उनके जीवन में अब सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था। हर रोज़ एक नया सूरज खुशियों के साथ उगता था और उनकी ज़िंदगी में एक नई रोशनी बिखेरता था। ऐसे ही देखते-देखते दिन गुज़रने लगे और वक़्त अपनी गति से आगे बढ़ता गया। और वक़्त के साथ ही उन दोनों की ज़िंदगी में एक सबसे अहम और ख़ूबसूरत लम्हा आया जिसने ना सिर्फ़ उनकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल दिया, बल्कि उनकी खुशियों को दुगुना कर दिया। और वह लम्हा था जब राजकुमारी अनाया ने पहली बार उनकी ज़िंदगी में कदम रखा और वह इस दुनिया में आई।

जिस दिन अनाया का जन्म हुआ, पूरी हवेली, क्या बल्कि पूरी रियासत तक, एक त्यौहार जैसा जश्न मना उठा। हर घर में खुशी और जश्न मना रहे थे। पूरी रियासत में मिठाइयाँ और तोहफ़े बाँटे गए। राजकुमारी अनाया अपने पिता और रियासत के लिए, अपने पैदा होने के बाद से ही, बहुत ही भाग्यशाली साबित हुई और उनके आने से पूरी हवेली की खुशियाँ चौगुनी बढ़ गई थीं। कुलदीप जी के जीवन में जो परिवार की कमी थी, वह कमी अब पूरी तरह भर चुकी थी। हालाँकि शादी के बाद उनकी पत्नी रुकमणी के उनकी हवेली में आने के बाद यह कमी काफ़ी हद तक पूरी हुई थी, लेकिन अनाया के जन्म के बाद यह कमी पूरी तरह भर चुकी थी।

 

अनाया के आने के बाद कुलदीप और रुकमणी का पूरा जीवन ही राजकुमारी अनाया के इर्द-गिर्द घूमकर रह गया था। अनाया उन दोनों की जान थी। उस पर एक छोटी सी आँच से भी दोनों की जान पर बन आती थी। लेकिन साथ ही अनाया की सिर्फ़ एक मुस्कान उन दोनों की हर दुख और परेशानी का हल भी थी। उसकी एक छोटी सी अल्हड़ मुस्कान उनके हर दुख, हर दर्द का मरहम थी। कुल मिलाकर अनाया को दोनों ने बड़े ही नाज़ों से पाला और उसके जन्म के बाद से ही हवेली में सिर्फ़ खुशियाँ ही खुशियाँ थीं और अब हर एक दिन बस त्यौहार की तरह सजा रहता था। हालाँकि ये खुशियाँ ज़्यादा दिन बरकरार नहीं रह पाईं। अनाया महज़ पाँच वर्ष की थी जब उसकी माँ रुकमणी की आकस्मिक मृत्यु हो गई। इस मृत्यु ने राजा कुलदीप को अंदर तक तोड़ दिया था। उनकी प्रिय पत्नी, उनकी हमसफ़र अब इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी थी।

 

हालाँकि एक राजा होने के नाते वह अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद, क्या उनके जीते जी भी, दूसरा विवाह कर सकते थे, लेकिन क्योंकि उन्हें हमेशा से ही रुकमणी जी से अत्यधिक प्रेम रहा था, इसीलिए उन्होंने कभी भी दोबारा जीवन में विवाह ना करने की सौगंध खाई थी। और रुकमणी जी की मृत्यु के बाद अनाया के लिए उन्होंने अपनी यह सौगंध बखूबी निभाई क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनकी फूल जैसी बेटी के जीवन में सौतेलेपन जैसा कोई भी कठोर शब्द आए और किसी भी तरीके से उनकी बेटी पर दुख की थोड़ी सी छाया भी पड़े। रानी रुकमणी की मृत्यु राजा कुलदीप के लिए किसी सुनामी से कम नहीं थी। उनका दुख इतना गहरा था कि वह लफ़्ज़ों में बयाँ भी नहीं हो सकता था, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और वक़्त के साथ आगे बढ़े, सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी बेटी अनाया के लिए। उन्होंने अपना सारा जीवन, अपना सब कुछ, सिर्फ़ अपनी लाडली, जान सी प्यारी बेटी पर न्योछावर कर दिया और पूरे मन और लगन के साथ उसका पालन-पोषण करने लगे। उन्होंने अनाया को फूलों की तरह संजोकर रखा और पाला और उसे हर तरह की छल-कपट, बाहरी दुनिया से बिल्कुल दूर रखा ताकि उनकी बच्ची पर किसी भी बुरे साये की छाया तक भी न पड़ पाए। और शायद यही वजह थी कि अनाया अपने बचपन से लेकर अपने यौवन तक अपने मन से बिल्कुल एक समान ही थी; मतलब कि उसकी उम्र भले ही बढ़ गई थी, लेकिन उसका मन, उसका मन अभी भी बहुत ही मासूम और किसी मासूम बच्चे की तरह निष्कलंक और साफ़ था।

