ये रात रिया के लिये किसी काली अमावस की रात से कम नहीं थी, वो पूरी रात नहीं सोई। गजेन्द्र की वो टूटी हुई आवाज़, उसके शरीर के हर हिस्से से बहता खून, उसकी आंखों में डर और उसके पीछे से उभरी वो परछाई पूरी रात उसकी आंखों के सामने घूमती रही। 

रिया रातभर ये ही सोचती रही कि गजेन्द्र ठीक होगा या नहीं। उस परछाई वाले शख्स ने गजेन्द्र के साथ क्या किया होगा? रिया पुलिस स्टेशन जाकर एक बार गजेन्द्र को अपनी आंखों से देखना चाहती थी, लेकिन वो गजेन्द्र की कसम के आगे मजबूर थी। वहीं उस परछाई ने जो रिया से कहा वो उसकी रगों में खून नहीं, आग बनकर दौड़ रहा था….जिसकी वजह से रिया को उससे लड़ने की हिम्मत भी मिल रही थी।

ऐसे में रिया दुबारा हवेली के उस तहखाने में गई और उसकी दरारों से झांकते हुए उस परछाईं को दुबारा आवाज देने लगी। रिया ने तमाम कोशिशे की लेकिन वो गुमनाम औरत एक भी शब्द नहीं बोली... अब उन दरारों के पीछे केवल सन्नाटा पसरा हुआ था।

उस दीवार के पीछे छिपे रहस्य से ज़्यादा डरावना अब उसके भीतर का सन्नाटा था। ये पहली बार था जब रिया को किसी ने "शारदा की बेटी…" कहकर बुलाया था, जबकि हवेली में सब रेनू को शारदा की बेटी की पहचान के तौर पर जानते थे। हारकर रिया ने लौटने का मन बनया और बोली— “लगता है ये बूढ़ी काकी मुझसे बात ही नहीं करना चाहती, मुझे रेनू को ही यहां भेजना होगा। जरूर इनका उससे कोई रिश्ता होगा।”

इसके बाद जैसे ही रिया तहखाने की सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर लौटी, हवेली के गलियारों में अजीब सी बेचैनी थी। ऐसा लग रहा था, मानो आज रात कुछ होने वाला था...कुछ बहुत बड़ा।

ठीक उसी समय गजराज और उसके राजघराना महल को बर्बाद करने के सपने देखने वाला वो शख्स बीकानेर की सीमा पर बने एक पुराना फार्महाउस में बैठे सिगार के कश लगा रहे थे। इस समय जहां उस फार्महाउस के बाहर तेज तुफान से हवा में रेत उड़ रही थी, तो वहीं अंदर एक नीम-अंधेरे कमरे में टेबल पर एक खुली बोतल और बिखरे हुए नक्शे पर उस शख्स ने कुछ मिट्टी के घोड़ें रखे थे।

ये शख्स कोई ओर नहीं राघव भोंसले था। वो एक टक बस उस नक्शें को निहारे जा रहा था, तभी उसके फार्महाउस का दरवाज़ा खुला तो राज राजेश्वर अंदर आया। उसका चेहरा पहले से ज़्यादा थका हुआ, लेकिन आंखों में कुछ बदला हुआ सा कुछ एक अजीब सी मायूसी थी।
 
“बस कर राघव,” उसने कहा, आवाज़ में पहली बार घमंड से ज़्यादा थकावट सुनाई दे रही थी। वो इतना कहकर नहीं रुका, आगे बोला— “अब और नहीं। मुक्तेश्वर प्यार से भी मेरी बात मान जायेगा, वो परिवार को हमेशा से पैसों और जायदाद से ऊपर रखता है। फिर गजेन्द्र पर भी जितना जुल्म होना था, हो चुका। अब पीछे हट जाते हैं और बातों से सत्ता के अधिकारी का मुद्दा सुलझाते हैं।”
 
राघव ने धीरे से राज राजेश्वर की तरफ सिर घुमाया, एक लंबा कश लिया, और फिर मुस्कुराया कर बोला— “You don’t protect legacies, Rajeshwar…You bury them.”

