कुछ देर बाद चर्च गेट स्टेशन जा गया। औरत ने केस और वैनिटी बैग उठाए। प्लेटफार्म पर उतर कर वह पहले सीधी पुलिस चौकी में गई।
इंचार्ज आफीसर ने आदरपूर्वक कहा- 'यस, मैडम।'
औरत ने वैनिटी बंग मेज पर रखकर कहा- ‘यह मुझे लोकल के लेडीस फर्स्ट क्लास में एक सीट पर रखा मिला है— शायद कोई महिला भूले से छोड़ गई होंगी कोई कम्पलेंट मिले तो उन्हें पहुंचा दीजिए।'
‘धन्यवाद मैडम।’
'ओह, पुलिस की ओर ‘देट्स आल राइट।’
"एक मिनट, अपना शुभ नाम और पता लिखवाने का कष्ट कीजिये।'
‘क्या करेंगे?’
‘जरूरत पड़ती है- शायद जिनका वैनिटी बैग है वही आपका धन्यवाद स्वयं निजी रूप से भी करना चाहें।’
"लिखिये।'
आफीसर ने रजिस्टर खोला, औरत ने बताया ‘मिसेज शांति वर्मा एडवोकेट।’
आफीसर चौंककर बोला- 'ओह, आप मिसेज शांति वर्मा एडवोकेट हैं जिन्होंने एक बड़े सेठ की दूसरी शादी के विरोध में केस लड़ा था और जीता था।
शांति वर्मा ने मुस्कराकर कहा, "जी हां।" फिर उसने अपना टेलीफोन नम्बर और पता लिखवा
दिया। आफीसर ने एक बार फिर शांति वर्मा का धन्यवाद किया और फिर एक हवलदार को बुलाकर वैनिटी बैग की तरफ इशारा करके कहा-
‘इसे जमा कर लो।’
'यस सर।"
हवलदार ने वैनिटी बैग एक अलमारी में रख दिया। आफीसर टेलीफोन की घण्टी सुनकर उसकी ओर आकृष्ट हो गया था।
टेलीफोन रखने के बाद आफीसर ने फिर हवलदार को बुलाकर कहा- 'वह वैनिटी बैग रख दिया?'
‘यस सर।’
‘निकालकर लाओ, शायद उसमें मालकिन का पता या फोन नम्बर मिल जाये— उसे भी सूचना दे दी जाये वरना परेशान होगी।’
'यस सर।' हवलदार ने वैनिटी बंग लाकर फिर मेज पर रख दिया, आफीसर ने कहा– 'इसे खोलो और अन्दर देखो।'
हवलदार ने खोलकर हाथ डाला तो पहले उसे स्टेफ्री नेपकिन का पैकेट ही मिला, आफीसर ने जल्दी से कहा- ‘रखो, रखो और देखो।’
हवलदार ने दूसरी बार हाथ डाला तो माला गोलियों का पैकेट मिला और आफीसर ने फिर बुरा-सा मुंह बनाकर कहा- 'राम बचाएं, वापस रख दो।'
हवलदार ने कहा– 'सर! एक नोट बुक भी है।'
‘निकालो।’
हवलदार से नोट बुक लेकर आफीसर ने खोली। लेकिन वह बिलकुल नई खरीदी गई—जान पड़ती थी। इसलिए उसके 176 ऊपर ना नाम था, न पता न फोन नम्बर।
आफीसर वापस रखने ही वाला था कि उसका एक पन्ना फटा हुआ नजर आया और फटे हुए पन्ने के नीचे वाले पन्ने पर कुछ ऐसे गड्ढ़े दिखाई दिए जैसे ऊपर वाले पन्ने पर कुछ लिखते समय पेंसिल या बालपेन की टिप ज्यादा गढ़ा कर लिखने से वे निशान आ गए हों शायद बालपेन ही मुश्किल से चल रही होगी ।
आफीसर ने इन्हें ध्यानपूर्वक देखा। फिर मेज की ड्रायर से एक मोटा-सा शीशा निकालकर टेबल लेम्प जलाकर उसकी रोशनी में वह पृष्ठ देखा। उस पर गड्ढे वाली लिखाई में लिखा हुआ था।
‘जो व्यक्ति यह पत्र लेकर आ रहा है — वही मेरी मौत का उत्तरदायी है।’
आफीसर एकदम चौंककर सीधा बैठ गया। उसने कई बार वह लिखाई पढ़ी। मात्र एक ही पंक्ति लिखी हुई थी। आफीसर ने जल्दी से रिसीवर उठाकर डायल घुमाया।
कुछ ही क्षण बाद दूसरी तरफ से पुरुष कण्ठ सुनाई दिया।
‘यस... ? ’
'क्या मिसेज शांति वर्मा हैं?' 'वे तो बड़ोदरा गई हुई हैं। कहिए, मैं सेशन जज वर्मा हूं।' 'ओह, सर! मैं जी० आर० पी० आफिस से पुलिस इंस्पेकटर
खाण्डेकर बोल रहा हूं-कष्ट के लिए क्षमा चाहता हूं।' 'कोई बात नहीं ! कोई विशेष बात ?"
