शेखर अपने घर में परेशान सा इधर - उधर घूम रहा था।  उसके फोन पर अंकिता का मैसेज आया।  “तुम्हें अगर मेरी गृहस्थी बर्बाद करके सुकून मिलता है तो बेशक तुम कर सकते हो पर मैं यह बच्चा नहीं रख सकती। यह मेरा फैसला है और किसी के लिए भी मैं अपना फैसला नहीं बदलूँगी।” शेखर ने मैसेज़ पढ़कर उस को कॉल किया पर उस ने फोन नहीं उठाया, वह लगातार उसे कॉल करते हुए हॉस्पिटल के लिए निकल गया।

शेखर : – ( घबराते हुए ) तुम भी रितिका की तरह सेल्फिश हो अंकिता, तुम्हें भी सिर्फ अपनी ख़ुशी और अपनी ज़िंदगी की फ़िक्र है। जैसे वह मासूम बनकर मिली थी, वैसे ही तुम अपना अकेलापन दूर करने मेरे इतने करीब आई। तुमने भी उसकी तरह अपने लिए ख़ुशी चुन ली और मुझे यूज़ करके मेरा तमाशा बना दिया। मेरी भावनाओं से खेलने में न उसे दर्द हुआ, न तुम्हें कोई फ़र्क पड़ रहा है। तुम तो उससे अलग थी न...  फिर मेरे साथ धोखा कैसे कर सकती हो? तुम जानती हो, इस दर्द से मैं एक बार गुज़र चुका हूँ, फिर भी मुझे वही दर्द देना चाहती हो? मैंने तुम्हारे किसी फ़ैसले के लिए तुम्हें कुछ नहीं कहा। क्या मेरा एक फ़ैसला तुम नहीं मान सकतीं?  

इधर शेखर को अंकिता, रितिका की तरह सेल्फिश लग रही थी उधर आकार की नजरों में वह आवारा बन चुकी थी। प्रेग्नन्सी का सच सामने आया तो आकार ने उसे सफाई देने का कोई मौका नहीं दिया। बस उसका सामान बाहर फेंका और बेडरूम में चला गया।  वह ज़ोर से चीखी,  “आकाsssssssss र…” और चीखने के बाद होश आया कि वह तो शेखर के जाने के बाद पार्क में ज़मीन पर ही बैठी थी, घर पहुँची ही नहीं। आकार आने वाला है, यह सोचते - सोचते उसकी घबराहट बढ़ रही थी। उस ने वहीं बैठे - बैठे फ़ैसला किया कि वह आज ही एबॉर्शन करवाएगी और शेखर को बताकर करवाएगी। उस ने फिर से डॉक्टर से बात की और उनसे समय लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गई। उसने शेखर को मैसेज लिखकर सेंड कर दिया।

उधर शेखर गाड़ी ड्राइव करते हुए रोते - रोते बड़बड़ा रहा था। कई बार कॉल करने के बाद भी अंकिता ने फ़ोन नहीं उठाया और थोड़ी देर में खुद उसी का फोन आ गया। नंबर देखते ही उस ने गाड़ी झटके से रोक दी, फ़ोन रिसीव किया और सीधे सवाल करना शुरू कर दिया,

शेखर (सवाल) “क्या पागलपन है अंकिता? क्या मैसेज लिखा है? तुम जानती हो, मैं तुम्हें ऐसा कुछ नहीं करने दूँगा, फिर भी तुमने इतना बड़ा फ़ैसला लिखकर भेज दिया? मैं यह कभी बर्दाश्त नहीं करूंगा”

अंकिता जानती थी, वह यह बर्दाश्त नहीं करेगा, मगर वह जो भी करता, इस बच्चे को जन्म देने से ज्यादा ख़तरनाक नहीं हो सकता था।

