"आप जानते हैं पांच हजार रुपए कितने होते हैं ?" दोनों के मुंह न खुल सके । एस० एम० ने कहा-

 

"और यह तो आपने सोचा ही नहीं होगा कि जिसकी यह नोटों की गड्डी है, उसके दिल के ऊपर क्या बीत रही होगी ?"

"दोनों के चेहरे और ज्यादा लटक गए, एस० एम० ने पूछा,

"कहां मिली थी यह नोटों की गड्डी आपको?" टी० सी० ने थूक निगलकर कहा-

 'जी, वीरार से आने वाली आखिरी ट्रेन के फर्स्ट क्लास। 

'फ फ फर्स्ट क्लास में।' 'कौन-सी ट्रेन के फर्स्ट क्लास में ?

'लेडीस या जेंट्स में ?"

'जी, लेडीस में ।' 'क्या खुली हुई पड़ी थी या ?'

'जी, एक वैनिटी बैग में थी।" 

‘हूं, और वह वैनिटी बैग कहां है?’

उन दोनों के चेहरों पर और भी ज्यादा हवाइयां उड़ने लगी थीं। एस एम ने, फिर मेज पर हाथ मारकर पूछा—

दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। एस एम ने गुस्से से कहा 'क्या ? वहीं छोड़ दिया था ?"

“कहां है वह वैनिटी बैग ?”

टी सी ने हबड़ाकर कहा- “व व वह तो वहीं छोड़ दिया था।”

"ज ज जी हां

“हालांकि उसमें जरूर उस महिला की कोई आईडेन्टी होगी जिसका वह वैनिटी बैग रहा होगा।”

“जज जी ।”

‘और आप चाहते तो ये रुपए उस वैनिटी बैग के साथ उस महिला तक पहुंचा सकते थे – पता नहीं वह किस प्रकार की आवश्यकता रखती होगी।'

दोनों चुप रहे। एस० एम० ने फिर कहा - "क्यों न आप दोनों को सस्पेंड कर दिय जाए ?"

टी० सी० ने गिड़गिड़ाकर कहा-

‘नहीं-नहीं, साहब ! हमें क्षमा कर दीजिए- हमसे भूल हो गई— अब हम कभी इतना बड़ा अपराध नहीं करेंगे ।’

‘इस बात की क्या गारंटी है ?’

'सर ! अबकी बार आप ऐसी भूल करते देखें तो सस्पेंड नहीं बल्कि डिसमिस कर दीजिएगा। हम आपको वचन देते हैं।' एस० एम० कुछ क्षण उन दोनों को घूरता रहा, फिर गुस्से से बोला- 'गेट आऊट ।' दोनों जल्दी से बाहर निकल आए। हवलदार ने मुड़कर कनखियों से देखा। एस० एम० नोटों की गड्डी उठाकर अपने चमड़े के बैग में रख रहा था।

हवलदार ने गुस्से से दहाड़कर टी० सी० से कहा- “बस, मिल गई शांति ?”

टी० सी० झल्लाकर बोला- "अबे चुप रह, क्यों लहू जलाता है ?" 

'साले, तेरी बेईमानी के कारण इतनी बड़ी रकम निकाल गई हाथ से और ऊपर से मुझे ही डांट रहा है उल्लू के पट्ठे ।'

"अब गालियां देने से क्या रुपए वापस मिल जाएंगे वे तो मगरमच्छ के पेट में चले गए जहां सब कुछ डकार लिया जाता है चाहे वह लोहे का ही बना हुआ क्यों न हो।' हवलदार होंठ भींचकर बोला-

"लेकिन पुलिस वालों का माल तो शैतान को भी डकार पाना कठिन है।'

'वह भला कैसे ?'

'अरे उस मगरमच्छ ने एक पुलिस वाले का हिस्सा हड़प “किया है और पुलिस वाला जानता है कि मगरमच्छ की खाल अगर ऊपर से लोहा होती है तो पेट की खाल झिल्ली से भी बढ़कर पतली होती है - सिर्फ नाखून से फाड़ी जा सकती है।'

‘लेकिन अब होगा क्या ?’

