारी कराता था। वो दोंनों उसे ‘जादूगर बाबा’ कहते थे। वो दिन-रात, सुबह शाम राजघराना महल के अस्तबल में ही समय बिताता था। लंबा, दुबला, आंखों में अजीब सी चमक और हाथों में चूड़ीदार बेंत। महल के किसी सदस्य से वो ज्यादा बात नहीं करता, लेकिन मुक्तेश्वर के साथ उसका अजीब सा रिश्ता था — जैसे उसे किसी खौफ़नाक भविष्य के लिए तैयार कर रहा हो।

फिर एक दिन, ऐसा आया कि वो अचानक से कहीं गायब हो गया। ठीक उसी वक़्त जब मुक्तेश्वर ने हवेली से भागकर एक आम लड़की से शादी कर ली थी। और मुक्तेश्वर की शादी से दुखी होकर गजराज ने उसे त्याग दिया और राज राजेश्वर को अपनी गद्दी का वारिस बनाने का फैसला कर लिया। 

वहीं आज के दिन—

गजराज अपने बेटे के कमरे के बाहर जमीन पर बैठ अतीत में गुम था, वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र की जेल कोठरी रिया आई और उसके हाथ में एक डायरी थमा कर चली गई।

गजेन्द्र उस पुरानी कटी-फटी डायरी के पन्ने पलटता है। बीच में एक पन्ने पर एक स्केच बना देख वो थोड़ा हैरान हो जाता है। दरअसल ये स्केच उसी जादूगर बाबा का था और उसके नीचे लिखा है—

“नाम: हकीम फैयाज़.

पेशा: हॉर्स रेस सिखाने वाले टीचर.

मुलाकात: कोठरी नंबर 7, बीकानेर जेल.”

डायरी के उस पन्ने को पढ़ गजेन्द्र के चेहरे पर एक सिहरन दौड़ती है। वो अब जान चुका है जिस आदमी ने खुद को आध्यात्मिक सलाहकार बताया, वो असल में वही ‘जादूगर बाबा’ है, जो उसके पिता की जिंदगी से भी अचानक गायब हो गया था।
 
पर अब सवाल था — वो जेल में क्यों आया था? और गजेन्द्र से क्या चाहता है?

इन सवालों के जवाब सोचते-सोचते गजेन्द्र को आज रात फिर नींद नहीं आती। क्योकि अब रहस्य केवल महल तक सीमित नहीं रहा। अब वो राजघराने के लोगों के इतिहास से गहराई के साथ जुड़ गया था। धीरे-धीरे कर अब जो सामने आ रहा था, वो केवल साजिश नहीं, बल्कि एक पीढ़ियों पुराना खेल है, जिसमें मोहरे बनते रहे हैं — राजा, वज़ीर और वारिस।

गजेन्द्र हर हाल में अब जानना चाहता था कि सत्ता के इस खेल में आखिर वो कौन है। उसे सब राजघराना का एकलौता वारिस तो कहते, लेकिन उसे प्यार करने के बजाये उस पर हमला करने का एक भी मौका कोई नहीं छोड़ता। गजेन्द्र उस डायरी के पन्नों में पूरी तरह से मग्न हो जाता है...और तभी, उस जेल की अंधेरी कोठरी की छत से अचानक एक पंखा गिरता है, लेकिन इससे पहले वो गजेन्द्र के ऊपर गिरता, गजेन्द्र पीछे हट जाता है। उसे कुछ समझ नहीं आता कि अचानक से पंखा कैसे गिरा, लेकिन उसका ध्यान उस डायरी की ओर ही बना रहता है।

वो बार-बार उस स्केच को देखता है…और उस पर लिखा "हकीम फैयाज़" के नाम को पढ़ते हुए ना जाने क्या याद करता है। जितनी बार वो ये नाम पढ़ता है उतना बार नसों में एक सिहरन दौड़ जाती है।

