अर्जुन के पास स्लैब था और उनकी टीम के पास खगोलीय नक्शा, जो उन्हें उनके सफ़र के अगले पड़ाव तक ले जाने वाला था। उससे पहले उनके सामने इस रेगिस्तान की आखिरी चुनौती थी—आइशा को उस लुटेरे से बचाना।
लुटेरे ने चाकू आइशा की गर्दन पर राखी हुई थी और पूरी टीम घबराई हुई थी। अर्जुन के चेहरे पर चिंता की एक भी लकीर नहीं थी, क्योंकि वह पहले भी ऐसी परिस्थितियों से निपट चुके थे।
लुटेरा धमकी भरे लहज़े में बोला, "मैंने कहा, मुझे वह स्लैब दे दो और मैं इस लड़की को छोड़ दूँगा... तुम्हारे पास सिर्फ़ बीस सेकंड हैं फ़ैसला करने के लिए।"
विक्रम: "हमारे पास सच में स्लैब नहीं है... हमारी दोस्त को जाने दो।"
अर्जुन: "मेरे पास वह स्लैब है। मैं तुम्हें दे दूँगा, लेकिन पहले उसे जाने दो।"
लुटेरे ने गुस्से से कहा, "मुझसे चालाकी मत करो। मेरे लिए किसी को मारना कोई बड़ी बात नहीं है... मैंने इस स्लैब के लिए कई लोगों को मौत के घाट उतारा है। मैं इस लड़की को मारने में एक पल की भी देर नहीं करूँगा।"
अर्जुन ने अपनी जेब से स्लैब निकाला, जिसे टीम के अन्य सदस्य नहीं जानते थे। स्लैब दिखाते हुए अर्जुन ने कहा,
अर्जुन: "मैं झूठ नहीं बोल रहा। यह रहा स्लैब... मैं इसे तुम्हारी तरफ़ फेंकूँगा और तुम उसे छोड़ दोगे।"
लुटेरे ने सरकास्टिक हंसी के साथ कहा, "हाँ, मैं इसे छोड़ दूँगा... अब स्लैब मेरी तरफ़ फेंको।"
जैसे ही अर्जुन ने स्लैब को लुटेरे की दाईं ओर फेंका, लुटेरा आइशा को छोड़कर स्लैब पकड़ने के लिए लपका। आइशा छूटते ही टीम की तरफ़ भागी, तभी अर्जुन ने अपनी बंदूक निकाली और गोली चला दी।
गोली लुटेरे के सिर के आर-पार हो गई और उसने वहीं दम तोड़ दिया। पूरी टीम अर्जुन के इस एक्शन से हैरान थी। सभी उन्हें फटी आँखों से देख रहे थे। किसी ने कभी नहीं सोचा था कि अर्जुन किसी की जान ले सकते हैं।
आइशा सुरक्षित थी और स्लैब भी उनके पास था। टीम यह जानना चाहती थी कि अर्जुन ने लुटेरे को मारने का फ़ैसला क्यों किया? सबके चहरे पर सवाल देखने के बाद, अर्जुन ने जवाब दिया,
अर्जुन: "मुश्किल समय में मुश्किल फैसले लेने पड़ते हैं।"
अर्जुन और उनकी टीम ने अगले पड़ाव, हिमालय की तरफ़ जाने की तैयारी में एक हफ्ता बिताया। अब टीम पूरी तैयारी के साथ हिमालय की ओर बढ़ रही थी। वे इस समय एक घने और रहस्यमयी जंगल में थे और लगातार बढ़ रहे थे।
उनके पास खगोलीय नक्शा, स्लैब और जादुई दर्पण की पहेली को हल करने के बाद, शिलालेख का एक और टुकड़ा था, जो उन्हें उनके अगले पड़ाव तक ले जा रहा था।
जंगल की हवा में एक अजीब-सी ठंडक थी, जो उनकी हड्डियों तक उतर रही थी। चारों ओर अनजाने खतरों का एहसास और दूर-दूर तक फैला हुआ जंगल। अर्जुन की टीम जैसे-जैसे जंगल में सावधानी से बढ़ाती, पीछे की पत्तियाँ आवाज़ करने लगतीं, जैसे कोई उनकी हर हरकत पर नज़र रख रहा हो।
विक्रम: "मास्टर, यह जंगल मुझे ठीक नहीं लग रहा। यहाँ कुछ तो अजीब है।"
अर्जुन: "हमें बस हिमालय तक पहुँचना है, विक्रम। आगे ध्यान दो और चलने पर फोकस करो।"
टीम आगे बढ़ने लगी। अचानक जंगल में रहने वाले कुछ अजीब-से लोग पेड़ों के पीछे से निकलकर उनके सामने आ गए। उनके शरीर पर चमड़े से बने पुराने कपड़े थे। उनके चेहरे सफेद रंग से पुते हुए थे और उनके सिर पर जानवरों की खोपड़ियों से बने मुखौटे थे। अर्जुन और बाक़ी लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले ही उन हिमवासियों ने उन्हें चारों तरफ़ से घेर लिया।
आइशा और मीरा इन लोगों को देखकर डर गईं।
आइशा: "मास्टर, ये लोग कौन हैं? और हमें क्यों घेर रहे हैं?"
