अगली सुबह ध्रुवी की नींद खुली। उसने एक सरसरी नज़र कमरे में डाली, और कुछ पल बाद उत्सुकता भरे भाव के साथ बिस्तर से नीचे उतरी। उसके चेहरे के हाव-भाव से साफ़ जाहिर हो रहा था कि यह उत्सुकता आर्यन से मिलने के लिए थी। ध्रुवी जल्दी से अपने कपड़े लेकर बाथरूम में गई और नहा कर बाहर आई। उसने जल्दी-जल्दी अपने बालों का रफ़ू-जुड़ा बनाया और फिर जल्दी से नीचे आई। उसने देखा कि रोज़ की तरह अर्जुन नाश्ते की टेबल पर बैठा, उसका इंतज़ार कर रहा था।
ध्रुवी बिना कुछ बोले बस नाश्ते की टेबल पर बैठ गई। अर्जुन ने उसे बैठकर नाश्ता करने का इशारा किया। तो जवाब में उसने अपनी गर्दन हिला दी और अपने प्लेट में एक कटलेट निकाली। लेकिन वह खाने के नाम पर बस उस कटलेट से खेल रही थी। अर्जुन ने उसके व्यवहार को देखा और उसे सोच में डूबा देखा। वह एक पल तक उसे निहारा और फिर अपनी चम्मच नीचे रखते हुए, अपनी दोनों कोहनियों को टेबल पर टिकाते हुए, अपनी हथेलियों पर ठोड़ी टिका ली। कुछ पल बाद उसने अपनी चुप्पी तोड़ी।
अर्जुन (ध्रुवी की ओर देखकर गंभीर भाव से): “कुछ कहना चाहती हैं आप?”
ध्रुवी (जल्दी से अर्जुन की ओर देखकर): “मैं बस ये पूछना चाह रही थी कि...”
अर्जुन (ध्रुवी के चेहरे के भाव पढ़ते हुए गंभीर लहज़े से बीच में ही उसकी बात काटते हुए): “नाश्ता कर लीजिए। फिर आप आर्यन से मिलने जा सकती हैं।”
ध्रुवी (फट से अपनी कुर्सी से उठते हुए बैचेनी भरे लहज़े से): “मे...मेरा नाश्ता हो गया। आप मुझे आर्यन से मिलने भेज दीजिए।”
अर्जुन ने ध्रुवी की ओर देखा। उसके चेहरे की उत्सुकता भरी बैचेनी को देखकर उसे भी हैरानी हुई। क्योंकि ध्रुवी ने नाश्ता करना तो दूर, बल्कि जुबान से लगाया तक नहीं था। उसके चेहरे के भाव देखकर साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि इस वक्त ध्रुवी को नाश्ते या खाने में ज़रा भी इंटरेस्ट नहीं था। उसकी आँखों में जो चमक या उत्साह था, वह सिर्फ़ आर्यन से मिलने, उसे देखने के लिए था। बाकी दुनिया की किसी और चीज़ से उसका कोई लेना-देना नहीं था। अर्जुन ने कुछ पल तक ध्रुवी को अनजाने भाव से देखकर कुछ सोचा और फिर एक पल अपनी आँखें बंद करके गहरी साँस लेते हुए शक्ति को वहाँ बुलाया। शक्ति अर्जुन के कहने पर फ़ौरन वहाँ हाज़िर हो गया।
अर्जुन (शक्ति की ओर देखकर ध्रुवी की ओर इशारा करते हुए): “आप इन्हें आर्यन से मिलवाने ले जाएँ और वक़्त पर वापस भी आ जाएँ। क्योंकि हमें आज ही रायगढ़ के लिए निकलना है।”
शक्ति (अपना सर अदब से झुकाते हुए): “जो आज्ञा हुकुम सा... (ध्रुवी की ओर देखकर)... चलो?”
अर्जुन (शक्ति को टोकते हुए): “शक्ति, आज हम रायगढ़ वापस जा रहे हैं जहाँ ये... (ध्रुवी की ओर इशारा करते हुए)... ध्रुवी सिंघानिया नहीं बल्कि आपकी रानी सा होंगी। तो बेहतर होगा आप अभी से इनके साथ उसी अदब और इज़्ज़त से पेश आएँ जैसा मिष्टी को देते आए थे।”
शक्ति (अपने हाथ बाँधे हुए अदब के साथ अपना सर झुकाए हुए): “माफ़ कीजिएगा हुकुम सा... लेकिण हमारी राणी सा की जगह मह चाह के भी किसी को ना दे सकूँ सु... पर फिर भी मह आगे से ध्यान रखूँगा।”
अर्जुन ने शक्ति की बात सुनकर सिर्फ़ सहमति में अपना सर हिला दिया। कुछ पल बाद ध्रुवी शक्ति के साथ वहाँ से बाहर की ओर बढ़ गई। अर्जुन कुछ गहरी सोच सोचते हुए ध्रुवी की पीठ को तब तक निहारता रहा जब तक वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गई। ध्रुवी बाहर गार्डन में गाड़ी के पास पहुँची तो शक्ति ने उसे एक काली पट्टी दी।
ध्रुवी (असमंजसता भरे भाव से शक्ति की ओर देखकर): “ये क्या है?”
