"उस फोन के आगे उनको झुकना ही था। क्योंकि वह फोन खुद सिंडिकेट से आया था।"- मेल्विन ने ठण्डी साँस के साथ जवाब दिया।
यह सुनते ही वे दोनों फिर से हैरानी भरी नजरों से मेल्विन को देखने लगे।
"सिंडिकेट"- दोनों ने ही लगभग एक साथ कहा।
"हाँ! सिंडिकेट!"- मेल्विन ने ठंडी निगाहों के साथ- "जब मैं अपना रेज़िग्नैशन लेटर मिस्टर कपूर को लिख रहा था तब वास्तव में मैं उन्हें सिंडिकेट से मदद मांगने को कह रहा था। मिस्टर कपुर बहुत बड़े आदमी हैं, उनके एग्जीबिशन में इतने बड़े बड़े लोग आते हैं, इसलिए जाहिर है उनकी पहुँच सिंडिकेट तक भी होगी।"- मेल्विन ने कहा।
सिंडिकेट, या यूँ कहा जाए डायमंड सिंडिकेट जो इस देश के लगभग 80% हीरो के डिस्ट्रीब्यूशन को कंट्रोल करता है। एक ऐसा ऑर्गेनाइजेशन जिसके इज़ाज़त के बिना इस देश का बड़े से बड़ा व्यापारी ना तो हीरे खरीद सकता है और न ही बेच सकता है। उसके सामने श्याम लाल भी महज एक व्यापारी थे। असल में वो हीरा श्याम लाल का भी नहीं था, वो हीरा सिंडिकेट का था जिसकी देख रेख करने के लिए उन्होंने उन्हें सौंपा था। सिंडिकेट ही वो कारण था जिसके कारण श्याम लाल जी मेल्विन को छोड़ने को राजी नहीं हो रहे थे, ये बात डिकोस्टा को भी पता था कि वो हीरा असल में सिंडिकेट का है और उसके सामने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए श्याम लाल सही गलत में भी फर्क नहीं करेगा। सिंडिकेट के बारे में लक्ष्मण और पीटर भी पहले से जानते थे क्योंकि इतने सालों से कंपनी की मीटिंग कर कर के वे लोग बड़े लोगों के काम करने के तरीके भी अच्छे से समझ चुके थे।
"लेकिन तुमने सिंडिकेट को आखिर खुद को छोड़ने के लिए कन्विन्स कैसे किया मेल्विन"- पीटर ने पूछा।
"मैंने उन्हें एक ऐसा ऑफर दिया जिसे वे लोग मना नहीं कर सके।"- इतना कहकर मेल्विन अपनी माँ की तरफ बढ़ चला।
"माँ! तुम ठीक तो हो न?"- उसने कहा।
"लेकिन बेटा! आखिर ये सब क्या था। ये सब क्या देखना पड़ रहा है।"- उसकी माँ ने कहा।
"माँ मैं तुझे सब बताऊँगा। बस अभी घर चलो। सब ठीक हो जाएगा।"- मेल्विन ने कहा।
मेल्विन अपनी माँ को लेकर बाहर जा ही रहा था कि उसे रास्ते में रेबेका खड़ी मिल गयी। वह उसे शर्मिंदगी भरी नजरों से देख रही थी और साथ ही उसकी आँखों में बहुत सारे सवाल भी थे जिसे मेल्विन अच्छे से पढ़ पा रहा था।
"अभी नहीं रेबेका। अभी नहीं। मैं जानता हुँ, तुम अपनी मम्मी डैडी की हरकतों से शर्मिंदा हो और साथ ही साथ तुम्हारे मन में कई सारे सवाल भी आ रहे होंगे। लेकिन अभी नहीं। अभी इस वक़्त मेरे लिए मेरी माँ सबसे ज्यादा जरूरी है। हमें अभी अकेला छोड़ दो।"- मेल्विन ने रेबेका से कहा।
"लेकिन मेल्विन।"- इससे पहले की रेबेका कुछ कह पाती मेलविन अपनी माँ के साथ उसकी नजरों से ओझल हो चुका था।
वहीं दूसरी तरफ लक्ष्मण और पीटर उसी पार्टी में खड़े आपस में ही उस गुत्थी को सुलझाने में लगे हुए थे।