इसके बाद वो राज राजेश्वर के बेहद करीब आ गया और उसकी आंखों में आंखें डालकर बोला— “तेरे खानदान को मिटाने का ठेका किसी और ने नहीं तूने खुद उठाया था...तू ही मेरे पास पैसों से भरा वो बैग लेकर आया था, अपने भाई को अपने रास्तें से हटाने के लिये और अब तू जीत के आखरी पड़ाव पर आकर महात्मा बनना चाहता है?”

राजेश्वर ने कुछ नहीं कहा। वो बस खड़ा आंखे झुकाये राघव भौंसले की बात सुनता रहा और बीस साल पुराने अपने फैसले पर पछता रहा था। उसकी मुट्ठियाँ बंद थीं, और वो तस्वीर — जिसमें मुक्तेश्वर, गजेन्द्र और वह एक साथ खड़े थे, वो इस वक्त उसके कोट की जेब में थी। 

जहां एक तरफ राज राजेश्वर के बर्ताव में अचानक से बहुत बड़ा बदलाव आने लगा था, तो वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र की जेल की कोठरी में दिन के उजाले के समय भी काला घंना अंधेरा छाया हुआ था। पुलिस की मौजूदगी में गजेन्द्र के साथ जो हो रहा था, उससे साफ था कि उसका दुश्मन कोई आम आदमी नहीं। 

इसी बीच गजेन्द्र की आंखों पर किसी ने टार्च की रोशनी मारी। उसने आंखों को इधर-उधर घुमाया तो देखा वो उसके पापा का नौकर था बूढ़ा भीखू। जो उसके पापा का सिर्फ नौकर ही नहीं था, बल्कि उसने ही गजेन्द्र के पापा मुक्तेश्वर के केस में गवाही भी दी थी। गजेन्द्र के चेहरे पर बूढ़े भीखू को देखते ही एक खुशी की लहर दौड़ गई, कि तभी भीखू ने धीरे से कहा—

“तुझे पता है बेटा, सिंहासन से ज़्यादा भारी चीज़ एक झूठ होता है, जिसे हर वारिस अपने कंधों पर ढोता है। और वो इस बोझ को तब तक ढ़ोता है जब तक मर न जाए।”

बूढ़े भीखू की बात सुन गजेन्द्र कुछ नहीं बोला और पहले की तरह ही बस एकटक जेल की दावारों को देखता रहा। उसकी हथेली अब भी जख़्मी थी, लेकिन उस पर खुरच कर लिखा था — “रिया”
 
तभी एक वॉन्सेबल आया और गजेन्द्र की जेल का दरवाज़ा खोल बोला— “कोर्ट चलने का वक़्त हो गया, गजेन्द्र सिंह, तैयार हो जाओ।”
 
गजेन्द्र ने गहरी सांस ली। और फिर पहली बार धीमे से मुस्कराते हुए बोला— “अब सिर्फ नाम नहीं जाएगा अदालत में…खून भी जाएगा, और उसकी सच्चाई भी।”

यहां गजेन्द्र कोर्ट जाने से ज्यादा रिया को सही-सलामत देखने के लिये बेचैन हो रहा था, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर हवेली की बालकनी में अकेले खड़ा था। उसके हाथ में वही पुरानी तस्वीर थी, जिसे एक टक देख वो ना जाने क्या सोच रहा था। कि तभी उसे दूर, कहीं मंदिर की घंटियाँ बजती सुनाई दी तो उसने आसमान की ओर देखा।

फिर तस्वीर को सीने से लगाया, और खुद से सवाल किया — "जिसे मिटाना चाहता था, वही आज राजघराने की सबसे बड़ी आवाज़ बन गया है...। हम लोगों ने जो कांड किये वो अकेला उन सबका दंड झेल रहा है।"

ये कहते हुए राज राजेश्वर उन सबूतों की तरफ देखने लगा जो राघव भौंसले ने उसे गजेन्द्र को रेस फिक्सिंग के केस में बुरी तरह से फंसाने के लिये दिये थे। राघव ने साथ ही ये भी कहा था कि अगली कोर्ट कार्रवाई से पहले वो सारे सबूत वकील को देने हैं।
 
बालकनी में खड़ा राज राजेश्वर अभी ये सब सोच ही रहा होता है कि तभी, राजघराना महल के नीचे गेट पर एक काली गाड़ी आकर रुकी। इसके बाद जैसे ही कार का दरवाजा खुला उसमें से दो आदमी बाहर निकले। राज राजेश्वर ने बालकनी से देखा तो उसका चेहरा सफेद पड़ गया, क्योंकि उनमें से एक था राघव भौंसले और दूसरा कोई अनजान चेहरा था, लंबा कद, आँखों पर काला चश्मा, और चाल में ऐसा भाव जैसे हवेली उसी की हो।

