रेगिस्तान की तपती रेत और बवंडर जैसी तेज़ हवाओं के बीच, अर्जुन और उनकी टीम एक रहस्यमयी वेधशाला की ओर बढ़ रहे थे। उनकी मुश्किलें थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं। कुछ देर पहले देखे गए अजनबी सायों का डर और पानी की कमी ने सभी को बेहाल कर दिया था।

सम्राट को रेगिस्तान में कुछ दूरी पर पानी दिखाई दिया। वह तेजी से उसकी ओर भागा। सब उसे भागता देखकर उसके पीछे चल पड़े। सम्राट ने पागलों की तरह रेत को पानी समझकर हाथों में भर लिया और पीने की कोशिश की, तभी विक्रम ने उसका हाथ झटक दिया।

विक्रम: "ये तुम क्या कर रहे हो... ये तो बस रेत है, जो धूप में चमक रही है!"

अर्जुन: "हम सभी को प्यास लगी है, सम्राट, लेकिन ये बस पानी होने का भ्रम है... ये मृग-मरीचिका है। मिराज एक ऐसा फिनॉमिना है जिसमें रेगिस्तान में पानी नज़र आता है, लेकिन असल में वह बस चमकती हुई रेत होती है।"

सम्राट की हालत खराब थी। वह सोचने-समझने की शक्ति खो रहा था और बाक़ी टीम की हालत भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं थी। सम्राट के पीछे भागने में अर्जुन, विक्रम और मीरा को आइशा का ध्यान ही नहीं रहा। वह वहीं पीछे छूट गई थी। जब टीम को एहसास हुआ कि आइशा उनके साथ नहीं है, तो वे वापस उसे ढूँढने दौड़े।

अर्जुन: "आइशा! आइशा, कहाँ हो तुम?"

विक्रम: "आइशा! आइशा!"

आइशा वहाँ नहीं थी। चारों ओर खोजने के बाद भी वे उसे ढूँढ नहीं पाए। उनकी आँखें केवल दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान को देख सकती थीं। टीम पहले से ही परेशान थी, लेकिन आइशा के गायब होने से उनकी परेशानी और बढ़ गई।

अर्जुन को अचानक याद आया कि कुछ देर से उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे कोई उनका पीछा कर रहा हो। उनका शक उस आदमी पर भी गया, जो रेत के तूफान के बीच दिखा था और पल भर में गायब हो गया था।

दूसरी तरफ़ राजवीर और कर्नल के लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि अर्जुन और उनकी टीम कहाँ गायब हो गई। राजवीर और मानसिंह, अब भी हथियारबंद लोगों के साथ, केरल के जंगलों में भटक रहे थे।

राजवीर एक हफ्ते से अर्जुन की टीम को ढूँढ रहा था। जंगल में पीछा करने वाले लोगों ने आखिरी बार, उन्हें समंदर के किनारे से जंगल की ओर जाते देखा था। उसके बाद से उनका कोई सुराग नहीं मिला।

राजवीर ने तय कर लिया था कि खज़ाने को पाने के लिए उसे बड़ा क़दम उठाना पड़ेगा। उसने लोगों की टुकड़ियाँ बनाकर जंगल और घाटियों में खोजबीन के लिए भेज दी थीं। वह अब कर्नल से छुटकारा चाहता था, क्योंकि उसकी ज़रूर अब ख़त्म हो चुकी थी।

इधर पूरे दिन आइशा को ढूँढने के बाद, अर्जुन और उनकी टीम थककर रेत के टीले पर बैठ गई। सबके चेहरों पर उदासी और पानी की कमी से झलकता हुआ दर्द था।

अर्जुन: "मुझे सबका ध्यान रखना चाहिए था। मेरी गलती से आइशा गायब हो गई। अगर उसे कुछ हो गया तो मैं ख़ुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगा।"

विक्रम: "उसे कुछ नहीं होगा, मास्टर। आप ख़ुद को दोष मत दीजिए। इसमें मेरी भी गलती है। हम आइशा को ज़रूर ढूँढ लेंगे।"

अचानक कहीं से एक आवाज़ सुनाई दी, लेकिन कोई दिखाई नहीं दिया।

"तुम जिसे ढूँढ रहे हो, मैं तुम्हें उस तक पहुँचा सकता हूँ।"

सब अचानक चौंककर खड़े हो गए और घबराकर चारों ओर देखने लगे।

विक्रम: "कौन हो? सामने आओ!"

एक आदमी वहाँ रहस्यमयी ढंग से प्रकट हो गया।

वह आदमी सिर से पैर तक काले कपड़ों में लिपटा हुआ था। उसके हाथ में पानी देखकर सम्राट की आँखें चमक उठीं। सम्राट उस पानी को लेने के लिए लपका, लेकिन वह आदमी गायब होकर उनके पीछे जा पहुँचा।

उस आदमी ने हँसते हुए कहा-"हा हा हा... तुम मुझसे यह पानी नहीं छीन सकते!"

