पार्क में कुछ देर बैठकर अंकिता ख़ुद को तरोताजा करना चाहती थी, मग़र वह गेट पर ही बेहोश होकर गिर गईं। इत्तेफाक से, शेखर व्हील चेयर पर अपनी माँ को लेकर उसी पार्क से बाहर आ रहा था, गेट पर भीड़ लगी थी। शेखर ने निकलते हुए किसी से पूछा “क्या हुआ भाई, यहाँ लोग भीड़ लगाकर क्यों खड़े हैं?” किसी ने बताया, एक औरत बेहोश पड़ी है। शेखर ने साइड से माँ की व्हील चेयर निकाली और माँ को गाड़ी में बैठा दिया। वह ख़ुद भी बैठने ही वाला था पर एक नज़र उस भीड़ की तरफ़ देखकर सोचने लगा, ‘’लोग कितने सेल्फिश हो गए हैं, भीड़ लगा रखी है देखने के लिए , पर कोई एम्बुलेंस बुला कर उसे हॉस्पिटल नहीं पहुँचा सकता। एक कॉल करने में किसी का क्या चला जाएगा! अगर इतनी भी इंसानियत नहीं बची तो इंसान का नाम जानवर रख देना चाहिए।''
शेखर गाड़ी में बैठते हुए एम्बुलेंस के लिए कॉल करने लगा और उसके बैठते ही ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। अचानक कॉल काट के शेखर ने ड्राइवर से रुकने को कहा, गाड़ी से निकलकर वह पार्किंग में खड़ी एक गाड़ी को देखने लगा। उसके पिछले शीशे पर दोनों कोनों पर अश्विनी और रजत, नाम लिखे थे और शीशे के बीच में पटेल लिखा था। अंकिता के बच्चों के नाम याद करके शेखर मुस्कुरा गया। फ़िर वापस जाकर गाड़ी में बैठ रहा था कि याद आ गया “गेट पर कोई औरत बेहोश पड़ी है।” शेखर के चेहरे पर घबराहट उभर आई। उसने माँ को ड्राइवर के साथ घर भेजा और भागकर, भीड़ चीरते अंदर घुस गया। सामने अंकिता बेहोश पड़ी थी, उसे देखकर उस की चीख निकल गई,,,
“अंकिता,,,” उस ने उसे गोद में उठाया और दौड़कर उसी गाड़ी के पास लेकर आया। ड्राइवर को पास के किसी भी क्लीनिक चलने को कहते हुए उस को गाड़ी में बैठा दिया। मैडम को बेहोश देखकर ड्राइवर भी घबरा गया। पास ही एक छोटा सा क्लीनिक आया और शेखर ने वहीं उसे दिखा दिया। डॉक्टर ने चेकअप किया और बाहर निकलकर कर कहा, “आपकी पत्नी ठीक हैं, थोड़ा बीपी बड़ा हुआ है, ग़र्भावस्था में अक्सर ज़्यादा तनाव से बेहोशी आ जाती है। घबराने की बात तो नहीं पर उनका बहुत ज्यादा ध्यान रखने की ज़रूरत है।”
डॉक्टर से मिलकर शेखर उस के पास पहुँच गया, और उस को देखकर सोचने लगा,,, “अंकिता बच्चे को लेकर इतनी परेशान क्यों है,,,? कहीं यह हमारा बच्चा तो नहीं है?” उस ने अंदाज़ा लगाया था पर उसे विश्वास था कि बच्चा उसी का है। वह खुश हो गया और उसका हाथ पकड़ कर, उस के पास बैठ गया।
शेखर : – ( मुस्कुराकर, धीमे से ) क़िस्मत ने हमें बिछड़ने के लिए नहीं मिलाया था, देखो न, हम किसी न किसी बहाने मिल ही जाते हैं। तुमने सारी कोशिशें कर लीं मुझसे दूर जाने के लिए, और मैंने सारी हदें पार कर दीं, तुम्हारे फ़ैसलों में तुम्हारा साथ देने के लिए, मग़र तुम ख़ुद को मुझसे दूर नहीं रख पातीं। हमारा रिश्ता कहीं न कहीं अपनी जगह बना लेता है। हमारा बच्चा हमारी दुनिया खुशियों से भर देगा। अब तुम बस मेरी हो जाओ, छोड़ दो सारी दुनियादारी, मेरे पास आ जाओ।
