अनाया ने वीर की पैकिंग में उसकी मदद की। हालाँकि उसका मन वीर के जाने से उदास था, लेकिन वह यह भी जानती थी कि वीर के भविष्य के लिए यह ज़रूरी है और उसे जाना ही होगा। वह यह भी अच्छी तरह समझती थी कि अगर वह वीर को एक बार मना कर दे, तो फिर उसकी बात का मान रखते हुए वीर कभी यहाँ से नहीं जाएगा। लेकिन वह अपनी स्वार्थपरता के चलते वीर के सपने को नहीं तोड़ना चाहती थी; इसलिए उसने भारी मन से वीर को जाने की इजाजत दे दी। दो दिन बाद वीर आख़िरकार वहाँ से चला गया। उसके जाने से प्रताप और प्रज्ञा भी थोड़े उदास थे, लेकिन उसके भविष्य के लिए उन्होंने उसे जाने की इजाजत दे दी थी। वीर के जाने से अब अनाया खुद को तन्हा महसूस करने लगी थी।
हालाँकि प्रज्ञा और महल के लोग उसे हमेशा उसके आस-पास रहकर, उसे घेरे रखने की कोशिश करते थे, लेकिन फिर भी वीर की कमी उसे हमेशा खलती थी। पूरे दिन में उसके लिए सबसे अच्छे पल वे होते थे जब वह वीर से बात करती थी। वीर उसे हर रोज़ सुबह, दोपहर, शाम को कॉल करता था। लेकिन फिर जैसे-जैसे उसकी व्यस्तता बढ़ती गई, वीर दिन में उसे केवल एक बार ही कॉल कर पाता था। लेकिन चाहे वह आधी रात को ही अनाया को कॉल करे, मगर एक बार वह ज़रूर उसे कॉल करता था क्योंकि वह जानता था कि अगर वह उसे कॉल नहीं करेगा, तो वह उदास हो जाएगी। इसीलिए जैसे ही वीर को वक़्त मिलता था, वह फ़ौरन उसे कॉल कर लेता था।
इधर, अकेले होने की वजह से इस बीच शेफाली से अनाया की दोस्ती और बढ़ने लगी थी। शेफाली कुलदीप जी के एक खास दोस्त की बेटी थी और बचपन से ही उसका आना-जाना यहाँ लगा था और वह अनाया की दोस्त भी थी, लेकिन वीर की तरह अनाया के करीब नहीं थी। न जाने क्यों वीर भी शेफाली से ज़्यादा खुलकर बातें नहीं कर पाता था। उसकी शेफाली से बातें बस उसकी हाल-चाल तक ही सीमित रहती थीं। शायद अनाया के सिवा वीर ने कभी भी किसी लड़की से बात ही नहीं की थी, तो उसके अजीब लगने की एक खास और बड़ी वजह यही थी। और वीर के जाने के बाद अधिकतर समय अनाया का शेफाली के साथ ही गुज़रने लगा था। वीर के होते हुए उसे किसी दोस्त की ज़रूरत ही नहीं पड़ी थी; इसीलिए उसने ज़्यादा दोस्त कभी बनाए ही नहीं थे। वीर के बाद बस एक शेफाली ही थी जिससे वह थोड़ी बातें कर लेती थी, लेकिन वीर जितनी करीब नहीं थी।
हालाँकि शेफाली बबली सी, मज़ाकिया लड़की और मस्तमौला टाइप लड़की थी, जो दिखने में खूबसूरत और आकर्षक थी। और वीर के जाने के बाद अनाया अब उसे और अच्छे से समझने की कोशिश करने लगी थी। देखते ही देखते यूँ ही दिन गुज़रने लगे; दिन से हफ़्ते और हफ़्तों से अब महीने हो गए थे। और वीर को गए छह महीने हो गए थे और अब कुछ दिन में आख़िरकार वीर अपनी छुट्टियों पर वापस आ रहा था। और यह खबर सुनकर अनाया खुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसके आने की खुशी में अनाया ने उन दोनों का एक खास कमरा, जिसमें वह बचपन से खेलते हुए बड़े हुए और जहाँ अपनी दोस्ती की मीठी यादों को वे दोनों बसाते आए थे, उसे अपने हाथों से सजा रही थी, अपनी यादों को ताज़ा कर रही थी। अनाया अपना और वीर का वह कमरा अच्छे से मेंटेन ही कर रही थी कि तभी कुलदीप जी वहाँ आए। अनाया को खुशी के साथ ऐसे काम करते देख, मुस्कुराकर दरवाज़े पर खड़े होकर, उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी चुप्पी तोड़ी।
“अगर आपकी इजाजत हो, तो क्या आप के इस खास कमरे में हम भी आ सकते हैं?”
