कर्नल को राजवीर के साथ जंगल में रहते हुए कई दिन हो गए थे। राजवीर के कहने पर उसने ख़जाने के लालच में पूरा मंदिर तोड़ दिया था, लेकिन वहाँ से उसे सिर्फ़ सोने के सिक्के मिले, जो उसके खर्चे की भरपाई भी नहीं कर पाए। उसके कई आदमी मारे गए थे और नुक़सान जो हुआ वह अलग।

कर्नल समझ गया था कि राजवीर जैसे बेवकूफ़ के साथ और ज़्यादा वक़्त बर्बाद करने से कोई फ़ायदा नहीं है। उसने राजवीर से कहा,

"दोस्त, जंगल में वेकेशन बहुत इंजॉय कर लिया। अब दिल्ली लौटना होगा। पार्टी का कामकाज देखना है, वरना लोग सोचेंगे नेताजी भाग गए हैं और विपक्ष इसे मुद्दा बना लेगा।"

कर्नल की बात सुनकर राजवीर मन ही मन कहना चाहता था, "तूने ऐसा कौन-सा भला कर दिया है, जो तेरे वहाँ न होने से लोगों को फ़र्क पड़ेगा?" लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि कर्नल से ये बात कह सके।

राजवीर: "तुम मुझे बीच भंवर में छोड़ रहे हो, दोस्त। बस कुछ दिनों की बात है, फिर हम दोनों ख़ज़ाने के साथ यहाँ से निकलेंगे।"

"बस एक बार उस अर्जुन के बच्चे का पता लग जाए... उसकी तो... पता नहीं, कौन से बिल में छिपा बैठा है!"

कर्नल ने मन ही मन सोचा, "तुझ जैसे लोग बस बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। जब अर्जुन मंदिर की भूल-भुलैया में फंसा था, तब वह तुझसे नहीं पकड़ा गया। ऊपर से मेरे लोग मारे गए और अब यहाँ बैठकर फ़ालतू की बातें बना रहा है।"

राजवीर ने कर्नल को रोकने की कोशिश की, लेकिन कर्नल ने साफ़ इनकार कर दिया। राजवीर के गिड़गिड़ाने पर कर्नल अपने कुछ आदमियों को वहीं छोड़ गया, ताकि अगर राजवीर को ख़ज़ाना मिले, तो उसे तुरंत ख़बर मिल सके।

उधर, संजय, बलवीर और राजवीर के बाक़ी सैनिक खाली बैठे गप्पे मार रहे थे। उन्हें लग रहा था कि राजवीर को अब यहाँ कुछ भी मिलने वाला नहीं है, क्योंकि अर्जुन और उसकी टीम पहले ही ख़ज़ाना खाली कर चुके होंगे।

राजवीर के आदमी उसकी फैसले लेने की क्षमता का मज़ाक उड़ा रहे थे।

उसका एक सैनिक हँसते हुए कहता है, "मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसा बेवकूफ़ इंसान नहीं देखा, जो महीनों तक ख़ज़ाने के लिए जंगल में भटके और जब ख़ज़ाना मिलने वाला हो, तो उससे भी बड़े ख़ज़ाने की तलाश में अपनी आँखों के सामने का सोना छोड़ दे। वैसे, मंदिर से कितना सोना निकला था?"

संजय ने हँसते हुए जवाब दिया, "1 कम 19 सोने के सिक्के। इसके अलावा कुछ नहीं।"

सैनिक ने हैरानी से पूछा, "1 कम 19? मतलब?"

संजय ने एक चमचमाता सिक्का निकालते हुए कहा, "मतलब, मैंने एक सिक्का चुपके से अपने पास रख लिया था।"

सिक्का देखकर पूरे ग्रुप में हंगामा मच गया।

वहीं दूसरी तरफ, अर्जुन और उनकी टीम ने हिमालय के पर्वतों में छिपा हुआ अदृश्य मंदिर ढूँढ निकाला। स्लैब उस मंदिर को देखने की चाबी था। अब उनके सफ़र का एक और महत्त्वपूर्ण अध्याय शुरू हो चुका था।

मीरा: "अनबिलीवेबल! इतना बड़ा मंदिर सदियों से यहाँ बर्फ़ के पीछे छिपा हुआ था। इसका आर्किटेक्चर कितना फ़ेसिनेटिंग है!"

