कमिश्नर और मिस्टर सिंघानिया दोनों की नज़र पूरी तरह आर्यन पर टिकी थी। आर्यन का दिल डर और घबराहट से जोरों से धड़क रहा था। लेकिन अगले ही पल कमिश्नर की बात सुनकर वह असमंजस में पड़ गया और ध्रुवी और कमिश्नर की ओर देखने लगा।

कमिश्नर (ध्रुवी की ओर देखकर): “तो यही है तुम्हारा वह दोस्त, जिससे मिलने के लिए तुम हॉस्टल गई थीं और वहाँ एक्सीडेंटली तुम्हारा पैर फिसल गया और तुम नीचे गिर गई थीं?”

ध्रुवी ने कमिश्नर की बात सुनी, आर्यन की ओर देखा और हाँ में अपना सिर हिलाया।

कमिश्नर: “क्या तुम पक्का हो, मिस ध्रुवी? क्योंकि जिस तरह से तुम्हारी हालत है और तुम्हें जितनी चोटें लगी हैं, उसको देखकर नहीं लगता कि यह सब महज एक संयोग है।”

ध्रुवी (धीमी और कमज़ोर आवाज में): “झूठ बोलने की कोई वजह भी तो होनी चाहिए ना सर!”

कमिश्नर: “हम्मम... ठीक है... मैं तुम्हारे बयान की रिपोर्ट दर्ज करवाता हूँ।”

ध्रुवी ने फिर से धीरे से हाँ में अपना सिर हिलाया।

ध्रुवी (धीमी और कमज़ोर आवाज में): “हाँ सर... (आर्यन की ओर देखकर) शायद आज मैं आर्यन की वजह से ही मौत के मुँह से लौट कर आई हूँ। शायद आर्यन नहीं होता तो मैं ज़िंदा भी नहीं रह पाती। मेरी साँसें आर्यन की कर्ज़दार हैं सर!”

ध्रुवी की बात सुनकर आर्यन की नज़रें उसके चेहरे पर टिक गईं, जहाँ कई भाव उसे साफ़ दिख रहे थे।

मि. सिंघानिया (शिकायती लहजे में): “ध्रुवी, क्या बात है? क्या हो गया है? तुम जानती हो ना तुम मेरे लिए क्या मायने रखती हो, फिर भी ऐसी बातें कर रही हो, खुद के मुझसे दूर जाने की बात कर रही हो?”

ध्रुवी (धीरे से मुस्कुराकर): “परेशान मत हो पिताजी... इतनी जल्दी आपका पीछा छोड़कर मैं कहीं नहीं जाने वाली। अभी तो मुझे आपको बहुत परेशान करना है। परेशान मत हो... कहीं नहीं जा रही मैं!”

मिस्टर सिंघानिया (हौले से मुस्कुराकर): “और मैं जाने भी नहीं दूँगा, फिर चाहे मुझे इसके लिए ईश्वर से ही क्यों ना लड़ना पड़े। (आर्यन की ओर देखकर) और धन्यवाद नौजवान... बहुत-बहुत धन्यवाद... दरअसल धन्यवाद तो बहुत ही मामूली शब्द हैं। तुमने जो किया है वो बहुत ही अनमोल है, जिसके लिए मैं अगर अपनी पूरी दौलत भी तुम पर लुटा दूँ तो भी कम हैं। आज तुम्हारी वजह से मेरी बेटी की जान बची है और तुम्हारा यह एहसान मुझ पर एक बहुत बड़ा कर्ज़ है, जिसे तुम जब चाहो, जैसे चाहो मुझसे कुछ भी मांगकर, मुझे इस एहसान की एक छोटी सी किस्त के रूप में उतारने का मौका दे सकते हो!”

आर्यन (अपना सिर ना में हिलाते हुए): “कृपया सर... ऐसा कुछ भी नहीं है!”