"तो तुम कह रहे हो जब हम आगरा में उस डिकोस्टा के घर में किडनैपिंग का केस सॉल्व कर रहे थे। वो हीरा तभी वहाँ से चोरी हुआ था?"- पीटर ने पूछा।
"मुझे तो यही लगता है। शायद यह डिकोस्टा की स्ट्रेटेजी थी कि मिस्टर कपूर के बहाने हमें किसी बड़े गेम में फंसाने का। शायद वह अनजान इंसान यही होगा जो हमारी मदद के बहाने हमें कोई बड़े गेम में फंसाना चाह रहा हो। हो न हो, यह डिकोस्टा, कोई बहुत बड़ी साजिश रच रहा है। हमें सावधानी से अपना हर कदम रखना होगा।"- लक्ष्मण ने कहा- “जो जैसा दिख रहा है वैसा ही नहीं, यहाँ हर कोई अपने-अपने और से कोई न कोई खेल खेल रहा है।”
"और सिंडिकेट का क्या? आखिर वो इन सब के बीच कैसे आया? उसका क्या एजेंडा है।"- पीटर ने फिर पूछा।
"सच कहूँ तो मुझे भी कुछ खास समझ नहीं आ रहा है। यह सब बात सिर्फ मेल्विन ही हमें बता सकता है।"- लक्ष्मण ने फिर जवाब दिया - "और उसके लिए हमें सब ठीक होने का इंतज़ार करना होगा।"
वहीं मेल्विन के घर में।
"माँ थोड़ा सा पानी पी लो।"- मेल्विन ने कहा।
"बेटा! यह सब क्या हो रहा है?"- मेल्विन की माँ ने पूछा।
"माँ! सब बताऊँगा। मैं तुम्हें सब बताऊँगा। बस मुझे इतना बता दो की क्या तुम्हें अभी हाल फिलहाल में कोई भी पर्ची मिली है?"- मेल्विन ने पूछा।
जिसे सुनकर उन्होंने अपने दिमाग पर थोड़ा जोर दिया। और कहा-
"नहीं। पर्ची तो नहीं। अरे, हाँ, एक एक... जब तुम्हें याद है मैं जब तुम्हें कह रही थी हमारे बगीचे के सारे फूलों को किसी ने नष्ट कर दिया था। तब तब मिट्टी में दबा मुझे एक कागज का टुकड़ा मिला था। मिट्टी से सना, मुझे लगा शायद वह कोई काम का ना हो। लेकिन तुम्हें बताना जरूरी नहीं समझी।"- माँ ने कहा।
"अच्छा। अच्छा। जरा मुझे वो कागज दिखाना तो।"- मेल्विन ने कहा।
"हाँ… हाँ। बिल्कुल। यहीं तो वो रखे होंगे। रुको, अभी लेकर आती हूँ।"- इतना कहके वह पर्ची लेने चली गयी। उन्हें वह पर्ची ढूंढने में जरा सी भी देरी नहीं लगी और तुरन्त ही उन्होंने वह पर्ची मेल्विन के हाथों में थमा दिया।
"ये रही वो पर्ची।"- उसकी माँ ने कहा।
"शांति?"- मेल्विनने उस पर्ची को पढ़ते हुए हैरानी दिखायी।
"क्या हुआ बेटे? कोई गड़बड़ है।"- उसकी माँ ने पूछा।
"नहीं माँ। कोई गड़बड़ नहीं है। असल में जब मैं आगरा गया था तब मुझे भी वहाँ एक पर्ची मिला था जिसमें शांति लिखा हुआ था। हो न हो, कोई हमें इस शब्द के जरिये कुछ कहना चाह रहा हो। जरूर इस पर्ची में कोई गहरा राज़ छिपा हुआ है।"- मेल्विन ने सोचते हुए कहा।
"वो सब छोड़ बेटे। तू मुझे सिर्फ इतना बता की अभी जो उस पार्टी में हुआ, वह क्या था?"- माँ ने पूछा।
"माँ वहाँ हमने जो कुछ भी देखा, वो एक साजिश थी। एक बहुत बड़ी साजिश। असल में हमने जिस आदमी को मिस्टर कपूर को अगवा कराने के लिए पकड़वाया था, यह उसी की साजिश थी। और यह साजिश सिर्फ मिस्टर कपूर और हीरों तक ही सीमित नहीं हैं। यह पापा से भी जुड़े हुए हैं।"- मेल्विन ने कहा।
