कुलदीप जी ने रुक्मणी का नाम सुना; तो वे कुछ पल के लिए गंभीर होकर बिल्कुल खामोश हो गए। कुछ पल बाद, उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ने की कोशिश की, सुरेंद्र जी को नाराज़ न करने का प्रयास करते हुए। मगर सुरेंद्र जी ने उनकी बात समझते हुए उन्हें बीच में ही रोक दिया।
सुरेंद्र जी (कुलदीप जी को बीच में ही रोकते हुए): “आप ना नहीं कहेंगे। आपने हमसे वादा किया है, और इतना वक्त हो गया है हुकुम साहब। राजकुमारी रुक्मणी के पिता जी ने कितनी बार आपसे आग्रह किया है कि आप उनके घर जाएं। और आप भी अच्छे से जानते हैं कि राजकुमारी रुक्मणी के पिता श्री राणा जी आपको राजकुमारी रुक्मणी के लिए पसंद कर चुके हैं, जिसका जिक्र उन्होंने आपसे कई बार किया है। लेकिन आप हर बार बात टाल जाते हैं। आखिर कब तक आप यूँ ही अकेले और तन्हा रहेंगे? अब वक्त आ गया है हुकुम साहब, कि आप अपना खुद का एक परिवार बनाएँ!”
कुलदीप जी (बेहद संजीदगी के साथ): “हम जानते हैं सुरेंद्र जी, और अपने प्रति आपकी चिंता भी समझते हैं। लेकिन न जाने क्यों, जब भी हम अपने विवाह के बारे में सोचते हैं, तो हमें ऐसा लगता है कि वह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, और शायद हम उसे उठाने के लिए अभी तैयार नहीं हैं। और अगर हमने उसे उठा भी लिया, तो क्या हम उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा भी पाएँगे? हमें यह डर और चिंता लगातार सताते रहते हैं कि कहीं हम अपनी व्यस्तता के चलते उन्हें वक्त न दे पाएँ और फिर अपनी ही नज़रों में उनके दोषी न बन बैठें!”
सुरेंद्र जी (कुलदीप जी के चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश करते हुए): “छोटा मुँह बड़ी बात, पर क्या सिर्फ़ यही वजह है हुकुम साहब, आपके ना कहने की?”
कुलदीप जी (एक गहरी साँस लेकर, बड़ी ही गंभीरता के साथ चिंतित स्वर में): “सच कहूँ तो इससे भी बड़ी चिंता का विषय हमारे लिए यह है कि कल को जो भी लड़की हमारी पत्नी के रूप में हमारे घर आएगी, वो सिर्फ़ हमारी पत्नी न होकर हमारी रियासत की भावी महारानी भी होगी। और अगर कहीं गलती से हमने अपनी पत्नी के रूप में किसी गलत लड़की का चुनाव कर लिया, तो हमारी प्रजा का, हमारे लोगों का जो हम पर विश्वास है, और जो अपनी कड़ी मेहनत से हम इस मुकाम तक पहुँचे हैं, और अपने लोगों का भरोसा जीत पाए हैं, वो सब कुछ नष्ट हो जाएगा, और सब बिखर जाएगा। हमने जो सब लोगों को पिरोकर एक पूरी माला बनाई है, वह माला बिखरकर ना सिर्फ़ टूट जाएगी, बल्कि पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाएगी। और हम ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते कि हमारी एक गलती की वजह से, बात पूरी रियासत या हमारे लोगों पर आये!”
