रिया का यूँ खिल -खिला कर हंसना नेहा को अंदर तक चुभ रहा था क्योंकि उसे पता था कि रिया हँसते हुए उस कड़वाहट को निगलने की कोशिश कर रही थी जिसे नेहा उगलवाना चाहती थी। रिया हँसते- हँसते जब चुप हुई तो उसने एक नजर नेहा को देखा और उदास हो गई, उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ बैड पर बिठाया और एक लंबी सांस खींचकर बोली-
रिया : मैं आगे जाकर अपनी ज़िंदगी से कोई शिकायत रखना चाहती इसलिए जैसे मन करता है वैसे जीती हूँ, वैसे नहीं, जैसे मम्मा जिया करती थी। घुट घुट कर ।
अपनी माँ को याद करते ही रिया अपने इमोशंस कंट्रोल नहीं कर पाई और पूरी तरह बिखर गई। उसने नेहा को बताया, कैसे उसकी माँ जिंदगी भर अपने सफल बिजनेसमैन पति का इंतजार ही करती रही। वह घर आते थे, अपना ऑफिस साथ लेकर, मतलब सारे काम घर से ही निबटाने होते थे उन्हें। उनकी सारी जरूरतें पूरी करने के बाद भी उसकी माँ को कभी अपने पति से दो पल का साथ नहीं मिला।
एक दिन यही इंतज़ार लिए उसकी माँ दुनिया से चली गई। मां का जाना रिया के अंदर बगावत भर गया, और अब वह किसी भी कीमत पर अपने डैड को माफ नहीं करना चाहती थी। यह सब सुनकर नेहा उसे समझाती है और संभल जाने को कहती है- “जो हुआ उसकी सजा खुद को देना सही नहीं है रिया। तुम जिस रास्ते जा रही हो वह खतरनाक ही नहीं, ग़लत भी हैं। तुम नहीं जानती, अपने डैड को दुख देने में तुमने अपने लिए कितने खतरे खड़े कर लिए हैं।
रिया : मुझे इन खतरों में मजा आता है। यह न्यूज़ पेपर्स में खबरें, मेरा लापता रहना, यह सब डैड के खिलाफ मेरी छोटी छोटी जंग हैं और मैं, रोज एक नई जंग जीतती हूँ। धीरे धीरे डैड को पता चलेगा कि वह एक सफल बिजनेसमैन सिर्फ इसलिए बने क्योंकि मॉम उनके खिलाफ कभी नहीं खड़ी हुई। सारी ज़िंदगी बस उनकी गलतियों का बोझ सहती रहीं।
रिया बैड से उठकर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो जाती है और बाहर चमचमाती लाइट्स को देखकर कहती है कि उसने अपनी अंधेरी जिंदगी को इस तरह की ही लाइट्स से भर लिया है पर यह कब टेक्निकल प्रॉब्लम्स की वजह से बन्द हो जाएं और वापस अंधेरा हो जाए, किसको पता।
रिया की बातें सुनकर नेहा को लगने लगा था कि रिया की इस नफरत का शायद कोई अंत नहीं है। वह अपने पिता को तकलीफ देने के लिए अपने आप को किसी भी हद तक दुख दे सकती है। नेहा उसके अंदर पल रही नफरत को जानकर शॉक्ड थी। पर उसने हार नहीं मानी और फिर एक बार गुस्से से रिया को चेताया- जो भी हो रिया, पर तुमने जो रास्ता चुना है, वह गलत है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, संभल जाओ। इन रास्तों में तुम्हें सिर्फ बर्बादी हाथ लगेगी और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि कोई नहीं बचा पाएगा, तुम्हारे डैड भी नहीं।
रिया : उनसे बचाने को तो कभी कहूँगी भी नहीं। अगर डैड और मौत एक साथ मेरे सामने खड़े हों तो मैं मौत के गले लगना पसंद करूँगी, डैड के नहीं । उस आदमी ने मेरी मॉम् की ज़िंदगी बर्बाद की है।
रिया किसी कीमत पर नहीं समझना चाहती थी। नेहा उसकी बातों मे नफरत की आग देखकर आगे कुछ बोल नहीं सकी। मन ही मन काफी दुखी थी पर रिया को समझा नहीं पा रही थी। रिया रोते हुए बैड पर जाकर उलटा लेट गई और हाथों में अपना चेहरा छुपा लिया। नेहा उसे वहीं छोड़कर रूम से बाहर चली आई। अब रिया को संभालना बहुत कठिन लग रहा था इसलिए भी नेहा ने उसे अकेला छोड़ना सही समझा। उसे लगा शायद रिया का थोड़ी देर खुलकर रोना जरूरी था।
उधर विक्रम ऑफिस से देर रात घर आए और सीधे अपने कमरे की तरफ निकल गए । घर में पूरी तरह सन्नाटा था, शायद सब सो चुके थे। आज विक्रम को न जाने क्यों घर का सन्नाटा डरावना लग रहा था। इससे पहले उसने कभी नहीं सोचा था कि घर मे शोर है या शांति। वह तो बस अपने काम में मग्न रहता था। रातों रात बिजनेस की ऊँचाइयाँ छूने की चाहत में वह जमीन खो चुका था। सीढ़ियों पर खड़े विक्रम चारों ओर देख अपने कमरे की ओर मुड़े ही थे कि कानों में एक आवाज़ गूंजी, जैसे अनन्या ने बुलाया-
अनन्या : विक्रम... आप आ गए?
