ध्रुवी आर्यन की तस्वीर से अपने जज़्बातों को जाहिर करने में व्यस्त थी कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। ध्रुवी ने तुरंत अपने आँसू पोछकर बिस्तर से उठ बैठी और दरवाज़े पर खड़े शख्स को अंदर आने की इज़ाजत दी। कुछ पल बाद वही नौकरानी ध्रुवी के लिए रात का खाना लेकर आई। ध्रुवी ने उसे खाना रखने को कहा और नौकरानी खाना रखकर चली गई।
कुछ देर बाद ध्रुवी बिस्तर से उठी और बाथरूम की ओर बढ़ गई। बाथरूम से फ्रेश होकर वह वापस आई और बिस्तर पर बैठकर खाना शुरू किया।
खाना खाने के बाद ध्रुवी वापस बिस्तर पर लेट गई और सोचते-सोचते आखिरकार उसे नींद आ गई। अगली सुबह जब ध्रुवी की नींद खुली, तो उसके कमरे में उसका सारा सामान रखा हुआ था जो वह अपने साथ लाई थी। ध्रुवी बिस्तर से उठी और अपने बैग से कपड़े लेकर बाथरूम की ओर बढ़ गई। शॉवर लेने के बाद ध्रुवी बाहर आई और आईने के सामने खड़ी होकर बाल बनाने लगी। तभी वही नौकरानी वापस उसके कमरे में आई। ध्रुवी ने उसे अंदर आने की इज़ाजत दी तो नौकरानी उसके सामने आकर खड़ी हो गई।
नौकरानी (अपना सर झुकाकर अदब से): बाईसा, आपको हुकुम साहब नाश्ते के लिए नीचे बुलाया है।
ध्रुवी ने नौकरानी की बात सुनी। एक पल तक उसने कुछ नहीं कहा, फिर एक पल बाद इतना ही कहा कि वह थोड़ी देर में आती है। नौकरानी ने उसका जवाब सुना और वहाँ से चली गई। कुछ देर बाद ध्रुवी तैयार हुई और नीचे आई। नीचे आने पर एक नौकरानी ने ध्रुवी को डायनिंग एरिया का रास्ता बताया। ध्रुवी डायनिंग एरिया में गई। वह एरिया काफी बड़ा और दिखने में अच्छा था। वहाँ करीब दस से पंद्रह लोगों के बैठने की व्यवस्था थी, लेकिन इस वक़्त सिर्फ़ सामने की कुर्सी पर अर्जुन अकेला अपनी कोहनी टेबल पर टिकाए बैठा हुआ था। शायद वह ध्रुवी के आने का इंतज़ार कर रहा था।
ध्रुवी ने दरवाज़े पर खड़े होकर कुछ पल तक उसकी ओर देखा। हालाँकि अर्जुन का ध्यान अपने फ़ोन की स्क्रीन पर था, उसने ध्रुवी को आते हुए नहीं देखा था। कुछ पल बाद ध्रुवी ने एक गहरी साँस ली और अर्जुन की ओर बढ़ गई। अर्जुन ने ध्रुवी के कदमों की आहट सुनी तो उसने अपना सर उठाकर उसकी ओर देखा और उसे देखकर ध्रुवी को बैठने का इशारा किया। ध्रुवी ने बिना कुछ बोले अर्जुन की बात मान ली। अर्जुन से दो कुर्सियाँ छोड़कर ध्रुवी भी एक कुर्सी पर बैठ गई। कुछ पल बाद अर्जुन ने ध्रुवी से नाश्ता करने का इशारा किया। इस बात को भी ध्रुवी ने बिना किसी ना-नुकुर के चुपचाप मान लिया और प्लेट से एक सैंडविच उठाकर अपनी प्लेट में रख लिया और खामोशी से उसे खाने लगी।
यह देखकर अर्जुन को थोड़ा अजीब लगा, और उसका अजीब लगना शायद सही भी था क्योंकि जब से वह ध्रुवी से मिला था, वह हमेशा अपने गुस्से में या अपने डर की वजह से कुछ ना कुछ बोलती रहती थी। लेकिन अब इतनी देर से वह खामोशी के साथ उसकी हर बात मान रही थी। अर्जुन ने सोचा था कि आज भी शायद ध्रुवी उससे कुछ कहेगी या कुछ पूछेगी, मगर ध्रुवी ने कुछ नहीं कहा। आखिरकार अर्जुन ने ही अपनी चुप्पी तोड़ी, यह देखने के लिए कि वाकई आज ध्रुवी का व्यवहार कुछ अजीब है या फिर वह ज़्यादा सोच रहा है।