सुरेंद्र जी (कुलदीप जी की नादानी भरी मासूमियत पर मुस्कुराते हुए): “आप जानते हैं हुकुम साहब, आपका दिल बिल्कुल शीशे की तरह साफ़ है, उसमें कहीं भी कोई मैल नहीं है। और सबसे खास बात ये है कि आप हमेशा खुद से पहले दूसरों का भला सोचते हैं। और जो लोग ऐसे होते हैं, ईश्वर उनके साथ कभी बुरा नहीं होने देते, उनके साथ हमेशा अच्छा ही होता है। और यकीनन आपके साथ इतने लोगों की दुआएँ हैं, तो आपके साथ सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छा ही होगा। और आप नकारात्मक क्यों सोच रहे हैं? आप ये भी तो सोचिए ना कि आने वाली महारानी के साथ और प्रेम से आप अपने जन-कल्याण के मकसद में ज़रूर कामयाब होंगे। (एक पल रुक कर) और जहाँ तक बात है राजकुमारी रुक्मणी की, तो हमने अपने स्तर पर उनके पूरे परिवार और उनके बारे में पूरी जानकारी हासिल की है। उनके परिवार में ज़्यादा लोग नहीं हैं; माता-पिता के सिवा एक छोटा भाई है, और माता-पिता भी बेहद सरल स्वभाव के हैं। और अगर बात करें राजकुमारी रुक्मणी की, तो वह भी बहुत ही सुलझी हुई और समझदार हैं, और अपने स्नेह, प्रेम और सरल स्वभाव की वजह से सभी लोगों की प्रिय हैं। (एक पल रुक कर) छोटा मुँह, बड़ी बात, पर हुकुम साहब हमें लगता है कि आपके लिए राजकुमारी रुक्मणी से बेहतर जीवन साथी और कोई नहीं हो सकता। लेकिन फिर भी राजकुमारी रुक्मणी से मिलने के बाद, अगर आपको थोड़ा भी लगे कि आपकी धर्मपत्नी बनने की कसौटी पर वह खरी नहीं उतरती, तो आप बेशक इस रिश्ते को ना कह सकते हैं, और हम इसका कोई विरोध भी नहीं करेंगे, और ना ही आपसे इस विषय पर फिर कभी दोबारा चर्चा करेंगे। लेकिन कम से कम आपको एक बार उनसे मिलना तो चाहिए ना हुकुम साहब; आप बिना मिले उनके बारे में कोई राय ना बनाएँ। बस हमारी आपसे इतनी ही विनती है!”
कुलदीप जी (सुरेंद्र जी की बात सुनकर कुछ पल बाद मुस्कुरा कर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): “बहुत जिद्दी हैं आप! हमेशा कुछ न कुछ कहकर, और हमें समझा-बुझाकर अपनी बात हमसे मनवा ही लेते हैं। (एक पल रुक कर) और सच कहूँ तो अगर आपका उन पर इस तरह और इतना विश्वास है, और आप यही चाहते हैं तो बेशक हम आपको ना नहीं कह सकते। तो हम उनसे ज़रूर मिलेंगे, क्योंकि हम जानते हैं कि आप हमेशा से सिर्फ़ हमारा भला ही सोचते आए हैं, तो इस बार भी हम आपकी बात ज़रूर मानेंगे!”
सुरेंद्र जी (मुस्कुरा कर खुशी से उत्साहित होकर): “आभार हुकुम साहब, आपका बहुत-बहुत आभार हमें इतनी इज़्ज़त बख्शने के लिए। (एक पल रुक कर) हम राणा जी को इत्तिला कर देते हैं कि हम शाम को उनकी हवेली पर आ रहे हैं!”
कुलदीप जी (अपनी गर्दन हिलाते हुए): “जी ज़रूर!”
इसके बाद सुरेंद्र जी वहाँ से चले गए। यूँ तो सुरेंद्र जी कुलदीप जी से उम्र में कुछ बड़े थे और बाल-बच्चों वाले भी थे; उनका एक 8 साल का बेटा भी था, और अब दुबारा उनके घर जल्द ही कोई खुशी आने वाली थी। सुरेंद्र जी बहुत ही ईमानदार और सुलझे हुए इंसान थे, और अपने फ़र्ज़, अपनी ड्यूटी को अपना धर्म समझकर निभाते आए थे, और पूरी ईमानदारी के साथ अपने फ़र्ज़ को आज तक निभा रहे थे। सुरेंद्र जी के यहाँ से जाने के बाद, कुलदीप जी कुछ देर तक उनकी बातों पर सोच-विचार करने लगे, और फिर कुछ देर बाद वहाँ से उठकर फैक्ट्री के लिए निकल गए। सुबह से दोपहर, और दोपहर से शाम हो गई थी, और कुलदीप जी अभी भी लगातार काम कर रहे थे।