वे लोग लंबे भाले, पत्थरों से बने धारदार औजार और लकड़ी के मोटे डंडों से लैस थे। उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, मानो वे किसी दूसरी ही दुनिया के निवासी हों। अर्जुन ने उनसे कहा,
अर्जुन: "हम यहाँ किसी को नुक़सान पहुँचाने नहीं आए हैं। हमारे सामने से हथियार हटा लो और हमें जाने दो। हमें बहुत दूर जाना है।"
हिमवासियों को उनकी बात समझ नहीं आई। वे अपनी अजीब भाषा में कुछ बोल रहे थे, जो अर्जुन और उनकी टीम की समझ से बाहर थी। हिमवासियों ने अचानक टीम पर हमला बोल दिया। उनकी संख्या इतनी ज़्यादा थी कि टीम चाहकर भी कुछ नहीं कर पाई।
उन्होंने एक-एक कर अर्जुन की टीम को रस्सियों से बाँध दिया और उन्हें अपने कबीले के अंदर ले जाने लगे।
आइशा: "मुझे नीचे उतारो... मास्टर, क्या ये लोग हमें मार देंगे?"
मीरा: "हमें छोड़ दो... कहाँ ले जा रहे हो हमें?"
जंगल के भीतर गहराई तक चलते-चलते वे लोग एक विशाल चट्टान के सामने पहुँचे। चट्टान के ऊपर काले रंग की एक बड़ी मूर्ति थी। यह मूर्ति उनके देवता की थी—एक खतरनाक दैत्याकार चेहरा, जिसकी आँखों से मानो खून टपक रहा हो। मूर्ति के पैरों के पास खून के धब्बे थे, जिससे ऐसा लग रहा था कि हाल ही में किसी की बलि चढ़ाई गई हो।
अर्जुन और उनकी टीम को बलि के लिए तैयार किया जा रहा था।
विक्रम: "मास्टर, ये हमारी बलि देने वाले हैं!"
सबको एक बड़े पेड़ से बाँध दिया गया और आदिवासी ख़ौफ़नाक डांस करने लगे। उनकी आँखों में दीवानगी झलक रही थी। वे अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए नगाड़े बजा रहे थे और बलि की तैयारी कर रहे थे।
सामने एक आदिवासी पुजारी खड़ा था। उसके लंबे सफेद बाल और गहरी लाल आँखें थी, जैसे वह किसी बहुत पुराने युग का इंसान हो। उसकी उम्र का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था, लेकिन उसकी चाल-ढाल से उसकी बुजुर्गियत साफ़ झलक रही थी।
पुजारी ने अपने हाथ ऊपर उठाए और आँखें बंद करके कुछ मंत्र पढ़ने लगा। अर्जुन और उनकी टीम के अंदर डर बढ़ने लगा। उनकी धड़कनें तेज़ हो गईं।
कुछ देर बाद अर्जुन को पकड़कर चट्टान पर लेटा दिया गया। उनके हाथ-पैर अब भी बँधे हुए थे। अर्जुन छूटने की कोशिश करने लगे, तभी उनकी जेब से स्लैब फिसलकर नीचे गिर गया।
चमकते हुए स्लैब को देखकर सभी आदिवासी डर गए और पीछे हटने लगे।
विक्रम: "रुको! इन्हें कुछ मत करो... मेरी बलि चढ़ा लो, लेकिन इन्हें छोड़ दो!"
