एक वीर ही ऐसा था जो बिना किसी इजाज़त के कभी भी महल में आ जा सकता था। उस पर बचपन से ही कोई रोक-टोक नहीं रही थी, और सब इस बात के आदि हो चुके थे। हालाँकि कहने को तो वीर राज परिवार से नहीं था, लेकिन क्योंकि वह इस माहौल में बड़ा-पला था, और उसकी पर्सनैलिटी और उसके बोलने का लहज़ा और तरीका देखकर कोई कह ही नहीं सकता था कि वह राज परिवार से नहीं है। जब भी वीर सूट-बूट पहनकर तैयार होकर निकलता था, तो हर कोई उसे राज परिवार का सदस्य ही समझता था, सिवाय उन लोगों के जो उसके बारे में जानते थे। जहाँ एक तरफ़ अनाया के लिए वीर की दोस्ती को किसी के साथ बाँट पाना नामुमकिन था, वहीं वीर की ज़िंदगी में भी अनाया की जगह किसी को दे पाना हरगिज मुमकिन नहीं था। बढ़ते वक़्त के साथ उनकी दोस्ती दिन पर दिन गहरी होती गई थी।

वक़्त अपनी गति से बढ़ता चला जा रहा था और आखिरकार कुछ अरसे बाद प्रताप का विवाह हुआ। वीर की किस्मत थी या प्रताप की खुशकिस्मती कि उसकी पत्नी प्रज्ञा जितनी समझदार, उतनी ही गुणी भी थी। उसने आते ही पूरे घर को संभाल लिया था और अपने प्रेम और स्नेह से वीर के दिल में भी बहुत जल्दी जगह बना ली थी। अपने देवर से ज़्यादा उसने वीर को हमेशा अपने बेटे की तरह समझकर उस पर अपनी ममता उँडेली, और यही वजह भी थी कि वीर उससे बहुत जल्दी ही घुल-मिल गया था। आखिर प्रज्ञा ने वीर की ज़िंदगी में एक माँ की कमी पूरी कर दी थी। वीर को वह प्रेम और स्नेह दिया जिससे वह हमेशा से वंचित रहा था। साथ ही, जब भी प्रज्ञा को मौका मिलता, तो वह अनाया पर भी अपनी ममता लुटाने से पीछे नहीं हटती थी। समय बढ़ता गया और दिन गुज़रते गए, और बचपन की दोस्ती कब स्कूल से होकर यौवन तक पहुँची, किसी को पता ही नहीं चला। बड़े होने तक यह दोस्ती इतनी गहरी हो चुकी थी कि पूरे महल और आसपास उनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती थी। दिन बढ़ते गए और वक़्त गुज़रता गया। कुछ लोगों को लगता था कि शायद आगे जाकर भी वीर और अनाया साथ में ही होंगे, क्योंकि दोनों एक-दूसरे को लेकर इतने ज़्यादा पजेसिव थे और करीब भी कि एक-दूसरे की दोस्ती को बाँटना तो दूर की बात थी, एक-दूसरे के साथ किसी दूसरे दोस्त को देखना भी गवारा नहीं था। और दोनों ही एक-दूसरे की खुशी और एक मुस्कान के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे।

यही कुछ ऐसी बातें थीं जिन्हें देखकर कुछ लोगों को लगा कि शायद आगे चलकर वीर और अनाया साथ होंगे, पर यह तो आने वाला वक़्त ही तय करने वाला था कि इन दोनों की किस्मत में क्या लिखा था और असल में क्या होने वाला था। वक़्त गुज़रता गया और देखते ही देखते वह दिन भी आ गया जब दोनों ने अपने कॉलेज की डिग्री एक साथ पूरी की। और वीर ने अपने सपने को, जो उससे कहीं ज़्यादा अनाया का सपना था, उसे पूरा करने की पहल की, और जिसमें वह लगभग कामयाब भी रहा। वीर को एक पायलट बनना था, जिसका एग्ज़ाम उसने क्लियर भी कर लिया था और अब उसकी ट्रेनिंग के लिए उसे कुछ अरसे के लिए यहाँ से दूर दूसरे शहर जाना था। और इसी बात को सुनकर अनाया का हाल बुरा था और जब से उसने यह खबर सुनी थी, बस वह लगातार रोए जा रही थी कि वीर उससे दूर जा रहा है।

 

वीर (अनाया के पास बैठते हुए प्यार से उसे समझाने की कोशिश करते हुए): मिष्टि, अगर आप ऐसे पेश आएंगी, तो फिर हम कैसे जा पाएंगे? और फिर आप ही तो चाहती थी ना कि हम पायलट बनें और फिर आपको ऊँची-ऊँची उड़ानों में सैर कराएँ? तो आपके सपने को पूरा करने के लिए ही तो हम जा रहे हैं ना मिष्टि, तो फिर आप उदास क्यों हो रही हैं?

अनाया (मासूमियत मगर नम आँखों से वीर की ओर देखकर): लेकिन हमें थोड़ी मालूम था कि आप हमसे इतनी जल्दी दूर जाएँगे, और वह भी इतने ज़्यादा वक़्त के लिए। हम आपके बगैर कैसे रहेंगे? वीर, आप आप जानते तो हैं ना कि आपके बगैर हमारा तो मन भी नहीं लगता और हमारा तो कोई दोस्त भी नहीं है!