अंकिता को हल्का हल्का होश आ रहा था, वह जो बोल रहा था, सब सुन रही थी। उस के दिल की बात सुनकर हैरान थी... वह जो चाहता था, मुमकिन ही नहीं था। उस वक्त अंकिता ने जो भी फ़ैसला किया था, उसने मान लिया, कोई सवाल जवाब नहीं किया मग़र उसका यह फैसला, वह किसी क़ीमत पर नहीं मान सकती थी। वह बच्चा बचाना चाहता था, जबकि वह खुद ना यह रिश्ता बचाना चाहती थी और न ही बच्चा। उसने उस के हाथ से अपना हाथ झटका और उठकर बैठ गई।
अंकिता : – ( गुस्से से ) ऐसी कोई गलत फहमी मत पालो शेखर कि फिर निराश होना पड़े। मैं यह रिश्ता और बच्चा दोनों नहीं बचा सकती, और तुम भी इससे कोई उम्मीद मत लगाओ। मैं किस रिश्ते से खुश हूँ, इसका सवाल ही नहीं उठता। मैं अपनी ज़िम्मेदारी और अपने परिवार के साथ कोई समझौता नहीं करूँगी । पहले ही मैं दो बच्चों की माँ हूँ और उनके मासूम मन को मैं कोई सवाल नहीं दे सकती।
शेखर : – ( गुस्से से ) तुम्हें अपने बच्चों के लिए फ़ैसला लेने का अधिकार है तो मुझे भी है। मैं भी अपनी ज़िम्मेदारी से कोई समझौता नहीं करूँगा, न ही अपने बच्चे को कोई नुकसान होने दूंगा। यह बच्चा तुम्हें रखना होगा, इसके लिए मैं तुम्हारी कोई बात नहीं मान सकता। यह मेरा बच्चा है, मैं अकेला संभाल लूँगा… याद रखो, मैं पूरी दुनिया में आग लगा दूँगा अगर मेरे होने वाले बच्चे को कोई नुकसान हुआ तो…।
वह गुस्से में वहाँ से चला गया और अंकिता की घबराहट और बढ़ गई। यह बच्चा उसके लिए अब मुसीबत बन गया था। गुस्से में जाते शेखर को देख वह उसे रोकने बाहर तक उसके पीछे आ गई, मग़र वह चला गया। वह रोते हुए बड़बड़ाती रही, “रूक जाओ, गुस्से में कुछ ऐसा मत कर देना कि मेरी गृहस्थी उजड़ जाए।” शेखर और अंकिता का रिश्ता जिस समझदारी से विराम की तरफ़ बढ़ा था, उसी ज़िद से वापस जुड़ने खड़ा था। वह नहीं समझ रहा था उसकी ज़िद अंकिता की दुनिया उजाड़ देगी, इस एक बच्चे का जन्म उसके सारे रिश्ते की मौत बन जाएगा। अब अंकिता को पार्क में बैठने के फ़ैसले पर पछतावा हो रहा था।
अंकिता : – ( घबराकर ) जिस शेखर ने बिना किसी सवाल जवाब के मेरे सारे फ़ैसले, मेरे बताने से पहले मान लिए थे, वही मुझे धमकी दे रहा है। कैसे समझाऊँ उसे कि मैंने कितनी मुश्किल से अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ख़त्म करने का फ़ैसला लिया था। अगर उसे बचाने की एक परसेंट भी गुंजाइश होती तो मैं कभी उसे मारने का नहीं सोचती। काश मैं पार्क में न जाती, सीधे घर जाकर आराम कर लेती, पर अब तो जो होना था हो गया… काश वह मेरे हालात समझ पाए।
