कुछ पल बाद, जब आर्यन की आंखों से अंधेरा छटा और उसे साफ नजर आया, तो उसने भी अपने सामने खड़ी ध्रुवी को देखा। वह भी ध्रुवी को अपने सामने देखकर कुछ पल तक स्तब्ध सा रह गया। कुछ पल बाद, जैसे-तैसे करके आर्यन ने खुद को, और खुद के चेहरे पर उमड़ते जज्बातों को सामान्य करने की कोशिश करते हुए, अपनी चुप्पी तोड़ी।

 

आर्यन (चेहरे पर आए उमड़ते जज्बातों के साथ भावुक होकर): वहीं खड़ी रहोगी? एक बार गले भी नहीं लगाओगी? (एक पल रुककर) तरस गया हूँ तुम्हारे स्पर्श को महसूस करने के लिए भी!!!

 

ध्रुवी ने आर्यन की बात सुनी, तो भावुकता से दौड़कर सीधा आर्यन के गले से जा लगी और उसके कंधे पर अपना सर रखकर बेहिसाब सुबकने लगी। इस वक्त आर्यन इतना मजबूर था कि वह चाहकर भी अपनी ध्रुवी के आंसू तक नहीं पोंछ सकता था। उसके दोनों हाथ बंधे थे; इसीलिए ध्रुवी को छूना तो दूर, वह इस वक्त उसे दिलासा देने की स्थिति में भी नहीं था।

 

आर्यन (बेबसी भरे लहजे से): इस वक्त मैं खुद को जितना बेबस और बेकार महसूस कर रहा हूँ, जिंदगी में कभी नहीं किया। (एक पल रुककर, भावुकता के साथ) मैं तो इतना मजबूर हूँ कि एक बार तुम्हें अपने सीने से भी नहीं लगा सकता।

 

ध्रुवी ने आर्यन की बात सुनी, तो वह आर्यन से कुछ दूर हुई और आर्यन की नम आँखों को अपने हाथों के प्यार भरे स्पर्श से साफ किया। आर्यन के चेहरे को अपने हाथों में थामते हुए, बारी-बारी से उसकी दोनों आँखों को चूम लिया।

 

ध्रुवी (भावुकता से): तुम मेरी आँखों के सामने हो, मैं तुम्हें छू पा रही हूँ; मेरे दिल को सुकून पहुँचाने के लिए यही बहुत है।

 

ध्रुवी ने आर्यन के हाथों की ओर देखा, जो एक मोटी रस्सी से बंधे हुए थे और जिनके निशान उसकी हथेलियों में गढ़े हुए थे, जिसमें हल्का सूखा खून भी लगा हुआ था। ध्रुवी का दिल कर रहा था कि वह अभी और इसी वक्त अपने आर्यन को खोलकर इस दर्द से आजाद कर दे, लेकिन वह मजबूर थी। इन लोगों के बीच रहकर वह ऐसा कोई भी कदम चाहकर भी नहीं उठा सकती थी। कुछ पल बाद, खुद को संभालने के बाद, ध्रुवी ने आखिर में एक बार फिर अपनी चुप्पी तोड़ी।

 

ध्रुवी (भर्राए गले के साथ): ये बताओ कैसे हो तुम?

 

आर्यन (दर्द भरी मुस्कान के साथ): ठीक ही हूँ, तुम बताओ कैसी हो?

 

ध्रुवी (दर्द भरी भावुकता के साथ): तुम्हारे बिना कैसी हो सकती हूँ?

 

आर्यन ने ध्रुवी की बात सुनी, तो मिले-जुले भावुकता के साथ उसकी ओर देखा।

 

ध्रुवी (वापस से अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): क्या ये लोग तुम्हें मारते हैं, आर्यन? क्या ये लोग तुम पर हाथ उठाते हैं? बोलो, आर्यन?

 

आर्यन (बेबसी भरी मुस्कान के साथ): अगर मार देते तो बात ही क्या थी फिर? कम से कम ये सारी तकलीफें, ये सब उलझनें, अगर मुझे मार देते, तो कम से कम मेरी वजह से तुम्हें इन सारी परेशानियों और तकलीफों से तो होकर नहीं गुजरना पड़ता।

 

ध्रुवी (बेचैनी भरी भावुकता से): प्लीज, आर्यन, ऐसी बातें मत करो। तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती। तुम मेरे लिए मेरी ज़िंदगी हो!!

