अंकिता और शेखर का रिश्ता हदों को पार कर चुका था, और अब अंकिता उस को भूलना चाहती थी। उसे अपने आपको गृहस्थी और बच्चों में उलझा कर रखने के लिए आकार का साथ चाहिए था, पर उस की तरफ़ से उदासी ही हाथ आती थी। रात को बारह बजे तक उसका इंतज़ार करने के बाद भी जब उस ने उसे समझने की बजाय गुस्सा दिखाया तो अंकिता से बर्दाश्त नहीं हुआ और अपनी शादी के चौदह साल में पहली बार वह आकार पर बरस पड़ी।
अंकिता : – ( चिल्लाकर ) रुको आकार,,, काम तो तुम्हें हमेशा रहता है, जब भी मुझे ज़रूरत हुई तुम्हें बहुत काम होते हैं। क्या मेरे लिए तुम्हारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है??? बच्चों के लिए वक्त नहीं, मेरे लिए वक्त नहीं। बस काम और पैसा, इसके अलावा कुछ नहीं है तुम्हारे पास। क्यों तुम्हारा मन नहीं करता कभी बच्चों के साथ खेलो? मेरे साथ थोड़ी देर बैठो?
आकार : – ( गुस्से से ) जितना हो सकता है, उतना वक्त निकाल लेता हूँ पर मैं अपने काम से कोई समझौता नहीं कर सकता। आज पैसा है, सारी जरूरतें पूरी हो रही हैं, इसलिए तुम्हें लगता है, पैसा जरूरी नहीं है। अगर पैसा नहीं होता तो मेरा वक्त किसी को अच्छा नहीं लगता। तुम और बच्चे रोज सवाल करते, कहाँ से अपनी जरूरतें पूरी करें?? मैं ऐसे हालात कभी भी नहीं आने दे सकता।
उस के भड़कने से अंकिता को समझ आ गया था कि उसे समझाना आसान नहीं है। उसने पैसे को ही ज़िंदगी बना लिया था। वहीं शेखर को सोचती थी तो समझ नहीं पाती कि वह कैसे इतनी आसानी से अपने सारे काम फ्री होकर कर लेता था। आकार गुस्से में चला गया और अंकिता को याद आया वह वक्त, जब उसने शेखर के सामने अपने परिवार को अपनी ख़ुशी बताया था। उस ने कहा था “बच्चे और पति के होते हुए भी तुम्हारा अकेलापन, मुझे ही तलाश रहा था। मेरे साथ गुज़रा वक्त, तुमने जिया है।” आज उस को एहसास हो रहा था कि उसने सच में ही उस के साथ ज़िंदगी को जिया है, वरना क्या था उसकी ज़िंदगी में। उस को याद करके वह मुस्कुराना चाहती थी मग़र अपनी हालत पर रो पड़ी।
अंकिता : - ( रोते हुए ) यह सब तुम्हारी गलती है आकार, तुम सोच भी नहीं सकते कि पैसा कमाने की जिद तुम्हें कितना अकेला कर देगी। मैं तो अपने दर्द के साथ अकेली हूँ ही, अब बच्चे भी समझने लगे कि तुम उनके लिए कभी मौजूद नहीं हो। मैंने दो मासूम बच्चों के लिए सारे समझौते कर लिए, क्या तुम अपना थोड़ा सा वक्त भी नहीं दे सकते? मैं अकेली और नहीं संभाल सकती अब।
उस ने सोचा था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वह ख़ुद आकार को शेखर के बारे में बताएगी, और तब उस को कोई अधिकार नहीं होगा उससे सवाल करने का, क्योंकि जो कुछ हुआ उसके लिए अंकिता से ज़्यादा वह जिम्मेदार था। जॉब छोड़कर उसे लग रहा था, घर और बच्चों में अच्छे से वक्त निकलेगा पर घर में रहकर दिन गुजारना मुश्किल हो रहा था।
दोपहर के दो बजे तक वह, कितनी ही बार, घर में यहाँ से वहाँ घूम चुकी थी। मुश्किल से दो बजे और बच्चों का स्कूल से आने का वक्त हुआ। वह बच्चों के इंतज़ार में बाहर बरामदे में टहल रही थी, अचानक आँखों के सामने सब धुंधला हो गया और इससे पहले कि उसे कुछ समझ आता, वह चक्कर खाकर गिर गई। बच्चे स्कूल से आए और उसे बेहोश देखकर घबरा गए। अश्विनी ने रोते हुए पापा को कॉल किया। आकार ने कॉल रिसीव किया और “बाद में बात करता हूँ”, कहकर कॉल कट कर दिया। अश्विनी उसके व्यवहार पर चिड़चिड़ा गई, रजत उसे डॉक्टर का नंबर ढूंढने को कहता है। अश्विनी अंकिता के ही मोबाइल से डॉक्टर को कॉल करती है।