सब उस आवाज़ को सुनते ही उसकी ओर मुड़ गए... उस आदमी ने अपने चेहरे से चोगा हटाया।

अर्जुन: "कौन हो तुम? और तुमने हमारी टीम मेंबर को कहाँ छुपाया है?"

"मैंने उसे नहीं छुपाया। उसे तो वह लुटेरा उठा ले गया है... मैं तो बस भटके हुए को जंतर-मंतर की वेधशाला का रास्ता दिखाता हूँ।" उस आदमी ने कहा।

अर्जुन: "हमें हमारी टीम मेंबर कहाँ मिलेगी? और बताओ, जंतर-मंतर की वेधशाला कहाँ है?"

विक्रम: "अगर तुम मदद कर सकते हो तो हमें पानी भी चाहिए, वरना हम मर जाएंगे।"

अनजान आदमी ने कहा, "मैं तुम्हें ये पानी दे दूँगा... तुम पी सकते हो, लेकिन फिर तुम्हें जंतर-मंतर की वेधशाला और वह लड़की नहीं मिलेगी। तुम्हें उन्हें भूलना होगा... ये लो, पानी पीकर अपनी जान बचा लो और वापस लौट जाओ।"

सम्राट उस पानी के लिए तड़प रहा था। उसने बोतल ले ली और ढक्कन खोलने लगा, तभी अर्जुन और विक्रम ने चिल्लाकर उसे रोका।

अर्जुन: "सम्राट, रुक जाओ! अगर पानी पिया तो हमें आइशा नहीं मिलेगी।"

विक्रम: "सेल्फिश मत बनो, सम्राट। आइशा हमारे लिए पानी से ज़्यादा ज़रूरी है और वेधशाला पहुँचना भी।"

सम्राट ने अपने काँपते हाथों को काबू किया और मन मारकर बोतल वापस उस आदमी को दे दी। इतनी खराब हालत में भी उसने हिम्मत दिखाते हुए, अपने बारे में न सोचकर आइशा और मिशन को प्राथमिकता दी। बोतल वापस लेते ही उस आदमी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

अर्जुन: "हमें पानी नहीं चाहिए, हमें आइशा और वेधशाला का पता चाहिए।"

अनजान आदमी ने कहा, "तुमने बहुत सही फ़ैसला किया है... तुम्हें अपने से ज़्यादा अपने लोगों की चिंता है और तुम्हारी जान से ज़्यादा तुम्हें अपना मिशन प्यारा है। ये एक परीक्षा थी, जिसमें तुम पास हो गए।"

विक्रम: "मतलब?"

"मैं जंतर-मंतर की वेधशाला का रक्षक हूँ। तुम लोग वहाँ जाने के काबिल हो। ये लो, अब तुम ये पानी पी सकते हो।" उस रक्षक ने कहा।

विक्रम: "क्या सच में? अब हम पानी पी सकते हैं?"

"हाँ, बिल्कुल। तुमने परीक्षा पास कर ली है... अब ये पानी तुम्हारा है।" उस रक्षक के मुंह से ये सुनते ही टीम के चेहरे पर ख़ुशी छा गई। सबने पानी पिया। रक्षक ने उनकी जान बचा ली थी, लेकिन अब भी उन्हें आइशा और जंतर-मंतर वेधशाला का पता लगाना था। उसी वेधशाला से उन्हें खगोलीय नक़्शा भी मिल सकता था।

रक्षक ने टीम से कहा, "तुम्हें पहले जंतर-मंतर की वेधशाला में जाना होगा। वह लुटेरा, जो उस लड़की को ले गया है, वहाँ नहीं जा सकता। इसीलिए वहाँ से मिले स्लैब के बदले वह तुमसे उस लड़की का सौदा ज़रूर करेगा, लेकिन यह तुम्हारी दिक्कत है। मैं तुम्हें सिर्फ़ वेधशाला तक पहुँचा सकता हूँ।"

अर्जुन: "ठीक है, आप हमें वेधशाला तक पहुँचा दीजिए। उसके बाद हम देख लेंगे।"

उस आदमी ने टीम अर्जुन को रास्ता दिखाते हुए रेगिस्तान में जंतर-मंतर की वेधशाला तक पहुँचा दिया। अर्जुन और उनकी टीम ने जब रेगिस्तान में खड़े इस अजूबे को देखा, तब उन्हें समझ आया कि इसे जंतर-मंतर क्यों कहा जाता है।

वह पूरी वेधशाला भारत में बने अन्य जंतर मंतर से बिल्कुल अलग दिखाई दे रही थी।

आधी रात हो चुकी थी और आसमान सितारों से जगमगा रहा था। आसमान में उन सितारों को देख और समझकर नक़्शा बनाने का यह सबसे सही समय था। उस आदमी ने बताया था कि यह जंतर मंतर केवल दो घंटे तक ज़मीन के ऊपर रहता है और उसके बाद दो घंटे के लिए रेत के नीचे दब जाता है।