"तू कहना क्या चाहता है बेटे, साफ-साफ बोल।"- उसकी माँ ने जोर डाला।
"माँ। उस डिकोस्टा के आगरा वाले घर में ऐसी बहुत सारी चीजें थी जो पापा से जुड़ी हुई थी। उनमें जो मुझे सबसे ज्यादा खास लगे वो थे कुछ पन्ने! वही पन्ने जो हो न हो, पापा की ही डायरी के कुछ अंश हैं। पर उनमें कुछ भी खास नहीं मिला मुझे, बस इतना पता चला कि ये ह्यूमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का धंधा सिर्फ पापा के टाइम से ही नहीं चल रहे, बल्कि उनसे भी काफी पहले से चल रहे हैं, और आज भी हो रहे हैं और ये सब एक ऐसी संस्था कर रही है जो आज से 200 सालों से अस्तित्व में है। और सिर्फ वही संस्था जानती है कि वो 500 करोड़ रुपये कहाँ है।"- मेलविन ने कहा।
"लेकिन बेटा! इनसब का हीरो की तस्करी से क्या लेना देना?"- उसकी माँ ने फिर पूछा।
"लेना देना है माँ। लेना देना है। बहुत गहरा लेना देना है। लेकिन क्या? यह मैं भी अभी तक नहीं समझ पाया हूँ।"- मेल्विन ने कहा।
यहाँ मेल्विन अपनी माँ को समझाने में लगा था वहीं दूसरी तरफ डिकोस्टा खुद कुछ समझने में लगा था।
"श्याम लाल जी! आपने उन्हें जाने क्यों दिया। आखिर सिंडिकेट के शान पर इतना बड़ा दाग लगने के बाद भी सिंडिकेट ऐसे किसी को कैसे छोड़ सकती है।"- डिकोस्टा ने पूछा।
"ये तो हमारे भी समझ से बाहर है। बस सिंडिकेट ने अचानक से हमें फोन करके कहा कि उन्हें उस चोर को पकड़ने में अब कोई दिलचस्पी नहीं है।"- श्याम लाल जी के पर्सनल असिस्टेन्ट ने कहा।
"लेकिन आखिर सिंडिकेट ऐसा क्यों ही चाहेगी?"- डिकोस्टा ने फिर पूछा- "सिंडिकेट बिना खुद के फ़ायदे के एक तिनका भी नहीं उठाएगी। और हीरों के चोर को छोड़ना!"- डिकोस्टा ने जोर डाला।
"बात तुम्हारी बिल्कुल सही है। सिंडिकेट बिना खुद के फायदे को देखे कुछ भी नहीं करने वाला। और अगर उन्होंने ऐसा कुछ किया भी है इसका सिर्फ एक ही मतलब है कि उनका इसमें बहुत बड़ा फायदा छिपा है।"- इसके बाद उन्होंने हीरों के नेकलेस की तरफ देखते कहा - "हमें इस नेकलेस पर नजर रखनी होगी। कुछ हमारी सोच से भी परे होने वाली है।"
कहानी में आये ऐसे अचानक से बदलाव ने मिस्टर डिकोस्टा को पल के लिए हैरान तो जरूर किया पर अभी भी उसके चेहरे पर लगी मुस्कान इस बात की और साफ-साफ इशारा कर रही थी कि भले ही चीजें शायद उसके पक्ष में न गयी हो पर बाजी अभी भी उसी के हाथों में है और अंत में वही होगा जैसा कि वो चाहेगा। उसने मन ही मन खुद से कहा-
“मेल्विन। भले ही शतरंज के इस खेल में पहली बाजी तुमने मारी हो, पर यह शतरंज मेरी है इसलिए अंत भी मेरे हिसाब से होगा। भले ही खेल का निर्णय हार जीत से हो, पर इसका परिणाम उसके पीछे छिपे नरेटिव से होगा। क्या तुम्हें कुछ समझ आया? नरेटिव?”