“हैलो डॉक्टर आंटी, मम्मा बेहोश हो गई है। आप जल्दी हमारे घर आ जाइए।” छोटी सी अश्विनी ने समझदारी दिखाकर फैमिली डॉक्टर को कॉल कर दिया, पर डॉक्टर के आने से पहले अंकिता को होश आ गया। उस ने डॉक्टर को कॉल करके कहा कि वह खुद अस्पताल आकर मिलेगी। बच्चों से फ्री होकर वह हॉस्पिटल पहुँच गई, और चेकअप के बाद डॉक्टर ने वही कहा जिसका उस को डर था। “आप प्रेग्नेंट हैं मिसेज़ पटेल।” “क्या ” डॉक्टर के सामने अंकिता के मुँह से तेज़ आवाज़ निकल गई। अब यह एक नया टेंशन उस के सिर पर था।
अंकिता : – ( मन में ) जितना हालात को सुधारने की कोशिश करती हूँ, उतनी ही उलझती जा रही हूँ। इतनी बड़ी बात आकार को कैसे बताऊँ और ना भी बताऊँ तो इतना बड़ा सच कैसे छिपेगा!!! अगर उसे किसी और तरह पता चला तो क्या मुँह दिखाऊंगी। क्या करूँ कहाँ जाऊँ…? शेखर से बात करूँ…? नहीं, नहीं,,, उससे बात करके तो बात और उलझ जाएगी। मुझे आकार से ही बात करनी होगी, सही ग़लत जो भी लगे, पर उसे सच पता होना चाहिए।
बात करने का फ़ैसला करने के बाद भी वह आकार के घर आने पर कोई बात नहीं कर पाई। चुपचाप खाना लगाया और जाकर सो गई। वह ख़ुद चाहती थी, उसको सच बता दे मगर नहीं बता पाई। अपनी सच्चाई से उसे डर लग रहा था, क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने डॉक्टर को कॉल करके अपनी परेशानी बताई।
डॉक्टर ने उसे ज़्यादा टेंशन न लेने की सलाह दी। “मिसेज पटेल, आप इतना क्यों सोच रही हैं, आप अबॉर्शन करवा दीजिए। वैसे भी यह आपका तीसरा बच्चा है तो आपको ज़रूरत नहीं है।” डॉक्टर की सलाह से वह कांप गई। उसने अपने बच्चों को कभी ज़रूरत नहीं समझा था। अबॉर्शन के नाम पर उसे घबराहट हो रही थी, आखिर अपने अजन्मे बच्चे को कैसे मार दे! उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था।
अंकिता : – ( अपने आप से ) यह सब मेरी गलती है इसलिए उसका सामना भी मैं ही कर रही हूँ। आकार की लापरवाही या शेख़र की ज़िद, यह सब ख़ुद को तसल्ली देने के लिए हैं। अगर मैं अपनी हदें पार नहीं करती तो किसी की क्या हिम्मत कि मुझे छू भी पाता। आकार से मिली उदासी की वजह से मैं खुद को किसी के भी हाथों में कैसे सौंप सकती हूँ। सच तो यही है कि मैं सेल्फिश हूँ। मुझे सिर्फ अपनी ख़ुशी दिख रही थी और दो दिन खुश रहने के लिए… उफ्फ्फ,,,
अंकिता इससे पहले कभी हालात के सामने नहीं झुकी थी, पर अब खुद को बहुत कमज़ोर महसूस कर रही थी। आख़िर में वह शेखर को बताने का फ़ैसला करती है। उसने मोबाइल हाथ में उठाया, तब तक रजत आकर उसे हाथ पकड़ कर अपनी ड्रॉइंग दिखाने ले गया। अंकिता उसकी ड्रॉइंग देखकर हैरान थी, उसने एक शीट पर उसकी पूरी दिनचर्या उतार दी थी। बीच में पूरा परिवार था, आकार, अंकिता, अश्विनी और ख़ुद रजत। आस - पास छोटे - छोटे गोले बनाकर उनमें अंकिता के दिन भर के काम थे। पहले गोले में सुबह बच्चों को जागकर दूध दे रही थी, दूसरे में टिफ़िन लगाकर स्कूल बैग में रख रही थी। आकार का आना, सबका नाश्ता करना, जाते हुए आकार का बाय करना, स्कूल जाते बच्चों का बाय करना, फिर सबका साथ डिनर करना और फिर सबका सोना। इनसे अलग, एक सर्कल बना था, उसमें अंकिता अकेली थी।
उस ने हंसकर कहा “गुल्लू बेटा, मम्मा को यहाँ अलग क्यों खड़ा किया है, और मम्मा की गोद में छोटा बेबी कौन है, गुल्लू या आशी???” उस के सवाल पर रजत ने सर झुका लिया और उदास होकर बोला। “यह आपका नया बेबी है मम्मा, आप डॉक्टर आंटी से बात कर रही थीं न, कि आपको नया बेबी नहीं चाहिए। मुझे भी नहीं चाहिए मम्मा, दीदी को भी नहीं, और शायद पापा को भी नहीं चाहिए होगा, उनके पास तो टाइम ही नहीं होता बेबी के साथ खेलने के लिए , इसलिए नए बेबी के साथ आपके पास कोई नहीं है।” रजत की बात सुनकर उस के पास जबाव नहीं था। इतना छोटा बच्चा अगर यह सब समझ रहा है तो जब यही बच्चे बड़े हो जाएंगे और इस बच्चे का सच जानेंगे, तब अपनी मम्मा के बारे में क्या सोचेंगे !!