'जी, मिसेज शांति वर्मा थोड़ी देर पहले आ चुकी हैं – घर पहुंचते ही उन्हें कष्ट दीजिए कि तुरन्त मुझे फोन कर लें ।' ‘बेहतर है।’
“फिर जल्दी से कहा गया— 'मोह, घण्टी बजी शायद शांति आ गई—होल्ड कीजिए।”
'धन्यवाद ।' लगभग एक मिनट बाद मिसेज शांति वर्मा की आवाज आई
'यस, आफीसर ?
आफीसर ने जल्दी से कहा ‘क्षमा कीजिए, आपको कष्ट दे रहा हूं।’
“कोई बात नहीं।”
'आपने जो वैनिटी बंग जमा करने को दिया है वह आपको कौन से डिब्बे में मिला था ?' 'सम्भवतः वह वीरार से आने वाली आखिरी लोकल ट्रेन थी और उसमें एक ही फर्स्ट क्लास लेडीस होता है— मैं तो
मुम्बई सेंट्रल पर बड़ोदरा मेल से उतरी थी वहां से लोकल पकड़
कर चर्चगेट आई थी उसी कम्पार्टमेंट में मिला था।'
'उस समय आपके अलावा भी कोई कम्पार्टमेंट में था ?" ‘संयोगवश मैं अकेली ही थी। हां, ट्रेन रुकते ही मैंने एक टी०सी० और हवलदार को अवश्य उस कम्पार्टमेंट से उतरते देखा था।’
‘लेडीस कम्पार्टमेंट से ? ’
'जी हां, लेकिन कोई विशेष बात है क्या ?" 'नहीं, आपको कष्ट देने के लिए एकबार फिर क्षमा चाहता
‘कोई बात नहीं।’
आफीसर ने रिसीवर रख दिया। हवलदार उसे एकटक
देख रहा था, फिर वह बोला-'साहब, कोई खास मामला है ?" 'हां, यह वैनिटी बैग जिस लड़की का है— शायद वह मर चुकी है।'
‘नहीं।’
हवलदार उछल पड़ा । आफीसर ने कहा ‘ऐसे ही प्रमाण मिले हैं।’
फिर उसने हवलदार को चकित छोड़कर डायल घुमाया। जल्दी ही दूसरी तरफ से एक औरत की आवाज आई
‘यस’
‘लेडी इंस्पेक्टर मिस मोना कपूर ?’
‘स्पीकिंग ? आप कौन हैं ?’
'मैं जी० आर० पी० से इंस्पेक्टर खाण्डेकर बोल रहा हूं।'
‘ओह, कहिए।’
‘आमने सामने ही बात हो सकती है - एक केस मालूम होता है।’
'क्या बहुत अजेंसी है ?" 'मेरी धारणा ऐसी है। आपके पास कोई एमरजेंसी केस है ?"