'मेरे साथ आओ।'

हवलदार टी० सी० को साथ लेकर जी० आर० पी० के याने में आया। मुंबई सेंट्रल के थाने में आजकल इंस्पेक्टर शिन्दे की नियुक्ति थी । हवलदार ने बड़े आदर से सैल्यूट मारकर कहा— 'राम राम साहब !" 

इन्स्पेक्टर शिन्दे ने कहा— 'आओ, तुलाराम ! क्या आज टी० सी० को ही बिना टिकट पकड़ लाए ?"

दोनों ने दांत निकाल दिए। फिर हवलदार ने कहा ‘साहब ! आज स्टेशन मास्टर साहब बहुत बड़ी चोट दे गए ।’

“वह कैसे ?”

‘साहब ! बिलकुल सच-सच बता दें ?’

"नहीं बताओगे तो मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकूंगा ?" 

"सर ! बात यह है, हमें बोरीवली से लेडीस फर्स्ट क्लास में चढ़ना पड़ा—वहां लावारिस वैनिटी बैग मिला, उसमें पचास पचास के नोटों की एक बहुत मोटी-सी गड्डी भी हमें मिली शिन्दे ने चौंककर कहा- 'ओहो, कितनी मोटी ?'

हवलदार ने बड़ी चतुराई से झूठ बोलकर कहा- 

“साहब कम से कम पच्चीस हजार रुपए अवश्य होंगे।”

“शिन्दे झटके से सीधा बैठता हुआ फिर क्या हुआ ?”

'फिर क्या साहब ? हमने गड्डी निकालकर वैनिटी बैग वहीं छोड़ दिया— सोचा था कि गड्डी आपके पास ले आएं ताकि आप ठीक फैसला भी कर सकें और बचाव भी।'

शिन्दे ने कहा- 'और वह गड्डी एम० एम० के हाथ लग गई।"

‘जी हां, साहब ’लेकिन कैसे ?"

'साहब ! हम दोनों मुंबई सेंट्रल प्लेटफार्म पर उतरे ही थे कि वह दुष्ट सामने खड़ा दिखाई पड़ गया और फिर उसे टी० सी० की फूली हुई जेब नजर आ गई।' शिन्दे ने कहा-

साथ में तुम दोनों के चेहरे भी उतर गए होंगे।' 

‘अब, साहब ! इतनी बड़ी रकम थी।’

"फिर क्या हुआ ?" ‘एस० एम० साहब बड़े ताड़ हैं- जेब की तलाशी ले डाली–गड्डी लेकर अपने पास रखी और दोनों को सस्पेंड की धमकी देकर निकाल दिया।’

'और पच्चीस हजार अकेला ही डकार जाना चाहता है।' टी० सं० ने कहा-

'इंस्पेक्टर साहब ! उसका पेट बहुत बड़ा है— मगरमच्छ के पेट से कम नहीं है।' 

'हुं, लेकिन उस मगरमच्छ की अकेले खाने की आदत मिटाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा।'

इसीलिए तो मैं टी० सी० को आपके पास ले आया हूं।" शिन्दे ने कुछ देर सोचा फिर बोला-

अच्छा, मिस्टर टी० सी० ! अब एस० एम० आप लोगों को हिस्सा देने से तो रहा और मैं यह कह नहीं सकता कि आप दोनों ने यह भेद मुझे बताकर आपकी शिकायत की है।'

‘फिर क्या होगा साहब ?’

"तुमने सुना है न ? बिल्ली खा न सके तो आँधा देती है।"

‘मैं समझा नहीं।’

'अब माल एस० एम० के पास भी नहीं रहना चाहिए।" 

"लेकिन कैसे ?" 