अर्जुन: "लेकिन मुझे लगता है, हमने स्लैब खो दिया है।"

मीरा: "मास्टर, हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। हो सकता है, मंदिर के अंदर हमें स्लैब फिर से मिल जाए।"

अर्जुन: "हाँ, शायद हमें जवाब के साथ-साथ स्लैब भी मिल जाए।"

थोड़ी देर आराम करने के बाद, टीम मंदिर में जाने के लिए तैयार हो गई। मंदिर का मुख्य दरवाज़ा भारी भरकम लकड़ी का बना हुआ था। अर्जुन ने गहरी साँस ली और टीम को मोटिवेट किया।

अर्जुन: " दोस्तों, हमने ऊँची चढ़ाई पूरी कर ली है। लेकिन हमारा असली लक्ष्य यहाँ से आगे का सफ़र है। मुझे लगता है, ख़ज़ाने तक पहुँचने में अब ज़्यादा समय नहीं लगेगा।

"हमें इस मंदिर में आगे के सुराग ढूँढने हैं। कितना भी मुश्किल वक़्त आए, हम सब एक टीम की तरह एक-दूसरे का साथ देंगे। अब तैयार हो जाओ!"

टीम ने मंदिर में प्रवेश करने की तैयारी शुरू की। सभी मंदिर के गेट तक पहुँचे, जहाँ पूरे रास्ते बड़ी-बड़ी पत्थर की प्लेटें बिछी हुई थीं।

विक्रम: "ये क्या है? और हमें इन्हें कैसे पार करना होगा?"

अर्जुन ने ध्यान से उन पत्थरों को देखा। ये साधारण पत्थर नहीं थे—ये 'प्रेशर प्लेट पज़ल' का हिस्सा थे। अगर किसी ने ग़लत पत्थर पर क़दम रखा, तो पूरा मंदिर गिर सकता था। इस पहेली का हल यह था कि दो लोगों को एक जैसे निशान वाली प्लेट पर एक साथ चलना होगा।

अर्जुन ने शिलालेख का टुकड़ा निकाला, जो उनके पास था। उसमें इस पहेली को सुलझाने के लिए संकेत थे। उन्होंने ध्यान से प्लेट्स की बनावट और शिलालेख के निशानों को मिलाया और धीरे-धीरे सही रास्ता खोजने लगे।

कुछ देर की दिमागी कसरत करने के बाद उन्होंने आगे बढ़ने का सही तरीक़ा ढूँढ लिया।

अर्जुन: "हमें सही प्लेट्स पर हमें दो-दो के जोड़े में चलना होगा। एक ग़लत क़दम और हम सब बर्फ़ के नीचे दब जाएँगे।"

विक्रम: "मास्टर, हम पाँच लोग हैं। किसी एक को यहाँ रुकना होगा।"

अर्जुन: "हाँ, यह सही है। आइशा, तुम यहीं हमारा इंतज़ार करो। बाक़ी चारों आगे बढ़ेंगे।"

अर्जुन और सम्राट ने एक जैसी प्लेट पर एक साथ क़दम रखा। प्लेट हल्की-सी हिलने लगी।

पूरी टीम सतर्क थी। एक भी गलती उन्हें मौत के मुँह में धकेल सकती थी। अर्जुन और सम्राट ने धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए गेट तक का सफ़र तय किया। अब बारी मीरा और विक्रम की थी।

दोनों सँभलते हुए आगे बढ़ रहे थे, लेकिन तीसरी प्लेट पर पहुँचते ही मीरा का संतुलन बिगड़ गया।

विक्रम: "नहीं, मीरा! ख़ुद को संभालो!"

लड़खड़ाते हुए मीरा ने ख़ुद को संभाल लिया और दोनों धीरे-धीरे गेट तक पहुँच गए।

विक्रम: "ये... हो गया! हमने इसे कर दिखाया!"