अर्जुन (ध्रुवी की ओर देखकर): अभी थोड़ी देर में आपको एक ज़रूरी काम से हमारे साथ चलना है।
ध्रुवी (बिना कोई सवाल-जवाब किए हुए, बिना किसी भाव के): ठीक है।
अर्जुन ने ध्रुवी की बात सुनी तो उसे थोड़ी हैरानी हुई कि ध्रुवी ने बिना किसी सवाल-जवाब किए या यह पूछे कि वह उसे कहाँ ले जाना चाहता है, बस अपनी सहमति जता दी। अब अर्जुन और चुप नहीं रह सका, तो आखिरकार उसने अपने मन में चल रही बात ध्रुवी के सामने रखी।
अर्जुन (ध्रुवी की ओर देखकर, थोड़े चिंतित भाव के साथ): क्या हुआ है? आप ठीक तो हैं? कोई परेशानी है तो आप हमसे साझा कर सकती हैं?
ध्रुवी ने अर्जुन की बात सुनी तो उसने अपनी नज़रें उठाकर अर्जुन की ओर देखा और एक पल उसे देखने के बाद एक तंज भरी हल्की सी मुस्कान के साथ वापस से अपनी नज़रें अपनी कॉफ़ी के मग पर जमा लीं। अर्जुन उसकी तंज भरी मुस्कान का मतलब समझ नहीं पाया तो उसने वापस अपनी चुप्पी तोड़ी।
अर्जुन (असमंजसता भरे भाव से ध्रुवी की ओर देखकर): क्या हमने कुछ गलत कहा? आप इस तरह से मुस्कुरा क्यों रही हैं?
ध्रुवी (उसी तंज भरी मुस्कान के साथ): कुछ नहीं, बस देख रही हूँ कि लोग किस तरह से आपको तकलीफ़ देकर अनजान बन जाते हैं, जैसे उन्हें कुछ पता ही ना हो।
अर्जुन ने ध्रुवी की बात सुनी तो उसकी बात का मतलब समझ पाया कि असल में वह उसे ही यह बात कह रही है। ध्रुवी की बात सुनकर अर्जुन ने एक गहरी साँस ली और अपनी चुप्पी तोड़ी।
अर्जुन (गंभीर भाव के साथ): हम जानते हैं आप हमसे खफ़ा हैं और शायद आपका खफ़ा होना कहीं ना कहीं लाजिमी भी है, पर हम…
ध्रुवी (अर्जुन की बात को बीच में ही काटते हुए): जानती हूँ मैं, और कई मर्तबा सुन भी चुकी हूँ कि आप यह सब अपनी पत्नी के सपने को पूरा करने के लिए, अपनी बेटी के लिए, अपने परिवार के लिए या जिन भी लोगों के लिए कर रहे हैं। बट टू बी ऑनेस्ट, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप यह किसके लिए और आखिर क्यों कर रहे हैं। अगर मुझे फर्क पड़ता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे आर्यन से और मैं उसी के लिए यह सब कर भी रही हूँ। तो आप बिल्कुल बेफ़िक्र रहें। मैं अपने काम को पूरी लगन और शिद्दत से करूँगी क्योंकि यह काम सिर्फ़ मेरे लिए काम नहीं है, बल्कि मेरे आर्यन की ज़मानत है और अपने आर्यन की ज़िन्दगी और सलामती के लिए मैं यह तो क्या कुछ भी करने को तैयार हूँ, कुछ भी, फिर चाहे अपनी जान देनी हो या फिर किसी की जान लेनी हो, मैं पीछे नहीं हटूँगी।
इतना कहकर ध्रुवी वहाँ से उठी और वापस अपने कमरे में जाने लगी कि दरवाज़े पर जाकर वह कुछ सोचकर रुकी और कुछ कहने के लिए अर्जुन की ओर पलटी।
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