आगे का अंजाम सोचकर उस की घबराहट बढ़ गई, घर में रहकर भी वह घर और बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रही। ज़्यादा तनाव से चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा था। वहीं शेखर बार बार कॉल करके उसे अपना ध्यान रखने को कह रहा था जिससे वह झुंझलाने लगी थी। मन में सवाल उठने लगे थे कि उस की सारी बातें केवल दिखावा तो नहीं थी? आज उसकी उजड़ती गृहस्थी उसे दिखाई क्यों नहीं दे रही? अंकिता की घबराहट इसीलिए भी थी कि एक दो दिन में आकार आने वाला था, उसके आने से पहले उसे कुछ न कुछ जरूर करना था। उसने शेखर से मिलकर उसे समझाने का फ़ैसला किया। मिलने की बात सुनकर वह अंकिता से पहले पहुँच गया और बेचैनी से यहाँ वहाँ टहलते मिला। उस के पहुँचते ही बेसब्री से उसके पास जाकर सवाल करना शुरू कर दिया।
शेखर : - ( हड़बड़ाते हुए ) क्या हुआ अंकिता…? सब ठीक तो है, थैंक गॉड तुम ठीक हो, मैं कितना घबरा गया था तुम सोच भी नहीं सकती। मेरे लिए यह बच्चा बहुत खास है, तुम नहीं जानती... मुझे जीने की वजह दे दी है तुमने। तुम्हारे जाने के बाद, मैं पहले की तरह फ़िर अपनी ज़िंदगी को ढोने लगा था, पर यह बच्चा मेरे लिए जीने की वजह बन गया, शायद क़िस्मत ने हमें इसीलिए मिलाया था।
उस की बातें सुनकर वह चुप हो गई। आने से पहले उसने तय किया था कि सख्ती से उस को समझा देगी कि यह बच्चा उसके लिए मानसिक परेशानी बनकर आया है और उसे न रखने में ही सबकी भलाई है। वह अपनी जगह सही थी, पर जब शेखर की जगह ख़ुद को रखकर सोचने लगी तो एहसास हुआ कि वाकई इस बच्चे की उसे ज़रूरत थी, उसे जीने की वजह मिल गई थी। उस के सामने वह अपने फ़ैसले पर ख़ुद ही कमजोर पड़ गई।
उसे सामने एक अजन्में बच्चे का भविष्य दिख रहा था। शेखर घोड़ा बनकर अपने बच्चे के साथ खेल रहा होगा। उसकी ज़िद पूरी करते यहाँ से वहाँ भाग रहा होगा। उसको नहलाना, तैयार करना, स्कूल छोड़ने जाना। बहुत कुछ बदल जाएगा उसकी ज़िंदगी में। शेखर के लिए सोचते उस को हँसी आ गई पर अगले ही पल में रजत की ड्रॉइंग उसकी आँखों के सामने थी, अपनी जिम्मेदारियाँ, आकार की वापसी। हँसते हुए अचानक उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। शेखर उसकी हालत अच्छी तरह समझ रहा था। उसने उसका हाथ पकड़ कर उसे बैठाकर कहा।
शेखर : - ( मुस्कुराकर ) इतनी चिंता मत करो अंकिता, मेरा बच्चा कभी तुम्हारी निजी ज़िंदगी में दख़ल अंदाज़ी नहीं करेगा। मैं उसे तुमसे बहुत दूर ले जाऊँगा। तुम्हारा नाम भी नहीं बताऊँगा उसे, मैं ही उसको माँ और पापा बनकर पाल लूंगा। बस तुम उसके आने तक उसका ध्यान रख लो, फ़िर मैं तुमसे कभी कुछ नहीं मांगूंगा। कभी अपनी शक्ल भी नहीं दिखाऊंगा।
अंकिता : – ( रोते हुए ) यह सब इतना आसान है क्या शेखर?? तुम अपने और अपने बच्चे के लिए सोच रहे हो, मुझ पर क्या गुजर रही है तुम नहीं समझ सकते। मेरे सामने दो बच्चे हैं, जो अपनी मम्मा से कोई बच्चा नहीं चाहते। आकार है जो मुझ पर अंधा विश्वास करता है। हम दोनों के परिवार हैं, जिनका सम्मान इस सच के बाहर आते ही ख़त्म हो जाएगा। तुम इस बच्चे में जिंदगी देख सकते हो, पर मुझे सिर्फ तबाही दिख रही है।
