लक्ष्मण ने मेल्विन को बचाने की लगभग सारी दलील रख दी थी पर फिर भी श्याम लाल और वह इंस्पेक्टर उनकी एक बात को सुनने के मूड में नहीं थे। 5 मिनट पूरे होते ही मेल्विन और उसका पक्ष रख रहे लक्ष्मण दोनों को ही गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया गया। अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए उन दोनों के दिमाग में कोई तरकीब नहीं आ रही थी। ज़िन्दगी की उलझनों क्या कम थी जो यह काल कोठरी की दस्तक भी अपने सिर पर आ गई।

यही वह समय था जब वो अनजान व्यक्ति जो इन सारी घटनाओं को दूर से देख रहा था, वह अब खड़ा हुआ और उनके बीच जा धमका। वह कोई ऐसा चेहरा नहीं था जिसे वे लोग पहले से नहीं जानते थे। वे लोग उससे अच्छे से रूबरू थे। उसे देखते ही मेल्विन के मुँह से निकल पड़ा। 

"तुम! यहाँ!" 

जिसके बाद मिस्टर श्याम लाल और उनके असिस्टन्ट की नजर वहाँ जा पड़ी। उन्होंने भी उसे देखते साथ कहा- 

"आओ। मिस्टर डिकोस्टा। तुम बिल्कुल सही समय पर आए हो। हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे। देखो, हमने उन चोरों को पकड़ लिया जिसके बारे में तुम बता रहे थे।" - मिस्टर श्याम लाल ने कहा। 

"डिकोस्टा। तो इन सबके पीछे तुम्हारी साजिश थी? लेकिन कैसे? तुम तो जेल में थे। तुम वहाँ से छूटे कैसे?"- मेल्विन ने हैरानी के साथ कहा। 

यह सुनकर डिकोस्टा हँस पड़ा। उसने कहा- 

“हाँ तुमलोगों ने तो मुझे लगभग फँसा ही लिया था। पर मैंने तुमलोगों को पहले ही कहा था कि मेरे दिखावे पर मत जाओ। मैं कच्चा खिलाड़ी दिखता जरूर हूँ। लेकिन हूँ नहीं। अब आगे आगे देखते जाओ होता है क्या!”

इसके बाद वे दोनों श्याम लाल की तरफ देखने लगे।

"देखिए श्याम लाल सर। आपको कोई बहुत बड़ी गलतफहमी हुई है। यह डिकोस्टा है। वही डिकोस्टा, जिसने हमारे बॉस, मिस्टर कपूर को किडनैप कराया था। आप इसकी बातों पर भरोसा नहीं कर सकते। अगर आपको यकीन नहीं होता तो एक बार आप आगरा के पुलिस स्टेशन और वहाँ के स्थानीय लोगों से पूछ लीजिए। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। मेरा यकीन कीजिए, ये आदमी बिल्कुल भी भरोसे के लायक नहीं है।"- लक्ष्मण ने हुए कहा।  

"कौन कितना भरोसे के लायक है, कौन नहीं, ये तुम हमको मत सिखाओ। ये वही मिस्टर डिकोस्टा हैं जिनके घर पर तुमलोगों ने हमला करके इनका कीमती हार चुराया था।"- श्याम लाल के पर्सनल असिस्टन्ट ने कहा। 

यहाँ भी वे दोनों जो भी तर्क रखते, उनकी हर बात अनसुनी होनेवाली थी। अब ये बात वे दोनों भी समझ रहे थे। मेल्विनने लक्ष्मण के कानों में हल्का सा फुसफुसाया। 

"लक्ष्मण! मुझे लगता है ये वही आगरा वाली घटना की बात कर रहे हैं जहाँ इन्होंने मिस्टर कपूर को अगवा कराया था। शायद यह डिकोस्टा उस घटना को अपने हित में बदल रहा है। जिसने जरूर किसी तरह से इनको कन्विन्स कर लिया है कि इनके हीरे हमने ही चुराए हैं।"- मेल्विन ने कहा। 

शायद अब उन दोनो को धीरे-धीरे सारा माजरा समझ आ रहा था। वे अब सारे उलझे तारों को जोड़ पा रहे थे।

"अब हम क्या करें? हमारे लाख समझाने से भी ये लोग हमारी एक नहीं सुनने वाले। अब हम क्या करे मेल्विन। अब हम क्या करे?"- लक्ष्मण ने दुखी मन से कहा - " मुझे माफ़ करना दोस्त। मैं अपने वायदे पर कायम नहीं रह सका। मैं तुम्हें नहीं बचा सका।" 