'मैं बताता हूं।'

इंस्पेक्टर शिन्दे ने कुछ सोचा और हवलदार से बोला ‘जब माल का असली मालिक सामने आए तो तुम बयान दोगे कि तुम्हें और टी० सी० को मुंबई सेन्ट्रल स्टेशन पर लोकल के लेडीस फर्स्ट क्लास में एक लेडीस वैनिटी बैग नजर आया - जिसे तुम लोग थाने में जमा कराना चाहते थे लेकिन इतने में एस० एम० साहब आ गए।’

‘फिर ?’

'फिर उन्होंने वैनिटी बैग खुलवाकर देखा—उसमें से पचास हजार की रकम की पचास-पचास के नोटों की गड्डी.. निकली '

‘जी’

'एस० एम० ने वह गड्डी जेब में रखकर वैनिटी बैग वहीं सीट पर छोड़ने को कह दिया और डिब्बे से उतर आए।' 

'टी० सी० ने हड़बड़ाकर कहा-

 ‘अरे, साहब ! मेरी तो नौकरी चली जाएगी-बड़ा खड़ासी है यह नया एस० एम०। अपने बाप को भी नहीं" बख्शता।’

"इन्स्पेक्टर शिन्दे ने मुस्कराकर कहा। "तुम्हारा नाम ही नहीं आएगा- तुम कह देना मुझे कुछ नहीं मालूम, तुलाराम ने किससे क्या कहा।

‘जी लेकिन ’

‘मैं यह कहूंगा कि मुझे वैनिटी बैग खोने की कम्पलेंट मिल थी— मैंने रात की ड्यूटी वालों के बारे तुलाराम ने मुझे सब कुछ बता दिया।’

‘जी, ठीक है साहब ।’

में इनक्वायरी की और

'बस, अब तुम निश्चित होकर जाओ।'

'बहुत अच्छा साहब

'और देखो, अब एस० एम० की ओर मुँह भी मत करवा “बहुत अच्छा साहब।”

टी० सी० के जाने के बाद शिन्दे ने हवलदार से कहा 'गधे, वह बैग तुम्हें मिला था या टी० सी० को ?

हवलदार हड़बड़ाकर बोला- जी म म मुझे।'

'और तुमने उसे नोटों की गड्डी दिखा दी ?'

'ज ज जी

'मूर्ख, तुम्हें पुलिस में नहीं अनाथ आश्रम में होना चाहिए। या। अबे उल्लू के पट्ठे, नोटों की गड्डी जेब मे रखता और ग सीट के नीचे डाल देता— टी० सी० को कुछ बताने की 'मला आवश्यकता ही क्या पड़ी थी।'

हवलदार माथे पर हाथ मारकर बोला ‘अब क्या करूं, साहब ! मति जो मारी गई थी।’

शिन्दे ने कहा- 'अब जाओ एस० एम० के पास ।' हवलदार बौखलाकर बोला— 'कक क्यों साहब ?" ‘कहना, उस वैनिटी बैग के खोने की कम्पलेंट चर्चगेट स्टेशन से आ चुकी है और अब आखिरी ट्रेन की ड्यूटी के "हवलदार और टी० सी० को पूछ-ताछ के लिए बुलाया जाने वाला है— मैं आपको सचेत करने आया हूं।’

‘जी साहब ।'

हवलदार बाहर दौड़ गया। इन्स्पेक्टर शिन्दे बड़बड़ाता हुआ सीधा बैठा ही था कि टेलीफोन की घंटी बजी और उसने

रिसीवर उठाकर कहा ‘यस, मुंबई सेंट्रल जी० आर० पी० ।’

दूसरी तरफ से आवाज आई-

'इन्स्पेक्टर शिन्दे ?'

" जी हां, मैं ही हूं।'

‘मैं चर्चगेट के थाने से इंस्पेक्टर खाण्डेकर बोल रहा हूं।’

शिन्दे संभलकर बोला-

‘कहिए, इन्स्पेक्टर खाण्ड कर।’

'देखिए, वीरार से आने वाली अन्तिम लोकल ट्रेन के एक फर्स्ट क्लास लेडीस कम्पार्टमेंट में एक वैनिटी बैग मिला है।' शिन्दे के कानों में घंटी सी बजी। उसने कहा

“जी, फिर ?”