स्लैब की चमक से पुजारी ने अपनी आँखें खोलीं। उसकी नज़र स्लैब पर पड़ी और एक पल के लिए वह भी ठिठक गया। उसके चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था। वह कुछ देर तक अर्जुन को अजीब नज़रों से देखता रहा। वह स्लैब के सामने झुक गया और अपनी भाषा में प्रार्थना करने लगा।
"भगवान का अंश... भगवान का अंश!"
पुजारी की इस हरकत से वहाँ खड़े सभी आदिवासी हैरान रह गए। अर्जुन और उनकी टीम भी यह सब देखकर दंग थी। पुजारी ने हिमवासियों को आदेश दिया और कुछ लोग दौड़कर टीम की रस्सियाँ खोलने लगे।
अचानक पूरे माहौल में एक अजीब-सी ख़ामोशी छा गई।
आइशा: "यह हो क्या रहा है? ये लोग अचानक इतनी इज़्ज़त क्यों दिखा रहे हैं?"
अर्जुन ने स्लैब उठाया और अपनी जेब में रखा। आदिवासी अब अपने हथियार ज़मीन पर रख चुके थे। पुजारी ने अर्जुन के सामने आकर एक चमकता हुआ मोर पंख उन्हें दिया। उसकी आँखों में अद्भुत श्रद्धा थी।
अर्जुन ने मोर पंख को ध्यान से देखा। पुजारी ने इशारों में समझाया कि यह पंख बहुत ख़ास है और आने वाले समय में उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
अर्जुन: "यह मोर पंख... इसका कुछ ख़ास मतलब ज़रूर है।"
हिमवासियों ने टीम का बहुत समय खराब कर दिया था। इसलिए अर्जुन और उनकी टीम वहाँ से तुरंत निकल पड़ी। उन्होंने जंगल को पार किया और हिमालय की ऊँचाइयों की ओर बढ़ने लगे।
हिमालय की बर्फीली हवाएँ अब उनके सफ़र को और मुश्किल बना रही थीं। चढ़ाई करते हुए उनकी उंगलियाँ सुन्न हो रही थीं। रास्ते में बर्फ के टूटने की आवाज़ें भी सुनाई दे रही थीं।
आइशा: "हमें यहाँ रुकना चाहिए... यह ठंड अब बर्दाश्त के बाहर है।"
विक्रम: "नहीं, आइशा। हम अब ज़्यादा दूर नहीं हैं। रात होने से पहले उस मंदिर तक पहुँचना बहुत ज़रूरी है।"
कठिन चढ़ाई के बाद टीम ने ऊपर पहुँचकर डेरा डाला। अर्जुन ने खगोलीय नक़्शा देखा और मंदिर की लोकेशन ढूँढने लगे। उन्हें एक प्राचीन मंदिर की तलाश थी, जो हजारों सालों से बर्फ में छिपा हुआ था।
इसी दौरान, विक्रम आस-पास घूम रहा था कि अचानक उसका पैर बर्फ में धँस गया। सम्राट और अर्जुन दौड़कर उसके पास पहुँचे और बर्फ हटाकर उसका पैर निकाला।
बर्फ हटाने के दौरान अर्जुन की नज़र एक पत्थर पर पड़ी। उस पत्थर में एक चौकोर जगह खाली थी और उस पर लिखा था कि यहाँ चाबी लगानी होगी।
अर्जुन: "इसकी चाबी का साइज बिल्कुल इस स्लैब की तरह है... हो सकता है यही इसकी चाबी हो।"
अर्जुन ने स्लैब निकाला और उसे उस पत्थर में लगा दिया। स्लैब उसमें बिल्कुल फिट हो गया। पत्थर धीरे-धीरे घूमने लगा और ज़मीन में समा गया। उनके पैरों तले कंपन होने लगा और पत्थरों की गड़गड़ाहट के साथ उनके सामने वाले पहाड़ की बर्फ धंसने लगी।
बर्फ के धंसते ही उनके सामने से एक अदृश्य मंदिर प्रकट हो गया। पूरी टीम के चेहरों पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई।
अचानक विक्रम ने देखा कि स्लैब वाला पत्थर बहुत गहराई तक ज़मीन में चला गया है।
क्या टीम अर्जुन को स्लैब वापस मिलेगा? और क्या हिमालय का यह मंदिर अर्जुन और उनकी टीम को उनके अगले टास्क की ओर ले जाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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