मि. सिंघानिया (एक पल को ध्रुवी की ओर देखकर): “तुम नहीं जानते... ध्रुवी मेरे लिए मेरी ज़िंदगी है और असल मायनों में आज तुमने ध्रुवी की नहीं, बल्कि मेरी ज़िंदगी बचाई है और इसके बदले तुम जो चाहो मुझसे मांग सकते हो। मैं कभी ना नहीं कहूँगा।”

आर्यन ने मिस्टर सिंघानिया की बात सुनी और फीकी सी मुस्कान मुस्कुराया।

कमिश्नर (मिस्टर सिंघानिया की ओर देखकर): “मि. सिंघानिया, मुझे आपसे ध्रुवी के केस के चलते कुछ ज़रूरी कागज़ों पर आपके हस्ताक्षर चाहिए। सो अगर आपको कोई आपत्ति नहीं है... कृपया आपको कुछ औपचारिकताएँ पूरी करने के लिए थोड़ी देर के लिए मेरे साथ बाहर चलना होगा!”

मिस्टर सिंघानिया: “ज़रूर... (ध्रुवी की ओर देखकर) मेरे प्यार, मैं अभी आता हूँ!”

ध्रुवी ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई। कुछ पल बाद मिस्टर सिंघानिया कमिश्नर के साथ आईसीयू से बाहर चले गए। उनके जाने के बाद आर्यन कुछ पल खामोशी से ध्रुवी के बिस्तर के पास रखे स्टूल पर बैठ गया। उसकी नज़रें ध्रुवी के चेहरे पर टिकी थीं, जिन्हें आर्यन उसकी ओर ना देखकर भी महसूस कर पा रहा था। कुछ पल शांत रहने के बाद आर्यन ध्रुवी की ओर देखकर बोला:

आर्यन (ध्रुवी की ओर देखकर): “तुम ऐसे क्यों देखती रहती हो मुझे?”

ध्रुवी (धीमी मुस्कान से कमजोर लहजे के साथ अपने दिल की ओर इशारा करते हुए): “बहुत सुकून मिलता है यहाँ!”

आर्यन (एक पल रुककर): “तुमने अपने पिताजी और कमिश्नर से झूठ क्यों कहा कि मेरी वजह से तुम्हारी जान बची है, जबकि सच तो कुछ और ही था? और असल में तुम मेरी ही वजह से...(एक पल रुककर)... कूदी थी?”

ध्रुवी (धीमी और कमजोर आवाज में): “मैंने कोई झूठ नहीं कहा... मैंने सिर्फ़ सच ही कहा है। क्योंकि शायद अगर तुम्हारा प्यार मेरे जीने की वजह नहीं होता, तो मैं कभी ज़िंदा बचती ही नहीं और इस वक़्त यहाँ ना होकर सीधा श्मशान घाट पर होती!”

आर्यन (एक पल को अपनी आँखें बंद करके): “ध्रुवी तुम...”

ध्रुवी (बीच में आर्यन की बात काटते हुए): “फिलहाल मेरे अंदर इतनी ऊर्जा बाकी नहीं है कि मैं तुमसे लगातार बात कर सकूँ या बहस कर सकूँ। इसीलिए फिलहाल बस मेरे एक साधारण से सवाल का जवाब दो... क्या तुम मुझसे प्यार करते हो या नहीं?”

इस बार ध्रुवी के सवाल सुनकर आर्यन के चेहरे पर न तो गुस्से के भाव थे और न ही निराशा। उसके चेहरे पर हैरानी के साथ एक कोमलता थी।

आर्यन (एक पल तक ध्रुवी को देखने के बाद): “क्या हो तुम यार? आखिर हो क्या तुम? मतलब हॉस्पिटल के बिस्तर पर मरने वाली हालत में आ पड़ी हो, लेकिन अपने इस बेकार सवाल को अभी तक नहीं भूली!”