उसी पल अचानक से जेल का दरवाज़ा खुलता है, जिसे देख गजेन्द्र डर से चौंक जाता है, पर सामने खड़ा सिपाही कुछ और ही कहता है — “तुमसे कोई ख़ास आदमी मिलने आया है… बीकानेर की जेल से कोठरी नंबर सात का एक बूढा कैदी।”

गजेन्द्र के चेहरे पर सवालों की परतें जम जाती हैं। वो धीरे-धीरे अपनी कोठरी के बाहर की तरफ बढ़ता है, जहाँ से अब उसकी किस्मत की असली गुत्थी खुलने वाली है।

वो आदमी गजेन्द्र से मिलने उसकी कोठरी में आता है, और धीमी सी आवाज़ में कहता है — “आ जाओ गजेन्द्र… मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था।”
 
गजेन्द्र ध्यान से देखता है, डायरी में बने स्केच की तरह वही लंबा, दुबला, सफेद बालों वाला शख्स… हकीम फैयाज़, जिसके चेहर पर झुर्रिया आ गई थी, लेकिन सच की चमक अभी तक बरकार थी और उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान भी थी। गजेन्द्र एक टक बस उसे निहारे जा रहा था, तभी वो बूढ़ा जादूगर अचानक से बोल पड़ा— “तुम्हें लगता है तुम्हें राजघराने ने पीड़ित किया… लेकिन नहीं गजेन्द्र… तुम्हें मोहरा बनाया गया, ताकि असली वारिस को रास्ते से हटाया जा सके। और वो असली वारिस... तुम नहीं हो।”
 
उस बूढ़े जादूगर की ये बात सुन गजेन्द्र की आंखें फैल जाती हैं और वो काफी हैरानी के साथ पूछता है — “मैं नहीं तो फिर कौन है?”
 
हकीम फैयाज़ धीरे से अपनी जेब से एक पुराना पेंडेंट निकालता है। जिसमें लगी है एक तस्वीर, शारदा और एक नवजात बच्ची की…“जिसे तुम 'रेनू' के नाम से जानते हो… वो ही है असली वारिस… राजघराने की ‘मातृधारा’ से जन्मी।”
 
गजेन्द्र ये सुनते ही बर्फ की तरह जम जाता है। “रेनू बुआ सा, पर वो तो नाजायज औलाद है ना...? लेकिन…”

हकीम फैयाज़ आगे कहता है — “मैं वही हूं जिसने तुम्हारे पिता और राजेश्वर दोनों को सिखाया, और आज मैं तुमसे कह रहा हूं — अब वक्त आ गया है कि रेनू को उसका हक़ दिलाओ… नहीं तो वो भी उसी तहखाने में दफन हो जाएगी, जहां उसकी मां को दो दशकों तक दफन किया गया था।”
 
अगले ही पल जेल में सायरन बजता है।

एक सिपाही भागते हुए आता है — “गजेन्द्र सिंह, तैयार हो जाइये… कोर्ट ने विशेष जांच कमेटी गठित कर दी है, और आपको तत्काल ट्रांजिट बेल पर बाहर ले जाया जा रहा है। केस अब सीबीआई के हवाले है।”

गजेन्द्र हकीम फैयाज़ की तरफ अपने बेचैन सवालों के साथ देखता है। उसका चेहरा शांत लेकिन शक से भरा हुआ, कि तभी वो बूढ़ा जादूगर कहता है— “राजघराना अब तुम्हारे हाथों में नहीं रहेगा… अब वक्त है **‘राजमाता’ के लौटने का।”

हकीम फैयाज़ इतना कह मुस्कुराता है और ये सुन गजेन्द्र चौक जाता है। 

 

आखिर हकीम फैयाज़ का क्या नाता है राजघराना के लोगों से? 

गजराज की नाजयज बेटी रेनू राजघराना की असली वारिस, पर कैसे?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

Continue to next

No reviews available for this chapter.