'मुझे एक घण्टा लग सकता है।' कोई बात नहीं, एक घण्टे के बाद अगर आप जी० आर० पी० में ही मिलें।'
‘ओ० के० घड़ी देव लीजिए-मैं आपको ठीक एक घण्टे बाद कांटेक्ट करूंगी और इसे समय ठीक सवा तीन बजे हैं।’
खाण्डेकर ने मुस्करा कर कहा-
‘जानता हूं, आप समय की बहुत पाबंद हैं- अंग्रेजों की तरह।’
दूसरी तरफ से हल्की-सी हंसी के साथ डिसकनेक्ट कर दिया गया। इंस्पेक्टर खाण्डेकर एक बार फिर मोटे शीशे से बोट बुक की लिखाई देखने लगा ।
टी० सी० और हवलदार पहले वेटिंग रूम में पहुंचे लेकिन आज वहां इतनी भीड़ थी जैसे लोग स्नान को जा रहे हों। टी० सी० ने हवलदार से कहा 'चलिए टायलेट में चलते हैं ?"
'अब क्या करें !'
'टायलेट में ? '
"हां क्यों ? "
टी० सी० मुंह दबाकर हंसा और बोला-
'अरे हवलदार अगर हम दोनों को लोगों ने टायलेट से साथ-साथ निकलते देख लिया तो भला क्या समझेंगे ?' अरे तो फिर किधर चलेंगा ?" ‘कैण्टीन चलते हैं।’
‘चलिए।’
वे दोनों कॅण्टीन आ गए तो कैण्टीन में सारी कुर्सियां धी मेज पर रखी हुई थीं और एक नौकर फर्श पर खटका लगा रहा था। टी० सी० ने ठण्डी सांस लेकर कहा ‘यहां पर भी चांस नहीं।’
इस बार हवलदार ने झुंझलाकर कहा ! अन्धेरे में..?"
'अ ब आप कहेंगे कि अन्धेरे में किसी ने हम दोनों को देख लिया तो क्या समझेगा ? ' 'क्या मैं गलत कह रहा हूं ?"
हवलदार ने तीक्ष्ण स्वर में ऊंची आवाज में कहा 'यह क्यों नहीं कहते कि आपके दिल में बेईमानी आ गई।
टी० सी० ने बिगड़कर कहा ‘मेरे दिल में बेईमानी आ गई है ? दिमाग तो नहीं खराब हो गया तुम्हारा ?’
‘दिमाग आपका खराब हो गया है। पांच हजार रुपए देख कर।’
'पांच हजार तो ऐसे कह रहे हो जैसे तुमने नोट गिन लिए थी।'
'अनुमान तो लग सकता है - गड्डी पहले मेरे हाथ में आई 'अरे तुमने कभी पहले भी पांच हजार रुपए एक साथ देखे थे ?"
'क्या मतलब ? 'मैं कहता हूं, दो हजार से ज्यादा की गड्डी हो ही नहीं सकती ।"
‘मैं कहता हूं पांच हजार से कम नहीं।’
"और मैं कहता हूं दो हजार से ज्यादा नहीं।' 'दो हजार ही सही-अभी गिन लोजिए— फैसला हो जाएगा
यहां कहीं नहीं गिने जाएंगे।' ‘तो फिर ?’
"मैं अपने साथ गड्डी ले जा रहा हूं— कल लेकर आऊंगा।'
'जी हां, कल तो आप जरूर लेकर आएंगे।'
‘अबे तू क्या मुझे बेईमान समझता है ? ’
‘नहीं, बहुत ईमानदार हैं आप-कल ही एक मुसाफिर को पकड़ा था बिना टिकट-पचास रुपए का नोट ठग लिया था और प्लेटफार्म पर उतर कर मुझे बीस का नोट बताया दस रुपए मुझे पकड़ाकर पूरे चालीस खुद रख लिए।’
'अबे तू होश में है या नहीं ?" अचानक एक तरफ अन्धेरे में से आवाज आई-
'मूर्खो ! होश में तो तुम दोनों नहीं हो।' टी० सी० ने हवलदार की तरफ इशारा करके गुस्से से कहा- 'मैं कहता हूं यह होश में नहीं है।' हवलदार ने टी० सी० की तरफ इशारा करके गुस्से से कहा- 'मै कहता हूं इनकी नीयत में बेईमानी आ गई है। सहसा दोनों को कुछ ध्यान आया और वे लोग उछल पड़े । उन्होंने अन्धेरे की तरफ देखा और फिर टी० सी० जल्दी से बोला-
‘कौन है ? ’
हवलदार भी आंखें फाड़ रहा था ।
अन्धेरे में अचानक स्टेशन मास्टर निकलकर सामने आ गया और टी० सी० के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। वह हकलाकर बोला-
'स स सर ! आ आप ?' स्टेशन मास्टर ने इत्मीनान से कहा-
'हां, मैं'
'सस' सर अब देखिए न – यह हवलदार होकर अकारण वाद-विवाद करने लगता है।' ‘वाद-विवाद तो तुम दोनों ही व्यर्थ कर रहे हो— क्योंकि तुम्हारे इस विवाद ने ही तीसरा भागीदार भी बना दिया है।’
टी० सी० हकलाया।
ति त तीसरा मामा भागीदार ?'