विक्रम इस आवाज की गूँज में एक पल को यह भूल गए कि अनन्या अब कहीं नहीं थी। भागकर सीढियाँ उतरते इधर उधर देखते विक्रम अनन्या की उस आवाज को ढूँढने लगे। काफी देर बाद समझ पाए कि यह सिर्फ एक वहम था, अनन्या कैसे बुला सकती है? मन ही मन कहना चाहते थे कि हाँ अनन्या अब लौटा हूँ। आकर देख लो, लौट आया ऑफिस को, ऑफिस में ही छोड़कर।
अब कौन है सुनने के लिए और लौटे भी तो किसके लिए? इस दर्द को मन में समेटे विक्रम अपने कमरे में पहुँच गए। बैग साइड में रख कर सोफे पर बैठ आँख बन्द कर ली। तभी एक बार फिर अनन्या की आवाज से चौंकते हैं,
अनन्या : यह लीजिए चाय, थकान कुछ कम हो जाएगी।
विक्रम ने चौंक कर चारों तरफ देखा और सोफे से उठकर खड़े हो गए।
अनन्या को गए इतना वक्त हुआ, पर आज तक ऐसा नहीं हुआ कि विक्रम को वह अपने आस पास महसूस हुई हो। अचानक आज ऐसा लग रहा था वह कहीं नहीं गई। विक्रम समझ ही नहीं पा रहे थे आखिर आज क्यों अनन्या का अहसास हो रहा है। सोफे के पास खड़े विक्रम की नजर अनन्या की उस तस्वीर पर पड़ती है जिसमें वह चार साल की बच्ची रिया को गोद में लिए बैठी थी। वह फोटो कब निकलवाई थी, विक्रम को याद नहीं था। उसने फोटो हाथ में ली और उस पर हाथ फेरते हुए वह अतीत की गहराई में चले गए ...
वह समय जब अनन्या अपनी बीमारी से जूझ रही थी। डॉक्टर को दिखाना और अपना ध्यान रखना सब अनन्या के ही ज़िम्मे था। विक्रम तो कभी था ही नहीं। कई बार अनन्या ने विक्रम को बताने की कोशिश की पर विक्रम के पास वक्त की हमेशा कमी रहती थी। अनन्या को डर था कि उसे कुछ हुआ तो रिया की जिम्मेदारी कौन उठाएगा। विक्रम से तो उम्मीद थी नहीं। और वह रात तो काफी डरावनी थी, अनन्या की तबियत बिगड़ रही थी और विक्रम उस दिन ऑफिस से घर नहीं आया था। रिया तब काफी छोटी थी। अनन्या बार बार कॉल कर रही थी पर विक्रम ने फोन नहीं देखा।
अनन्या : विक्रम प्लीज फोन उठाओ, आज अगर आप नहीं आए तो बहुत बुरा हो जाएगा,
प्लीज विक्रम रिया के लिए ही सही, फोन उठाओ ॥
अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी और फोन हाथ से छूट गया। होश में रहने की कोशिश करती अनन्या, रिया को दुलार रही थी। मासूम सी रिया तब यह नहीं जानती थी कि उसकी माँ उसे हमेशा के लिए छोड़कर जा भी सकती है। अपनी मां के आँसू, नन्हें से हाथों से पोंछकर रिया ने पूछा :
रिया : मम्मा आप रो रहे हो, बहुत दर्द हो रहा है? मैं आपको डॉक्टर अंकल के पास ले चलूँ?
अनन्या को बस रिया की छुअन महसूस हो रही थी, वह क्या बोल रही थी, उसे कुछ समझ नहीं आया। रिया अपनी माँ से बात करती रही और अनन्या बेहोशी में जाते जाते कब मौत के मुंह में चली गई, कोई नहीं जान सका। मासूम रिया अपनी मम्मा को सोई जानकर बैड पर उसके पास ही लेट गई। विक्रम बहुत रात में घर आए और सीधे अपने कमरे में पहुँच गए। यह पहली बार था कि विक्रम घर आए और अनन्या दरवाजे पर नहीं मिली। कमरे में पहुंचे तो कमरे की दुर्दशा देख घबरा गए। दवाई की डिब्बियाँ बिखरी थी, मोबाइल नीचे गिरा पड़ा था और अनन्या बैड पर सीधी पड़ी थी। विक्रम के हाथ से बैग छूट गया और उसने लंबी चीख मार कर कहा -
विक्रम : अनन्या,,, यह क्या हुआ अनन्या, उठो प्लीज़, अनन्या, अनन्या...