 

आर्यन (बेबसी भरे भाव के साथ): बस इसी बात की तो ज़्यादा तकलीफ है कि मैं जाने-अनजाने तुम्हारे दुखों का कारण बन गया हूँ और मेरी वजह से आज तुम ऐसी सिचुएशन में हो, जो किसी के हाथों की कठपुतली बनी बैठी हो।

 

आर्यन की बात सुनकर ध्रुवी के चेहरे पर अचानक ही हैरानी, शॉक और सवालिया भाव उभर आए। आर्यन ने ध्रुवी की ओर देखा, तो उसकी असमंजसता समझते हुए आखिर में आर्यन ने अपनी चुप्पी तोड़ी।

 

आर्यन (अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): इन्हीं लोगों में से एक ने मुझे बताया कि मुझे यहाँ इसलिए रखा गया है ताकि वह तुमसे अपना कोई काम करा सके।

 

ध्रुवी (उलझन भरे भाव से): आर्यन, मैं…

 

आर्यन (ध्रुवी की बात को काटते हुए): ध्रुवी, देखो मैं जानता हूँ तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, मुझे बहुत चाहती हो, लेकिन तुम मेरे लिए अपनी ज़िंदगी को दांव पर लगाओ, ये मुझे हरगिज़ मंज़ूर नहीं है। तुम मेरी फ़िक्र मत करो, बस तुम चली जाओ यहाँ से, वापस अपने पापा के पास, अपने घर लौट जाओ।

 

ध्रुवी (भावुकता के साथ): आर्यन, तू... तुम ऐसा... ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? मैं तुम्हें इस हालत में हरगिज़ अकेला नहीं छोड़ सकती।

 

आर्यन (गंभीर भाव से, मगर बेचैनी के साथ): प्लीज, मेरी खातिर चली जाओ यहाँ से। मैं तुम्हें ऐसे किसी के हाथ की कठपुतली बनते हरगिज़ नहीं देख सकता। (रूआँसा होकर) प्लीज, चली जाओ यहाँ से, मेरे लिए, तुम्हें मेरा वासता है ध्रुवी, चली जाओ यहाँ से!!!

 

इधर दूसरी तरफ, अर्जुन, जो बिना किसी भाव के अपने लैपटॉप में ध्रुवी और आर्यन को ना सिर्फ़ देख पा रहा था, बल्कि उनकी हर एक बात को सुन भी रहा था, वह एकटक उन दोनों को देखते हुए शायद वह उनके बीच के प्यार और अपनेपन को महसूस करने की कोशिश कर रहा था, खास करके ध्रुवी को।

 

अर्जुन (मन में): हैरानी होती है हमें कभी-कभी।

 

ध्रुवी की आँखों में जो दीवानगी, जो जुनूनियत अर्जुन को नज़र आती थी, वह शब्दों से परे थी। इन दोनों को यूँ देखकर, एक्ज़ैक्टली इस वक्त अर्जुन के दिमाग में क्या चल रहा था, कहना मुश्किल था। आखिर में, कुछ पल बाद अर्जुन ने अपना लैपटॉप बंद किया और बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठकर अपने बंगले से निकल गया। उधर, ध्रुवी ने आर्यन की बात सुनी, तो एक गहरी साँस ली और उसकी बात को बिल्कुल इग्नोर करते हुए, उसने उससे सवाल किया।

 

ध्रुवी (वही बराबर में नाश्ते की थाली रखे हुए देख): तुमने कुछ खाया नहीं?

 

आर्यन (परेशानी भरे भाव के साथ अपनी बात कहने की कोशिश करते हुए): ध्रुवी, तुम मेरी बात…

 

ध्रुवी (आर्यन की बात को बीच में ही काटते हुए): तुम्हें मेरी कसम है, आर्यन, प्लीज तुम अब इस बारे में मुझसे कोई बात नहीं करोगे।

 

आर्यन (बेबसी भरे भाव के साथ): ध्रुवी??

 

ध्रुवी (आर्यन की सवालिया नज़रों को इग्नोर करते हुए, फ़िक्र भरे लहज़े से): आर्यन, जब तुम्हारे हाथ बंधे हैं, तो फिर तुम खाना कैसे?

 

आर्यन (हल्की नाराज़गी से ध्रुवी को जवाब देते हुए): खाने के वक्त ये लोग मेरा एक हाथ खोल देते हैं। आज शायद तुम आ रही थीं, इसलिए उन्होंने मेरे हाथ नहीं खोले।

 

ध्रुवी ने आर्यन की बात सुनी, तो दर्द भरी भावुकता के साथ उसकी ओर देखा। तो आर्यन ने नाराज़गी से अपना मुँह दूसरी ओर फेर लिया और फ्रस्ट्रेशन से एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं। लेकिन जब अगले ही पल ध्रुवी के हाथों का स्पर्श उसे अपने दाएँ गाल पर महसूस हुआ, तो उसने वापस से अपनी आँखें खोलीं। तो देखा कि ध्रुवी हाथ में नाश्ते की थाली लिए, उसकी ओर प्यार से एक निवाला बनाकर आर्यन की ओर बढ़ाए हुए थी।

 

ध्रुवी (प्यार भरी भावुकता से): प्लीज़, मेरे लिए!

