शिकागो से लौटी अंकिता एक पल में ही बदली बदली लग रही थी। पूरे हॉल में उस का सामान बिखरा हुआ था, खुद संभालने की जगह उसने घर के नौकर को सामान समेटने को कहा और एक बैग खींचकर अपने साथ बेडरूम में ले गई।

आकार भी हँसते हुए उसके पीछे चला गया, और बेडरूम में उस को देखकर हैरान रह गया, वह सोफे पर लेटी थी। ऑफिस से आकर भी कभी वह बिना चेंज किए सोफे पर नहीं लेटती थी और आज तो इतने घंटे का सफ़र करके आई थी। आकार ने इग्नोर किया और चादर खींचकर सो गया। नौ बजे अलार्म बजने से वह उठा, अंगड़ाई लेते हुए सामने देखा तो झटका लग गया, वह अभी तक सो रही थी। वह डर गया, अंकिता को क्या हुआ! उसने पास जाकर देखा तो उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक रही थी। उसे हिलाया तो वह चीख मारकर उठ गई।

आकार ; – ( हड़बड़ाते हुए ) अंकिता… अंकिता… तुम ठीक हो??? सॉरी, मुझे नहीं पता था, तुम इतनी गहरी नींद में हो। मुझे लगा कहीं तुम्हारी तबियत खराब ना हो, इस तरह तो तुम कभी नहीं सोतीं। पता नहीं मुझे लग रहा है या सचमुच ही… अ… त , तुम बहुत बदली बदली सी लग रही हो। हो सकता है लम्बे सफ़र की थकान हो, कोई बात नहीं, तुम आराम करो। मैं राघव से कहकर खाना बनवा लूँगा। जब ठीक लगे, उठ जाना।

उस ने पसीना पोंछने के लिए उसे तौलिया दिया और खुद नहाने चला गया। पसीना पोंछकर वह तौलिया लपेटकर बैठ गई । आकार तैयार होकर नीचे चला गया। राघव ने नाश्ता लगा दिया था, नाश्ता करके ऑफिस जाते हुए अंकिता की हालत याद आई तो उसे देखने वापस बेडरूम में पहुँच गया। वह वैसे ही बैठी थी, तब पसीना आ रहा था, और अब ठंड से कांप रही थी।

उसका माथा छूआ तो बहुत तेज़ गर्म था, बुखार से चेहरा लाल हो रहा था। उस ने उसे बेड पर सुलाया और काम वाली बाई को बुलाकर गीली पट्टी रखवाई। उसे उस का ध्यान रखने को कहकर उसने डॉक्टर को कॉल किया और ख़ुद ऑफिस चला गया। आकार जिसे थकान समझ रहा था, वह उस की घबराहट थी। शेखर का बिछड़ना उससे सहन नहीं हो रहा था। बुखार कम हुआ तो मोबाइल उठाकर शिकागो की तस्वीरें देखने लगी।

अंकिता : – ( नम आँखों से ) कैसे जादूगर इंसान हो तुम, बिना बताए ही सब समझ लेते हो, कुछ पूछते नहीं हो पर तुम्हें हालात का पता होता है। तुमने मेरी ज़िन्दगी से एक गहरी उदासी मिटा दी। मुझे मुस्कुराना सिखा कर ज़िंदगी से मिला दिया, पर मैंने तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया। जानना ही नहीं चाहा कि इंडिया आकर तुम हमारी दोस्ती को रखना चाहते हो या नहीं। बस अपना फ़ैसला तुम पर थोप दिया। मुझे माफ़ कर देना शेखर,,,

अंकिता अपने आप को संभालने के लिए, ख़ुद को पहले की तरह व्यस्त रखने की कोशिश में लग गई। सुबह से शाम तक किसी भी तरह वह ख़ुद को फ्री नहीं होने देती। दिन, हफ्ते, महीने गुजर गये, पर क़िस्मत ने उन दोनों के साथ खेल खेलना बंद नहीं किया। एक दिन ऑफिस में बॉस ने उसे बुलाया, वह उनके केबिन में पहुँची तो उन्होंने नए प्रॉजेक्ट के बारे में बताया। इसके लिए उसे पाँच ज़िम्मेदार लोगों की टीम बनानी थी। बॉस ने उसे सारा काम समझाते हुए कहा, “तुम दो हो, बाकी के तीन लोग जो तुम्हें ठीक लगें, ले सकती हो, और तुम्हारे टीम लीडर होंगे, हमारी कंपनी के नए सीटीओ मिस्टर राजशेखर। ”सीटीओ का नाम सुनकर अंकिता घबरा गई।