वीर (प्यार से अनाया के चेहरे को अपने हाथ में थामते हुए उसके आँसू पोंछते हुए): हम सब जानते हैं। और आपको क्या लगता है कि आपसे दूर जाना हमारे लिए आसान है? लेकिन मिष्टि, आप जानती हो ना कि यह करना ज़रूरी है, तभी हम आपके और अपने इस सपने को पूरा कर पाएँगे। और रही बात आपके दोस्त की तो शेफाली हैं ना, वो आपको बिलकुल बोर नहीं होने देंगी!

अनाया (मासूमियत भरी उदासी के साथ): जी, मगर आप को तो मालूम हैं ना कि आप हमारे ज़्यादा अच्छे दोस्त हैं ना, और जो बातें हम आपसे कह सकते हैं, वो किसी और से नहीं कह सकते। आप जानते हैं ना!

वीर (प्यार से अनाया का हाथ अपने हाथों में थामते हुए): सब जानते हैं हम, और बिलकुल फ़िक्र मत कीजिए। हम भले ही आपसे दूर जा रहे हैं, लेकिन इस बात का आपको एहसास भी नहीं होगा, क्योंकि वहाँ पहुँचकर हम आपको रोज़ सुबह-शाम कॉल करेंगे और हम पूरे दिन की डिटेल आपको पॉइंट टू पॉइंट बताया करेंगे। और आप हमें बताइएगा, तो प्रॉब्लम सॉल्व, और हम दोनों को लगेगा ही नहीं कि हम एक-दूसरे से दूर हैं!

अनाया (मासूमियत से वीर की ओर देखकर उदासी भरे लहजे से): हम्मम… लेकिन वीर, फ़ोन पर और सामने होने में बहुत अंतर होता है!

वीर (अनाया की ओर देखकर उसे समझाने की कोशिश करते हुए): अच्छा ठीक है, आप जब भी कहेंगी या हमें याद करेंगी, तब हम आपसे फ़ौरन मिलने यहाँ चले आएंगे, और यह हम वादा करते हैं आपसे!

अनाया (अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए मासूमियत मगर चिंतित स्वर में): नहीं वीर, अगर ऐसा होगा, तो फिर तो आपको हमसे रोज़ मिलने आना होगा, क्योंकि हम तो आपको रोज़ याद करेंगे!

वीर (अनाया की मासूमियत पर प्यारी सी मुस्कान के साथ अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए): अब हम क्या ही कहें आपसे… (एक पल रुककर) अच्छा ठीक है, अगर आप नहीं चाहती कि हम यहाँ से जाएँ, तो हम नहीं जाएँगे!

अनाया (वीर की ओर देखकर मासूमियत भरे लहजे से अपनी भौंहें सिकोड़कर): तो आप हमारे लिए अपने सपने को छोड़ देंगे वीर??

वीर (अनाया का हाथ थामते हुए प्यार से): आपके लिए हम कुछ भी कर सकते हैं, फिर यह तो सिर्फ़ एक सपना ही है और कुछ भी नहीं है!

अनाया (चिंतित होते हुए): मगर अगर आप नहीं जाएँगे, तो फिर हमें बुरा लगेगा कि आप हमारी वजह से नहीं गए और हमारी वजह से आपका सपना अधूरा रह गया!

वीर (अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए सहज भाव से): नहीं मिष्टि, आपको ऐसा सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हम आपको उदास नहीं देख सकते!

अनाया (अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए मासूमियत भरे लहजे के साथ): नहीं वीर, आप जाएँ वीर, हम मैनेज कर लेंगे। और अगर हमें कभी भी लगा कि हमें आपकी बहुत ज़्यादा याद आ रही है, तो हम आपको कह देंगे और फिर आप हमसे मिलने आ जाइएगा!

वीर (अनाया की ओर देखकर अपनी भौंहें उठाते हुए): पक्का जाएँ फिर हम??… लेकिन आप बिलकुल उदास नहीं होंगी??

अनाया (अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): जी, आप जाइए वीर, हम इंतज़ार करेंगे आपका, बस आप जल्दी से आइएगा!

वीर (अपनी आँखें पलक झपक कर हामी भरते हुए): हम आपसे वादा करते हैं कि आप हमें जब भी याद करेंगी, हम फ़ौरन यहाँ आ जाएँगे। आई प्रॉमिस!

अनाया (वीर के गले लगते हुए): हम आपको बहुत मिस करेंगे वीर!

वीर (अनाया को गले लगाते हुए): हम भी आपको बहुत मिस करेंगे मिष्टि!

 

कुछ देर वीर और अनाया यूँ ही आपस में बात करते रहे और फिर अनाया ने वीर की पैकिंग में उसकी हेल्प की। हालाँकि उसका मन वीर के जाने से उदास था, लेकिन वह यह भी जानती थी कि वीर के फ्यूचर के लिए यह ज़रूरी है और उसे जाना ही होगा। हालाँकि वह यह भी अच्छे से समझती थी कि अगर वह वीर को एक बार मना कर दे, तो फिर उसकी बात का मान रखते हुए वीर कभी यहाँ से नहीं जाएगा, लेकिन वह अपनी खुदगर्ज़ी के चलते वीर के सपने को नहीं तोड़ना चाहती थी, इसलिए उसने भारी मन से वीर को जाने की इजाज़त दे दी। दो दिन बाद वीर फ़ाइनली वहाँ से चला गया।

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.