डॉक्टर से बात करके वह हॉस्पिटल के बाहर ही बैठ गई थी, उसे पता था शेखर ज़रूर आएगा और कुछ ही देर में वह सच में आ गया। उस को देखते ही भागकर उस के पास आया और हाथ पकड़कर खींचते हुए उसे गाड़ी में बैठाकर गाड़ी बढ़ा दी। वह कुछ नहीं बोल पाई, भरी आँखों से बिना पलक झपके, उसे हैरानी से देख रही थी। उस ने अपने घर आकर गाड़ी खड़ी कर दी, फिर अंकिता का हाथ पकड़ा और खींचते हुए अंदर ले गया, सोफे पर बैठाते हुए बोला, ‘’मैं तुम्हारे साथ कोई जबर्दस्ती नहीं करना चाहता, पर तुम्हें जरा सी बात समझ क्यों नहीं आ रही? मैं यह बच्चा किसी कीमत पर नहीं खो सकता। मुझे एक उम्मीद मिली है, जिसके लिए मैं जीना चाहता हूँ… मेरे पास मेरा कोई अपना हो सकता है। मुझे समझने की कोशिश करो अंकिता प्लीज़! मैं जन्म लेते ही बच्चे को तुमसे दूर ले जाऊँगा, कभी हम दोनों तुम्हें शक्ल नहीं दिखाएँगे। बस उसे जन्म लेने दो, उसे दुनिया देखने दो, मत मारो प्लीज़, मेरे बच्चे को मत मारो। तुम जो कहोगी मैं वह सब करूंगा बस तुम इस बच्चे को जन्म लेने दो…!''

उस ने गुस्से से बोलना शुरू किया था और बोलते बोलते हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट करने लगा। अंकिता को न उसके गिड़गिड़ाने पर तरस आ रहा था और न ही उसके गुस्से से डर लग रहा था। वह गुस्से में उस को घूर रही थी। जितना गुस्सा शेखर ने दिखाया, उससे ज़्यादा गुस्सा उसे आ रहा था। वह झटके से खड़े होते हुए बोली, “मैं अपने बच्चों से ज़्यादा कुछ नहीं सोच सकती। तुम जो कर सकते हो, कर लो और इस तरह मुझे घर लाकर तो तुम सोचना भी मत  कि मैं तुमसे डर जाऊँगी।” उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि शेखर ने उसके गाल पर एक ज़ोर से झापड़ मार दिया। अंकिता की आँखें फटी की फटी रह गईं, अपने गाल पर हाथ रखकर वह उस को देखती रह गई। शेखर को होश आया कि उसने क्या कर दिया तो वह हड़बड़ा गया और उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘’स,, सॉरी, रियली सॉरी.... देखो, मैं अपने होश में बिल्कुल नहीं हूँ। मेरी बात समझने की कोशिश करो। तुम्हें यही डर है न कि आकार को पता चल गया तो वह शादी तोड़ देगा…? तोड़ देने दो उसे! वैसे भी कौन सा सुख दे दिया उसने तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को! मैं तुम्हारे साथ, हमारे तीनों बच्चों की ज़िम्मेदारी उठा लूँगा, तुम्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है।''

एक वह  वक्त था, जब उस की बातें अंकिता को सुकून से भर देती थीं और एक यह वक्त है, कि उसका बोलना उसे चुभ रहा था। वह अपने अजन्मे बच्चे के लिए इतना पागल था कि उसकी बसी हुई गृहस्थी मिटाने तैयार था। वह उस को तनाव मुक्त रहने की सलाह दे रहा था जबकि उस की सारी टेंशन की जड़, यह आने वाला बच्चा ही था। उस के हाथ से अपना हाथ खींचते हुए वह मुँह फेरकर बैठ गई। शेखर उसे फिर समझाना चाहता था… वह उठकर जैसे ही उस के पास बैठा, वह झटके से खड़ी हो गई और उस के कुछ बोलने से पहले ही  चिल्ला पड़ी, ‘’अंकिता ; – ( चिल्लाते हुए ) क्या समझते हो तुम अपने आप को…? मेरा घर बर्बाद करके अपना घर बसाना चाहते हो? मेरे बच्चों से उनके पापा छीन कर उनकी ज़िम्मेदारी उठाओगे, मतलब ख़ुद उनकी दुनिया उजाड़कर उनका सहारा बन जाओगे। तुम तो रितिका से भी गए गुजरे हो, उसे अपने होने वाले बच्चे से प्यार नहीं था तो उसने मार दिया। उसने सिर्फ़ तुम्हें पाने के लिए खेल खेला, पर तुम तो उससे भी ज्यादा घटिया खेल खेल रहे हो। एक बात याद रखो, मैं मर जाऊँगी पर तुम्हारी बात कभी नहीं मानूँगी।''