शेखर कम्पनी का सीटीओ है, पर इससे पहले तो कभी उसे यहाँ नहीं देखा!! वह सोच ही रही थी कि पीछे से आवाज़ आई “मे आई कम इन सर?” उस ने बिना देर किए पलट कर देखा, सामने वही था, शेखर ने भी अंदर आकर पहले उसको ही देखा। बिना कुछ कहे, दोनों के चेहरे बता रहे थे, कि वह एक दूसरे को पहचानते हैं। बॉस ने हँसते हुए पूछा, “आप दोनों शायद एक दूसरे को जानते हो???” बॉस के सवाल से वह हड़बड़ा गई पर शेखर ने संभाल लिया,

शेखर : – ( बैठते हुए ) जी सर, हम दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। कुछ दिन पहले कम्पनी के एक प्रॉजेक्ट पर हम साथ शिकागो ट्रिप पर गए थे। दो महीने हो गए उस ट्रिप को तो एकदम से क्लिक नहीं हो पाया कि हम कहां मिले हैं, अब याद आ गया। यह मिसेज अंकिता पटेल हैं, जो बेहद मेहनत और लगन से काम करती हैं। मैंने देखा है इनके काम का तरीक़ा।

शेखर संभल गया मगर वह जड़ बनकर खड़ी थी। उसके सामने वह था जिसे वह एक बार देखना चाहती थी। बॉस उन दोनों को नए प्रॉजेक्ट के बारे में समझा रहे थे, पर सब कुछ उस के सर के ऊपर से गुज़र रहा था। उसके दिमाग़ में शिकागो और शेखर चल रहे थे। बॉस ने उसे आवाज़ दी तो चौंक गई, “आप ठीक हैं मिसेज पटेल? मुझे लग रहा है आपने सुना भी नहीं, मैंने क्या कहा है?” वह हड़बड़ा कर खड़ी हो गई, उसने सच में कुछ नहीं सुना था। अपने आप को संभालने की कोशिश करते हुए कहा, “सॉरी सर तबियत ठीक नहीं लग रही है, शायद ही मैं यह प्रॉजेक्ट कर पाऊं। इसके लिए आप किसी और का नाम दे दीजिए।” शेखर जानता था उस ने क्यों मना किय।  ऑफिस के बाद, वह उसके पीछे ही निकल आया और ऑफिस के बाहर उसे रोक लिया।

शेखर : – ( सख़्ती से ) देखो अंकिता, जो हुआ है उसे बदला नहीं जा सकता पर उसे इग्नोर किया जा सकता है!! यह प्रॉजेक्ट तुम्हें शिकागो की सफलता के लिए ही मिला है। और काम करो, और आगे बढ़ो। मैं इस प्रॉजेक्ट के बाद यहाँ से चला जाऊँगा,बस तब तक मुझे बर्दाश्त कर लो। मैं पूरी कोशिश करूँगा कि तुम्हारे सामने कम से कम आऊँ। तुम बस अपने काम पर ध्यान दो और बाकी सब नज़र अंदाज़ कर दो। मेरी तरफ़ से निश्चिंत रहो अंकिता, कोई परेशानी नहीं होगी तुम्हें।

अंकिता : – ( मुस्कुरा कर ) तुम्हारे यहाँ होने से मुझे कोई परेशानी नहीं है, तुम अपने काम पर फोकस करो। मैंने अपना रेज़िग्नेशन लेटर भेज दिया है, शायद कल एक्सेप्ट हो जाएगा। घर और ऑफिस की भागदौड़ में बहुत थक जाती हूँ, अब कुछ आराम चाहती हूँ। शिकागो से लौटने के बाद, काम पर वापस नहीं आना चाहती थी, पर कुछ पेंडिंग काम थे, वही निपटाने थे। एक हफ्ते बाहर रहने में घर और बच्चे अस्त व्यस्त हो गए थे। मैं अब जिन्दगी को ऐसा मौका नहीं देना चाहती। चलती हूँ बाय…।

उस ने खुद को जितना संभाला था, शेखर के सामने आते ही बेकार हो गया। उसकी हालत फ़िर वैसी ही हो गई थी। वह भी जानता था, अंकिता झूठ बोल रही है, उसने देखा था, उसे अपने काम से कितना प्यार था। थकान की वजह से वह जॉब नहीं छोड़ सकती थी, पर वह जानता था, वह कुछ नहीं कर सकता। अपने बॉस को किसी भी काम के लिए मना नहीं कर सकता। अंकिता उस के सामने तो हिम्मत दिखाकर निकल गई, पर गाड़ी में बैठते ही उसकी सिसकियाँ निकल गई। उसे उस के शब्द याद आ रहे थे, बॉस के सामने उसने कितनी आसानी से बात संभाल ली, मगर पहली बार उस के मुंह से मिसेज़ अंकिता सुना तो तो अंदर तक हिल गई।