 

छोटी-छोटी खुशियों में खुश रहने वाली, हमेशा मुस्कुराती रहने वाली, सकारात्मक सोच की लड़की राजकुमारी अनाया दिल की बड़ी ही दानी और नाज़ुक थी जो अपने दुख से ज़्यादा दूसरों के दुख से दुखी होती थी; जिसके लिए पैसे से ज़्यादा जज़्बात और भावनाएँ महत्वपूर्ण होती थीं और जो अपने से छोटे लोगों के दुख और तकलीफ़ को अपनी दुख और तकलीफ़ समझकर ना सिर्फ़ महसूस करती थी, बल्कि अपने बल पर उन्हें हल करके उन्हें सुकून पहुँचाने के प्रयास में हमेशा अग्रसर रहती थी। और शायद यही एक वजह थी कि छोटा हो या बड़ा, नौकर हो या मालिक, हर कोई अनाया से लगाव रखता था, उससे बेहद प्रेम करता था और अनाया हर किसी की आँखों का तारा, हर किसी की लाडली थी।

 

अनाया की माँ की जब मृत्यु हुई, तो वह महज़ पाँच वर्ष की थी और अपनी माँ की मृत्यु के साथ ही हँसने-खेलने वाली, फूलों जैसी नाज़ुक अनाया काफ़ी अरसे तक ख़ामोश और उदास रहते हुए मुरझाने सी लगी थी। लेकिन सिर्फ़ अपने पिता के साथ और प्यार की वजह से ही, धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अनाया इस दुख से उभरने लगी थी। अब अनाया के पिता की तरह ही अनाया के लिए भी उसकी सारी दुनिया और परिवार मात्र उसके पिता ही थे और वह उन्हीं में अपना सारा परिवार और जीवन देखती थी। अपने पिता से अनाया एक बेटी की तरह लाड़ लड़ाती, तो कभी उनकी लापरवाही पर एक माँ की तरह अपनी मासूमियत से पिता को डाँटती, तो कभी एक दोस्त की तरह उनसे अपने जज़्बात और भावनाओं को साझा करती, तो कभी अपने पिता की भावनाएँ और उनकी बातें सुनकर उनके मन का बोझ कम करने की कोशिश करती।

 