एक चीख के साथ विक्रम अतीत से बाहर निकला तो याद आया कि उस दिन से रिया किस तरह डरी सहमी रहने लगी थी। उसी डर को निकालने, उसे हॉस्टल भेजा था जहाँ से मौका पाते ही रिया भाग निकली थी। आज पहली बार विक्रम को अहसास हुआ कि रिया की बगावत में बद्तमीजी नहीं, बल्कि नफरत है अपने पिता के लिए, और उससेे भी ज्यादा नफरत, अपनी माँ के पति के लिए है। अब मगर कैसे सब ठीक होगा? हाथ में अनन्या की तस्वीर लिए विक्रम टूट कर पूरी तरह बिखर जाते हैं। पत्नी की मानसिक स्थिति आज समझ आ रही थी। तस्वीर पर हाथ घुमाते हुए विक्रम अनन्या से कहते हैं
विक्रम : तुम्हारे अकेलेपन को तुम्हारा पागलपन समझ कर मैंने तुम्हें और अकेला कर दिया था। देखो न अनन्या, आज मैं भी पागल हो गया हूँ। पहले तुमने मुझे अकेला छोड़ दिया हमारी बेटी के साथ और अब हमारी बेटी मुझे बिल्कुल अकेला कर गई। मैंने तुम दोनों को खो दिया है अनन्या…
विक्रम अब खुद को संभाल नहीं पा रहे थे और ऊपर से रिया का कोई पता नहीं था, कहाँ है। अपनी ज़िंदगी भर की कामयाबियाँ, विक्रम को अब एक असफल आदमी से भी कहीं ज्यादा नीचे लग रही थीं। अनन्या का न होना आज एक बहुत बड़ी कमी लग रही थी जिसे कोई पूरा नहीं कर सकता था। रिया को संभालने में सिर्फ अनन्या ही साथ दे सकती थी क्योंकि और किसी की तो रिया सुनने को भी तैयार नहीं थी। आज अगर कोई सहारा था तो बस, अनन्या की फोटो। उसी को सीने से लगा कर विक्रम रो पड़े थे।
वहीं दूसरी ओर रिया नेहा की बातों को इग्नोर कर कबीर से बात कर रही थी और उसके सिखाए खतरनाक स्टंट की तारीफ कर खुश हो रही थी।
नेहा ने उसका मोबाइल उसके हाथ से लेकर रख दिया और फिर एक बार अच्छे से सोचने को कहा- “देखो रिया तुम जो कर रही हो, यह तुम्हारे लिए खतरनाक साबित होगा और उसकी जिम्मेदार तुम खुद होगी। अपने डैड से बदला लेने का यह तरीका बिल्कुल भी सही नहीं है।
रिया: मैं जो कर रही हूँ, वह रोमांचक है। तुम मेरे डैड को नहीं जानती। उनके पास समय नहीं है कि अपने काम के अलावा किसी के बारे में सोचें और वैसे भी मैं नहीं चाहती कि वो मेरे बारे में सोचें या मेरी ज़िंदगी में दखल दें।
नेहा की बातो का रिया पर कोई असर नहीं था क्योंकि वह जानती थी कि अगर वह सुधर गई तो डैड जीत जाएंगे और वह किसी भी कीमत पर अपने पिता को जीतने नहीं दे सकती थी। मगर नेहा का समझाना पूरी तरह बेकार नहीं गया क्योंकि कुछ तो था जो रिया को अंदर से तोड़ रहा था और यह चोट नेहा के शब्दों की थी।
खुद को नॉर्मल दिखाते हुए वह नेहा के पास रखा अपना मोबाइल फोन उठाती है और कोई नम्बर डायल करते वहाँ से चली जाती है। नेहा समझ जाती है कि रिया अपने इमोशंस कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है बस। तभी रिया की आवाज़ से वह चौंक जाती है।
रिया : ओह्ह, वॉओ... जरूर करेंगे।
नेहा जल्दी से रिया के पास आकर उससे खुश होने की वजह पूछती है और बदले में रिया कबीर का मैसेज दिखाती है जिसमें लिखा था "कल मिलो, कुछ बड़ा करते हैं"। नेहा मैसेज देखकर परेशान हो जाती है - “पता नहीं, अब कबीर क्या करवाएगा रिया से।”
रिया को साथ लेकर क्या बड़ा करना चाहता है कबीर??
क्या नेहा रिया को कबीर के साथ जाने देगी???
जानिए अगले एपिसोड में।
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