राजेश्वर की धड़कनें तेज हो गईं। बार-बार उसे गौर से देखने के बाद भी राज राजेश्वर उस अजनबी को पहचान नहीं पा रहा था, लेकिन उसे राघव भौंसले के साथ देख उसका शरीर बर्फ की तरह जरूर जम गया था। 

“वो कौन है राघव के साथ?” उसने खुद से पूछा।

उसका जवाब उसे उसी क्षण मिला — जब राघव ने मुस्कुराकर ऊपर बालकनी की ओर देखा और ऊँची आवाज़ में कहा— “बहुत हुआ नाटक, राजेश्वर! अब असली वारिस से मिल लो… ये है मेरा असली मोहरा — विक्रम।”

राजेश्वर की आँखें फैल गईं।

“विक्रम...?” 

विक्रम का नाम सुनते ही राज राजेश्वर का शरीर कांप उठा। तभी राघव ने ज़ोर से ठहाका लगाया, और बोला— “हां! एकदम सही समझ रहे हो, ये मेरा और तुम्हारी प्रभा ताई का बेटा है विक्रन भौंसले और मैंने मेरे बेटे को तेरे बाप की हवेली में ही पाला और किसी को भनक तक नहीं लगी। अब देखना जो तू बीस साल में नहीं कर पाया कैसे ये बीस दिन में करके दिखायेगा। गजेन्द्र से उसकी गद्दी भी छिनेगा और उसके सारे हक-हकूक भी। और ये सब कुछ खुद गजराज सिंह अपने पोते से छीन कर अपने नाते को देगा।”

राज राजेश्वर और राघव भौंसले के बीच महल की दहलीज पर अभी ये सब बाते चल ही रही थी, कि तभी वहां गजराज, मुक्तेश्वर, रिया और रेनू आ गए। 
राघव के साथ अपने महल के अकाउंट डिपार्टमेंट में काम करने वाले लड़के को देख गजराज नें पूछा— "ये बच्चा तो हमारे अकाउंट डिपार्टमेट में काम करता है ना, ये तुम्हारे साथ क्या कर रहा है?”

विक्रम कुछ बोलता उससे पहले राघव ने कहा— “जी, पिताजी साहेब, दरअसल ये मेरा और अपकी बेटी प्रभा का बेटा है। प्रभा चाहती थी कि ये बात आपको तब बताई जाए जब ये आपके सामने खड़े होने के काबिल हो जाये।"

राघव की ये बात सुन गजराज के चेहरे पर अचानक से गुस्सें की लकीरें दौड़ गई। लेकिन तभी मुक्तेश्वर ने कहा— पिताजी हमें देरी हो रही है, कुछ ही देर में गजेन्द्र के केस की कोर्ट में सुनवाई शुरू हो जायेगी।

मुक्तेश्वर की बात सुन गजराज रिया और रेनू को कार में बैठने का इशारा करता है और मुक्तेश्वर ड्राइवर सीट पर बैठ कार को सीधे कोर्ट की तरफ दौड़ा देता है। चारों सुनवाई शुरु होने से पहले कोर्ट पहुंच जाते है। 

दूसरी ओर कोर्ट में गजेंद्र को लेकर पुलिस भी पहले से पहुंच चुकी थी। पूरा कोर्टरूम पत्रकारों से खचाखच भरा था, लेकिन गजेंद्र के चेहरे पर अब न लाचारी थी, न डर — बस एक शांति थी, जैसे वो तूफान से पहले का सन्नाटा हो।

विजय प्रताप राठौर अपनी फाइल खोल लेता है, तभी कोर्ट के गेट पर शोर मच गया— “स्टे ऑर्डर है! नया गवाह आया है, मामला पलट सकता है!”