अंकिता ; – ( घबराकर ) नहीं नहीं… मैं इतनी बड़ी गलती नहीं कर सकती। मेरे दोनों बच्चे ज़िंदगी भर मुझसे नफरत करेंगे। इस बच्चे की मौत का बोझ उठाकर शायद जी भी लूँ, पर इन दोनों की नफ़रत कैसे सहन होगी? इस कहानी को मुझे यहीं ख़त्म करना होगा। मैं किसी को कुछ नहीं बताउंगी। आकार को भी कभी यह सच, पता नहीं चलने दूँगी। हो सकता है यह गलत है पर इसी में सबकी भलाई है।
अंकिता ने पक्का इरादा कर लिया और डॉक्टर से बात करके उसने दो दिन बाद का वक्त ले लिया क्योंकि दो दिन बाद आकार एक हफ्ते के लिए बाहर जाने वाला था। उस के जाने के बाद उसने पहले जल्दी जल्दी सारे काम निपटाए, फिर बच्चों को स्कूल भेजकर वह हॉस्पिटल के लिए निकल ही रही थी कि आकार का फ़ोन आ गया।
आकार ; – ( फ़ोन पर ) यार,,, प्रॉजेक्ट की फाइल घर पर ही रह गई। रात में देख कर वहीं टेबल पर रख दी थी, सुबह जल्दी जल्दी में याद नहीं रहा। तुम थोड़ा सा देखकर मेल कर दो न, प्लीज़। थोड़ी देर सिस्टम पर बैठना पड़ेगा बस थोड़ी सी मेहनत होगी। मैं वापस आया तो देर हो जाएगी, तब तक बाजी और कोई मार लेगा.... हैलो,,,?? सुन रही हो ???
वह चुप थी क्योंकि वह आकार के बिजनेस के लिए कोई काम नहीं करना चाहती थी, पर अगर ना कह देती तो वह लौट कर वापस आ जाता और उस का लौटना, उसकी मुश्किलें बढ़ा देता। उसने हाँ कहा और फाइल उठाकर सिस्टम पर बैठ गई। उस का काम ख़त्म करके वक्त पर हॉस्पिटल भी पहुँच गई, पर डॉक्टर ने पहले कुछ टेस्ट करवाए और अंकिता को अंदर बुला कर कहा, “सॉरी मिसेज पटेल, हम आज अबॉर्शन नहीं कर पाएंगे। अभी आपका बीपी हाई है, और जब तक बीपी नॉर्मल नहीं हो जाता, हम कोई रिस्क नहीं ले सकते।”
डॉक्टर की बात सुनकर वह उदास हो गई। वह एक दिन भी इंतज़ार नहीं करना चाहती थी। एक एक पल मुश्किल लग रहा था। बीपी तो बढ़ना ही था… मन में घबराहट भरी थी, और हॉस्पिटल की ओर बढ़ते क़दम कांप रहे थे। डॉक्टर से इजाज़त लेकर वह वापस आ गई और रास्ते में गाड़ी रुकवाकर, पार्क में चली गई। उसे लग रहा था, प्रकृति की गोद में बैठकर कुछ सुकून मिलेगा और शायद बीपी भी नॉर्मल हो जाए, लेकिन वह पार्क में अंदर तक नहीं पहुँच पाई, गेट पर ही चक्कर खाकर गिर गई। चारों तरफ़ भीड़ लग गई, तभी शेखर उसी पार्क से बाहर की तरफ़ आ रहा था। अपनी माँ की व्हील चेयर को धकेलते, उनसे बातें करते हुए शेखर गेट के बिल्कुल पास था…।
क्या शेखर और अंकिता की मुलाकात हो पाएगी???
क्या शेखर को अंकिता की प्रेग्नेंसी पता चल जाएगी??? या भीड़ के बीच पड़ी अंकिता को देखे बिना ही शेखर निकल जाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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