शाम के पाँच बज रहे थे, तब सुरेंद्र जी कुलदीप जी के पास आए और उन्होंने माधवगढ़ चलने की बात कही। कुलदीप जी जो काम के चलते इस बारे में बिल्कुल भूल ही चुके थे, सुरेंद्र जी के याद दिलाने पर उन्हें बात याद आई, और उन्होंने अपने काम को जल्दी से समेटा और वहाँ से सीधा माधवगढ़ के लिए निकल गए। करीब दो घंटे के सफ़र के बाद, आख़िर में वे लोग माधवगढ़ पहुँचे, जहाँ पर उनका बहुत ही भव्य तरीके से स्वागत किया गया। और राणा जी, जो वहाँ की रियासत के राजा थे, अपनी पत्नी के साथ मिलकर बहुत ही स्नेह और प्रेम के साथ कुलदीप जी और सुरेंद्र जी से मिले, और फिर उन्हें बड़े ही आदर और सम्मान के साथ हवेली के अंदर ले आए। कुलदीप जी की तरह ही राणा जी की हवेली भी बेहद खूबसूरत और भव्य थी, और उस हवेली में भी वे सारी सुख-सुविधाएँ और शानो-शौकत मौजूद थे जो कि एक शाही परिवार में मौजूद होती हैं। देर की औपचारिकता के बाद खानपान का इंतज़ाम किया गया, जिसमें छप्पन भोग शामिल थे, और वह बेहद लज़ीज़ और अच्छा खाना था। खानपान के बाद, आख़िर में कुलदीप जी जिस काम से यहाँ आए थे, वह काम पूर्ण हुआ, और वे आख़िर में रुक्मणी जी से मिले।
रुक्मणी जी को एक नज़र देखते ही कुलदीप जी को उनकी सादगी और सरलता भा गई। उनकी आँखों में जो सरलता और सादगी उन्हें नज़र आ रही थी, उसके बाद कोई भी सवाल या संदेह नहीं था कि वे राजकुमारी रुक्मणी को अपनी जीवनसंगिनी बनाने के बारे में कोई और विचार करें या सोचें। वे एक ही नज़र में रुक्मणी जी की सरलता को पहचान गए थे, और उन्होंने उसी वक़्त तय कर लिया था, और मन ही मन स्वीकार भी कर लिया था कि सुरेंद्र जी बिल्कुल सही थे कि रुक्मणी जी के सिवा कुलदीप जी के लिए कोई दूसरी बेहतर जीवनसाथी हो ही नहीं सकती। और बस यहीं से खुशियों का आगमन शुरू हो गया। कुलदीप जी की हामी भरते ही पूरे महल में जैसे खुशियों की बहार सी आ गई। राणा जी तो पहले से ही कुलदीप जी के लिए तैयार थे, और कुलदीप जी की हाँ सुनते ही जैसे उनके मन की मुराद पूरी हो गई। सुरेंद्र जी भी अपने हुकुम साहब की ज़िन्दगी को संवरता देख खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।
कुलदीप जी की हाँ के साथ ही बात फ़ौरन आगे बढ़ी, और चट मंगनी पट ब्याह वाली बात हो गई। देखते ही देखते वह दिन भी आ गया जब कुलदीप जी रुक्मणी जी के साथ सात जन्मों के बंधन में बंध गए, और दोनों एक हो गए। और रुक्मणी जी उनकी जीवनसंगिनी बनकर हमेशा-हमेशा के लिए उनके महल आ गईं। क्योंकि कुलदीप जी का परिवार तो था ही नहीं, तो जो कुछ भी दूर-दराज़ के रिश्तेदार थे या कुछ खास लोग थे, उन्होंने ही रुक्मणी जी का स्वागत किया, और उनका स्वागत बिल्कुल किसी भव्य महारानी की तरह ही भव्य और खूबसूरत था। बड़ी ही शानो-शौकत और भव्यता के साथ महल में उनका स्वागत किया गया। पूरे महल को दुल्हन की तरह सजाया और संवारा गया था, और रुक्मणी जी के महल में कदम रखते ही जैसे कुलदीप जी के जीवन की सारी उदासी और कमी छट गई थी। और जो हमेशा से कुलदीप जी के जीवन में कमी थी, एक परिवार की, वो कमी भी कहीं न कहीं बहुत हद तक रुक्मणी जी ने अब इस घर में आकर पूरी कर दी थी।
रुक्मणी जी का सरल स्वभाव, उनका स्नेह और उनकी सादगी ने कुलदीप जी के जीवन को पहले से कहीं ज़्यादा खुशहाल और खूबसूरत बना दिया था। उन्हें उनके साथ अब ज़िन्दगी के रंग और भी खूबसूरत लगने लगे थे, और दोनों मिलकर पूरी रियासत को सँवारने में लग गए थे। और रुक्मणी जी के सरल स्वभाव और स्नेह के कारण ही यहाँ के लोगों ने उन्हें भी हमेशा वही सम्मान और प्रेम दिया जो कुलदीप जी को देते आए थे। उनके जीवन में अब सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था। हर रोज़ एक नया सूरज खुशियों के साथ उगता था और उनकी ज़िन्दगी में एक नई रोशनी बिखेरता था। ऐसे ही देखते-देखते दिन गुज़रने लगे, और वक़्त अपनी गति से आगे बढ़ता गया। और वक़्त के साथ ही उन दोनों की ज़िन्दगी में एक सबसे अहम और खूबसूरत लम्हा आया, जिसने ना सिर्फ़ उनकी ज़िन्दगी को पूरी तरह बदल दिया, बल्कि उनकी खुशियों को दुगुना कर दिया। और वह लम्हा था जब राजकुमारी अनाया ने पहली बार उनकी ज़िन्दगी में कदम रखा, और वह इस दुनिया में आई।
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