सभी ने मुड़कर देखा, तो मुक्तेश्वर सिंह कोर्ट में दाखिल हो रहा था। उसके हाथ में एक पुराना बैग और चेहरे पर आत्मविश्वास था।
 
उसे देखते ही गजराज सिंह ने खुद से बड़बड़ाते हुए कहां— "इसने मुझे क्यों कुछ नहीं बताया, कि आज ये गवाह बनने वाला है या फिर कोई सबूत पेश करने वाला है।" 

तभी उसने देखा कि मुक्तेश्वर सीधा जज के सामने गया, बैग खोला और बोला— “जिस जगह आज मेरा बेटा खड़ा है, 20 साल पहले मैं भी वहीं खड़ा था। चंद दिनों पहले मेरे बेटे और उसकी गर्लफ्रैंड पत्रकार रिया शर्मा ने मिलकर मेरी बेगुनाही इसी कोर्ट में साबित की थी और अब मैं मेरे बेटे की बेगुनाही साबित करूंगा। आप ये जो मेरे हाथ में देख रहे है ये सबूत न सिर्फ गजेंद्र को बेगुनाह साबित करेंगे, बल्कि राजगढ़ के सबसे बड़े परिवार राजघराना की असलियत भी सामने लाएंगे।”

मुक्तेश्वर की ये बात सुनते ही ना सिर्फ गजराज के होश उड़ गए, बल्कि साथ ही राज राजेश्वर, रिया और रेनू भी भौच्चका हो गई। कोर्टरुम में बैठा हर शख्स स्तब्ध खड़ा था। तभी राघव भौंसले भी अपने बेटे विक्रम और पत्नी प्रभा ताई के साथ कोर्ट में एंटर हुआ। राघव को मुक्तेश्वर के सबूतों के बारे में कुछ नहीं पता था, इसलिए वो शांत होकर बैठ गया, जबकि उसकी पत्नी और मुक्तेश्वर की बहन प्रभा ताई के चेहरे पर एक विचित्र सा भावों का मिश्रण था, जैसे उन्हें एक ही पल में पछतावा और संतोष दोनो महसूस हो रहे थे।

दूसरी ओर जज की आंखें मुक्तेश्वर पर टिकी थीं। पूरे कोर्ट में सन्नाटा पसरा हुआ था। हर कोई जानना चाहता था कि इस पुराने बैग में ऐसा क्या है, जो एक शाही वारिस को कोर्ट तक खींच लाया और एक वारिस ही अपने पिता के आगे बगावत पर उतर गया।

तभी मुक्तेश्वर ने बैग से एक मोटी फाइल निकाली और कहा— “ये दस्तावेज़ सिर्फ रेस फिक्सिंग का सच नहीं बताते, ये उस झूठ की बुनियाद को भी उजागर करते हैं जिस पर इस राजघराने ने बीते बीस सालों में अपनी विरासत को बचाने का ढोंग किया है।”

मुक्तेश्वर की ये बात सुनते ही विराज ने तुरंत फाइल अपने हाथ में ली और जज को सौंपते हुए कहा— “जज साहब, इन दस्तावेज़ों में वो ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड हैं जो राघव भौंसले के बेटे विक्रम के खाते में गुपचुप रूप से ट्रांसफर किए गए थे। पैसा भेजने वाली कंपनी वही है, जिसने गजेन्द्र को फंसाने वाली पेन ड्राइव में नाम छुपाया गया था। और ये सब कुछ ‘भौंसले स्टेबल्स’ के नाम पर हुआ।”

ये सुनते ही सभी की निगाहें राघव और उसके बेटे विक्रम भौंसले की तरफ घूम गई और सभी दोनों के नाम को लेकर कानाफूंसी करने लगे। तभी राघव भौंसले अपनी सीट से खड़ा हुआ और बोला— “साज़िश की कहानियाँ अदालत में नहीं, फिल्मों में चलती हैं।”
 
ये सुनते ही मुक्तेश्वर मुस्कुराया। फिर बैग से एक पुराना वीडियो कैमरा निकाला और कहा— “अगर कहानियां फिल्मी हैं, तो ये देखिए असली फिल्मी फुटेज… वो रात जब गजेंन्द्र को पीटा गया, और फिर उसकी गर्लफ्रैंड रिया को कॉल पर धमाकाया गया। सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है जज साहब ये सबकुछ पुलिस की कस्टडी में हो रहा था। इन लोगों की किस्मत खराब थी कि तब इन्होंने रिया को फोन किया तो वो राजघराने के तहखाने में थी, जहां के छिपे हुए कैमरा में ये सब कैद हो गया।”