अनाया ने कुलदीप जी की आवाज़ सुनी, तो फ़ौरन उनकी ओर पलटी और मुस्कुराकर उनकी ओर देखते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
“आइए ना पिता जी, भला आपको भी कहीं भी आने-जाने के लिए हमारी या किसी की भी इजाजत की ज़रूरत हो सकती है? (एक पल रुक कर) आफ्टर ऑल आप यहाँ के राजा हैं और यह आपका महल है!”
“बेशक हम यहाँ के राजा हैं और हमारी यहाँ पर हुकूमत भी चलती है, लेकिन हमारी राजकुमारी के आगे हमारी हुकूमत नहीं चल सकती!”
“राजा तो राजा होते हैं ना पिताजी, फिर राजकुमारी हो या रानी, उनसे बढ़कर तो कोई भी नहीं हो सकता ना!”
"आपसे भला हम बातों में कभी जीत सकते हैं।" (कुलदीप जी की बात सुनकर अनाया मुस्कुराकर उनके गले लग गई) “खैर यह बताएँ कि यह वीर के आने की तैयारियाँ हो रही हैं ना?”
“जी पिता जी, पूरे छह महीने, दो दिन, बारह घंटे और तीस मिनट बाद वह हमसे मिलेंगे!”
“आपको पूरे वक़्त का अंदाज़ा है?”
“सिर्फ़ अंदाज़ा नहीं है पिता जी, यही वक़्त बिलकुल सही है और आपको तो पता है ना पिताजी, वीर हमारे बहुत अच्छे दोस्त हैं और उनके जाने के बाद हमारा मन बिलकुल भी नहीं लगता, तो हमें एक-एक मिनट पता रहता!”
कुलदीप जी ने अनाया की बात सुनी तो ना जाने क्यों मगर उनके माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं। ऐसा नहीं था कि उन्हें वीर या अनाया की दोस्ती से कोई परेशानी थी, लेकिन उन्हें डर था कि कहीं यह दोस्ती पूरे रिश्तों के मायने ही ना बदल दे। लेकिन फिर भी अगर ऐसा करने या होने से उनकी बेटी, उनकी मिष्टी की खुशी जुड़ी हो, तो वह बेझिझक पूरी खुशी के साथ उसका हाथ वीर के हाथ में दे देंगे। लेकिन वह कोई भी फैसला सिर्फ़ अपने संदेह के आधार पर नहीं ले सकते थे और इसीलिए अपने संदेह को ख़त्म करने के लिए आख़िर में उन्होंने सीधे तौर पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए अनाया से सवाल किया।
“मिष्टी, आप जानती हैं ना कि हमने हमेशा एक पिता से ज़्यादा आपके साथ दोस्ती का रिश्ता बनाया और निभाया है और उसी दोस्ती के रिश्ते के चलते हम आपसे कुछ पूछना चाहते हैं। मिष्टी आप हमें गलत मत समझना, पर हम जो आपसे पूछने जा रहे हैं, बस उसका जवाब बिलकुल सही-सही और पूरी ईमानदारी के साथ दीजिएगा।”
अनाया ने जब अपने पिता की बात सुनी और उन्हें इस तरह से गंभीर देखा, तो वह उनसे अलग हुई और अपनी नज़रें उठाते हुए, अपना चेहरा उठाकर उनकी ओर सवालिया नज़रों से देखते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
“आप पूछिए क्या पूछना चाहते हैं पिताजी, हम आपको बिलकुल ईमानदारी के साथ अपना जवाब देंगे।”
“हम सिर्फ़ इतना जानना चाहते हैं मिष्टी कि क्या वीर के साथ आपके जज़्बात, आपकी भावनाएँ एक दोस्त से ज़्यादा बढ़कर हैं? और क्या आप भविष्य में उनके साथ अपने रिश्ते को दोस्ती से कहीं ज़्यादा बढ़कर देखती हैं मिष्टी? आपकी नज़रों में आख़िर इस रिश्ते का एक असल नाम क्या है मिष्टी?”
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