उस की बातों से वह घबरा गया। वह हैरान था कि सच सामने आने के डर से वह अबॉर्शन करवाना चाहती थी। उस की उदासी देखकर उसे उस से ही अपने बच्चे के लिए खतरा लग रहा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था, माँ होकर वह इतनी कठोर हो सकती थी! उसके बच्चे को ज़िंदगी मिल रही थी पर वह ख़ुद को बचाने की ज़िद पर अड़ी थी। वह बच्चा जन्म से पहले ही अपनी व्यवस्था बना चुका था, फ़िर भी वह उसे जन्म नहीं देना चाहती। शेखर को उस में रितिका की खिलखिलाती शक्ल दिखने लगी थी। वह घबराकर उस को देख रहा था कि यह कौनसी अंकिता उसके सामने थी! अपने चेहरे से पसीना पोंछ कर शेखर ने उस के कंधे पकड़ कर कहा, ‘’तुम्हारी दुनियादारी तुमसे क्या कहती है, मुझे इससे कोई मतलब नहीं है। मेरे बच्चे को नुकसान पहुँचाने का सोच भी मत लेना। मैं एक बार अपना बच्चा खो चुका हूँ, तुम वही ग़लती मत करना! तुम्हें अपने बच्चे से ज़्यादा अपनी इज्ज़त की फ़िक्र हो रही है?? तुम इतनी सेल्फिश कब हो गईं???''
अंकिता : – ( घबरा कर ) सेल्फिश तुम हो गए हो,,, तुम्हें दिखाई क्यों नहीं देता कि यह बच्चा कितने रिश्ते मिटा कर रख देगा?? तुम्हारे लिए यह बच्चा आने वाला है, पर मेरे लिए दो बच्चे सामने हैं, मैं उनकी भावनाओं को नहीं मार सकती। बात मेरे नुकसान की होती तो मैं किसी से नहीं डरती, पर मेरे साथ कितने लोग जुड़े हैं यह तो सोचो।
शेखर पर उस की किसी बात का कोई असर नहीं था, बच्चे के लिए वह उसकी कोई मज़बूरी नहीं देख प रहा था। उसने साफ शब्दों में कह दिया “जिस सम्मान को बचाने के लिए तुम मेरे बच्चे को मारना चाहती हो, वह किस तरह उछलेगा, तुम सोच भी नहीं सकतीं।” वह धमकी देकर चला गया, और अंकिता रोते हुए वहीं बैठ गई। जब घर पहुँची आकार आ चुका था, उस के घर में घुसते ही बरस पड़ा,,, “अच्छा असाइनमेंट मिला तुम्हें, जिसके लिए मेरे खिलाफ जाकर शिकागो जाना पड़ा था। उसी प्रोजेक्ट का पाप लेकर घूम रही हो अब बेशर्म बनकर???” वह क्या बोल रहा था और उसे कैसे पता चला, वह कुछ नहीं समझ पाई... बस घबराकर उसके सामने हाथ जोड़ लिए,,, “माफ़ कर दो, मुझसे ग़लती हुई है पर प्लीज़ मेरी जगह लेकर देखो…जो हुआ एक हादसे जैसा था” उस ने अंकिता की कोई बात नहीं सुनी, उसके सामान के दो तीन बैग बाहर फेंक कर घर से निकलने को कह दिया,,, अंकिता चिल्लाती रही और आकार ने बैडरूम में जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया।
क्या आकार अंकिता से संबंध ख़त्म कर देगा???
क्या अंकिता शेखर से सहारा मांगेगी???
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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