मुक्तेश्वर की ये बात सुनते ही सबके चेहरे की हवाइयां उड़ गई। राजघराना में कैमरे आखिर किसने और कब लगवाये। गजराज का गुस्सा उसके चेहरे पर दिखाई देने लगा, क्योंकि राजघराना महल का हर कोना उसके कांड का गवाह था। पोते की रिहाई वो अपनी इज्जत उछाल कर हरगिज नहीं चाहता था। वहीं कोर्ट में बैठे लोगों के बीच भी गहमागहमी फैल गई।

हालात देख जज ने तुरंत कहा—  “कोर्ट टेक्नीशियन इस फुटेज को चेक करे।”

ये सुनते ही रिया की आंखें भर आईं। गजेंद्र, जो अब तक शांत था, एक लंबी सांस लेकर बोला— “मैं अब सिर्फ नाम की सफाई नहीं चाहता, मैं चाहता हूं कि जो मैंने झेला है, उसे दोहराया न जाए।”

तभी पीछे से एक आवाज़ गूंजी — “और न ही वो दोहराया जाए जो मैंने झेला…”

सबकी नजरें दरवाज़े की ओर गईं। वहां शारदा देवी खड़ी थीं — ज़िंदा, लेकिन बदहवास-बदहाल हालत में….शारदा को जिंदा देख गजराज सिंह की आंखें फटी रह गईं और राजेश्वर की मुट्ठी बंध गई। तभी प्रभा की आंखों से आंसू बह निकले।

शारदा ने एक-एक को देखा और कहा— “बीस साल से तहखाने में बंद थी। इन जालिमों ने ही मुझे वहां बंद करवाया। मेरी सास, मेरे पति, और मेरी बेटी सबको झूठ में रखा गया… क्योंकि मेरी सच्चाई से उन जालिमों के सिंहासन की नींव हिलती नजर आती थी।”

शारदा के इन बातों से कोर्ट में हंगामा शुरु हो गया, जैसे वहां कोई बम फट गया हो।

तभी जज ने हथौड़ा बजाया — “Order- Order, please slience!”
 
शारदा ने आगे बढ़कर कैमरे की ओर इशारा किया— “इस फुटेज में सिर्फ गजेंद्र की पिटाई नहीं, मेरी आवाज़ भी है… मैं बोलती रही, कोई सुनता नहीं था।”

ये सुनते ही रिया कांप गई और गजेंद्र की आंखें नम हो गईं और रेनू बेचैन हो उठी। आखिरकार फाइनली आज उसे अपनी मां मिल ही गई थी।
 
इस सारे तमाशे के बीच फिर जज के चिल्लाने की आवाज गूंजी। जज ने गम्भीर आवाज़ में कहा— “कोर्ट सबूतों और वीडियो फुटेज का फॉरेंसिक परीक्षण करवाएगा। अगली सुनवाई में तय होगा, कि ये मामला केवल रेस फिक्सिंग का है या फिर एक शाही खून में लिपटी हत्याओं और षड्यंत्रों का। फिलहाल गजेन्द्र को जेल में ही रहना होगा। हालांकि इस बार अगर गजेन्द्र के शरीर पर एक भी चोट आती है, तो तैनात सभी पुलिस कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।"

जज के इतना कहते ही कोर्ट को अगली सुनवाई के लिये टाल दिया गया, लेकिन तभी शारदा दौड़ती हुई आई और जज के पैरों में गिरकर फूट-फूटकर रोने लगी।

जज साबह, मेरी आखरी इच्छा सुन लीजिये… मेरे बाहर आने के बाद अब राजघराना के ये हैवान मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगें। कृप्या आप मेरी गवाही आज ही सुन लीजिये। मैं आपके पैर पड़ती हूं जज साहेब….शारदा गिड़गिड़ाती रही, लेकिन जज ने कुछ नहीं सुना और सीधे कोर्टरुम से बाहर चले गए। जज के जाते ही शारदा बेहोश होकर कोर्टरुम में गिर गई।

 

 

आखिर क्या हुआ शारदा को? क्या शारदा का डर सही है? 

आगे क्या होगा गजेन्द्र के केस में? क्या कोर्टरुम में सच में मचने वाला है राजघराना के लोगों के घिनौने सच का तमाशा? 

क्या होगा राघव भौसले और राज राजेश्वर के साथ?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।

Continue to next

No reviews available for this chapter.