अगले दिन ऑफिस में।
भले ही मेलविन ने अपनी गिरफ्तारी बचा ली थी लेकिन इसका मतलब यह नहीं थी कि मुसीबत टल गई थी। इसका खामियाजा मिस्टर कपूर के पूरे मैगज़ीन कम्पनी को भुगतना पड़ा था।
"जी! जी! मैं समझ रहा हूँ। हाँ मैं जानता हूँ।"- मिस्टर कपूर लगातार फोन पर बोले जा रहे थे। वे काफी परेशान दिख रहे थे। "ओके! ठीक है।" अंत में उन्होंने इतना कहकर फोन रख दिया और फिर जोर से ठंडी साँसे ली।
"हद है यार! ये भी हाथ से गया।"- उन्होंने खुद से कहा।
"क्या हुआ बोस! आप इतना उदास क्यों हैं?"- पीटर ने उनसे पूछा-" आज सुबह से देख रहा हूँ कि आप लगातार अलग जगहों से फोन पर बात कर रहे हैं फिर और ज्यादा दुखी हो जा रहे हैं।"
"अब तुम्हें क्या बताऊँ पीटर! जब से वो हीरे वाली घटना हुई है इससे हमारी मैगज़ीन को लेकर में खूब नेगेटिविटी फैली है। अब कई बड़े-बड़े बिज़नेसमैन और सेलेब्रिटी हमारी मैगज़ीन से अपना हाथ पीछे घिंच रहे हैं। चैनल्स में बस हमारे कंपनी की खबरें चल रही है। मामला थोड़ा हाइ प्रोफाइल हो गया है शायद इसलिए इसे इतनी सुर्खिया मिल रही है। और तो और मैगज़ीन जिन आइकॉन्स और सेलेब्स के बलबूते इतनी अच्छी सेल्स हासिल करता था उन सब ने अपने अपने कॉन्ट्रैक्ट्स कैंसिल कर दिए हैं। और इसके अलाव सुबह से लगभग सभी न्यूज़ आर्टिकल्स और अब तुम ही बताओ पीटर की मैं क्या करूँ? में तो लूट गया, बर्बाद हो गया।"- उन्होंने आगे कहा।
"अरे सर! ऐसा मत कहिए। सब ठीक हो जाएगा। हम पहले भी ऐसी परिस्थिति से गुजर चुके हैं। आप तो इतने अनुभवी हैं। आप तो खुद ऐसी परेशानियों से बीसियों बार गुजर चुके होंगे। आपको तो पता ही होगा कि इन सब से कैसे गुजरना है। नहीं तो हम सब तो है हीं एक परिवार। अगर कोई बड़ी परेशानी आयी तो मिलकर सामना करेंगे।"- पीटर ने आत्म विश्वास के साथ कहा।
"नहीं पीटर। यह केस पहले के पुराने केसेस की तरह नहीं हैं। इस बार इसमें बड़ी ताकतें लगी हुई हैं। हमारे खिलाफ जो हवा बन रही है उसके बड़ी-बड़ी ताकतों का हाथ हैं और मुझे डर है पीटर की शायद इस बार, हम उनसे न जीत सके।"- मिस्टर कपूर ने कहा।
"ऐसा मत सोचिए सर। यह बस एक ऐसी परेशानी है जिनसे बच निकलने का रास्ता हमें अभी नहीं पता। पर इसका मतलब यह नहीं कि रास्ता निकलेगा नहीं। बस थोड़े संयम है हमें सोचना होगा। थोड़ा वक्त देना होगा। मैं अभी सबसे मिलकर इसका कोई हल निकालता हूँ।"- पीटर ने फिर कहा। इतना कहकर वह अपने दुसरे कॉलीग्स के पास बढ़ चला।
"वही तो नहीं है मेरे पास।"- मिस्टर कपूर ने मन ही मन खुद से कहा।
आज मेल्विन भी ऑफिस थोड़े लेट से आया। उसे मैगज़ीन के खिलाफ हाल में चल रहे मीडिया दुष्प्रचार के बारे में अच्छे से पता था इसलिए जब उसे किसी ने इस बारे में बताया तो उसने जरा भी हौरानी नहीं दिखाई। वो आज चुप-चाप जाकर अपने पर्सनल कबिन में बैठकर अपना काम करने लगा जबकि उसके ऑफिस के बांकी के लोग उसके केबिन में आकर उससे तरह तरह की बातें करने लगे। भले लोग अलग अलग तरह की बातें करे पर ज्यादातर लोगों ने उससे बार-बार एक ही सवाल पूछा।
"आखिर श्याम लाल ने तुम्हें छोड़ क्यों दिया? तुमने उनके साथ ऐसी कौन सी डील की?"
सवाल मुश्किल था और एक न एक दिन मेल्विन को इसका जवाब देना ही था।
अब क्या होगा आगे? आखिर मिस्टर कपूर और मेल्विन इस नई परेशानी से कैसे निपटेंगे। आखिर कैसे अपनी कंपनी के डूबते साख को बचाएंगे। और आखिर इन सब का मेलविन के पिता के डायरी से कौन सा कनेक्शन है जिसकी बात मेल्विन कर रहा है? जानने के लिए सुनते रहिए।
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