'वह वैनिटी बैग एडवोकेट श्रीमती शांति वर्मा ने जी० आर० पी० के थाने में जमा करा दिया था।

जी। ‘श्रीमती शांति वर्मा ने एक हवलदार और एक टी०सी० "को भी उस कम्पार्टमेंट से उतरते देखा था जिसमें वह वैविटी वेग मिला है।'

ओहहो

‘अभी उसके बारे में कोई कम्पलेंट नहीं आई है लेकिन वह बैग जिस महिला का भी है वह वोरार से चढ़ी होगी और मुंबई सेन्ट्रल से पहले कहीं उतरी होगी इसलिए वह जहां भी उतरी होगी वहीं के थाने में कम्पलेंट करेगी।’

‘जी।' आप सावधानी हेतु नोट कर लें और जो टी० सी० अंतिम लोकल ट्रेन के लेडीस फर्स्ट क्लास से मुंबई सेन्ट्रल पर उतरे थे।

एस० एम० से उनके बारे में जानकारी लेकर रखें।'

‘ओहो, कोई विशेष बात है ? ’

'शायद कोई विशेष घटना भी हो सकती है।"

“ठीक है । ”

‘यह काम तत्काल कर लीजिए मैं शायद पांच बजे के बाद आपको फिर से कांटेक्ट करूंगा— उस टी० सी० और हवलदार के नाम जानने के लिए।’

‘ठीक है । ’

'देटस आल एण्ड थैंक्स ।' दूसरी तरफ से डिसकनेक्ट होने पर शिन्दे ने रिसीवर रख दिया। उसके माथे पर सलवटें उभरी हुई थीं ।

अचानक भारी-भारी-सी पदचाप गूंजी और फिर आगे- आगे एस० एम० और पीछे-पीछे हवलदार अन्दर आए। एस० एम० रोष में विफरा हुआ था। शिन्दे ने उसे देखकर ठण्डी सांस ली और एस० एम०.आते ही बरस पड़ा ।

'आप अपने आपको समझते क्या हैं ?"

शिन्दे ने शांत भाव से उत्तर दिया

'आपके लिए देवदूत ।'

'क्या बकवास है ? कहां से आए पच्चीस हजार।' इन्स्पेक्टर शिन्दे ने शांत भाव से फिर कहा 'साढ़े पांच बजे तक ठहरिए - आपके होश अपने आप ठिकाने आ जाएंगे।'

'आप मुझे धमकी दे रहे हैं ? '

'श्रीमान ! "मेरे होश तो स्वयं ही ठिकाने नहीं हैं इस समय ।'

'क्या कहना चाहते हैं आप ?'

'वह' वैनिटी बैग एडवोकेट श्रीमती शांति वर्मा को लेडीस फर्स्ट क्लास में मिला था और उन्होंने चर्चगेट स्टेशन के जी० आर० पी० के थाने में जमा करा दिया था।'

'नहीं।'

'एडवोकेट श्रीमती शांति वर्मा ने एक टी० सी० और एक हवलदार को भी उसी लेडीस फर्स्ट क्लास से उतरते देखा था 'जिसमें वे खुद सवार हुई थीं।'

'ओहो । 'हवलदार के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ने लगी थीं। इंस्पेक्टर शिन्दे ने फिर कहा ‘अभी-अभी चर्चगेट थाने से इन्स्पेक्टर खाण्डेकर का टेली

"फोन मिला था— उन्होंने निर्देश दिया है कि एस० एम० से टी० सी० के बारे में मालूम करके रखना और उन्हें हवनदार का नाम भी जानना है। 

‘क क क्यों ?’

'क्योंकि उस वैनिटी बंग से कोई बहुत ही विशेष घटना जुड़ी हुई है — इन्स्पेक्टर खाण्डेकर से जिस ढंग से बताया है, उससे वह घटना किसी खतरनाक हादसे या भयानक षड्यंत्र से सम्बन्धित भी हो सकती है और हत्या से भी।'

 

क्रमशः 

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