हालात कैसे भी मुश्क़िल हों, बाहर निकलने के लिए सख्ती से फ़ैसला करना ही पड़ता है। अंकिता ने ख़ुद आकार को सच बताने का फ़ैसला किया था जोकि उसकी ज़िंदगी में तूफ़ान मचा सकता था, पर वही सच अगर उस को शेखर से पता चलता तो उसकी गृहस्थी तबाह हो जाती। आकार ने सच सुनते ही, गुस्से में नाश्ते की टेबल पलट दी। वह डर से थरथरा रही थी, अपने पति को इतने गुस्से में उसने कभी नहीं देखा था, न उसके गुस्से से कभी इतना डर लगा था।

आकार : -  ( चिल्लाते हुए ) अपनी अय्याशी को, ग़लती बताकर अपने आप को, सही साबित करना चाहती हो? क्या कमी थी तुम्हें इस घर में? मैंने अपना सब कुछ तुम्हारे भरोसे छोड़ दिया...  कभी यह नहीं पूछा, कहाँ जा रही हो, किससे मिल रही हो? कब घर से निकलती हो, कब वापस आती हो, कुछ नहीं देखता। मैं तुम पर विश्वास करता था और तुमने यह सिला दिया, मेरे विश्वास का? दूर हो जाओ मेरी नज़रों से…

अंकिता को लग रहा था, वह हालात को समझेगा और उसकी मदद करेगा, पर उस का गुस्सा देखकर लग रहा था कि वह तो उस की शक्ल भी नहीं देखना चाहता। वह उसे शांत करने की कोशिश करने लगी, पर आकार आगे कुछ नहीं सुनता। उस के पास आते ही उसे धकेलते हुए ऊपर चला गया। वह फर्श पर जा गिरी और उसके मुँह से तेज़ चीख निकल गई, “आकाssssर…”। चीख की आवाज़ पर अंकिता को होश आया कि अभी वह उस से बात करने का सोच ही रही थी। वह तो अभी भी सामने बैठा नाश्ता कर रहा था। उस की चीख सुनकर वह चौंक गया,

आकार : – ( चौंक कर ) क्या हुआ ? मैं तो तुम्हारे सामने बैठा हूँ और जो तुमने खाने के लिए दिया, वही खा रहा हूँ, फ़िर क्या हुआ? चिल्ला क्यों रही हो? तबियत ठीक है तुम्हारी???

अंकिता : – ( हड़बड़ाकर ) चिल्ला रही हूँ, नहीं तो,,, अ, मतलब, तबियत,,, तबियत ठीक नहीं है, कुछ हुआ नहीं है बस गर्मी है न? नहीं नहीं,,, मेरा मतलब मौसम में अचानक गर्मी हो गई, छोड़ो यह सब, मम्,,, मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी, नहीं…  मैं कुछ पूछना चाहती थी,,,, मैं…

आकार ने उसे हाथ का इशारा करके चुप कर दिया और अपना रुमाल देकर कहा, “पसीना पोंछ लो, पानी पी लो, फ़िर सोचकर बोलो, क्या कहना चाहती हो” वह हैरान था कि अंकिता बोलने में डर रही थी। उस को तो जो भी बोलना होता था, किसी के भी सामने निडरता से बोल देती थी, फ़िर अब क्या हुआ? ऐसी कौन सी बात हो गई कि वह बोल कुछ रही है, निकल कुछ रहा है। अंकिता ने उस से रुमाल लिया और पसीना पोंछने लगी। वह खिलखिलाकर हँस पड़ा और ऑफिस के लिए बैग उठाकर बोला, ‘’इस तरह पसीना पसीना क्यों हो रही हो? अरे भई, अपने ही घर में हो। कोई चोरी करते नहीं पकड़ी गई हो, जो इस तरह घबराई हो। पसीना पोंछो, आराम से नाश्ता कर लो। मैं ऑफिस जा रहा हूँ, शाम को बात करते हैं… अपना ध्यान रखो।''

उस के गुस्से का सोचकर अंकिता उसे कुछ नहीं बता पायी। जिस उलझन में थी, वह  जस की तस रह गई। अब उस का डर और बड़ा हो गया था क्योंकि शेखर की जिद भी बार बार याद आ रही थी, सारी उलझनों से बाहर निकलना चाहती थी। आकार ने उसे बेहाल देख कर भी सीरियस नहीं लिया, उसे लगा किसी गहरी सोच में होगी, शाम तक ठीक हो जाएगी। वहीं उस को आज वह दिन याद आ रहा था जब उसकी पहली प्रेग्नेंसी रिपोर्ट आई थी। अंकिता तब भी उसे बताते हुए डर रही थी, कि पता नहीं उसे इतने जल्दी बच्चा मंजूर होगा या नहीं। तीन दिन तक रोज रिपोर्ट लेकर बैठती थी कि उस को बताएगी कि वह पापा बनने वाला है, मगर उसके आने के बाद फिर उसी डर में हड़बड़ाई रहती थी, कहीं ऐसा न हो कि वह बच्चा रखने से मना कर दे। बच्चे को खोने का डर उसे बेचैन कर देता था। आज वह डर याद करते हुए उस को शेखर की स्थिति समझ आ रही थी।