"कोई बात नहीं दोस्त! तुम मेरे लिए अपनी जान को जोखिम में डाल आए। मुसीबत के समय में जो दोस्त खुद की बिना परवाह किये इस हद तक चला जाए। उससे कीमती और कोई हीरा जवाहरात नहीं हो सकता। और इससे बड़ा मेरे लिए और कुछ भी नहीं। मुझे तुम पर गर्व है मेरे दोस्त। बहुत ज्यादा गर्व है।"- मेल्विन ने भी भावुक मन से कहा - " लेकिन क्या तुम मेरा एक काम कर सकते हो?" 

"क्या?"- लक्ष्मण ने उत्सुकतापूर्वक पूछा। 

"पीटर को बोलो मेरा टर्मिनेशन लेटर लिखकर मिस्टर कपूर को देने, मैं यह कंपनी अभी छोड़ने वाला हूँ।"- मेल्विन ने कहा।

"अमा यार। यहाँ तुम्हारे किस्मत के टर्मिनेशन लगे पड़े हैं और तुमको अभी जॉब की पड़ी है। एक दो दिन रुक जाओ, हवालात जाते ही ये लोग हमें वैसे भी टर्मिनेट कर देंगे।"- लक्ष्मण ने हैरानी के साथ कहा। 

इसके बाद मेल्विन चिल्लाकर बोल पड़ा- "नहीं। मुझे यह कंपनी अभी छोड़नी है। यह घटिया कंपनी और इसका खड़ूस बॉस, इन दोनों ने मेरी ज़िंदगी के सत्रह सालों तक शोषण किया। नहीं रहना मुझे इस कम्पनी में, इनसे कहो कि मुझे अभी अपना रेज़िग्नैशन लिखने दे वरना मैं यहाँ से एक कदम नहीं हिलने वाला।" 

"ये पागल वागल हो गया है क्या? जेल जाते वक्त भी इसे कंपनी छोड़ने की पड़ी है?"- वहीं खड़े इंस्पेक्टर साहब ने उस आवाज को सुनते ही कहा। 

"हा हा हा। अब मुझे सब समझ आ रहा है। एक बार मुझसे इसने अपना टर्मिनेशन रुकवाया था। अब यह वही टर्मिनेशन अपने हाथों करवाना चाहता है ताकि उसके उपज में मैं इन्हें छोड़ दूं। शायद इन बेवकूफों को कोई आइडिया नहीं कि मैंने इन लोगों को नहीं फँसाया है और मैं चाहकर भी इसमें कुछ नहीं कर सकता।"- डिकोस्टा ने हंसते हुए कहा- "पर फिर भी मैं चाहूँगा, मिस्टर श्याम लालजी, कम से कम इसकी यह आखरी इच्छा पूरी कर दी जाए। पछतावा हो रहा बेचारे को। थोड़ा मेरे कलेजे में ठंडक मिले।" 

"ठीक है। लिख लेने दो इसे टर्मिनेशन लेटर। ये भी क्या याद रखेगा की इसका सामना किस उदार व्यक्ति से हुआ है। लिखो अपना टर्मिनेशन।"- मिस्टर श्याम लाल के असिस्टन्ट ने कहा, इसके साथ ही मेल्विन  को थोड़ी देर के लिए कुछ छूट मिल गयी, जिसको इसने अपना टर्मिनेशन लेटर लिखने अलावा और किसी चीज़ में बर्बाद नहीं किया। कुछ देर तक कागज़ में घिसने के बाद उसने वह टर्मिनेशन लेटर वहीं खड़े मिस्टर कपूर को दे दिया। मिस्टर कपूर के समझ में भी फिलहाल कुछ नहीं आ रहा था। 

"हो गया तेरा? अब चलें?"- यह तमाशा देख रहे इंस्पेक्टर साहब ने कहा। पर इससे पहले की वो कुछ भी कर पाता, पूरे भीड़ के सामने मेल्विन श्याम लाल जी के बिल्कुल समीप जा खड़ा हुआ और उनके आगे अपने दोनों हाथ जोड़े अपने घुटनों के बल आ गया। 

"मुझे माफ़ कर दीजिए। मैंने ही आपके हीरे चुराए थे। मिस्टर डिकोस्टा ने आपको बिल्कुल सही बताया था, इनके घर मैं इनके हीरे ही चुराने गया था।"- मेल्विन  ने यह दुखी मन से कहा - "और यह काम मैंने अकेले नहीं किया था। बल्कि इस काम के लिए मैंने अपने दो दोस्त लक्ष्मण और पीटर को भी अपने साथ लिया था।" 

यह बात सुनते ही पीटर के भी कान खड़े हो गए। उसने मन ही मन खुद से कहा- "यह क्या बकवास कर रहा है। खुद को बचाने के लिए ये अब हम दोनों को भी मुसीबत में डालेगा क्या?" 