अब बारी गेट खोलने की थी। मंदिर के गेट पर कहीं भी हैंडल नहीं दिख रहा था। विक्रम ने गेट को धक्का देकर खोलने की कोशिश की, लेकिन गेट टस से मस नहीं हुआ।

सभी गेट खोलने के लिए प्रयास कर रहे थे, तभी अर्जुन की नज़र गेट पर बनी एक मूर्ति पर पड़ी, जिसका एक हिस्सा गायब था।

काफी देर सोचने के बाद अर्जुन की आँखों में चमक आ गई। उन्होंने जेब से शिलालेख का टुकड़ा निकाला और उसे मूर्ति में फिट कर दिया।

अर्जुन: "विक्रम, अब धक्का मारो... गेट खुल जाएगा।"

विक्रम ने गेट को धक्का दिया और भारी-भरकम दरवाज़ा एक जोरदार आवाज़ के साथ खुल गया।

आखिरकार, उन्होंने मंदिर का गेट खोल दिया। हिमालय की ठंड से जमे हुए इस मंदिर के भीतर क्या रहस्य छिपे थे, यह अभी भी अनजाना था। टीम मंदिर में दाखिल हुई।

मंदिर की अंदरूनी बनावट देखकर लग रहा था कि यह करीब तीन हज़ार साल पुराना होगा। मूर्तियों के बीच में एक दीवार खड़ी थी, जिसमें तीन रहस्यमयी दरवाजे थे। हर दरवाजे पर अलग-अलग जीवों के निशान बने थे।

मीरा: "मास्टर, अब हमें कौन-सा दरवाज़ा खोलना चाहिए?"

अर्जुन ने अपने पास रखे नक़्शे और पांडुलिपि को निकाला। पांडुलिपि में इन दरवाजों और उनके पीछे छिपे खतरों का ज़िक्र था। सही दरवाज़ा उन्हें चाबी तक ले जा सकता था, लेकिन ग़लत दरवाज़ा खोलने का अंजाम खतरनाक हो सकता था।

अर्जुन: "पांडुलिपियों के मुताबिक, हमें चाबी तीसरे दरवाजे के पीछे मिलेगी। लेकिन वहाँ भी खतरे हो सकते हैं।"

टीम तीसरे दरवाजे तक पहुँची। दरवाज़ा खोलते ही वे अंदर चले गए।

कमरे के बीच में एक ऊँचे पत्थर पर स्लैब रखा हुआ था। उसके पार एक चाबी थी। लेकिन कमरा अपने आप घूमने वाले धारदार हथियारों से भरा था।

सम्राट: "यह तो मौत का पेंडुलम है! अगर हम इसके बीच गए, तो मारे जाएँगे।"

अर्जुन और विक्रम ने उन पेंडुलम की गति को ध्यान से देखा। उन्होंने बाक़ी टीम को इशारा किया और सही समय का इंतज़ार करने लगे।

अर्जुन: "विक्रम, तुम्हें स्लैब और चाबी लानी होगी। जब पेंडुलम सबसे ज़्यादा झूलेगा, तभी इसके नीचे से गुजरना। कोई गलती नहीं होनी चाहिए।"

विक्रम ने सही समय पर पेंडुलम के नीचे से दौड़ते हुए निकल और स्लैब और चाबी तक पहुँचने में कामयाब हुआ।

विक्रम: "बच गया! यह सच में बहुत नज़दीक था।"

अर्जुन: "विक्रम, स्लैब और चाबी उठाकर जल्दी वापस आओ।"

विक्रम ने चाबी उठाकर अपनी जेब में रख ली, लेकिन जैसे ही उसने स्लैब उठाने की कोशिश की, पत्थर ज़मीन में धँसने लगा। पूरा मंदिर गड़गड़ाहट के साथ हिलने लगा।

विक्रम: "मास्टर, ये क्या हो रहा है?"

अर्जुन : "विक्रम, स्लैब छोड़ दो और जल्दी आओ। सम्राट, मीरा, तुम दोनों बाहर निकलो। मैं और विक्रम अभी आ जाएँगे।"

विक्रम पेंडुलम को पार करते हुए लौटने लगा। सम्राट और मीरा भागकर बाहर निकल गए, तभी सबको अर्जुन की चीख सुनाई दी।

अर्जुन के साथ ऐसा क्या हुआ, जिससे उनकी चीख निकल गई? क्या अर्जुन और विक्रम सुरक्षित बाहर निकल पाएँगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

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