अंकिता : - ( गहरी सोच में )माँ बनने का सुखद अहसास और बच्चा छिन जाने का डर। कितनी अजीब हालत थी तब मेरी। हर किसी पर गुस्सा आ जाता था, हर चीज़ में शंका रहती थी। तब हर कोई अपने बच्चे का दुश्मन सा लगता था। आकार की माँ पर तो वैसे भी विश्वास नहीं था क्योंकि उन्हें सिर्फ उसकी हाँ से मतलब था और उस ने कह ही दिया था, अभी बच्चे का क्या करेंगे।  कितना मुश्किल था मेरे लिए यह बर्दाश्त करना! मैं पूरी दुनिया से अकेली लड़ने तैयार थी, मगर अपना एबॉर्शन करवाने बिल्कुल तैयार नहीं हुई। आज शेखर भी तो उसी स्थिति में है…

उस के सामने अतीत की तस्वीर, शेखर की ज़िद और आकार का डर, सब एक साथ खड़े थे। एक वक्त था कि वह अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर गुजरने तैयार थी। तब आकार से झगड़ा होता था क्योंकि उस की जिद थी कि उसका काम और अंकिता के लिए तय की गई काम की ज़िम्मेदारी से कोई समझौता न हो लेकिन अंकिता को तब हर हाल में बच्चा चाहिए था। आज शेखर के हालात देखते हुए उस को उस वक्त की अपनी हालत याद आ रही थी। उस दिन उस ने बड़े ही खूबसूरत ढंग से आकार को बताया था कि वह पापा बनने वाला है। उस दिन उस का घर आना...

आकार : -  ( घबराया हुआ ) अंकिता... अंकिता,,, अरे यार, यह घर में इतना अंधेरा क्यों है? कहां हो तुम? (अपने आप से)

सब ठीक तो है! फ़ोन भी नहीं उठा रही! सुबह भी खोई खोई सी थी। कुछ दिन से कुछ उदास भी है, पर कहा तो कुछ भी नहीं। आज भी अचानक ऑफिस से जल्दी घर आ गई थी…

तभी अचानक से पूरे घर की लाइट जगमगा गई। अंकिता सामने सीढ़ियों पर खड़ी मुस्कुरा रही थी, और वह उसे देखकर हैरान रह गया। उसने दिमाग पर जोर दिया, उस दिन कुछ भी स्पेशल नहीं था। दोनों में से किसी का जन्मदिन, कोई तीज त्यौहार कुछ भी नहीं था। फिर उस ने अचानक से क्या सरप्राइज़ प्लान कर लिया?  उस के चेहरे की ख़ूबसूरत मुस्कान, उसके चेहरे की चमक और भी बढ़ा रही थी। तभी आकार की नज़र उसके पीछे दीवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी, छोटे बच्चे वाला पोस्टर देखते ही उस के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। अपने काम के लिए वह  इतना सीरियस था कि अंकिता को भी आराम नहीं दे सकता था। उस समय वह उसके लिए दाएं हाथ का काम करती थी और आकार अपने काम से कोई समझौता नहीं चाहता था। उसने उसके पास जाकर धीरे से कहा, ‘’तुम जानती हो ना, अभी हम बच्चा प्लान नहीं कर सकते। हमारे पास इतना काम है कि अभी अपने लिए ही वक्त नहीं निकाल पाते, फ़िर बच्चे का कैसे सोच सकते हैं? तुम्हें ख़ुद अच्छे से पता है, हम कितने ख़ास प्रॉजेक्ट पर काम कर रहे हैं अभी…  सब कुछ एक झटके में बर्बाद हो जाएगा। हम अभी यह बच्चा नहीं रख सकते। तुम आज ही डॉक्टर से मिलकर एबॉर्शन के लिए टाइम ले लो।''

उस ने बहुत आसानी से कह दिया था कि एबॉर्शन करवा लो। उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी और अंकिता के सामने जैसे सैंकड़ों बिजलियाँ कड़कने लगीं, जो उसकी दुनिया उजाड़ना चाहती थीं। उसे जिस रिएक्शन का डर था, वही सामने आया। वह अपनी जगह चुपचाप खड़ी थी, और आकार उसे कितनी ही सफलताओं की उड़ानें गिनवा रहा था। अंकिता का चेहरा देखकर भी वह समझना नहीं चाहता था कि उसके लिए अपने बच्चे से ज्यादा ख़ास और कुछ नहीं था। आकार उसका ध्यान बच्चे से हटाना चाहता था, लेकिन वह बच्चे के ख़िलाफ़ कुछ नहीं सुनना चाहती थी.. उस की बातों से उसे रोना आ रहा था।  