जबकि लक्ष्मण ने मन में सोचा - “लगता है सदमा लग गया है बेचारे को।”

वहीं मेल्विन  की यह दुर्दशा देख रेबेका और मेल्विन कि मां भी बेहद दुखी थे। 

वहीं श्याम लाल जी के पर्सनल असिस्टेन्ट ने कहा- 

"देखो इस तरह गिड़गिड़ाने के कोई फायदा नहीं। अब बहुत देर हो चुकी है। तुम्हें माफी मांगने का मौका पहले दिया गया था लेकिन तुमने ही नहीं माना। अब हवालात में माफी मांग लेना। शायद तुम्हारी सज़ा माफ हो जाए।" 

"ठीक है सर! मुझे जेल जाने से कोई परहेज नहीं है, बशर्ते आप उन दोनों को भी पकड़े। एक को तो आपने पकड़ लिया, दूसरा वह देखिए, छिपकर हमें देख रहा है।"- मेलविन ने पीटर की तरफ इशारा करते हुए कहा। 

"चल भाई, तू भी यहाँ आ जा। तेरे खिलाफ गवाही तेरे ही प्यारे दोस्त ने गवाही दी है।"- इंस्पेक्टर साहब ने पीटर से कहा।  

"साब। मैं नहीं जाऊंगा क्योंकि मैं निर्दोष हूँ।"- पीटर ने कहा। 

"हाँ हाँ ठीक है समझ गया कि तू निर्दोष है। मान गया तेरी बात। अब चल।"- इंस्पेक्टर साहब ने कुछ ही देर में पीटर को भी पकड़ लिया। 

यह तमाशा देखने में पूरी भीड़ को काफी मज़ा आ रहा था। आखिर उन्हें इंसान का असली रंग जो देखने को मिल रहा था कि कैसे जब मुसीबत सर पर आती है तो सब सिर्फ खुद का सोचते हैं। कोई किसी का नहीं होता। वहीं लक्ष्मण और पीटर भी मेल्विन को मन ही मन कोसे जा रहे थे।

"देखो कितना नीच आदमी है। जब मुसीबत सर पर मंडराई तो देखो कैसी हरकत करने लगा। अभी तक सर नहीं झुका रहा था। अब सीधा घुटनों के बल आकर गिड़गिड़ा रहा है। न सिर्फ गिड़गिड़ा रहा, अपने ही दोस्तों को फ़ँसा रहा है।"- भीड़ में से एक नए कहा। 

"अरे सही है भाई। ठीक ही कहते हैं कि जब पुलिस का डंडा पड़ता है तब मुर्दा भी गवाही देना शुरू कर देता है। ये फिर भी इंसान हैं।"- भीड़ में से ही किसी और ने कहा। सारे लोग इस तमाशे का भरपूर मजा ले रहे थे। 

"इतने लोग काफी हैं या फिर तुम्हें किसी और का भी नाम लेना है।"- श्याम लाल जी के पर्सनल असिस्टेन्ट ने कहा। 

"हाँ।"- मेल्विन ने सर झुकाते हुए कहा- "भले ही यह अपराध हमने किया हो पर यह अपराध हम अपनी मर्जी से नहीं कर रहे थे। हमसे उन हीरों को चुराने के लिए किसी ने कहा है।" 

इतना सुनते ही तुरन्त लक्ष्मण और पीटर एक दूसरे को हैरत भरी नजरों से देखने लगे। 

"है भगवान! अब क्या ये डायना और विशाखा को भी पकड़वाना चाहता है?"- दोनों ने आँखों ही आंखों में एक दुसरे से कहा। 

"किसने? किसने कहा था तुमसे ऐसा करने को"- श्याम लालजी के असिस्टेंट ने पूछा। 

पर इससे पहले की मेल्विन अपना जवाब दे पाता, अचानक बिल्कुल शांत पड़ी भीड़ में एक फोन की आवाज गूंज उठी। वह फोन श्याम लाल जी का था जो अक्सर उनके असिस्टेन्ट के पास रहा करता था। कुछ देर रिंग होने के बाद उन्होंने वह फोन उठाया- 