ध्रुवी (धीमी और कमजोर आवाज के साथ): “और भूलने भी नहीं वाली। और अगर इस बार तुमने मुझे ना कहा, तो मैं इस बार तीसरी नहीं... मैं सीधा 13वें माले से छलांग लगाऊँगी ताकि मेरे पिताजी का अस्पताल का खर्चा बच जाए और वो मुझे सीधा श्मशान ले जाए!”

आर्यन (अपने हाथ ध्रुवी के आगे जोड़ते हुए तपाक से): “बस करो देवी... बस करो! तीसरा माला ही मुझे इतना भारी पड़ गया कि एक-एक लम्हा मेरे लिए ऐसा गुज़रा जैसे मेरे सर पर शनि सवार हो। और कहीं अगर अबकी बार तुम 13वें माले से कूदी तो मैं तो समझो गया काम से ही!”

ध्रुवी: “तो फिर मान लो मेरी बात और छोड़ दो अपनी ज़िद!”

आर्यन (अपने काँधे उचकाकर): “हम्मम... तुम्हें लगता है कि मेरे पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है!”

ध्रुवी (अविश्वास और हैरानी भरे भाव से आर्यन की ओर देखकर): “क्या... क्या कहा तुमने? और मतलब क्या है तुम्हारा इस बात से? (अपनी हालत भूलकर एक पल रुककर उत्सुकता से)... क्या कहा तुमने... जरा एक बार फिर दोहराकर कहो?”

आर्यन (अपनी भौंहें सिकोड़कर): “मेरे कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि जल्द से जल्द ठीक हो जाओ। (मज़ाक करते हुए) क्योंकि अगर तुम ऐसे ही टूटी-फूटी रही तो सारा कॉलेज मेरा मज़ाक उड़ाएगा कि आर्यन मल्होत्रा ने एक प्रेमिका बनाई और उसकी इकलौती प्रेमिका वो भी ऐसी टूटी-फूटी सी... मतलब कोई क्लास तो होनी चाहिए ना!”

ध्रुवी (आर्यन की बात सुनकर जल्दी से उत्साहित होकर उठने की कोशिश करते हुए): “आर्यन क्या तुम...”

ध्रुवी ने आर्यन की बात सुनी तो कुछ पल तक उसे ऐसे देखती रही जैसे वो खुली आँखों से कोई खूबसूरत सुनहरा सपना देख रही हो। उसे अपने कानों और आँखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि आखिर इतने इंतज़ार और सब्र के बाद आखिरकार आज आर्यन ने ध्रुवी की मोहब्बत और जुनून के आगे अपने घुटने टेक दिए। कुछ पल बाद जब ध्रुवी को पूरी तरह यकीन हो गया कि यह कोई सपना नहीं है, बल्कि उसके ख्वाब के पूरे होने की शुरुआत थी, तो वह इतनी उत्साहित हो गई कि वह भूल गई कि वह कहाँ है। जैसे ही उसने उठने की कोशिश की, उसका पूरा शरीर चोट की वजह से दुख गया और उसके मुँह से एक दर्द भरी तेज आह निकल गई। यह देखकर आर्यन जल्दी से बेंच से उठकर उसके पास बिस्तर की ओर बढ़ा और सावधानी से ध्रुवी का सिर वापस बिस्तर पर रखा।

आर्यन (ध्रुवी को डाँटते हुए): “तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? संभल के नहीं कर सकती? कहाँ की जल्दी है तुम्हें? पागल हो गई हो क्या?”

ध्रुवी (बेवकूफ़ी से मुस्कुराते हुए): “हाँ हो गई हूँ पागल... वो भी तुम्हारे प्यार में। और अब तुमसे अपने प्यार का इज़हार सुनने के बाद तो मैं मर भी जाऊँ तब भी कोई ग़म नहीं!”

आर्यन (अपना सिर ना में हिलाते हुए): “सच में लड़की... तुम पागल हो... पूरी तरह पागल!”

ध्रुवी: “वो तो मैं हूँ!”