वह उस की नजरों में गिर गया था, उसकी सोच उसे बहुत ही गंदी और छोटी लग रही थी। वहीं शेखर सिर्फ़ उसे आकार के डर से बाहर निकालना चाहता था। उसे लगा वह अपने पति  के व्यवहार से परेशान है, इसलिए बच्चा गिराना चाहती है… उसे तनाव से बचाने के लिए उसने उस को छोड़ने की सलाह दे दी। वह तो हर हाल में उस को हालात से लड़ने के लिए तैयार करना चाहता था। उस को लग रहा था कि अगर वह हिम्मत रख ले तो एक बच्चे को जन्म देना इतना भी मुश्किल नहीं था, मगर अंकिता का मानना था कि ऐसा करने से समाज में उसका ही नहीं, आकार और बच्चों का भी सिर उठाना मुश्किल हो जाएगा। वह अंजाम को सोचकर घबराई थी और उसने एक बार फिर क्लियर कर दिया कि वह  यह बच्चा नहीं रखेगी।

अंकिता : - ( सख्ती से ) तुम्हें जो समझना है समझ लो, पर मैं अपने परिवार को किसी परेशानी में नहीं डाल सकती। मेरे पास दो बच्चे हैं और मैं उनकी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। तुम अगर इतनी सी बात नहीं समझ रहे हो, तो तुम्हारे लिए मैं कुछ नहीं कर सकती। इस बच्चे को भूल जाओ... अगर यह ठहर भी गया, तो भी मैं तुम्हें नहीं दूँगी।

शेखर : - ( झुंझलाते हुए ) मैं जानता हूँ , तुम्हें मेरे हाल से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम वही फ़ैसले लेती हो जिनमें तुम्हें दर्द ना हो। पहले भी मैंने तुमसे सिर्फ़ तुम्हें देखने का अधिकार मांगा था, पर तुमने कहा, नहीं हो सकता। वह सही नहीं था लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा। अब मेरे बच्चे के लिए भी तुम अकेली ही फ़ैसला करो, यह सही कैसे हो सकता है???

अंकिता : - ( रोते हुए ) यह बच्चा नहीं, हमारी ग़लती है शेखर। मर्यादाएं लांघने का परिणाम है और गलतियों को जीवन नहीं दिया जाता। इतनी सी बात तुम समझते क्यों नहीं? मैं इसके लिए कभी तैयार नहीं हो सकती। चाहे मुझे ख़ुद के लिए मौत ही क्यों ना चुनना पड़ी।

 

दोनों की बहस कभी ख़त्म नहीं हो सकती थी क्योंकि वे अपनी - अपनी जगह सही थे। अंकिता ने बहस को विराम देते हुए अपने ड्राइवर को फ़ोन लगाया और शेखर के घर का एड्रेस देकर उसे जल्दी वहाँ बुलाया। अगले पंद्रह बीस मिनिट तक दोनों के बीच सन्नाटा रहा, ड्राइवर ने आकर गाड़ी का हॉर्न बजाया और वह शेखर को बिना कुछ कहे निकलने लगी..  मगर दरवाज़े से वापस मुड़कर बोली, “मैं मर सकती हूँ पर यह बच्चा तुम्हें नहीं दे सकती, इसलिए फिर मेरे रास्ते में मत आना”। यह कहकर जाते हुए उसे फिर चक्कर आया लेकिन शेखर ने भागकर उसे संभाल लिया। उस ने एक सेकंड उसकी तरफ़ देखा और ख़ुद को संभालते हुए हाथ झटककर चली गई।