 

आर्यन चाहकर भी ध्रुवी को ना नहीं कह पाया और जैसे ही उसने ध्रुवी के हाथ से निवाला मुँह में लिया, तो अनायास ही आर्यन और ध्रुवी दोनों की आँख से आँसू बहकर उनके गालों पर आ गए। ऐसे ही दर्द और खुशी भरी भावुकता के तालमेल के साथ इन दोनों ने ये कुछ कीमती लम्हे एक-दूसरे के साथ गुज़ारे और कुछ देर और आर्यन के साथ वक्त बिताने के बाद, आखिर में शक्ति ने ध्रुवी को यहाँ से चलने का फ़रमान जारी कर दिया।

 

शक्ति (सख्त लहज़े से): ए छोरी, बहुत हुआ ये मिलाप, अब बस यहाँ से चलना है।

 

शक्ति की बात सुनकर, ना चाहते हुए भी, ध्रुवी ने अपने दिल पर पत्थर रखकर, दर्द भरी भावुकता के साथ, आर्यन का सर चूमकर उससे विदा ली।

 

ध्रुवी (आर्यन के गाल को छूते हुए): अपना ख्याल रखना, अपने लिए ना सही, (एक पल रुककर) मेरे लिए!

 

आर्यन (दुखी भाव से): तुम भी!

 

इसी के साथ ही, बिना एक पल भी वहाँ रुके, ध्रुवी उस कमरे से बाहर निकल आई, जबकि आर्यन मिले-जुले भाव से उसे जाते हुए देखता रह गया।

 

शक्ति (बाहर आकर ध्रुवी से): ए छोरी, यहाँ निकलने से पहले, थारे ने अपनी आँखों पर फिर से पट्टी बाँधनी है!

 

ध्रुवी ने बिना किसी बहस या ना-नुकुर के, चुपचाप शक्ति की बात मानते हुए अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली। कुछ देर बाद ही उनकी गाड़ी वापस से अर्जुन के बंगले की ओर निकल गई, लेकिन जैसे ही ध्रुवी की गाड़ी यहाँ से निकली, कि एकाएक अर्जुन की गाड़ी वहाँ आकर रुकी।

 

ड्राइवर (अर्जुन को सोच में गुम देखकर): हुकुम सा, हम लोग पहुँच गए हैं!

 

अर्जुन (गंभीरता से): हम्मम!

 

अर्जुन गाड़ी से उतरा। इस वक्त उसके चेहरे पर कोई जज़्बात या भाव नहीं थे; वह सिर्फ़ कोरे भाव को अपने चेहरे पर लिए वहाँ आया और सीधा आर्यन के कमरे की ओर बढ़ गया, जहाँ पर उसे कैद किया हुआ था। अर्जुन के साथ उसके एक-दो आदमी भी थे। अर्जुन जैसे ही आर्यन के कमरे में पहुँचा, तो आर्यन ने उसे देखकर अपने चेहरे के भाव सख्त कर लिए।

 

आर्यन (रूखे लहज़े से): तुम??

 

उसके भाव देखकर यह अंदाज़ा साफ़ तौर पर लगाया जा सकता था कि वह आर्यन से पहली बार नहीं मिल रहा था, मतलब कि यकीनन अर्जुन उससे पहले भी यहाँ मिलने आ चुका था।

 

आर्यन (सख़्त भाव से): क्यों आए हो तुम यहाँ? हमारे जज़्बातों का तमाशा देखने?

 

अर्जुन ने आर्यन के चेहरे के भाव और बात को पूरी तरह इग्नोर करते हुए, उसकी दिशा में अपने कदम बढ़ा लिए और फिर अगले ही पल उसने अपने आदमी को इशारा किया, तो उन्होंने आर्यन के हाथ और पैर की रस्सी को फ़ौरन खोल दिया। आर्यन ने अपने हाथ खोलने पर अपने हाथों को सहलाया और अर्जुन की ओर एक सख्त नज़र से देखा।

 

आर्यन (सख़्त भाव से अर्जुन की ओर देखकर): मिस्टर अर्जुन, अगर तुम्हें लगता है कि मेरा इस्तेमाल करके तुम मेरी ध्रुवी को मजबूर कर सकते हो, उसे बेबस कर सकते हो और जो चाहो उससे वह करवा सकते हो, तुम अपने मक़सद में कामयाब हो सकते हो?

 

अर्जुन का बॉडीगार्ड (कड़क आवाज़ में): ए लड़के, भूलो मत तुम हुकुम सा के सामने खड़े हो!

 

आर्यन (बॉडीगार्ड की बात को अनसुना करते हुए): मिस्टर अर्जुन, तुम्हें लगता है कि ध्रुवी की बेबसी का फ़ायदा उठाकर (अपनी कलाई सहलाते हुए) तुम उसे अपने फ़ायदे के लिए उसका इस्तेमाल कर सकते हो, सिर्फ़ मेरे दम पर, मुझे मोहरा बनाकर? तो तुम बिल्कुल गलत (एक पल रुककर) नहीं हो, (विजयी मुस्कान के साथ) बल्कि आप बिल्कुल सही हैं, हुकुम सा!!!

 

(क्या आर्यन की मोहब्बत छल थी?? क्या ध्रुवी अर्जुन और आर्यन के लिए सिर्फ एक प्यादा एक मोहरा थी??..... जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज–बाज़ी इश्क़ की।)

 

 

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