आर्यन ने ध्रुवी की बात सुनी और हौले से मुस्कुराया। ध्रुवी आगे कुछ बोलती कि तभी कमरे में मिस्टर सिंघानिया डॉक्टर के साथ वापस आ गए।

मि. सिंघानिया (ध्रुवी को चेक करते डॉक्टर से): “मेरी बेटी कब तक पूरी तरह ठीक होगी डॉक्टर? और कोई गंभीर समस्या तो नहीं हुई है ना इसे? अगर कोई भी बात है तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं इसे किसी भी बेहतरीन देश के सबसे अच्छे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए तैयार हूँ। बस मुझे मेरी बेटी बिल्कुल ठीक चाहिए!”

डॉक्टर (व्यावसायिक लहजे में): “मैं आपकी भावनाएँ अच्छे से समझता हूँ मि. सिंघानिया। लेकिन आप चाहें ध्रुवी को किसी भी डॉक्टर के पास ले जाएँ, सबका यही जवाब होगा। (एक पल रुककर) ध्रुवी को पूरी तरह ठीक होने में थोड़ा समय लगेगा और इस वक़्त इसे विशेष देखभाल की बेहद ज़रूरत है। (ध्रुवी की ओर देखकर) और तुम्हें भी अपना विशेष ध्यान रखने की सख्त ज़रूरत है!”

मि. सिंघानिया (ध्रुवी की ओर देखकर): “इस लड़की को ये बात अच्छे से समझाएँ डॉक्टर... जो बिल्कुल भी खुद पर ध्यान नहीं देती है!”

ध्रुवी (हल्की सी मुस्कान के साथ): “परेशान मत हो पिताजी... (आर्यन की ओर देखकर) अब तो मुझे भी जल्द से जल्द ठीक होना है ताकि मैं अपनी आने वाली खूबसूरत ज़िंदगी को खुलकर और पूरे मन से जी सकूँ!”

मि. सिंघानिया (ध्रुवी के माथे को चूमते हुए): “ज़रूर मेरी जान... बिल्कुल जियोगी तुम अपनी ज़िंदगी और ठीक वैसे ही जैसे तुम चाहती हो। (थोड़ी भावुकता के साथ) बस आइन्दा ऐसी लापरवाही कभी मत करना। तुम नहीं जानती मेरी साँसें ही अटक गई थीं जब मैंने तुम्हारे हादसे की बात सुनी थी। तुम्हारे बगैर मेरा आखिर है ही कौन और ईश्वर ना करे तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता!”

ध्रुवी (अपने पिताजी की ओर देखकर): “परेशान मत हो पिताजी... मैं ठीक हूँ बिल्कुल... आप इतना मत सोचिए!”

मि. सिंघानिया: “हम्मम... लेकिन मैंने फ़ैसला कर लिया है... आज के बाद तुम अकेले कहीं भी नहीं जाओगी!”

ध्रुवी: “लेकिन पिताजी...”

मि. सिंघानिया (ध्रुवी की बात को बीच में काटते हुए): “अभी कुछ वक़्त पहले ही डॉक्टर ने तुम्हें ऑपरेट किया है। अभी तुम्हारे लिए इतनी बातें करना बिल्कुल भी ठीक नहीं है। इसीलिए अब बस तुम आराम करो और आराम से सो जाओ!”

ध्रुवी (हौले से अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): “हम्मम...”

मि. सिंघानिया ने ध्रुवी को आँखें बंद करने के लिए कहा और ध्रुवी ने ऐसा ही किया। कुछ देर मि. सिंघानिया ध्रुवी का सर थपथपाते रहे और कुछ ही देर में ध्रुवी दवाई और इंजेक्शन के असर से गहरी नींद में चली गई। उसके सोने के बाद मि. सिंघानिया ने एक बार फिर उसका माथा चूमा, उसे कंबल ओढ़ाकर आर्यन और डॉक्टर के साथ कमरे से बाहर निकल गए।

 

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