"हेलो"- उन्होंने कहा। फिर उसके तुरन्त बाद उन्होंने वह फोन श्याम लाल जी को थमा दिया और उनके कानों में कुछ खुसफुसाया। श्याम लाल जी तुरन्त बात की गम्भीरता को समझ गए और वे तुरन्त एक तरफ साइड होकर फोन पर बात करने लगे। कॉल ज्यादा लम्बी नहीं चली। वे तुरन्त वहाँ से वापिस आ गए और उन्होंने अपने असिटेन्ट को बेहद ही धीमी आवाज में कहा जिसे शायद उनके अलावा कोई दूसरा नहीं सुन सका। लेकिन असिटेंट महोदय समझ गए कि उन्हें क्या करना है। उन्होंने तुरंत इंस्पेक्टर साहब को आदेश दिया। 

"इंस्पेक्टरजी। छोड़ दीजिए इन तीनों को। ये निर्दोष हैं।"- उन्होंने इंस्पेक्टर से कहा। 

इंस्पेक्टर भी उनके मूड में आया ये हालात बदलाव समझ न सका पर वह इतना जरूर समझ गया कि मामला गम्भीर है और ऐसे हालात में उनसे सवाल जवाब करना उल्टा बात और बिगाड़ता। इसलिए उसने तुरंत फुर्ती दिखाई और उन दोनों को बिना वक़्त गवाएं छोड़ दिया। 

"जाओ। तुम लोग। अब तुम लोग आज़ाद हो।"- उन्होंने कहा। 

लक्ष्मण और पीटर के समझ में कुछ नहीं आ रहा था। पर वे भी धीरे-धीरे बात समझ रहे थे। 

"प्लान-S?"- लक्ष्मण ने बेहद धीमी आवाज में पूछा।

"हाँ। प्लान-S!"- मेलविन ने उतनी ही धीमी आवाज में जवाब दिया। 

अब वे तीनों खुद भीड़ का हिस्सा बन गए। इसके बाद श्याम लाल जी के असिस्टेंट वहीं खड़े मिस्टर कपूर के पास गए और कहा। 

"आप एग्जीबिशन की तैयारी कीजिए। हम इन दोनों को नेकलेस की क्वालिटी लैब टेस्टिंग कराकर ला रहे हैं।"- उन्होंने मिस्टर कपूर से कहा। 

"स्योर सर।"- मिस्टर कपूर ने जवाब दिया।

 

इसके बाद वे लोग भीड़ वहाँ से चले गए। सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि मिस्टर डिकोस्टा वहीं खड़े का खड़े रह गए। उसे भी इतने अचानक से हुए बदलाव के बारे में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वहीं वह भीड़ जो अब तक एक जगह खड़े होकर सारे तमाशे को देख रही थी वे अब फिर से तीतर बितर होने लगे और पार्टी का लुत्फ लेने लगे। 

"अरे वो पनीर की टिक्की मेरी है।"- यह आवाज भीड़ में खड़े किसी बेहद ही प्रतिष्ठित और पहुँचे हुए आदमी की होगी जो अब भीड़ का हिस्सा बन चुकी थी। 

"आखिर ऐसा कौन व्यक्ति इस वक़्त फोन कर सकता है जिसे सुनते ही श्याम सुंदर लाल, हीरे के इतने बड़े व्यापारी। उनके जैसे बड़े व्यापारी तक को घबराहट में डाल दे? उनको, जो अब तक लक्ष्मण के हर दलील और सबूतों को नकार रहे थे, एक झटके में उन्हें अपने फैसले को बदलना पड़ा? कहिर किसका फोन आया था उनको?"- पीटर ने हैरानी के साथ पूछा। 

"उस फोन के आगे उनको झुकना ही था। क्योंकि वह फोन खुद सिंडिकेट से आया था।"- मेल्विन ने ठण्डी साँस के साथ जवाब दिया। 

यह सुनते ही वे दोनों फिर से हैरानी भरी नजरों से मेल्विन को देखने लगे। 

सिंडिकेट? आखिर क्या था यह सिंडिकेट जिससे श्याम लाल जैसा आदमी तक घबरा गया? आखिर श्याम लाल ने उन तीनों को क्यों छोड़ दिया? और सिंडिकेट का हीरे की चोरी से क्या लेना देना? अब मिस्टर डिकोस्टा क्या करेगा? अभी आपके मन में पैदा हो रहे कई सवालों के जवाब मिलने वाले हैं बस सुनते रहिए। 

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