अंकिता : - ( रोते हुए )किसके लिए इतना नाम, इतना पैसा कमाना चाहते हो? हमारे पास कोई संभालने वाला ही नहीं होगा तो क्या करेंगे इन सब का? तुम अपनी दुनिया में इस तरह खोए हो कि किसी की भावनाओं से मतलब ही नहीं है। मैं तुम्हारे सामने, हमारा भविष्य लेकर खड़ी हूँ, और तुम सिर्फ़ बिजनेस और प्रॉजेक्ट पर अटके हो। इसके बाहर देखो, एक ख़ूबसूरत दुनिया है। पैसे को ज़रूरत ही रहने दो, इतना ज़रूरी मत बनाओ कि हमें अपना बच्चा खोना पड़े।

आकार : -  ( चिल्लाते हुए ) तुम्हारा दिमाग तो ख़राब नहीं है, जानती हो क्या कह रही हो? सिर्फ बच्चे पैदा करने का नाम ज़िंदगी नहीं है। बिज़नेस में ऐसे मौके रोज नहीं मिलते… तुम जानती हो तुम्हारी हेल्प के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता और यह प्रोजेक्ट अब तक की हमारी सबसे ऊँची उड़ान जैसा है। बच्चा हम दो साल बाद प्लान कर लेंगे, यह मौका फिर नहीं मिलेगा।

आज भी जब वह उस दिन, उस वक्त को याद कर रही थी तो उस के मन में कितने ही emotions आ रहे थे.. दुख, अफसोस, गुस्सा, बेचारगी।

अंकिता : - ( अतीत को सोचते हुए ) उस को अपना काम चाहिए था, बहुत सारा पैसा और बहुत बड़ा नाम। वह देश के दस बड़े बिजनेसमेन में अपना नाम दर्ज करवाना चाहता था। अपने सपनों के पीछे भागते हुए उसे यह अहसास ही नहीं हुआ, कि वह  मेरे सपनों को रौंदकर आगे बढ़ रहा था। वहीं से तो मैंने ख़ुद को उसके सपनों से अलग कर लिया। उस दिन हुए भयानक झगड़े ने हमारे बीच एक सन्नाटा पैदा कर दिया, जो आज तक कायम है।

एक बार फिर वह अतीत के उन पलों में पहुँच गई। उस का कामयाबी के लिए पागलपन, उस समय अंकिता को अंदर से कमज़ोर रहा था। वह घर और ऑफिस को मैनेज करने में पहले ही बहुत ज़्यादा थकान महसूस कर रही थी, पर प्रेग्नेंसी में उसे पूरे आराम की जरूरत थी और आकार उसे किसी कीमत पर अभी आराम नहीं दे सकता था। उसका सारा काम अंकिता के हाथ में था, सब कुछ उसी को संभालना था। वह उस को अपने हिसाब से समझा कर, आराम से सो गया।

अब उसे फैसला करना था...  या तो आकार की ख़ुशी के लिए अपने होने वाले बच्चे को मार दे या उसका विरोध करके अपनी ममता को बचा ले। वह रात भर बेडरूम में टहलती रही, पर कोई फ़ैसला नहीं ले पाई। वह उसका विरोध नहीं करना चाहती थी पर अपना बच्चा भी किसी कीमत पर नहीं खो सकती थी। सुबह के दस बज चुके थे, आकार ऑफिस के लिए तैयार होकर रूम से बाहर निकला तो वह सीढ़ियों पर बैठी मिली। उसे देखते ही वह समझ गया कि वज़ह क्या है लेकिन फिर भी पूछने का नाटक करने लगा।

आकार ; – ( हैरानी दिखाते हुए ) अरे... यहाँ सीढ़ियों पर क्यों बैठी हो और हालत क्या बना रखी है अपनी? सोई भी नहीं क्या रात भर? कहीं तुम रात भर से तो यहाँ नहीं बैठी?  क्या हुआ तुम्हें, तबियत ठीक नहीं है???

अंकिता, उस के नाटक को अच्छे से समझ रही थी। आकार को पता था रात में क्या बहस हुई थी, और वह क्या चाहती थी! उसके बावजूद वह उसका फ़ैसला पूछने की बजाए तबियत पूछ रहा था। उसकी तरफ़ देखे बिना उसने सवाल किया  "क्या डिसाइड किया तुमने हमारे बच्चे के लिए?" अंकिता का पूछना था कि आकार का तपाक से जवाब आया, “एबॉर्शन”। वह यह सुनकर कांप गई और गुस्से में हड़बड़ाती हुई उठकर चिल्लाई, "पॉसिबल ही नहीं है, मैं अपने बच्चे को नहीं मार सकती" वह गुस्से में थी और उसका ध्यान आकार के शब्दों पर…  तभी सीढ़ी पर से उसका पैर फिसल गया...

 

क्या दर्द था अंकिता के अतीत में???

आकार और अंकिता के बीच दूरी की वजह उनका पहला बच्चा था ?

या कुछ और गहरा घाव था जो वक्त के साथ भी नहीं भरता?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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