‘हां, आओ आफिस में दोनों।’
टी० सी० ओर हवलदार ने एक दूसरे की ओर विवशता को देखा। फिर वे लोग स्टेशन मास्टर के पीछे उसके आफिस तक छा गए।
स्टेशन मास्टर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और वे दोनो अपराधियों की भांति उसके सामने खड़े हो गए। दोनों के चेहरे निपट हतप्रभ थे ।
स्टेशन मास्टर ने टी० सी० से पूछा-
‘आपकी ड्यूटी कब से कब तक की है ?’
टी० सी० थूक निगलकर बोला -
‘जी, आठ बजे से चार बजे सुबह तक की।’
‘अर्थात्, अन्तिम लोकल ट्रेन आप ही चैक करते हैं।’
‘यस सर।’
'और यह हवलदार क्या नाम है इसका ?"
‘जी, तुलाराम’
'हां, तुलाराम। यह आपके साथ रहता है ?"
टी० सी० ने कहा- ‘जज, जी हां।’
‘आप दोनों मिलकर ऊपर की कमाई करते हैं और उसमें से दोनों ही आपस में बंटवारा भी करते हैं और फिर बंटवारे में हेरा-फेरी भी करते हैं।’
‘स स स सर ।’
स्टेशन मास्टर ने हाथ उठाकर क
‘देखिए, ऊपर की कमाई हर कोई करता है लेकिन हेरा फेरी के धन्धे में कभी आपस में घपला नहीं करना चाहिए वरना बन्दर-बांट में सदा तीसरे को ही लाभ पहुंचता है।'
‘स स स सर ।’
‘अंब एक-दूसरे को वचन दीजिए कि एक दूसरे के साथ कभी घपला नहीं करेंगे।’
टी० सी० और हवलदार ने साथ-साथ कहा ! हम एक-दूसरे को वचन देते हैं कि आपस में कभी घपला" नहीं करेंगे।'
‘और मेरा हिस्सा नहीं भूलेंगे।’
'और आपका हिस्सा नहीं भूलेंगे।" एस० एम० ने सीधे बैठते हुए कहा-
'लाइए, अब वह गड्डी निकालिए ।' टी० सी० हकलाकर बोला—'कक, कौन-सी गड्डी ?"
'वह नोटों की गड्डी जिसके बंटवारे के लिए आप दोनों आपस में झगड़ा कर रहे थे और तीसरा भागीदार पैदा कर लिया।"
'स स स सर !!
एस० एम० ने मेज पर जोर से हाथ मारकर कहा- ‘गड्डी निकालिए ।’
दोनों उछल पड़े। टी० सी० के चेहरे पर मुरदनी छा गई थी। उसने चुपचाप जेब में से नोटों की गड्डी निकाली ओर जब उसे मेजपर रख रहा था तो ऐसा लगता था जैसे अपने किसी सगे सम्बन्धी की चिता को आग दिखा रहा हो।
हवलदार के चेहरे से ऐसा लगता था जैसे अभी-अभी उसे अपने पूरे परिवार की अचानक किसी दुर्घटना में मौत का समा चार मिला हो । क्योंकि वह पचास-पचास के बिलकुल नए नए नोटों की गड्डी अच्छी मोटी दिखाई दे रही थी ।
एस० एम० ने नोटों की गड्डी की तरफ देखा और फिर टी० सी० को घूरकर बोला—'क्या गड्डी दो हजार की दिखाई पड़ती है।' टी० सी० होंठों पर जीभ फेरकर रह गया, एस० एम० ने फिर कहा-
'यह गड्डी पूरे पांच हजार की है— मैं बिना गिने हुए बता सकता हूं जज जी।'
क्रमशः
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