कुल मिलाकर अनाया और उसके पिता एक-दूसरे के लिए एक-दूसरे की पूरी दुनिया थे और दोनों की ही एक-दूसरे में जान बसती थी। अपने पिता के सिवा दुनिया में अगर कोई दूसरा इंसान ऐसा था जो अनाया के लिए अपने परिवार की तरह और अपनी ज़िंदगी से बढ़कर था, तो वह था वीर। वीर मल्होत्रा। वीर कहने के लिए तो अनाया का दोस्त और सुरेन्द्र जी का बेटा था, लेकिन उसके लिए वह उसकी ज़िंदगी से बढ़कर था। अपने पिता के बाद अगर अनाया किसी से सबसे ज़्यादा क़रीब थी और जिसकी किसी बात को वह कभी नहीं टाल सकती थी, तो वह था वीर। जीवन के चाहे कोई भी सुख-दुख हों या अपनी माँ की मृत्यु से उबरने में भी, अनाया के पिता के साथ ही वीर ने उसका सबसे ज़्यादा साथ और प्रोत्साहन दिया था और अनाया के पैदा होने के साथ से ही वीर उसके साथ था। वीर अनाया से उम्र में दो साल बड़ा था और जब वीर का जन्म होने वाला था, तब उसे जन्म देते हुए ही वीर की माँ चल बसी थी। यह सदमा सुरेन्द्र जी के लिए बेहद घातक और बड़ा था और तब से ही वह इस सदमे को अपने दिल-दिमाग पर ले बैठे थे और इसी के चलते बीमार रहने लगे थे और लंबी बीमारी के बाद आखिर में वह भी इस दुनिया से चल बसे, अपने दोनों बेटों को कुलदीप जी के सहारे छोड़कर।

 

सुरेन्द्र जी का बड़ा बेटा प्रताप उस वक़्त काफ़ी समझदार था, लेकिन वीर एक अल्हड़ छोटा बच्चा ही था और इस छोटी सी उम्र में अपने माता-पिता को खोने का दर्द क्या होता है, उसे यह तक भी एहसास नहीं था। उसने अपनी आँखें खोलीं और होश संभाला तो अपने सरपरस्त के रूप में कुलदीप जी और रुकमणी को ही पाया। हालाँकि उसका बड़ा भाई प्रताप, कुलदीप जी के सहारे एक हद तक अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से ही उसने अपने पिता की उपाधि संभाल ली थी और वह भी पूरे मन और लगन से कुलदीप जी की सेवा और वफ़ादारी में जुट गया था और ऐसा करने की एक वजह प्रताप की ख़ुद्दारी भी थी क्योंकि वह अब और ज़्यादा कुलदीप जी के एहसानों तले नहीं दबना चाहता था। इसलिए उसने कुलदीप जी से आग्रह करते हुए उनकी सेवा में खुद को समर्पित कर दिया, लेकिन साथ ही उसने वीर के प्रति एक पिता की भाँति अपना फ़र्ज़ निभाया और उसके लिए वह बेहतर से बेहतर किया जो भी वह कर सकता था और इसमें उसका पूरा साथ कुलदीप जी ने दिया। कुलदीप जी ने सुरेन्द्र जी के जाने के बाद उनके दोनों बेटों को अपनी ही हवेली के साथ जुड़े हुए एक छोटे से गेस्ट हाउस में ही रहने के लिए जगह दे दी और उन दोनों की सारी ज़रूरतों को पूरा किया।

 

यूँ तो वीर और अनाया में दो साल की उम्र का अंतर था, लेकिन फिर भी दोनों हमेशा से एक-दूसरे के साथ, हमउम्र की तरह ही दोस्त बने रहे। इसीलिए उन दोनों की पढ़ाई-लिखाई सब साथ ही हुआ और दोनों हर जगह साथ ही पढ़ने जाते, खेलते और रहते आए थे। वीर भी अपनी माँ को, माता-पिता को खो चुका था और अनाया भी अपनी माँ को खो चुकी थी। शायद यह भी एक वजह थी कि दोनों का दर्द एक जैसा था, इसीलिए वे एक-दूसरे को समझ पाते थे। बचपन से लेकर बड़े होने तक वीर ने हर कदम अनाया के आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया था। कुलदीप जी भी अपनी बेटी को लेकर वीर पर सबसे अधिक विश्वास करते थे। अनाया अगर कुछ घंटों के लिए भी वीर से दूर हो जाती थी, तो उसकी बेचैनी बढ़ जाती थी और उसे कहीं सुकून नहीं मिल पाता था और यही हाल कुछ वीर का भी था। दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी थे और जिनकी अपनी ही एक अलग छोटी सी ख़ूबसूरत दुनिया थी और जिसकी नींव थी उनकी ख़ूबसूरत दोस्ती।

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.