शक्ति (ठंडे भाव से): “इसे अपनी आँखों पर बाँध लीजिए।”
ध्रुवी (अपनी भौंहें सिकोड़कर असमंजस भरे भाव से शक्ति की ओर देखकर): “मगर किस लिए... और क्यों?”
शक्ति (गंभीर भाव से मगर ठंडे लहज़े के साथ): “क्योंकि आप इसके बिना आर्यन से मिलने ना जा सकें से... तो अगर आपने आर्यन से मिलना से... तो उसके लिए ये पट्टी बाँधना ज़रूरी से।”
ध्रुवी ने शक्ति की बात सुनी तो फ्रस्ट्रेशन भरी एक गहरी साँस ली और शक्ति के हाथ से लगभग वह पट्टी छीनते हुए गाड़ी में बैठ गई। उसने गाड़ी में बैठकर अपनी आँखों पर वह पट्टी बाँध ली। शक्ति भी आगे की सीट पर गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी वहाँ से अगले ही पल चल पड़ी। ध्रुवी को नहीं पता था कि वह कहाँ और किस तरफ़ जा रहे हैं, ना ही उसे कोई अंदाज़ा था। सिर्फ़ उसे इतना महसूस हो रहा था कि गाड़ी लगातार चल रही थी। जब भी गाड़ी बार-बार हिचकोले खाती, तो ध्रुवी को अंदाज़ा होता कि वह किसी ऐसे रास्ते से गुज़र रहे हैं जहाँ शायद गड्ढे और ऊँची-नीची सड़कें हैं। कुछ देर के सफ़र के बाद आखिरकार उनकी गाड़ी रुकी और शक्ति ने ध्रुवी को गाड़ी से उतरने के लिए कहा। ध्रुवी ने अपनी आँखों से पट्टी हटाई और कुछ पल अपनी आँखों को रगड़ने के बाद, जब उसे साफ़ नज़र आया, तब वह गाड़ी से बाहर आई।
ध्रुवी ने देखा कि गाड़ी किसी एक बंद जगह जैसी जगह पर थी जहाँ सूरज की बहुत ही हल्की रोशनी आ रही थी। ध्रुवी को समझ ही नहीं आ रहा था कि यह कौन सी जगह है। कुछ पल बाद ध्रुवी ने अपने ख़्यालों को पूरी तरह से झटक दिया जब शक्ति ने उसे आगे की ओर चलने का इशारा किया। ध्रुवी आगे बढ़ी तो कुछ दूर चलने के बाद एक लिफ़्ट नज़र आई। शक्ति ने ध्रुवी को लिफ़्ट में चलने का इशारा किया तो ध्रुवी उसके साथ लिफ़्ट में चली गई। इस वक़्त उसके दिल और ज़हन में बहुत सारी बातें और उथल-पुथल चल रही थीं, जो क्या थीं, वह सिर्फ़ ध्रुवी ही जान और समझ सकती थी। कुछ देर बाद लिफ़्ट रुकी तो थोड़ा आगे जाकर एक कमरे के दरवाज़े के आगे शक्ति रुका और उसने चाबी से दरवाज़ा खोला और फिर ध्रुवी को अंदर चलने का इशारा किया। ध्रुवी अंदर गई तो देखा कि यह कोई सामान्य सा दिखने वाला कमरा था। ध्रुवी ने असमंजस भरे सवालिया नज़रों से शक्ति की ओर देखा तो शक्ति ने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।
ध्रुवी बिना कुछ बोले उसके पीछे चल पड़ी। शक्ति ने उसी कमरे में बने एक छोटे से कमरे का दरवाज़ा खोला जिसमें पूरी तरह अंधेरा था। अंदर जाकर शक्ति ने कमरे की लाइट ऑन की। लाइट ऑन करते ही बेड पर लेटा आर्यन उठने की कोशिश करने लगा। शायद कमरे में अंधेरा होने की वजह से आर्यन को कुछ देर तक कुछ नज़र नहीं आया। वह बड़ी मुश्किल से बिस्तर से उठा और उसने अपने बाँधे हुए हाथों को अपनी आँखों पर लाइट की रोशनी पड़ने से रोकने की कोशिश की। उसने अपने बाँधे हुए हाथों से अपनी आँखों को ढकने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा क्योंकि उसके हाथ बाँधे थे। ध्रुवी ने जब उसे इस हालत में, ऐसे बेबस देखा तो उसकी आँखें आँसुओं से डबडबा आईं। इसी के साथ शक्ति वहीं पड़े सोफ़े पर बैठ गया। ध्रुवी कुछ पल तक यूँ ही स्तब्ध सी अपनी जगह पर खड़ी रही, बिल्कुल किसी पत्थर की मूरत की तरह। बस उसकी आँखों से लगातार बहते आँसू इस बात की गवाही दे रहे थे कि उसमें अभी भी जान बाकी है।
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