वह उदास खड़ा सोचता रहा कि वह क्यों उसे नहीं समझ पा रही! गाड़ी में बैठी अंकिता ने इमोशंस को एक तरफ़ रखकर एक पल में फ़ैसला किया कि आकार के आते ही उससे बात करेगी। शेखर उसे कुछ बताए, इससे बेहतर था कि वह ख़ुद सच बताकर उस के गुस्से को कुछ कम कर दे। वह घर पहुँची तो पता चला, आकार अपनी ट्रिप बीच में छोड़कर वापस आ गया, उस ने बैडरूम में जाकर देखा तो वह आराम से सोया था। उसकी व्यस्तता और थकान देखकर उसे उस पर तरस आ रहा था। आखिर किसलिए इतनी मेहनत करता है यह इंसान कि ख़ुद के लिए भी कभी वक्त नहीं देता। इसे उसकी लापरवाही कहे या अंकिता पर विश्वास कि वह एक फ़ोन लगाकर भी यह नहीं पूछता कि इतनी रात को कहाँ गई है।

दुविधाओं में उलझी अंकिता, वहीं चेयर पर बैठे बैठे ही सो गई… सुबह छः बजे अलार्म बजने से घबराकर उसकी आँख खुल गई। अपने आस पास देखकर उठकर खड़ी हो गई। सुबह हो चुकी थी, अब उसे आकार से बात करनी थी। सोचकर डर रही थी, क्या कहेगी कि उसने ग़लती नहीं, गुनाह किया है, पर वह तय कर चुकी थी उस का फ़ैसला जो भी हो, वह उसे ज़रूर बताएगी। अपने कामों से फ्री होकर वह उस के इंतज़ार में बैठी थी। आकार किसी से फ़ोन पर बात करते हुए आकर बैठ गया, उस ने नाश्ता सर्व करते हुए बोलने की कोशिश की।

अंकिता : - ( हड़बड़ाते हुए ) आकार,,, अ,, मुझे कुछ बात करनी है, बहुत जरूरी है, पर तुम पहले आराम से बैठ कर सुन लेना। मतलब बीच में, “जल्दी बोलो, टाइम नहीं है” जैसा कुछ मत बोलना। देखो, गलतियाँ तो सबसे ही होती हैं, तुमसे भी और मुझसे भी, पर कुछ गलतियाँ इतनी बड़ी हो जाती हैं कि सज़ा बन जाती हैं, और मुझसे ऐसी ही ग़लती हुई है।

आकार : - ( हैरानी से देख) इतना उलझा क्यों रही हो? तुम तो कभी बच्चों की गलतियाँ भी मुझसे डिसकस नहीं करती, आज मेरी ग़लती, तुम्हारी ग़लती,,,? क्या हुआ है तुम्हें और किस ग़लती से इतना डर लग रहा है?

उस के पूछने से अंकिता को हिम्मत मिल गई... वह कभी इस तरह फुर्सत से बैठकर बात नहीं करता, पर आज उसे लग रहा था वह  उसको सुनेगा भी और समझेगा भी। वह, एक साँस में अपनी पूरी बात बोलते चली गई… “मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई, एक दोस्त की तरफ बढ़ता झुकाव, गहरे रिश्ते में बदल गया और आज मैं प्रेग्नेंट हूँ, उसका बच्चा,,,”

अंकिता का सच जानकर क्या आकार उसे माफ़ करेगा, या कुछ और ऐसा सामने आएगा, कि अंकिता का संभलना मुश्किल हो जाएगा? क्या अंकिता अबॉर्शन कराएगी?

जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।

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