अनाया ने सवालिया नजरों से कुलदीप जी की ओर देखा, “आप पूछिए क्या पूछना चाहते हैं पिताजी..... हम आपको बिल्कुल इमानदारी के साथ अपना जवाब देंगी।”
कुलदीप जी ने एक पल बाद पूरी गंभीरता के साथ अपनी चुप्पी तोड़ी, “हम सिर्फ इतना जानना चाहते हैं मिष्टी..... कि क्या वीर के साथ..... आपके जज्बात..... आपकी भावनाएं..... एक दोस्त से ज्यादा बढ़कर हैं???.... और क्या आप भविष्य में उनके साथ..... अपने रिश्ते को दोस्ती से कहीं ज्यादा बढ़कर देखती हैं मिष्टी..... आपकी नजरों में आखिर इस रिश्ते का एक असल नाम क्या है मिष्टी.....”
अनाया ने कुलदीप जी की बात सुनी। एक पल के लिए मासूमियत से उन्होंने उनकी ओर देखा, और फिर उनकी बात का अर्थ समझते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
“पिता जी, आपके बाद अगर हम किसी पर..... आँख बंद करके विश्वास कर सकती हैं..... तो वो सिर्फ वीर हैं। आपसे अलग हम अगर किसी को अपना परिवार..... अपने सुख-दुख का साथी मानती हैं..... तो वो वीर हैं पिता जी। आपके सिवा..... जिनके साथ हम खुद को हमेशा सुरक्षित महसूस करती हैं..... और जिनके साथ हमें बेहद खुशी महसूस होती है..... तो वो वीर हैं पिता जी। अगर कम शब्दों में कहूँ..... तो वीर हमारे लिए वो सुकून हैं..... जो हमें पल में हर तकलीफ..... हर दर्द से निजात दिला देते हैं। वो हमारा सहारा हैं..... हमारे साथी हैं..... और उनके साथ हमारा रिश्ता..... गंगाजल की तरह बिल्कुल पवित्र और पाकीजा है। वो पवित्र रिश्ता जो खून का रिश्ता ना होकर भी..... उससे कहीं ज्यादा बढ़कर हो जाता है..... और वो है दोस्ती का रिश्ता। इससे अलग वीर और हमारे मन में एक-दूसरे को लेकर..... और कोई भावनाएँ नहीं हैं पिता जी।”
कुलदीप जी ने अनाया की बात सुनकर उसे गले लगा लिया, “हम आप दोनों को अच्छे से जानते हैं बेटा..... और हमें आप दोनों पर पूर्ण विश्वास भी है। और हमारा यकीन करें..... अगर आप और वीर दोस्त से बढ़कर भी होते..... तब भी हमें कोई ऐतराज नहीं होता..... क्योंकि वीर बहुत अच्छे इंसान हैं..... मेहनती..... गुणी..... और खुद्दार होने के साथ-साथ ही..... बेहद ईमानदार भी हैं। तो हमें उन्हें अपनाने में कोई हर्ज नहीं था।”
"नहीं पिता जी..... ऐसी कोई भी बात नहीं है..... वीर और हम केवल अच्छे दोस्त हैं....." अनाया ने अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए कहा, और एक पल रुक कर अपने पिता की ओर देखते हुए बोली, “और पिता जी आप ये बात कभी भी वीर के सामने मत कीजिएगा..... क्योंकि अगर वो ये सुनेंगे.....तो उन्हें बुरा लगेगा..... कि शायद आप हमारी दोस्ती पर शक कर रहे हैं।”
कुलदीप जी ने अनाया के चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके माथे को चूमा, "जी हम ऐसा ही करेंगे..... आप बिल्कुल बेफिक्र रहें....." एक पल रुक कर उन्होंने कहा, “मिष्टी हम आपसे कुछ बात करना चाहते थे?”