पहली बार मिला था तब भी उस ने मिस अंकिता ही कहा था…। ख़ुद को संभाल कर आँसू पोंछते हुए उस ने घर पहुँचने से पहले तय कर लिया कि कोई भी परेशानी आए, वह रास्ता जरूर निकालेगी। घर पहुँच कर आँख बंद करके, थोड़ी देर सोफ़े पर सिर टिकाकर बैठ गई। थोड़ा आराम करके, उसने सबसे पहले आकार से बात करने का फ़ैसला किया। उसे लग रहा था ज़्यादा से ज़्यादा वक्त उस के साथ बिताएगी तो शायद शेखर को कुछ हद तक भूल जाएगी और धीरे - धीरे सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा। जल्दी से सारे काम ख़त्म करके उस ने कॉल किया, पर आकार का जवाब हर बार की तरह मिला, ‘’ हाँ अंकिता, जल्दी बोलो,,, थोड़ा बिजी हूँ। अ, घर आने में लेट हो जाऊँगा, इंतज़ार मत करना। खाना मैं खाकर आऊंगा, तुम भी खा लेना और बच्चों को सुला कर सो जाना।।  कोई जरूरी काम हो तो जल्दी बताओ,,, मेरे पास टाइम बिल्कुल भी नहीं है। अच्छा चलो, अभी रखता हूँ। घर पर कल आराम से बैठकर बात करते हैं।''

जितना वह संभलना चाहती थी, आकार का व्यवहार उसे उतना हताश कर देता था। कभी उसे ऐसा नहीं लगा कि उसके पास बैठकर अपने दिल की बातें सुना सके या उसकी सुन सके। हर बार एक ही जवाब होता, मैं बहुत बिजी हूँ, बाद में बात करता हूँ, पर बाद में कब ,किसी को नहीं पता। । उस ने भी सोच लिया, वह कितना भी लेट क्यों न आए, उससे बात ज़रूर करेगी, अपनी गृहस्थी को बिखरने नहीं देगी। उसे पता था, उसकी जरा सी लापरवाही बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ सकती थी।

आकार को उसकी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाकर वह एक नई शुरुआत करना चाहती थी। ऑफिस और घर की भागम भाग में बच्चे छूट जाते थे, इसलिए कई दिनों से सोच रही थी, जॉब छोड़ दे, पर शेखर को देखकर उसने फ़ैसला आसानी से ले लिया। रात के साढ़े दस बज गए थे, उस ने बच्चों को खाना खिलाकर सुला दिया, और खाना रखकर डायनिंग टेबल पर ही आकार का वेट करने लगी। बारह बज गए थे उस की गाड़ी आकर रुकी और अंकिता की आँख खुल गई, वह इंतज़ार करते हुए बैठी बैठी वहीं सो गई थी। वह अंदर आते ही उसे इंतज़ार करते देखकर भड़क गया।

आकार : – ( चिल्ला कर ) यह क्या बचपना है, रात के बारह बज रहे हैं, तुम ठंड में बैठकर मेरा इंतज़ार कर रही हो। ऐसी क्या आफत आ गई कि आज ही बात करनी है! तुम्हें अच्छी तरह पता है, मैं अपने काम से कोई समझौता नहीं करता, अगर मैंने कहा था, लेट आऊंगा तो सीधी सी बात थी, मैं जल्दी आ ही नहीं सकता। तुम सुबह जल्दी उठती हो,  रात में जल्दी सोना चाहिए। फ़िर दिन भर ऑफिस बच्चे घर सब संभालने के बाद यहाँ बैठकर इंतज़ार…? तुम बच्ची नहीं हो, तुम्हें खुद का भी ध्यान रखना चाहिए। कम से कम समय पर सो तो सकती हो!  

आकार के भड़कने से अंकिता पूरी तरह बिखर गई। उसे समझ नहीं आया कैसे उस को एहसास दिलाए कि यह उसका परिवार है और परिवार को पैसे से ज्यादा उसके वक्त की ज़रूरत थी। उस ने कई बार कोशिश करके देखा, पर वह हमेशा अपनी लापरवाही से उसे ख़ुद से दूर कर देता था। उसने चिल्लाने से पहले एक बार भी यह नहीं सोचा कि इतनी रात तक अगर वह उसका इंतज़ार कर रही है तो कुछ तो ख़ास होगा या कोई परेशानी होगी। उसने अपनी ज़िंदगी काम के नाम कर दी थी और उसकी व्यस्तता ने उससे जो छीना था, उसका उसे एहसास भी नहीं था। अपनी सुनाकर वह बेडरूम की तरफ़ बढ़ गया, फ़िर पलट कर उस के पास जाकर बोला, “सॉरी, मैंने पहले ही कहा था मैं खाना खाकर आऊंगा,,, तुम खाना खा लो।” उस का जवाब सुने बिना वह वापस मुड़ गया। वह गुस्से से उठकर खड़ी हो गई, और शायद पहली बार उस पर चिल्लाई… “रुको आकार…”

 

क्या सब कुछ ठीक करने की कोशिश में आकार और अंकिता में दूरियाँ बढ़ जाएंगी???

क्या आकार को अंकिता की हालत समझ आ पाएगी???

या कोई और बड़ी आंधी उनके रिश्ते में आने वाली थी?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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