विक्रम वेधशाला में सबसे पहले अंदर गया और उसके पीछे पूरी टीम।

कमरे में क़दम रखते ही दरवाज़ा बंद हो गया। गिरती हुई धूल और पुरानी चीज़ों की गंध के बीच, अर्जुन और उनकी टीम ने ख़ुद को तैयार किया। उन्हें एहसास हुआ कि वे अब सिर्फ़ समय और धूल से नहीं लड़ रहे थे, बल्कि एक पूरी तरह से नए ख़तरे का सामना कर रहे थे।

यह प्राचीन वेधशाला, जिसमें खगोलीय गतिविधियाँ होती रही थीं, अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए थी। टीम ने छानबीन करते हुए देखा कि वेधशाला में कई ऐसे उपकरण थे, जिनका उपयोग समय-समय पर ज्योतिषियों द्वारा किया गया था। इन उपकरणों से सितारों को बारीकी से देखा जा सकता था। खगोलीय नक़्शा सही तरीके से सेट करने के लिए टीम ने इन उपकरणों का इस्तेमाल करना शुरू किया।

अर्जुन: "हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है। यह दो घंटे बाद ज़मीन में चला जाएगा। जल्दी से इन उपकरणों को देखो और नक़्शा बनाओ। मैं तब तक स्लैब ढूँढता हूँ, लेकिन सब सतर्क रहना।"

विक्रम: "यह शोर किसका है?"

अर्जुन: "सावधान रहो! उस महल की तरह हमें इसमें फँसना नहीं है।"

मीरा, सम्राट और विक्रम ने मिलकर खगोलीय नक़्शा बनाने में जुट गए और अर्जुन स्लैब ढूँढने लगे।

टीम ने सितारों से एक खगोलीय नक़्शा निकाला और उसकी जाँच की। नक़्शे पर उन स्थानों को चिह्नित किया गया था, जहाँ प्राचीन काल में खगोलीय शोध किए जाते थे। इसमें कई यंत्र और उपकरण शामिल थे, जिनका उपयोग पुराने समय में ज्योतिषियों द्वारा किया गया था।

टीम ने एक अलग तरह के यंत्र को जांचना शुरू किया। वह एक प्राचीन 'सूर्य घड़ी' थी। यह यंत्र सूर्य की स्थिति और समय को मापने के लिए उपयोग किया जाता था। जैसे ही मीरा ने उसे सक्रिय किया, एक घंटी की आवाज़ गूँज उठी।

यंत्र के सक्रिय होते ही, वेधशाला में एक छुपा हुआ दरवाज़ा खुलने लगा। यह दरवाज़ा एक अंधेरे कमरे की ओर जाता था। अर्जुन अंदर चले गए। मीरा ने एक बॉक्स खोला, जिसमें कुछ पुराने और जर्जर कागज़ थे, जिन पर कैलकुलेशन लिखी हुई थी।

मीरा: "ये कैलकुलेशन शायद हमें आगे का नक़्शा बनाने में मदद कर सकते हैं।"

उन कागज़ों में खगोलीय घटनाओं, ग्रहों की स्थिति और पुराने ज्योतिषियों के प्रयोगों की जानकारी थी। इन जानकारियों ने अगले सुराग की ओर इशारा किया। मीरा ने इन कागज़ों का उपयोग करके एक खगोलीय नक़्शा तैयार किया, जिसमें आगे के पड़ाव की जानकारी थी।

अर्जुन को उस अंधेरे कमरे में वह स्लैब मिल गया। स्लैब पर तीन निशान थे। अर्जुन स्लैब उठाकर बाहर आने लगे, तभी पूरी वेधशाला हिलने लगी और वहाँ बीच में एक बड़ा गड्ढा हो गया।

मीरा: "यह गड्ढा कैसे हो गया...? लगता है भूकंप आ रहा है!"

अर्जुन भागते हुए बाहर आए और टीम को भी तुरंत बाहर निकलने को कहा।

अर्जुन: "हमें जल्दी निकलना होगा। यह जगह ज़मीन में जा रही है... क्या तुम्हें खगोलीय नक़्शा मिला?"

विक्रम: "हाँ, हमें मिल गया हैं।"

जैसा कि उस आदमी ने पहले ही बताया था, वेधशाला धीरे-धीरे ज़मीन के अंदर समा रही थी। टीम नक़्शा बनाने में सफल रही। अर्जुन और उनकी टीम वेधशाला से बाहर निकलने में कामयाब रही।

बाहर निकलते ही उन्होंने देखा कि सामने वह लुटेरा आइशा को लेकर खड़ा था।

"वह स्लैब और बाक़ी खज़ाना मुझे दे दो, नहीं तो मैं इस लड़की को मार दूँगा।" उस लुटेरे ने कहा।

अब अर्जुन क्या फ़ैसला लेंगे? क्या वह स्लैब देकर मिशन को दांव पर लगाएंगे, या फिर आइशा को बचाने का रास्ता खोजेंगे? जानने के लिए सुनिए पढ़ते रहिए। 

 

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