"जी कहिए पिता जी..... क्या कहना चाहते हैं आप?" अनाया ने सहज भाव से कुलदीप जी की ओर देखते हुए कहा।
कुलदीप जी ने एक पल तक अनाया की ओर देख कर मिले-जुले भाव के साथ कहा, “ऐसा लगता है..... जैसे अभी तो आप नन्ही मुन्नी सी आप हमारी गोद में आई थीं..... और अब अचानक से आप इतनी बड़ी हो गई..... कि आपके रिश्ते आने लगे हैं।”
अनाया अपने पिता के गले लग गई, “नहीं पिता जी हमें शादी नहीं करनी..... हमें हमेशा आपके साथ रहना है।”
कुलदीप जी ने अनाया को कस कर अपने गले लगाते हुए हल्की भावुकता के साथ कहा, “काश!.....हम आपको हमेशा-हमेशा के लिए अपने पास रख सकते..... लेकिन ये तो जहाँ की रीत है..... कि बेटियाँ अपने बाबुल के घर सिर्फ कुछ अरसे की ही मेहमान होती हैं..... फिर तो उन्हें अपने असली घर जाना ही होता है।”
"नहीं पिता जी हम कभी शादी नहीं करेंगे..... और हम इस रीत को बदलेंगे भी..... और हमेशा आपके साथ रहेंगे..... आप देखिएगा।" अनाया ने चिंता भरे लहजे से कहा।
कुलदीप जी ने प्यार भरे एहसास से अनाया का सर चूमते हुए कुछ पल बाद अपनी चुप्पी तोड़ी, “रिश्ता बहुत अच्छा है मिष्टी।”
"चाहें जितना भी अच्छा हो पिता जी..... मगर हमें नहीं करनी शादी।" अनाया ने अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए कहा।
कुलदीप जी ने एक गहरी सांस छोड़कर कहा, "हम आप पर कोई भी..... या किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं बनाना चाहते मिष्टी....." एक पल रुक कर गंभीर भाव से उन्होंने कहा, "मगर हम सिर्फ इतना चाहते हैं..... कि एक बार अर्जुन से मिल लीजिए। अर्जुन हमारे एक पुराने दोस्त विक्रम के बेटे हैं। हमारी तरह ही वो लोग भी शाही खानदान से ही ताल्लुक रखते हैं.....हालांकि वो लोग मॉडर्न जमाने को फॉलो करते हैं। परिवार में विक्रम और अर्जुन ही हैं। पिछले महीने विक्रम से हमारी मुलाकात एक विवाह में हुई थी। तब उन्होंने हमें अर्जुन के बारे में बताया..... और अर्जुन के लिए उन्होंने आपका हाथ माँगा। हमने उनसे कुछ वक्त माँगा था..... और इस बीच हमने विक्रम और उनके परिवार के बारे में तहकीकात की। और हमारी तहकीकात के हिसाब से..... वो लोग अच्छे रहन-सहन वाले हैं। खानदान तो हम पहले से ही जानते हैं। बाकी अर्जुन ने लंदन से अपनी बिज़नेस की डिग्री हासिल की है। लंदन से पढ़ने के बावजूद भी..... अर्जुन बहुत ही सरल और सहज भाव के हैं..... और अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद..... वो वापस इंडिया आ गए..... और अपने पिता के बिजनेस के भार और जिम्मेदारी को बखूबी संभाल रहे हैं।" एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने एक पल बाद कहा, “हम आप पर कोई भी दबाव नहीं बनाना चाहते मिष्टी..... लेकिन हम सच में चाहते हैं..... कि आप एक बार अर्जुन से मिल लें।”
"हमारे ऐसा करने से आपको खुशी मिलेगी?" अनाया ने अपने पिता की ओर देखकर सहज भाव से पूछा।
"जी..... क्योंकि हमें लगता है..... अर्जुन से मिलकर आप हरगिज ना नहीं कह पाएंगी..... और इससे अलग आप जो भी फैसला लेंगी.... वो सब कुछ देखभाल कर ही लेंगी।" कुलदीप जी ने अपना सर हाँ में हिलाते हुए कहा।
"ठीक है पिता जी..... अगर आपको लगता है कि हमें उनसे मिलना चाहिए..... तो सिर्फ आपकी खुशी के लिए हम उनसे मिल लेंगे..... लेकिन इससे जुड़ा कोई भी फैसला..... हम वीर के आने के बाद ही तय करेंगे।" अनाया ने अपने पिता की ओर देखकर सहजता से कहा।
कुलदीप जी मुस्कुरा कर बोले, “अगर आप ये नहीं भी कहती..... तो भी हम जानते थे ये बात..... खैर आप फिलहाल अर्जुन से मिल लीजिए..... बाकी बातें हम वीर के आने के बाद ही आगे बढ़ाएँगे.....”
कुछ देर यूँ ही बातें करने के बाद..... आखिर में कुलदीप जी वहाँ से चले गए। कुछ दिन बाद अर्जुन से मिलने के बाद..... कुलदीप जी की मर्ज़ी के साथ ही..... अनाया ने भी अर्जुन को आखिर में..... खुशी-खुशी अपने जीवनसाथी के रूप में चुन लिया..... और जिसमें वीर की भी पूरी सहमति और खुशी शामिल थी।
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